December 2010 ~ BOL PAHADI

01 December, 2010

चौंठी भुक्कि

छौं मि ये ही मुल्क कु,
भुलिग्यों यख कि माया
भुलिग्यों वा चौंठी भुक्कि,
कोख जैंन मि खिलाया

कन नचदा रांसौं मण्डाण,
चड़दा कन युं ऊंचा डांडौं
क्या च कौंणि कंडाळी कु स्वाद,
हिसर खिलदा कन बीच कांडौं
भुलिग्यों दानों कु मान,
सेवा पैलगु शिमान्या

कैन बंटाई पुंगड़्यों कि धाण,
द्याई कैन गौं मेळ्वाक
कख च बगणि धौळी गंगा,
गैन कख सी काख कांद
याद नि च रिंगदा घट्ट,
चुलखांदों कि आग खर्याया

रुड़्यों धर मा फफरांदी पौन,
ह्‍युंदै कि निवाति कुणेटी
मौ कि पंचमी, भैला बग्वाळ्,
दंग-दंगि सि पैडुल्या सिलोटी
बणिग्यों मि इत्यास अफ्वू मा,
बगदिग्यों थमण नि पाया

Source : Jyundal (A Collection of Garhwali Poems)
Copyright@ Dhanesh Kothari

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