30 May, 2012

आप सभी का आभार

11000 से अधिक लोगों द्वारा बोल पहाड़ी ब्‍लॉग का अवलोकन करने और समय-समय पर पीठ थपथपाने के लिए मैं आप सभी सुधि पाठकों का तहेदिल से शुक्र गुजार हूं। उम्‍मीद करता हूं कि विजिट करने के साथ आपका स्‍नेह विचारों, शब्‍दों, मार्गदर्शन और समालोचना के रुप में भी मिलेगा। बोल पहाड़ी का मकसद ही है कि वह अपने लोक जीवन को साथ लेकर चलते हुए उसके भविष्‍य को भी विचारों से पैनी धार दे, ताकि उत्‍तराखंड की मूल अवधारणा सा‍कार हो सके है।
आईए बोलने की आदत डालें .... जमकर बोलने की..... जो पहाड़ों की संस्‍कृती, सामाजिकता, परंपराओं को सहेजते हुए विकास में अपना कुछ न कुछ योगदान दे सके।
एक बार फिर आप सभी पाठक वृंदों का साधुवाद।

27 May, 2012

हो गई है पीर पर्वत सी..


हमने आवाजें उठाई, मुट्ठियां भींची लहराई, ललकारा, लड़े भीड़े तो एक अलग राज्‍य को हासिल किया। मगर, फिर जुदा होने की खुशी में इतना मस्‍त हो गए कि अपने आसपास कचोटते सवालों की चुभन को अनदेखा कर दिया, चुप हो गए। खुद भी लूटने खसोटने वालों के साथ मशरुफ हो गए।

दौड़ पड़े उंदार की तरफ... लेकिन जो जानते थे कि ऊपर चढ़ने का क्‍या फायदा है, उन्‍होंने बंजर जमीनें भी खरीद डाली, और अपने भविष्‍य की पैरा (बुनियाद) रखने रखने शुरू कर दिए। उन्‍हें पनाह भी हमने ही दी। उनसे हमें शिकायत भी न हुई, बल्कि वे हमारी शिकायत कर रहे हैं, सरकारों में हमारे लोगों की बदौलत तूती भी उन्‍हीं की बोल रही है। हमें हमारे सवालों की तरह अनसुना कर दिया जा रहा है।

हम कल जहां से चले थे, लगता है कि हम वहां से आगे बढ़ ही नहीं, ठहर से गए हैं।
लिहाजा ऐसे में दुर्दांत समय में चुप नहीं रहा जा सकता। बोलना तो पड़ेगा, अपने लिए न सही अपने भोळ (भविष्‍य) की खातिर। अब बोलना ही होगा, जुबां से सारे ताले खोलने ही होंगे। वरना तैयार रहिए नेपथ्‍य में धकेले जाने के लिए....।

क्‍या आप बोलेंगे....
हम आवाज देते हैं....
बोल पहाड़ी बोल.....।

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