26 March, 2014

24 March, 2014

फूल चढ़ाने तक की देशभक्ति

आज शहीद ए आजम भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू का शहादत दिवस था। देश के अन्‍य शहरों, कस्‍बों की तरह मेरे शहर में भी जलसे हुए, श्रद्धांजलि की रस्‍में निभाई गई। बरसों से देख रहा हूं यही सब करतब। उनके द्वारा भी जो अखबारों क छपास से लेकर सोशल मीडिया के दरबारों तक नमन करने को मेहनत करते रहे, और कर रहे हैं। अधिकांश को नहीं मालूम कि भगत सिंह की शहादत का आशय क्‍या है।

क्‍यों वह भगत सिंह या अन्‍य शहीदों को नमन कर रहे हैं। सब किसी मंदिर के आगे मत्‍था टेककर आगे बढ़ने तक सीमित नजर आते हैं। इनमें आजकल ऐसे लोग भी शामिल हो गए हैं, जिन्‍हें चुनाव के इनदिनों में अपने नेता भगत सिंह के अवतार नजर आते हैं। भले पूर्व तक उनके वंशज उन्‍हें आतंकवादी कह कर संबोधित भी करते रहे।

युवा वर्ग भी देशा की व्‍यवस्‍थाओं को सुधारने के लिए किसी भगत सिंह के पुनर्जन्‍म की कल्‍पना करते हैं। कुछ को यह मालूम है कि भगत सिंह ने साथियों के साथ कोर्ट में बम डाला था। मगर वह यह नहीं बता पाते कि बम डाला क्‍यों था, आखिर उनका मकसद क्‍या था। इस दौरान हरबार यह भी दुहाई दी जाती है कि उनके बताए मार्ग पर चलकर देश को सुधारने में जुटें। मगर, उन्‍होंने कौन रास्‍ता अख्तिायार किया था, गुलामी से मुक्ति के लिए, शायद ही किसी को मालूम हो। इस दिन झलसे के लिए कई तो रटे रटाए बयानों तक सीमित होते हैं, तो कई इंटरनेट पर सर्च कर उनके बारे कुछ लाइनें जुटाकर उनकी कथा बांच कर खुद को देशभक्‍त साबित कर डालते हैं

सो सवाल उठता है कि क्‍या वास्‍तव में शहीदों को यह सही मायने में श्रद्धांजलि है, क्‍या इतनी सी रस्‍में निभाकर हम देशभक्‍त हो जाते हैं, क्‍या देशप्रेम दिखाने के लिए इतना भर करना काफी है। क्‍या इससे व्‍यवस्‍था और तंत्र में फैली सड़ांध खत्‍म हो जाएगी। या फिर हम भाड़े के टटू जैसे युग युगांतर तक स्‍वांग ही भरते रहेंगे। 

11 March, 2014

सर्ग दिदा

सर्ग दिदा पाणि पाणि
हमरि विपदा तिन क्य जाणि


रात रड़िन्‌ डांडा-कांठा
दिन बौगिन्‌ हमरि गाणि


उंदार दनकि आज-भोळ
उकाळ खुणि खैंचा-ताणि


बांजा पुंगड़ौं खौड़ कत्यार
सेरौं मा टर्कदीन्‌ स्याणि


झोंतू जुपलु त्वे ठड्योणा
तेरा ध्यान मा त्‌ राजा राणि


धनेश कोठारी
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09 March, 2014

घृणा, राजनीति और चहेते

आज एक राजनीतिक दल से जुड़े परिचित ने अपने स्‍मार्टफोन पर व्‍हाट्स अप से आई तस्‍वीर दिखाई। उनके नेता की गोद में बच्‍चे के रुप में एक दल की मुखिया दिखाई गई थी। तभी मेरे मुहं से तपाक से छूटा, अरे क्‍या वह कुंवारे ही बाप बन गए ... बेचारे परिचित कुछ नहीं कह सके। सब वाकया महिला दिवस पर आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान का है। तब मैंने मन में सोचा कि यही लोग हैं, जो यत्र नार्यस्‍तु पुज्‍यंते रमंते तत्र देवता का स्‍वांग  भरते हैं, और यही वह लोग हैं, जो नारियों का सम्‍मान इस रुप में भी करते हैं। 

उस वक्‍त मेरा मन निश्चित ही घृणा से भर गया। मन में घृणा इसलिए भी हुई कि क्‍या राजनीतिक विरोधों के लिए हम अपनी मानवीय संवेदनाओं को भी तिलांजलि दे चुके है। हमारा हास्‍य भी इतना असामाजिक, अनैतिक और अमानवीय हो गया है। प्रचार का इतना निकृष्‍टतम स्‍वरुप, वह भी महिला दिवस पर .... और वह भी उनके द्वारा जो महिलाओं की सुरक्षा दुहाई देते हैं। दूसरों के महिलाओं के साथ किए गए कुकृत्‍यों को अंगुलियों पर गिनाते फिरते हैं। धिक्‍कार ऐसी राजनीति और उसके चहेतों पर.... महोदय और आपके बिरादरान सुन रहे हैं न....

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