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लोक स्‍वीकृत रचना बनती है लोकगीत

कम्प्यूटर पर न खोज्यावा धौं पहाड़ तैं

जख देवतों का ठौ छन भैजि

..और उम्‍मीद की रोशनी से भर गई जिंदगियां

नई लोकभाषा का 'करतब' क्‍यों ?

गैरसैंण राजधानी : जैंता इक दिन त आलु..

झड़ने लगे हैं गांव