स्वतंत्रता का इस्तेमाल सब कर रहे हैं


अयोध्या पर फैसला आ चुका है। हर कोई पचाने में लगा है। कुछ खुश होकर तो कुछ नाखुशी के साथ। कोर्ट के आगे पचाने को विवश हैं सब। कैमरे के आगे नाटक जारी है। लेकिन पचाने की इस प्रक्रिया के दौरान ही अपनी जीत से ज्यादा दूसरे की हार को सेलेब्रेट करने को बहुत से आतुर हैं। तरीका तलाशा जा रहा है। आने वाले दिनों में इसका प्रमाण भी सामने आयेगा। क्योंकि समाज भले ही सह अस्तित्व की बुनियाद के लिए लगातार प्रार्थना करें। लेकिन इसी समाज से सत्ता का रास्ता भी बनाया जाना है। 

इसी से पाखंडों और आडम्बरों की दुकानें भी चलायी जानी हैं। और बगैर हवा दिये यह संभव नहीं। भले ही एड लाइन में कहें कि डर के आगे जीत है। लेकिन यहां मैं कहूंगा कि डर को दुत्कारने के बाद ही जीत का जामा पहना जा सकता है। तो फिर अब तक के ‘कब्ज’ के बावजूद यह निर्णय हजम हो पायेगा? खासकर उन्हें जिनके लिए यह विवाद एक ऐसा ऐरावत था जिसमें सबको पछाड़ने की कुव्वत मानी जाती रही है।


चौबीस घंटे में ही पक्ष-विपक्ष के मुंह से संयम का बंध खुलने के साथ ही नाखून भी तेज होने की कवायदें होने लगी हैं। सुन्नी वक्फ बोर्ड के साथ ही हिन्दू महासभा दोनों सुप्रीमकोर्ट जाने की तैयारी में लग चुके हैं। हो न हो इसके साथ ही निर्णयों को प्रभावित करने के लिए ताकत दिखाने के प्रयास भी किये जायें। 


इस निर्णय के बाद कैमरे में कोई कह रहा है कि अब मौत भी कबूल है। कोई कह रहा है कि हमें मिला ठीक, लेकिन उन्हें हिस्से में क्यों शामिल किया गया। कुछ कह रहे हैं कि जब विवादित स्थल को मंदिर या मस्जिद मान लिया गया तो फैसला भी एक के पक्ष में होना चाहिए था। निश्चित ही कुछ खुले दिमाग के लोग इस निर्णय को ही अंतिम मानकर आगे देश में सद्भाव कायम रखकर प्रगति के पथ पर अग्रसर होने की राह भी दिखा रहे हैं। यानि स्वतंत्रता का इस्तेमाल सब कर रहे हैं। हम तो यही कहेंगे कि इससे आगे बढ़ते हुए दोनों को एक दूसरे के लिए वहां इबादत का न्यौता मिलना चाहिए। यह देश को दुनिया के शीर्ष पर पहुंचाने का एक रास्ता है।