30 June, 2011

हल्दी हाथ के वक्त पंचदेव आदि पूज़ा मांगळ

Panchdev Pooja : An Auspicious Garhwali Wedding Folk Song
Presented by Bhishma Kukreti
( Curtsy : Totaram Dhoundiyal , Mangal , book published by Dhad Prakashan  Dehradun )
(Garhwali Wedding Folk songs, Himalayan Wedding Folk Songs, Wedding Folk Songs)
This song is sung by village women and professional singer together or separately. the song is sung when Pundit jee is also performing Gaesh poojan for haldi hath or Ban Deen ceremony and calling all deities  . In this auspicious folk songs the manglers (who sing Mangal) requesting Barma jee (the creator of this Galaxy) for performing the pooja odf lord Ganesh, Bhoomi (the earth), Pitars (forefathers) , and all Nine Grahsa and deities. The singers also do offer respect  of Vedas created by Barma jee
There is mention of how the pooja will be performed, what are the requirement for Pooja performance .
The songs enhance the joy of wedding ceremony and is capable bringing very powerful  positive energy at the Haldi Hath ceremony (pasting turmeric and herbal paste on bride and/or groom at their respective home )  , The das use to play Dhol and Damau in very slow rhythm  along side of the ceremony . The Das or Aujee pair (Drum players ) play a special tune for the ceremony. If the bagpiper wala is also their the bagpiper player will play bagpiper in the same tune of singer making the atmosphere very specia

सागसी ह्वेजावा  सागसी ह्वेजावा गौरी गणेश
सागसी ह्वेजावा गौरी गणेश ए s s s

गौरी गणेश गौरी गणेश विश्णु महेश
गौरी गणेश विश्णु महेश ए s s s

पैलि पूजा पैलि पूजा गणेश माराज
पैलि पूजा गणेश माराज ए
गणेश माराज गणेश माराज द्याला आशीष
गणेश माराज द्याला आशीष ए
ह्त्युं जोड़ीक ह्त्युं जोड़ीक सीस नवैक
ह्त्युं जोड़ीक सीस नवैक ए
केकेन बरमा जी केकेन बरमा जी गणेश बणयू च
केकेन बरमा जी गणेश बणयूँ च ए
गाई गोबरा को गाई गोबरा को गणेश बणयूँ  च
गाई गोबरा को गणेश बणयूँ  च ए
केकेन बरमा जी केकेन बरमा जी गणेश पुर्युं च
केकेन बरमा जी गणेश पुर्युं च
पिस्युं पीठ क पिस्युं पीठ कु गणेश पुर्युं च
पिस्युं पीठ कु गणेश पुर्युं च ए
कै घsर होलो  कै घsर होलो शंख शबद
कै घsर होलो शंख शबद ए
कै घsर होलो कै घsर होलो घांडी शबद
कै घsर होलो कै घsर होलो ए
पितर लोक पितर लोक तकम को लालो 
पितर लोक तकम  को  लालो ए
ऐजावा पितरो ऐ जावा पितरो मैं मात लोक
ऐ जावा पितरो मैं मात लोक ए
मै मात लोक, मैं मात लोक पाथ्युं कारिय
मैं  मात लोक पाथ्युं  कारिय ए
के केन बरमा जी गणेश पुजला केकेन बरमा जी
के केन बरमा जी गणेश पुजला ए
फुलून धूपुंन फुलून धूपुंन गणेश पुजला
फुलून धूपुंन गणेश पुजला ए
अखंड मोत्यूंन अखंड मोत्यूंन गणेश की पूजा
अखंड मोत्यूंन  गणेश की पूजा ए
कारा कारा बरमा जी कारा कारा बरमा जी भूमि की पूजा
कारा कारा बरमा जी भूमि की पूजा ए
भूमि की पूजा भूमि की पूजा सूर्य की पूजा
भूमि की पूजा सूर्य की पूजा ए
सूरया की पूजा सूरया की पूजा चंदरमा की पूजा
 सूरया की पूजा चंदरमा की पूजा  ए
कारा कारा बरमा जी कारा बरमा जी विष्णु की पूजा
विष्णु की पूजा विष्णु की पूजा ए
खोली द्यावा खोली द्यावा बरमा जी पोस्तु का वेद
खोली द्यावा बरमा जी पोस्तु का वेद  ए
तुमर वेदूंन तुमर वेदूंन जग उदंकार
तुमर  वेदूंन जग उदंकार

Copyright for commentary @
Bhishma Kukreti

25 June, 2011

विलेन बनना चाहता है आज का आदमी

https://bolpahadi.blogspot.in/
गढ़वाली लोक कलाकार रामरतन काला किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उन्होंने बहुत से नुक्कड़ नाटकों और मंचीय कार्यक्रमों में भाग लिया। कई गढ़वाली फिल्मों और एलबमों में वह अभिनय का लोहा मनवा चुके हैं। स्यांणी, नौछमी नारेणा, सुर्मा सुरेला, हल्दी हात, तेरी जग्वाल, बसंत अगे आदि उनकी चर्चित एलबम हैं। उनसे बातचीत के अंश-

आपका बचपन कहां बीता और शिक्षा-दीक्षा कहां हुई?
मैं बचपन में बहुत शैतान था। पदमपुर, कोटद्वार में जन्म हुआ। यहीं बचपन बीता और शिक्षा-दीक्षा हुई। पिताजी आर्मी में थे। मुझे भी आर्मी में जाना ही था, लेकिन पता नहीं क्या कारण थे कि मैं फौजी की बजाए कलाकार बन गया। विद्यालय से ही कलाकार के लक्षण पैदा होने लगे थे। अध्यापक मानने लगे थे कि यह आर्टिस्ट है। विद्यार्थी जीवन में ही मैं स्टेबलिश आर्टिस्ट हो गया था। मैंने हास्य-व्यंग्य वाले गीत भी गाए हैं, लेकिन मूलरूप से मैं रंगकर्मी हूं। नाट्य विद्या का आदमी हूं।

शिक्षा के बाद आजीविका का साधन क्या अपनाया और अपने कलाकार को कैसे बचाए रखा?
आजीविका के लिए मैं कहीं नहीं गया। मुझे यह डर होने लगा था कि मैं घर से बाहर चला गया, गढ़वाल से मैं पश्चिममुखी हो गया तो मेरे अंदर का कलाकार मर जाएगा। इसलिए मैंने स्ट्रगल किया और यहीं का होकर रह गया। कोटद्वार में रहते हुए भी नजर हमेशा पहाड़ों की ओर रही। और जो कुछ सीखा, जो कुछ किया, वो सब पहाड़ों से। बेटी, माता, बहनों, बुजुर्गों से सीखा और उन्हें ही दिया।

आजीविका कैसे चलाई?
एक तो मेरे पास खेती है। खेती के समय में मैं कहीं नहीं जाता। एक-दो जगह दुकान की। दुकानदारी ठीक चली, लेकिन इधर-उधर जाने के लिए शटर डाउन करना पड़ता। नौकरी भी की, लेकिन वह सूट नहीं हुई। नौकरी में- ‘ओ काला, ओ फल्लाणें, वो ठिमके।Ó यह मुझे रास नहीं आया। मैंने कहा कि मैं सामान्य आदमी हूं, सामान्य जिंदगी जीना चाहता हूं। ‘ओ कालाÓ क्या हुआ? इस तरह से नौकरी भी नहीं चल सकी और दुकानदारी भी नहीं चल पाई, लेकिन खुदा का शुक्र है कि सांस्कृतिक गतिविधियों से पैसा मिलने लगा। उसी से थोड़ी-बहुत आजीविका चलने लगी।

शिक्षा पूरी करने के बाद आपका पहला महत्वपूर्ण कार्यक्रम कब हुआ?
1985 में लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी, मैं और 27 आदमी बंबई गए थे। वहां प्रवासी पहाड़ियों के बीच गढ़वाल से पहली टीम हम लोगों की गई। हमने कार्यक्रम किया। लोगों ने बहुत सराहा। उससे कुछ पहले हम लोग इलाहाबाद कुंभ में गए थे। लगभग 60-70 लाख श्रद्धालु के बीच हमारे कार्यक्रम होते। ये दो कार्यक्रम मुझे याद हैं। इनके बाद यह सिलसिला चलता रहा। विभागीय कार्यक्रम मिले, मेरा खुद का ग्रुप है, नेगी जी बुलाते हैं, अनिल बिष्टï बुलाते हैं, दिल्ली गया, मुझे याद नहीं कि मैं कहां-कहां गया।

फिल्मों और एलबम की तरफ कैसे आए?
मेरी पहली फिल्म ‘कौथीग’ है। इसमें मैंने चाचा का रोल किया। आज भी लोगों को बहुत पसंद आता है। उससे पहले या बाद में संस्कृत में सीरियल किया था- ‘शकुंतला’। दिल्ली की कोई टीम थी। फिल्मों का सिलसिला जारी रहा। उम्र बढ़ रही थी। उम्र से हिसाब से छोटे-मोटे रोल मिलते रहे। एलबम का जमाना आ गया है। नरेंद्र सिंह नेगी के बारह-तेरह एलबम मैंने कर लिए हैं। हास्य-व्यंग्य मेरे करेक्टरों में साफ झलकता है। हास्य और व्यंग्य के साथ मैं कहानी को आगे बढ़ाता हूं। मेरा आग्रह है कि बहू-बेटियों के लिए हमारे बुजुर्गों के लिए, हमारे विद्यार्थी के लिए कुछ सीखने को होना चाहिए।

पहाड़ी फिल्मों या एलबमों की स्थिति से क्या आप संतुष्ट हैं?
इसमें बहुत कुछ करने की गुंजाइश है। कुछ दलाल किस्म के लोग घुसे हुए हैं, वे सरकार की तरफ से जो कुछ मिलता है, उसको हड़प जाते हैं या सरकारी क्रिया-कलापों को ठीक से नहीं होने देते। दूसरी बात- प्राइवेट सेक्टर में फिल्में और एलबम बना रहे लोग, उसमें बड़े-बड़े शहरों से ही कलाकार ले रहे हैं। गढ़वाल में प्रतिभा का खजाना भरा हुआ है। क्या नरेंद्र सिंह नेगी, दिल्ली, बंबई, लखनऊ में हो सकता है? मैं पहाड़ से हूं। क्या इस तरह का करेक्टर मैदान से आ सकता है? लोगों ने कोशिशें की हैं, लेकिन वे अप्रयाप्त हैं। पहाड़ के आदमियों को किसी तरह की सहायता मिले तो बहुत कुछ कर सकते हैं। अब तो देहरादून दूरदर्शन है, आकाशवाणी नजीमाबाद में है। पहाड़ में नदियां, झरने, जंगल, बर्फ, देवदार, बुरांश आदि बहुमूल्य संपदा होने के बाद भी लोग मैदानी क्षेत्रों में जा रहे हैं कि साहब, हमारे लिए एक एपीसोड बना दो। यह काम तो हमारे लड़के भी कर सकते हैं। सरकार और बुद्धिजीवियों से मेरा निवेदन है कि इस तरह के काम में सहयोग कर प्रतिभाशाली कलाकारों को मौका दें।

गढ़वाल कुमाऊँ में बहुत से महत्वपूर्ण कलाकार हैं लेकिन उन्हें प्रयाप्त महत्व नहीं मिला। इसका क्या कारण मानता हैं?
उसकी वजह यह है कि गढ़वाल मंडल और कुमाऊं मंडल को मिलाकर 13 जिले हैं। कुछ जिले मैदानी क्षेत्र में चले गए। उन्हें गढ़वाली से कोई मतलब नहीं। बचे नौ-दस जिले। वे भी दो पार्ट में बंटे हैं। इसके बावजूद गढ़वाल मंडल को लें तो कुछ साल से ही हम जौनसार के गीतों को गा रहे हैं। अन्यथा वह भी अलग था। तो गढ़वाल माने पौड़ी, चमोली, टिहरी और रुद्रप्रयाग। नरेंद्र सिंह नेगी, मैं या घन्ना भाई केवल यहीं देखे और सुने जाएंगे। जौनसार में जौनसारी कलाकार हैं। वहां पर वे लोकप्रिय हैं। इसी तरह कुमाऊं मंडल में अल्मोड़ा केंद्र है कला का। वहां चंदन सिंह बोरा हैं, उनकी पत्नी हैं। और भी कलाकार हैं। सब अलग-अलग हो गए हैं। अगर 13 जिलों का एक समूह होता, एक बोली, एक भाषा, एक खान-पान, एक रीति, एक रिवाज होता तो नरेंद्र सिंह नेगी और ऊंचे होते या अनिल बिष्टï या रामरतन काला या घन्ना या प्रीतम भारतवाण और प्रसिद्ध होते। एक कारण यह भी है कि बहुत छोटे स्तर पर हमारा पहाड़ फैला हुआ है। पहाड़ में दर्शक कम हैं। दर्शक तो बाहर चले गए हैं। गढ़वाली को हिंदी के साथ ही जोड़ लिया गया है। मुझे लगता है कि इसका भी नुकसान हुआ है? थोड़ा-बहुत नुकसान इस बात का भी हुआ है। मैं दूसरे प्रदेशों में बहुत गया हूं- आसाम, बंगाल, गुजरात, महाराष्ट, पूना आदि के लोगों के बीच। उनकी अपनी एक भाषा है। उसे गाते हैं, उसमें डांस करते हैं। उसकी रौनक ही अलग है। गढ़वाली की लिपि नहीं है, बाकि संस्कृति, बोल-चाल, खान-पान, रहन-सहन सबकुछ अलग है। बस अभाव है तो लिपि का।

आपने ग्रुप कब बनाया और उसके पीछे क्या सोच थी?
काला : ‘कौथगेर कला मंच’ के नाम से 1991 में ग्रुप बनाया। इसमें 18-20 कलाकार हैं।

आप ग्रुप के माध्यम से नए कलाकारों से मिल रहे हैं? आपको उनसे क्या उम्मीद है?
काला : मुझे बहुत अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि जितनी मेहनत हमने की, नए लड़के नहीं कर रहे हैं। नए लड़के बाल बढ़ाकर चाहते हैं कि वे गढ़वाली सीरियल में डांस कर दूं और रातों-रात हीरो बन जाऊं। या फिल्म में लंबे बाल बढ़ाकर विलेन बनूं। हीरो नहीं बनना चाहता आज का आदमी। वह अच्छा नहीं करना चाहता, क्रिएटिव नहीं करना चाहता। कुछ सीखना नहीं चाहता। इसका बड़ा दर्द है। इसे मैं ही नहीं, हर पुराना कलाकार कहेगा?

काला जी, अब तक किए काम से क्या आप एक कलाकार के रूप में संतुष्ट हैं?
संतुष्ट तो कलाकार कभी नहीं होता है। आप हालात देख रहे हैं। मैं बहुत बीमार था। अब कुछ ठीक हूं। अभी मुझे बहुत करना है। लोग तो कहते हैं कि यह बेस्ट हो गया है। नेगीजी की एलबल में- नया जमाना का कन उठि बौल- तिबरी डाण्डैल्युं मां रॉक एंड रॉल….गीत में अभिनय किया। एक बच्ची ने मुझे बाजार में देखा तो कहा कि यह तो जवान आदमी है। गीत में बूढ़ा कैसे हो गया? वह अपने पापा के साथ थी। उसने कहा कि मान लिया कि गीत में रोल इन्होंने ही किया है तो इन्हें कार में होना चाहिए था। साइकिल में क्यों है? मुझे बड़ा दर्द हुआ कि नए बच्चों की सोच जो है, वह यह कि कलाकार कार में ही घूम सकता है। साइकिल में क्यों जा रहा है? मेरी समझ में नहीं आया कि उस बेटी को कैसे समझाऊं?

साभार

19 June, 2011

हल्दी कुटणो सगुनो गीत (हल्दी कूटते वक्त का मांगल्य गीत )

Haldi Kutano Saguno Geet : The Auspicious Song at the Time of Grinding Turmeric and other Bulbs-Tubers
( Garhwali Wedding Auspicious Folk Song (Mangal)

Presented on Internet medium by Bhishma Kukreti

Curtsey : Totaram Dhaundiyal ‘Jigyasu’ , Garhwali Mangal , 
There are all types of folk songs in Garhwal (India) barring sea shore related songs or abhorrence songs .
In auspicious ritual folk songs Haldi Hath (pasting turmeric on bride or groom)  songs are very important aspects of Garhwali (Indian) society.

Before one day of marriage procession , the paste of turmeric, herbs,  and other tubers as Majethi, silpada, jirhaldi, bach, Samay are painted on bride and groom at  Haldi Hath ceremony. The Haldi Kutno Saguno geet means the auspicious song at the time of grinding unripe bulbs (roots) of turmeric . the paste of various bulbs, tubers and herbs is made by grinding them in stone mortar .the job is done by five unmarried girls.  The following song is sung by professional Manglic singer of das caste and by women folks of the village

 The song  prays various deities as Bhumyal (The earth deity) , The protector deity, Brahma (creator) etc. In this song a very interesting instance to be noted that Crow is made the messenger to take the prayer to Brahma . the crow is also requested to speak auspicious language and wordings.


ब्वाला ब्वाला सगुनो ब्वालै
ब्वाला ब्वाला सगुनो ब्वालै s s  s s s

दैणा हुयाँ खोळी का गणेश ए  
दैणा हुयाँ खोळी का गणेश ए s s s s
दैणा हुयाँ मोरी का नारेणेए 
दैणा हुयाँ मोरी का नारेणेए  s s s s
दैणा हुयाँ पंचनाम दिवता ए
दैणा हुयाँ पंचनाम दिवता ए s s s
दैणा हुयाँ गाँव को भुम्या   ए
दैणा हुयाँ गाँव को भुम्या   ए s s  s

जोंकी भूमि होली उंकी होली रक्छा
जोंकी भूमि होली उंकी होली रक्छा s s s

दैणा हुयाँ  यो द्यो पितर  ए
दैणा हुयाँ  यो द्यो पितर  ए s s s
दैणा हुयाँ  यो घडी को लगन ए
दैणा हुयाँ  यो घडी को लगन ए s s s
दैणा हुयाँ  भूमि को भुम्याळ  ए
दैणा हुयाँ  भूमि को भुम्याळ  ए s s s

तुमारी थाती मा -मा कारिज उर्युंच ए
तुमारी थाती मा -मा कारिज उर्युंच ए s s s
यो कारिज तुमुं तैं सुफल कर्याँ ए
यो कारिज तुमुं तैं सुफल कर्याँ ए s s s

बैठी जा कागा हरिया बिरछ ए
बैठी जा कागा हरिया बिरछ ए s s s

बोल बोल कागा, बोल बोल कागा चौदिशुं सगुनो  ए
बोल बोल कागा चौदिशुं सगुनो  ए s s s
सगुनो बोलिलो, सगुनो बोलिलो बिघन टाळील़ो
सगुनो बोलिलो, बिघन टाळील़ो ए s s s

बोल मेरा कागा बोल , मेरा कागा सगुनो बचन ए
बोल मेरा कागा,  बोल मेरा कागा सगुनो बचन ए s s s

त्वै द्युंला कागा त्वै द्युंला कागा सोना ठुंटणि
त्वै द्युंला कागा त्वै द्युंला कागा सोना ठुंटणि  ए s s s
त्वै द्युंला कागा त्वै द्युंला कागा दूद भति पूड़ी
त्वै द्युंला कागा त्वै द्युंला कागा दूद भति पूड़ी ए s s s

बिचारा बरमा जी बिचारा बरमा तैं कागा बोली ए
बिचारा बरमा जी बिचारा बरमा तैं कागा बोली ए s s s
सगुनी कागा सगुनी कागा सगुनी च बोली
सगुनी कागा सगुनी कागा सगुनी च बोली s s s

ब्वाला ब्वालै सगुनो  ब्वालै ए
ब्वाला ब्वालै सगुनो  ब्वालै ए s s s


Regards
B. C. Kukreti

15 June, 2011

रणरौत : एक धार्मिक लोक जागर (गीत)

In Garhwal , people worship Ghosts, Bhoot by several ways and means . One way is to worship Brave family legends or community legends by arranging Mandan . In Mandan the Das play drums and sing the Jagar of particular Brave Soul or legends and Pashwas or people dance according to rhythm and song contents
RanRaut is very famous Legendary  Song of Rawat Community . As poem, the poem contains all raptures except Adhorence in ful sense . The readers will enjoy the figures of speeches, proverbs, and many old -new phrases


सिरीनगर रंद छयो राजा प्रीताम शाही
कुलावली कोट मा रंद रौतु औलाद
हिंवां रौत को छयो भिंवा  रौत
भिंवा रौत को छयो रणु रौत 
रणु रौत होलू मालू मा को माल
जैको डबराळया माथो छ , खंखराल्य़ा जोंखा
घूंडों पौंछदी  भुजा छन जोधा की
मुन्गर्याळी फीलि छन मेरा मरदो
माल मा दूण रांजड़ा ऐन
तौन कांगली सिरीनगर भेज्याली
रूखा रुखा बोल लेख्या तीखा लेख्या स्वाल 
बोला बोला मेरा कछडि का ज्वानू
मेरा राज पर कैन त यो धावा बोले
मेरा गढवाल मा कु इनु माल होलू
जु भैर का मालू तै जीतिक लालू
तबरेक उठीक बोलदू छीलू भिम्ल्या
यी तरैं  को माल होलू कुलवाली कोट
हिंवां रौत न तलवार मारे
रणु रौत मी तलवार मारलो
रणु रौत होलू तलवार्या जवान
जैका मारख्वल्य़ा छन बेला
जैका चौसिंग्या खाडू होला, खोळया होला कुत्ता
कुलवाली कोट को वो रणुरौत 
मेरो भाणजा मालू साधिक लालो
प्रीतम साही मराज तब कांगली लेखद
हे बुबा रणु रौत तू होल्यु बांको भड़
भात खाई तख हात धोई यख   
जामो पैरी तख तणि बाँधी यख  
कागली पौंचीगे रौत का पास
तब बांचद कांगली रौत
शेर  जसा मोछ छ्या रौत का
तैका मणि का मान धड़कन लै गेन
तैकू हात की मुसळी बबल़ाण लै गेन
कंड़ीळ  बंश का कांडो जजराँद
 निरकुलो पाणि डाली सि हिरांद
तब धाई लगान्द रणु राणी भिमला
मै त जान्दो राणी सैणि माल दूण    
मेरा वास्ता पकौ निरपाणि खीर
 राणी भिमला तब कुमजुल्या ह्व़ेगे
नई नई मया छे ऊंकी जवानी की ,
नयो नयो ब्यो छो
राणी भीमला ड़ाळी सि अळस्येगे
छोड़दी पयणा नेतर रांग सा बुंद
मै जोडिक स्वामी तुम जुद्ध को  पैटयां
सुमरदो तब रौत देवी झाली माली
ढेबरा लुक्दा बखरा लुक्दा
मर्द कबि नि रुकदा शेर कबि नि डरदा
लुवा  जंगी जामा पैरण लैग्या
सैणा सिरीनगर ऐ गे रणु
जैदेऊ माल्यान गरदनी मालिक
हे रौर आज जैदेऊ त्वेक च  बुबा
तू छे  मेरा रणु मालू मा को माल
त्वेन मारणान  ल्वे चटा माल
राजा क आज्ञा लेक रौत चलीगे
माल को दूण कुई माल बोदा
ये त ऐ चखुनी  चूंडला आंगुळी मारला
तब छेत्रो को हंकार चढ़े रौत
मारे तैंन मछुली सी उफाट
छोड़े उडाल तलवार
तैंन मुंडू का चौंरा लगै न
तैंन  खूनन घट रिंगेन मरदो
तै माई मरदु  का चेलान मरदो
सि  केल़ा सि कचेन गिदुडु सि फाडिन 
बैरी को नौ रखे ऋणना 


For Part II , Please refer Dr Govind Chatak , Gahdwal Ki Lok Kathayen pg 209
Or Dr Shivanand Nautiyal, garhwal ke Loknrity Geet , pg 171
Copyright @ Bhishma Kukreti, bckukreti@gmail.com

07 June, 2011

कैंतुरा रणभूत जागर

होलू कालू भंडारी मालू मा कु माल
अनं का कोठारा छया वैका , बसती का भंडारा
गाडू घटडे छई , धारु मरूडे
धनमातो छौ , छौ अन्न्मातो
जीवनमातो छौ कालू स्यौ भंडारी
आदि रात मा तै  सुपिनो होयो
सुपिना मा देखी विनी स्या ध्यानमाला 
देखी वैन बरफानी कांठा
बरफानी कांठा देखे ध्यानमाला को डेरा
चांदी का सेज देखे , सोना का फूल
आग जसी आँख  देखी , जिया जसी जोत
बाण सी अरेंडी देखी , दई सि तरेंडी
नौंण  सी गळखी देखी , फूल सि कुठखी
 हिया सूरज देखे , पीठ मा चंदरमा
मुखडी को हास  देखे , मणियों का परकास
कुमाळी  सि ठाण देखे , सोवन की लटा
तब चचडैक  उठे , भिभडैक  बैठे
तब जिया बोदे क्या  ह्वेलो मेरा त्वाई
आज को सुपिनो जिया , बोलणि आंदो 
ना ल़े बेटा कालू सुपिना को बामो
सुपिना मा मा बेटा , क्या नि देखेंदु
कख नि जयेन्दु , क्या नि खायेंदु
मैन ज्यूण मरणा जिया हिन्वाला ह्वेक औण
तख रौंद माता, वा बांद ध्यानमाला
कालू भंडारी मोनीन मोयाले
तब पैटी गे वो तै नवलीगढ़
भैर को रखो छौ कालू भीतर को भूखो
कथी समजाई जियान वो
चली आयो वो ध्यानमाला को गढ़
ध्यान माला औणी छै पाणी का पन्द्यारा
देखी  औंद कालू  भंडारीन वो
हे मेरा प्रभू वा बिजली कखन छूटे
सुपिना मा देखी छै जनी , तनी छा  नौनि या
आन्छरी सि सच्ची , सरप की सि बची
अर देखे ध्यानमालान कालू भंडारी वो
बांको जावन छौ वो बुरांस को सी फूल
तू मेरी जिकुड़ी छे बांकी ध्यानमाला
त्वे मा मेरो ज्यू छ
सुपिनो मा देखी तू तब यख आयूँ
आज तू मै तैं  प्रेम की भीख दे
तब ल्ही गे वो ध्यानमाला  अपडो दगड
कुछ दिन इनि रेन वो गुप्ती रूप मा
तब बोल्दो कालू भंडारी
कब तैं रौण रौतेली इनु लूकी लूकिक
तब ध्यानमाला का बुबा धरम देव
 कालू भंडारी मिलण ऐगे
सुण सूण धर्मदेव धरमदेव
मै आया डांडा टपीक, गाडू बौगीक
मैं जिउण   मोरण राजा
तेरी नौनि ध्यानमाला ल़ाण
ऐलान्दो बैलोंदो तब राजा धरमदेव
मेरा राज मा अयाँ होला
हैंका राज से पांच भड
साधी लौलो ऊँ तैं जु कालू भंडारी
ब्यावोलो त्वे ध्यानमाला
कालू भंडारी का जोंगा बबरैन
वैका छाती का बाळ जजरैन
उठाए वैन तब नंगी शमशीर
चली गये हैंका हैर भड़ू साधण
इतना मा गंगाडी हाट का रूपु
आयो ध्यानमाला हाथ मांगण
ब्यौ को दिन तब नीछे    ह्व़े गये
पकोड़ा पकीन, हल्दी रंगीन
नवलीगढ़ मा कनो उच्छौ छायो
कालू भंडारी लड़दू रेगे भड़ू  सात
तै के कानू मा खबर नी पौंची
पिता की मर्जी , अपणी नी छें वींकी
बरांडी छे किरांदी छे वा नौनि ध्यानमाला
तब सुमरिण करदी वा कालू भंडारी
तेरी मेरी प्रीत दूजा जनम ताई
किस्मत फूटे मेरी बिधाता
जोड़ी को मलेऊ फंट्याओ  
तब देखे वैन ध्यानमाला रोणी बराणी
जाणि याले वैन होई गे कुछ ख्ट्गो
रौड़दो -दौड्दो आयो माला का भौन
हे मेरी माला क्या सोची छै मैन
अर क्या करी गये दैव
कालू भंडारी , हे कालू भंडारी
मेरा पराणु को प्यारो होलो कालू भंडारी
मेरा सब कुछ तू छ मैं छौं तेरी नारी
देखे वीं कालू भंडारी क्वांसी आन्ख्युन
हात बुर्याँ छा वैका , खुटा छा फुक्यां
कांडो सि होयुं छौ वो सुकीक
मेरा बाबा यें कतना तरास सहे
गला लगाये वीन तब कालू भंडारी
मरण जिउण ही जाण
तब बोल्दु कालू भंडारी
तेरी माया ध्यानमाला मैकू सोराग समान
कु जाणो क्या होंद बिधाता को लेख
पर मैं औंलू ब्योऊ का दिन
तू मेरी माला आखिरें फेरा ना फेरी
तब वखन चलिगे वो कालू भंडारी
कुछ दिन बाद आये ब्यो का दिन
गंगाडी हाट मा तब बारात सजे
ब्यौ का ढोल दमौं घारू गाडू गजीन
नवलीगढ़ राज मा भी बजदे बडई
मंगल स्नान होंदु माला लैरंदी पैरंदी
धार मा की गैणा सि दिखेंदी माला
बोलदी तब वींको जिया मुलमुल हंसी
ध्यानमाला होली राजौं का लेख
गंगाडीहाट का रूपु गंगसारा की
तब नवलिगढ़ बारात चढ़े
मंगल पिठाई हुए षटरस भोजन
तब ब्यौ को लग्न आये , फेरों का बगत
छै फेरा फेरीं मालान , सातों नी फेरे
मै अपण गुरु देखण देवा
तबरेक ऐयीगे तख साधू एक
कालू भंडारी छ कालू भंडारी
पछाणी मुखडी वैकी मालान
वींको आंख्यी मा तब आस खिलगे
प्रफुल ह्व़े गे तब वा ध्यानमाला
मेरा गुरुआ होला तलवारी नाच का गुरु
मै देखणु चांदु जरा नाच ऊंको
तब गुरु स्सधू बेदी का ध्वार आइगे
नंगी शमशीर चमकाई वैन
एक फरकणा फुन्ड़ो मारी एक मारी उन्डो
पिंडालू सि काटिन वैन गोद्डा सी फाडींन
कुछ भागिन , कुछ मारे गेन
मारये गे वू रूपु गन्गसारो भी
तब बल मु ध्यानमाला ही छुटी गये
लौट आन्दु तब वीमुं कालू भंडारी
ओ मेरी माला आज जनम सुफल ह्व़े गे
अगास की ज़ोन पायी मैं फूलूं की सि डाळी
तब जिकुड़ा लगैले हातून मा धरिले वा
आज मेरो मन क मुराद पुरी होए
तबरे लुक्युं उठै रूपु का भाई
लूला गंगोला वैकु नाम छायो
मारी दिने वैन कालू भंडारी धोखा मा
रोये बराए तब राणी ध्यानमाला
पटके जन उखड़ सि माछी
मैं क तैं पायूँ सुहाग हरचे
मैंक तैं मांगी भीख खतेणे
कं मैकू तैं दैव रूठे
रखे दैणी जंगा पर वीन कालू को सिर
बाएँ जंग पर धरे वो रूपु गंगसारी
रोंदी बरांदी चढ़े चिता ऐंच
सती होई गे तब ध्यानमाला

References:
Shambhu Prasad Bahuguna in Virat Hriday
Dr Govind Chatak : Garhwali Lok gathayen
Dr Shiva Nand Nautiyal Garhwal ke Lok Nrity Geet
Copyright Bhishma Kukreti for commentarty

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