09 November, 2013

08 November, 2013

07 November, 2013

04 November, 2013

मेरा एक गीत

यह गीत मैंने पुरानी टिहरी के डूबने से लगभग एक दशक पहले लिखा था। जिसे 1998 में हेमवतीनंदन भट्ट व मंगला रावत ने गाया
आपको समर्पित यह गीत

http://www.4shared.com/mp3/NMHZz9Oz/BHOL_DOOBI_JAAN.html

03 November, 2013

मेरा लिखा यह गीत


मेरे लिखा यह गीत शुरू में आमंत्रण देता सा लगता है, मगर अंतराओं में शराब से पनपने वाली विसंगतियों को सामने रखता है। आप भी सूनें

http://www.4shared.com/mp3/eH2O-75c/DAARU_KI_BOTAL.html

02 November, 2013

बाबा की मूर्ति फिर चर्चाओं में....

       भई देश दुनिया में उत्‍तराखंड त्रासदी की प्रतीक बनी मूर्ति और बाबा एक बार फिर चर्चा में हैं। और यह बहस शुरू हुई, 31 अक्‍टूबर गुरुवार को मूर्ति को लगाने और उसी रात उसे हटाने के बाद से। क्षेत्र में कुछ बाबा के पक्ष और कुछ विपक्ष में आ गए हैं। दुहाई दी जा रही है कि यह यहां का आकर्षण है, इसे दोबारा लगना चाहिए। लेकिन कुछ बैकडोर में यह भी बतिया रहे हैं कि क्‍या यह गंगा पर अतिक्रमण नहीं। जब बीते 17 जून 2013 को पूर्वाह्न करीब साढ़े 11 बजे आक्रोशित गंगा ने रास्‍ते में आड़े आ रही मूर्ति को अपने आगोश में जब्‍त कर लिया, तो महज आध-पौन घंटे के भीतर यह देश दुनिया के मीडिया में सुर्खियां बटोरने लगी थी।
बड़ी बात कि देश के मीडिया को यह फुटेज उनके किसी रिपोर्ट ने नहीं, बल्कि इस मूर्ति के साधकों की तरफ से ही भेजी गई बताते हैं। सवाल तब भी उठे कि आखिर मीडिया में सुर्खियां बटोरने के पीछे फाइबर की इस मूर्ति का फायदा क्‍या रहा होगा। खैर यह बीती बात हो गई।
नतीजा, श्रावणमास के बाद तक तीर्थनगरी ऋषिकेश में भी खौफ के चलते पर्यटक नहीं आए। उन्‍हें लगा कि मूर्ति बह गई, तो अब वहां क्‍या बचा होगा। जिसका नुकसान क्षेत्र के कारोबारियों को करीब तीन-चार महीनों तक भुगतना पड़ा। जिसकी कसक अब तक बाकी है। अभी भी यहां का पर्यटन पूरी तरह से पटरी पर नहीं लौटा है। ऐसे में अब फिर मूर्ति लगाने की वही कवायद शुरु हो गई है।
अब सवाल यह कि हाईकोर्ट के आदेशों से पहले भी यदि आम आदमी यदि गंगा किनारे एक ईंट भी रखता था, तो मुखबिरों की सूचना पर प्रशासन बगैर नोटिस, सूचना के ही उसे ढहा देता था। अब भी ढहाने को आतुर दिखता है। मगर, यहां तो गंगा पर अतिक्रमण को सब देखते रहे, और आरती भी करते रहे। आखिर यह रियायत क्‍यों...
सवाल यह भी कि क्‍या गंगा को अतिक्रमित करती सिर्फ यह मूर्ति ही क्षेत्र में पर्यटन का आधार है। क्‍या इसके बिना देस विदेश के सैलानी यहां नहीं आएंगे। सच क्‍या मानें..। कुछ लोग दबे छुपे कहते हैं- इसके पीछे कोई बड़ा खेल संभव है। लिहाजा अब इस पर सोचा जाना जरुरी लगता है। साथ ही इसका फलित भी निकाला जाना चाहिए, कि आखिर गंगा के हित में क्‍या है।

01 November, 2013

हे उल्‍लूक महाराज

आप जब कभी किसी के यहां भी पधारे, लक्ष्‍मी जी ने उसकी योग्‍यता देखे बगैर उसी पर विश्‍वास कर लिया। जिसका नतीजा है कि बांधों के, राज्‍य के, सड़कों के, पुलों के, पैरा पुश्‍तौं के, पीएमजीवाई के, मनरेगा आदि के बनने के बाद वही असल में आपका परम भक्‍त हो गया। वहीं आपदा की पीड़ा के बाद भी बग्‍वाळ को उत्‍साह के रुप में देख और मनाने को उतावला है। उसके अंग अंग से पटाखे फूट रहे हैं, लालपरी उसे झूमने के लिए प्रेरित कर रही है।

आपकी कृपा पंथनिरपेक्ष, असांप्रदायिक, अक्षेत्रवादी है। आप अपने वंश पूजकों के लिए कृपा पात्र हैं
मगर, मेरे लिए यह समझ पाना कुछ मुश्किल हो रहा है कि आपके कृपापात्रों की लाइन में लगने के क्‍या उत्‍तराखंड राज्‍य और उसके मूल अतृप्‍त वंशज भी लायक हैं या नहीं। क्‍या आपका और आपकी महास्‍वामिनी का ध्‍यान उनकी ओर भी जागेगा। या फिर वे केवल शहीद होने, लाठियां खाने, भेळ भंगारों में लुढ़कने, दवा, शिक्षा, रोजगार, मूलनिवास आदि के लिए तड़पने तक सीमित रहेंगे। 


हे उल्‍लूक महाराज, इस अज्ञानी, अधम, गुस्‍ताख का मार्गदर्शन करने की कृपा करें। बताएं कि महा कमीना होने के लिए पहाड़ों में क्‍या बेचूं, कमान और हाईकमान तक कितना और कब-कब स्‍वाळी पकोड़ी, घी की माणि पहुंचाऊं।
आपकी कृपा दृष्टि की जग्‍वाळ में -
आपका यह स्‍व घोषित सेवक

@Dhanesh Kothari

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