दिनेश कुकरेती (वरिष्ठ पत्रकार) - जख अपणु क्वी नी, वख डांडा आगि कु सार छ भैजी, जख सौब अपणा सि छन, वख भि त्यार-म्यार छ भैजी। बाटा लग्यान नाता-पाथौं तैं, कुर्चिऽ सौब अपणि रौ मा, जै परैं अपण्यास सि लगद, ऊ भि ट्यार-ट्यार छ भैजी। सच त ई छ कि सिरफ दिखौ कीऽ, छपल्यास रैगे अब, भितरी-भितरऽ जिकुड़्यों मा, सुलग्यूं अंगार छ भैजी। जौं तिबरी-डंड्ळयों उसंकद छोड़ी, धार पोर ह्वै ग्यां हम, सुणदौं कि अब ऊंकी जगा, सिरफ खंद्वार छ भैजी। ब्याळ स्वीणा मा दिख्ये झळ, अर दिख्येंदी हर्चिग्ये। कन बिसरुलु वीं तै, जिकुड़ि मा बसिं अन्वार छ भैजी। खीसा देखी त, क्वी भि अपणु बणि जांद परदेस मा, जु तुम द्यखणा छा मुखिड़ि परैं, झूठी चलक्वार छ भैजी।