शब्द हैं...... ~ BOL PAHADI

13 October, 2010

शब्द हैं......



पहरों में
कुंठित नहीं होते शब्द
मुखर होते हैं
गुंगे नहीं हैं वे
बोलते हैं
शुन्य का भेद खोलते हैं


उनके काले चेहरे
सफ़ेद दुधली धुप में चमकने को
वजूद नहीं खोते अपना
मेरी या तुम्हारी तरह
झूठलाते नहीं रंगों को
काली रात या सफ़ेद दिन में

नईं सुबह की उम्मीद में

जागते हैं शब्द
 
सीलन भरे कमरों की
खिड़कियों से झांकते हुए
बंद दरवाजों से
दस्तकों का जवाब देते हैं
अपने होने के अर्थ में

शब्द हैं

पैरवी का हक है उन्हें
अपनी तटस्थता
साबित कर लेंगे वे
पैरवी करने दो उन्हें
मरेंगे नहीं शब्द
........

सर्वाधिकार- धनेश कोठारी 

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