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जसपुर के बहुगुणाओं का ज्योतिष का गढ़वाली टीका साहित्य- 3

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  • भीष्म कुकरेती यह लेखक हिंदी टीकाओं से गढ़वाली शब्दों की खोज कर रहा था कि उसे कुछ पंक्तियों के बाद गढ़वाली पक्तियों की टीका भी मिली। याने की पहले हिंदी में टीका फिर गढ़वाली और फिर हिंदी में। इस भाग में भी ग्रहों की गणना करने की विधि और फलादेश की टीका है। गढ़वाली टीका का भाग इस प्रकार है - ।। भाषालिख्यते ।। प्रथम भूजबोल्याजांद ।। पैले २१२९   अंशतौ भुज होयु होयो जषते ३ राश होया तव ६ राशिमा घटाणो याने ६। ०। ०। ० । मा घटाणो ५ राश २९ अंश तक जषते फिर ६। ७। ८ राश होयातो ६। ०। ०। ० ।   मा उलटा घटाणो ९ राश उप्र १२। ०। ०। ० मा घटाणो।   सो भुज होयो ना सूर्य को मन्दो च्च ७८ अंश को होयो तो सो ३० न चढ़णो।। अथ सूर्य स्फष्ट ।। पैलो सूर्य मध्य माउ को २।   १८।   ०।   ० मा घटाणो। तव तैको नामकेंद्र होयो २ राश से केंद्र अधिक होवूत भुज करनो तव भुजकी राश ३० न गुणनि तलांक जीउणा तव ९ न भाग लीणो ३ अंक पौणा . तव सो तीन अंक। २०। ०। ० ०। मा घटाणो। ... तव इन तरह से गोमूत्री करणी तव जो ९ उन मौगपाय सो दुई जगा रखणा सो गो मूत्री काका उपर रखणो विष। २० मा घटायूं जो छ सो नीचे रखणो तव आपस मा गुणी देणा.सो ६० से उपर चं

जसपुर के बहुगुणाओं का संस्कृत से गढ़वाली टीका साहित्य में योगदान- 2

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• भीष्म कुकरेती     अन्य दो गढ़वाली में टीका के पृष्ठ जो मुझे प्राप्त हुए उनसे लगता है कि ये पृष्ठ किसी विषय के बीच के अंश हैं और उपरोक्त दो पृष्ठों के बाद के लिखे गए हैं। कारण है स्याही अभी भी ताज़ी हैं और लाल स्याही से बनाए गए दोनों ओर दो दो हाशिए हैं। प्रथम पृष्ठ में दाहिने हाशिए के अंदर वर्टिकली श्री गणेशाय नमः और सीधा गोरी लिखा है। नीचे साकलं और गोरी लिखा है।   इबारत इस प्रकार है - ग लेणो फिर शेष ३०  न भाग लेणो फिर शेष ६० न गुणणो टीवी ता को धक (अस्पष्ट) व क कर्नो अपणी दशान गुणणो योग नी दशा की तरह रीत र्नी ।। 2 ।। अष्टो तरि दशा होवू : अथ काल चक्री दशा : अ । आ । ध । श । मृ । सुर्य्य दशा अ । कृ । पु । श्ले । ह। मूल पू। र्भा । भौम दशा उः षा। रे । भ । ति । चि । शनि दशाः पू। षा । स्वा । शुक्र दशा उत्र। भा । चन्द्र दशाः रो । म । वि । श्र ।  गुरु दशा = पु । फा ।  उ । फा । ज्ये. वुध दशाः काल चक्री जै न क्षेत्र को भुक्त हो वू तैमा १५ घटाणो नी घट त रण देणो जैकी दशा होवू तै तै गुणणो १५ न भाग लेणो शेष १२ न गुणों १५ ना भाग लेणो प्रथम दशा गो छ ढीस तै का वर्ष घटाण स्या प्रथम दशा होवू दसौं का

जसपुर के बहुगुणाओं का गढ़वाली टीका साहित्य में योगदान

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• भीष्म कुकरेती गढ़वाली साहित्यकार एवं इतिहासकार अबोध बंधु बहुगुणा ने ’गाड म्यटेकी गंगा’ पुस्तक में संस्कृत ज्योतिष व कर्मकांड साहित्य का गढ़वाली में टीका का उल्लेख किया है। अबोध बंधु ने 1925 का धोरा खोळा, कटळस्यूं निवासी पंडित रतनमणि घिल्डियाल द्वारा ज्योतिष गणित का गढ़वाली टीका (प्दजमतचतमजंजपवद) का जिक्र किया है (गाड म्यटेकी गंगा- पृष्ठ 59 )।  उसके बाद के गढ़वाली साहित्य इतिहासकारों ने इस दिशा में कोई खोजपूर्ण कार्य नही किया। मेरा मानना था कि सन् 1890 से पहले जब कोई स्कूल नही थे और हिंदी का कोई स्थान गढ़वाल में नही था तो कर्मकांडी पंडित अवश्य ही अपने शिष्य (पुत्र, पौत्र, भतीजे, भ्राता आदि) को संस्कृत श्लोकों को गढ़वाली में ही समझाते होंगे और पाण्डुलि। में गढ़वाली में ही टीका करते रहे होंगे। मेरे गांव जसपुर, ढांगू, पौड़ी गढ़वाल में कर्मकांडी चौथ ब्राह्मण बहुगुणा सन् 1875 के आसपास कुकरेतियों द्वारा बसाए गए थे। अतः मुझे इस दिशा में कुछ-कुछ ज्ञान था कि बहुगुणा पंडितो के पास हस्तलिखित पांडुलिपियां होती थीं। इस साल के प्रथम चरण में जसपुर के पंडित स्व. पंडित तोताराम बहुगुणा के पौत्र व स्व. विद्यादत्