26 January, 2012

विरोधाभास के बीच झूलती टीम अन्‍ना

टीम अण्णा का दो दिन का उत्‍तराखण्ड दौरा विरोध, सवाल और शंकाओं से भरा रहा। टीम अण्णा ने हरिद्वार, देहरादून, हल्द्वानी और रूद्रपुर में सभाएं कर केन्द्र सरकार के लोकपाल बिल को कोसा। उत्‍तराखण्ड के लोकायुक्त विधेयक और मुख्यमंत्री भुवन चन्द्र खण्डूडी़ की खुद जमकर तारीफ की और लोगों से भी कराई। लगे हाथ कांग्रेस-भाजपा समेत सभी राजनीतिक दलों को भ्रष्ट करार दे दिया। टीम अण्णा ने केन्द्र के लोकपाल बिल की कमजोरियों और उत्‍तराखण्ड के लोकायुक्त विधेयक की खूबियों को लेकर उठे सवालों का जवाब देना गैर जरूरी समझा। उत्‍तराखण्ड के लोकायुक्त विधेयक की खुली हिमायत की वजह जानने की जुर्रत करने वालों का मुंह बन्द कर बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। गोकि सवाल करना सिर्फ टीम अण्णा का ही विशेषाधिकार हो। पूरे दौरे के दौरान केन्द्र के लोकपाल और उत्‍तराखण्ड के लोकायुक्त विधेयक को लेकर उठे सवालों से कन्नी काटती टीम अण्णा खुद विरोधाभासों में फॅसी नजर आई।

टीम अण्णा ने सभी जगह कमोवेश एक सी बातें दोहराई। टीम के वरिष्ठ सदस्य अरविन्द केजरीवाल ने कहा कि कांग्रेस ही नहीं निशंक सरकार में भी भ्रष्टाचार हुआ है। सपा-बसपा भी भ्रष्टाचार से अछूते नहीं है। अब मौका आ गया है कि जनता भष्टाचारियों को सबक सिखायें। बकौल अरविन्द केजरीवाल उत्‍तराखण्ड के लोकायुक्त बिल को हू-ब-हू पूरे देश में लागू कर दिया जाना चाहिए। अगर केजरीवाल की इस बात को मंजूर कर लिया जाए, तो देश में ऐसा लोकपाल विधेयक आना चाहिए, जिसके चयन समिति का अध्यक्ष प्रधानमंत्री और राज्यों के संदर्भ में मुख्यमंत्री हो। लोकपाल के वार्षिक क्रियाकलापों की निगरानी के लिए लोकसभा और राज्यों के संदर्भ में विधान सभा की एक कमेटी बने। 

किसी को बेवजह उत्पीड़ित करने की मंशा से झूठी शिकायत करने पर शिकायतकर्ता के ऊपर एक लाख रुपये तक का जुर्माना हो, जिसकी वसूली राजस्व बकाये की भॉति की जाए। प्रधानमंत्री, केन्द्रीय मंत्रिमण्डल के सभी सदस्यों और सभी सांसदों, राज्य के मुख्यमंत्री, मंत्रिमण्डल के सभी सदस्यों और सभी विधायकों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों में तब तक जॉच या सुनवाई नहीं हो, जब तक लोकपाल की बैंच के अध्यक्ष सहित पूरी पीठ के सभी सदस्य एक राय से इस बात की इजाजत नहीं दें। यानी न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी।
जी हॉ, सरसरी नजर में ये खूबियॉ है- उत्‍तराखण्ड सरकार द्वारा पास किये गये सशक्त लोकायुक्त विधेयक की। उत्‍तराखण्ड के लोकायुक्त विधेयक की प्रस्तावना भ्रष्टाचार उन्मूलन अधिनियम-1988 से शुरू होती है। यानी यह विधेयक भ्रष्टाचार उन्मूलन अधिनियम-1988 के तहत बनाया गया है। यह केन्द्रीय एक्ट है, जो कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने के लिए अपने आप में सम्पूर्ण और सक्षम है। उत्‍तराखण्ड के लोकायुक्त विधेयक की धारा-4(9-एक) के मुताबिक लोकायुक्त के चयन के लिए एक चयन समिति बनेगी। मुख्यमंत्री इस चयन समिति के अध्यक्ष होगें। चयन समिति में नेता प्रतिपक्ष समेत छह सदस्य होगें। धारा-14(2) में लोकायुक्त के वार्षिक क्रियाकलापों की निगरानी के लिए विधानसभा की एक कमेटी गठित करने का प्राविधान रखा गया है। विधेयक की धारा-18 के मुताबिक लोकायुक्त की बैंच के अध्यक्ष सहित सम्पूर्ण पीठ के सभी सदस्यों की एक राय से इजाजत के बिना मुख्यमंत्री, मंत्रिपरिषद के किसी सदस्य और विधानसभा के किसी सदस्य के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में जॉच या सुनवाई नहीं हो सकती है। यानी राजनीतिक भ्रष्टाचार की खुली छूट। सवाल यह है कि अगर हजारे पक्ष के लोग इस लोकायुक्त विधेयक को बेहद मजबूत और आर्दश बता रहे है, तो केन्द्र सरकार द्वारा संसद में पेश लोकपाल बिल पर उन्हें आपत्ति क्यों है?

हजारे पक्ष के उत्‍तराखण्ड के लोकायुक्त विधेयक को एक मजबूत बिल बताने की एक वजह तो समझ में आती है। वह यह कि इस विधेयक में लोकायुक्त को जॉच तथा सजा के लिए अपनी मशीनरी को नियुक्त करने का अधिकार दिया गया है। किसी शिकायत की जॉच और सजा देने वाली मशीनरी लोकायुक्त की खुद की होगी। लोकायुक्त को नियम बनाने का अधिकार दिया गया है। लोकायुक्त को मानहानि के मामले में हाईकोर्ट के बराबर अधिकार दिये गये है। लोकायुक्त में की गई शिकायत वापस नहीं ली जा सकती है। ये सभी बिन्दु टीम अण्णा के एजेन्डे में शामिल रहे हैं। टीम अण्णा ने एक ओर देश के सभी राजनीतिक दलों को भ्रष्टाचार में डूबा बताया। उत्‍तराखण्ड की निशंक सरकार को भी भ्रष्ट करार दिया। कहा कि - देश के किसी राजनीतिक दल ने जन लोकपाल बिल की सच्ची हिमायत नहीं की। लिहाजा विधानसभा चुनाव में जनता भ्रष्टाचारियों को हराये और सिर्फ ईमानदार सियासी पार्टियों को ही वोट देने की अपील की।

सवाल यह है कि बकौल टीम अण्णा घोटाले करने वाले भाजपा समेत सभी पार्टी के उम्मीदवारों को अगर जनता हरा दे, तो जीतने वाला बचेगा कौन। अगर उत्‍तराखण्ड में लोकायुक्त बिल लाने के ऐवज में जनता वोट करती है, तो खण्डूडी़ के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। मुश्किल यह है कि उत्‍तराखण्ड की विधानसभा में सत्तर सीटें है। खण्डूडी़ एक ही सीट से चुनाव लड़ रहे है। बाकी बची 69 विधानसभा सीटों पर जनता वोट दे, तो आखिर किसको दें। टीम अण्णा ने जनता को इस दुविधा से निकलने का कोई साफ रास्ता नहीं सुझाया। टीम अण्णा की इस पूरी कसरत से आम लोगों में यह संदेश साफ तौर पर गया कि टीम अण्णा लोकायुक्त विधेयक के बहाने भाजपा को मदद करने की इच्छा तो रखती हैं, लेकिन भाजपा पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों से भी दूरी बनाये रखना चाहती हैं। टीम अण्णा की इस दुविधा और विरोधाभास के चलते ही उनका उत्‍तराखण्ड दौरा कई सवालों को जन्म दे गया।
नैनीताल से वरिष्‍ठ पत्रकार प्रयाग पाण्‍डे की रिपोर्ट

25 January, 2012

पहाड़ की जनता के साथ धोखा कर रहे हैं बीसी खडूड़ी


उत्तराखंड की बीजेपी सरकार को.. खंडूड़ी है जरूरी... का एक चुनावी नारा क्या मिला कि उसने इस पहाड़ी राज्य के जनहित के मुद्दों को ही जमीन में दफना दिया है. आज जहाँ पहाड़ी क्षेत्र में रहने वाली 60 प्रतिशत महिलायें खून की कमी के जूझ रही हों तथा 72 प्रतिशत महिलायें बिना इलाज के किसी न किसी बीमारी को ढोने को मजबूर हों, वहां करोड़ों रुपये के घोटाले हो जाने के बाबजूद मुख्यमंत्री खंडूड़ी ने उन पर एक जांच बैठानी भी जरूरी नहीं समझी. खंडूरी है जरूरी.. इसलिए उनसे कुछ सवाल करने जरूरी हैं.. खंडूड़ी जी ने मुख्यमंत्री काल के दौरान पूरे पहाड़ में घूम-घूमकर निशंक पर प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से भ्रष्टाचार के आरोप लगाए लगाए.. तथा इन आरोपों के समर्थन में बीजेपी हाई कमान से लेकर आरएसएस नेताओं तक अपनी बात पहुंचाई. खंडूड़ी द्वारा पेश सुबूतों के आधार पर दिल्ली के नेताओं को अपने चहेते निशंक की बलि देनी पड़ी.

राज्य की जनता को उम्मीद थी कि मुख्यमंत्री की कुर्सी मिलते ही खंडूड़ी, भ्रष्ट लोगों को सलाखों के पीछे पंहुचाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगें. पर कुर्सी मिलते ही खंडूड़ी ने एक रहस्यमय छुपी साध ली.. अब खंडूड़ी से एक सवाल पूछना लाजिमी है कि जिस निशंक को वे भ्रष्ट बताते थे उनके बारे में कुर्सी मिलते ही उन्होंने मौन क्यों साध लिया? इसका मतलब या तो या तो निशंक ईमानदार थे और खंडूड़ी ने हाई कमान को गुमराह कर उनकी बलि ली और या फिर उनका सारा खेल कुर्सी तक ही सीमित था. कम से कम उन्हें एक जांच तो बैठानी ही चाहिए थी. वैसे वे कांग्रेस राज के 56 घोटालों की जांच बैठाकर फ्लॉप हो चुके हैं, जिसकी जांच पर लाखों रुपये खर्च होने के बाबजूद पांच साल बाद भी कुछ नहीं निकल पाया. खंडूड़ी जैसे फ़ौजी अफसर पर मुझे भी आम उत्तराखंडी की तरह गर्व है और वहां की जनता ने उन्हें फ़ौज से सेवानिवृति के बाद उम्मीद से ज्यादा दिया है.. अब उनकी बारी थी जो वे नहीं दे पा रहे हैं.

दस साल में उत्तराखंड के पहाड़ों से पलायन बढ़ा है.... दुःख की बात है कि अभी तक पहाड़ों में बागवानी के लिए कोई ठोस रणनीति नहीं बनी है यहाँ तक कि किसानों के खेतों की मिट्टी की जांच की कोई व्यवस्था भी नहीं हो सकी है. महिलाओं के हेल्थ कार्ड की बात कोई नहीं करता. बेरोजगारी चरम पर है और दो हजार वेतन पर पहाड़ी लड़के शहरों में काम करने के लिए मजबूर हैं. वहां की जमीनों को औने पौने दामों पर दलाल लूट रहे हैं. जिसको रोकने की कोई व्यवस्था नहीं हो सकी है. खंडूड़ी जी के इर्द गिर्द भ्रष्ट नौकरशाही का कब्जा अब भी मौजूद है. और सबसे खतरनाक बात यह है कि पलायन के शिकार पहाड़ का युवा ही नहीं खुद खंडूड़ी व निशंक जैसे बड़े नेता भी हुए हैं और दोनों ने कठिन पहाड़ी क्षेत्र के बजाय कोटद्वार तथा डोईवाला जैसे मैदानी क्षेत्र को चुना. उन्हें अपने गिरेवान में झाँक कर देखना होगा कि क्या वे सच्चे अर्थ में पहाड़ की सेवा करना चाहते हैं या फिर पहाड़ की राजनीति करना चाहते है..   
लेखक- विजेंद्र रावत उत्‍तराखंड के वरिष्‍ठ पत्रकार हैं.
Sours : bhadas4media 


23 January, 2012

मध्य हिमालयी भाषा का तुलनात्मक अध्ययन


मध्य हिमालयी कुमाउंनी, गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलनात्मक अध्ययन भाग -6 
(गढ़वाली में सर्वनाम विधान)
इस लेखमाला का उद्देश्य मध्य हिमालयी कुमाउंनी, गढ़वाळी एवम नेपाली भाषाओँ के व्याकरण का शास्त्रीय पद्धति कृत अध्ययन नही है अपितु परदेश में बसे नेपालियों, कुमॉनियों व गढ़वालियों में अपनी भाषा के संरक्षण हेतु प्रेरित करना अधिक है. मैंने व्याकरण या व्याकरणीय शास्त्र का कक्षा बारहवीं तक को छोड़ कभी कोई औपचारिक शिक्षा ग्रहण नही की ना ही मेरा यह विषय/क्षेत्र रहा है. अत: यदि मेरे अध्ययन में शास्त्रीय त्रुटी मिले तो मुझे सूचित कर दीजियेगा जिससे मै उन त्रुटियों को समुचित ढंग से सुधार कर लूँगा. वास्तव में मैंने इस लेखमाला को अंग्रेजी में शुरू किया था किन्तु फिर अधिसंख्य पाठकों की दृष्टि से मुझे हिंदी में ही इस लेखमाला को लिखने का निश्चय करना पड़ा . आशा है यह लघु कदम मेरे उद्देश्य पूर्ति हेतु एक पहल माना जायेगा. मध्य हिमालय की सभी भाषाएँ ध्वन्यात्म्क हैं और कम्प्यूटर में प्रत्येक भाषा की विशिष्ठ लिपि न होने से कहीं कहीं सही अक्षर लिखने की दिक्कत अवश्य आती है

किन्तु हम कुमाउंनी , गढवालियों व नेपालियों को इस परेशानी को दूसरे ढंग से सुलझानी होगी ना की फोकट की विद्वतापूर्ण बात कर नई लिपि बनाने पर फोकटिया बहस करनी चाहिए. ---- भीष्म कुकरेती )
                                        गढ़वाली में सर्वनाम विधान (Pronouns in Garhwali)

पुरुष वाचक सर्वनाम: गढवाली में कुमाउनी की तरह स्त्रीलिंग व पुरुषवाचक संज्ञाओं का पृथक सत्ता है. हिंदी के पुर्श्वचक अन्य पुरुष सर्वनाम 'वह' के लिए गढ़वाली में स्यू/स्यो व स्त्रीलिंग में स्या है. बहुवचन में पुल्लिंग व स्त्रीलिंग एक समान हो जाते हैं 'वै' 'वूं' हो जटा है और वा भी 'वूं' हो जाता है

गढवाली भाषा- व्याकरण वेत्ता अबोध बंधु बहुगुणा व लेखिका रजनी कुकरेती ने गढ़वाली सर्वनामों को प्रयोगानुसार पाँच भागों में विभक्त किया है

१-पुरुष वाचक सर्वनाम - मैं, तू, मि
२-निश्चय वाचक सर्वनाम - या, यू, वा, वु, स्या, स्यू
३- सम्बन्ध वाचक -जु , ज्वा
४-प्रश्न वाचक - कु, क्वा, क्या,
५- अनिश्य वाचक - क्वी

अबोध बंधु ने जहाँ सर्वनामों को तालिका बद्ध कर उदहारण दिए हैं वहीं रजनी ने करक अनुसार तालिका दी है. नेपाली, कुमाउनी व गढ़वाली व्याकरण के तुलनात्मक अध्ययन हेतु रजनी कुकरेती की दी हुयी तालिका विशष महत्व रखती है, यद्यपि बहुगुणा की तालिका का महत्व कम नही आंका जा सकता

                                           बहुगुणा द्वारा बिभाजित सर्वनाम तालिका
-----------------------------पुल्लिंग ----------------------------स्त्रीलिंग

पुरुषवाचक -------------एकवचन ---------वहुवचन ---------------एकवचन --------बहुवचन
उत्तम पु.-----------------मि/मै ----------- हम ---------------------मि ----------------हम
माध्यम पु. ---------------तु ----------------तुम --------------------तु ------------------तुम

अन्यपुरुष ----------------उ/ओ ------------वु -----------------------वा -----------------वु
२- निश्चय वाचक --------वी ---------------वी ---------------------वै /वई---------------वी
----------------------------स्यो -------------स्यि------------------स्या ------------------ स्यि

----------------------------यो --------------यि /इ ------------------या-------------------यि /इ
३- अनिश्चय वाचक ------क्वी -------------क्वी -------------------क्वी ----------------क्वी
------------------------------------------------कति ---------------------------------------कति

------------------------------------------------कुछ -----------------------------------------कुछ
४-सम्बन्ध वाचक ---------जु ----------------जु --------------------ज्वा ---------------- जु
-----------------------------ते -----------------तौं ---------------------तैं -------------------तौं

-----------------------------ये ------------------यूँ ---------------- यीं/ईं --------------------यूँ
५- प्रश्न वाचक ------------को ----------------कु -------------------क्वा ----------------- कु
क्या ----------------क्यक्या-------------क्या -----------------क्यक्या
रजनी कुकरेती ने मै, तेरा,तुमारा, स्यू/स्या, वु/वा , यू/या, जु/ज्वा क्वा/कु को कारक अनुसार तालिका बढ कर विश्लेषण किया है . कुछ उदाहरण निम्न हैं

मैं/मि उभय लिंगी सर्वनाम तालिका
कारक---------विभक्ति ----------------------------------एकवचन --------------------------बहुवचन

------------------------------------------------------------ मैं/मि -------------------------------हम
करता ----------न ------------------------------------------मिन--------------------------------हमन/हमुन

कर्म ------------सन/सणि/तैं/ सैञ -------------------में /मै -सणि/सन/तैं/सैञ---------------हम - सन/ सणि/तैं / सैञ
करण ----------से ---------------------------------------मेंसे /मैसे ----------------------------------हमसे

सम्प्रदान -----कुण/कुणि/खुण/खुणि/कुतैं--------- में /मै कुण/कुणि/खुण/खुणि/कुतैं------हमकुण/कुणि/खुण/खुणि/ हमूंतैं
अपादान ------बिटी ----------------------------------में/मै बिटी-------------------------------------हमबिटी

छटी ----------म/ मू ------------------------------------मीम , मैमू ---------------------------------हमम /हममू
अधिकरण-----मा--------------------------------------- मीमा /मैमा ---------------------------------- हममा

तु उभयलिंगी सर्वनाम तालिका
कारक---------विभक्ति ----------------------------------एकवचन -----------------------------------बहुवचन
--------------------------------------------------------------तु------------------------------------------तुम -----
करता ----------न -------------------------------------- ----- तिन /तीन --------------------------------तुमन

कर्म ------------सन/सणि/तैं/ सैञ--------------------------त्वेसन/सणि/तैं/सैञ--------------------------तुमसणि/सन /तैं/ सैञ

करण ----------से---------------------------------------------त्वेसे ---------------------------------------तुमसे

सम्प्रदान ------कुणि/कुण/कुतैं/ खुणि --------------------- त्वेकुणि/कुण/कुतैं/ खुणि -------------------तुमकुणि/कुण/कुतैं/ खुणि

अपादान ------बिटी ------------------------------------------त्वेबिटि-------------------------------------तुमबिटि
छटी ----------म/मू--------------------------------------------तीम /त्वेमू -----------------------------------तुममू
अधिकरण- /मा-------------------------------------------------- तीमा, त्वेमा----------------------- तुममा
इस प्रकार हम पाते हैं कि गढ़वाली सर्वनाम का लिंग व वचन भेद क्रिया, विशेषण व स्थान आदि से भी सम्बन्ध है


संदर्भ :
१- अबोध बंधु बहुगुणा , १९६० , गढ़वाली व्याकरण की रूप रेखा, गढ़वाल साहित्य मंडल , दिल्ली


२- बाल कृष्ण बाल , स्ट्रक्चर ऑफ़ नेपाली ग्रैमर , मदन पुरूस्कार, पुस्तकालय , नेपाल

३- भवानी दत्त उप्रेती , १९७६, कुमाउंनी भाषा अध्ययन, कुमाउंनी समिति, इलाहाबाद


४- रजनी कुकरेती, २०१०, गढ़वाली भाषा का व्याकरण, विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून

५- कन्हयालाल डंड़रियाल , गढ़वाली शब्दकोश, २०११-२०१२ , शैलवाणी साप्ताहिक, कोटद्वार, में लम्बी लेखमाला


६- अरविन्द पुरोहित , बीना बेंजवाल , २००७, गढ़वाली -हिंदी शब्दकोश , विनसर प्रकाशन, देहरादून

७- श्री एम्'एस. मेहता (मेरा पहाड़ ) से बातचीत
८- श्रीमती हीरा देवी नयाल (पालूड़ी, बेलधार , अल्मोड़ा) , मुंबई से कुमाउंनी शब्दों के बारे में बातचीत
९- श्रीमती शकुंतला देवी , अछ्ब, पन्द्र-बीस क्षेत्र, , नेपाल, नेपाली भाषा सम्बन्धित पूछताछ
१० - भूपति ढकाल , १९८७ , नेपाली व्याकरण को संक्षिप्त दिग्दर्शन , रत्न पुस्तक , भण्डार, नेपाल
११- कृष्ण प्रसाद पराजुली , १९८४, राम्रो रचना , मीठो नेपाली, सहयोगी प्रेस, नेपाल


Comparative Study of Kumauni Grammar , Garhwali Grammar and Nepali Grammar (Grammar of , Mid Himalayan Languages ) to be continued ......... @ मध्य हिमालयी भाषा संरक्षण समिति
(Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali Grammar and Nepali Grammar ,Grammar of Mid Himalayan Languages-Part-6 )


सम्पादन : भीष्म कुकरेती

मध्य हिमालयी कुमाउंनी , गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलनात्मक अध्ययन भाग -5

 इस लेखमाला का उद्देश्य मध्य हिमालयी कुमाउंनी, गढ़वाळी एवम नेपाली भाषाओँ के व्याकरण का शास्त्रीय पद्धति कृत अध्ययन नही है अपितु परदेश में बसे नेपालियों, कुमॉनियों व गढ़वालियों में अपनी भाषा के संरक्षण हेतु प्रेरित करना अधिक है. मैंने व्याकरण या व्याकरणीय शास्त्र का कक्षा बारहवीं तक को छोड़ कभी कोई औपचारिक शिक्षा ग्रहण नही की ना ही मेरा यह विषय/क्षेत्र रहा है. अत: यदि मेरे अध्ययन में शास्त्रीय त्रुटी मिले तो मुझे सूचित कर दीजियेगा जिससे मै उन त्रुटियों को समुचित ढंग से सुधार कर लूँगा. वास्तव में मैंने इस लेखमाला को अंग्रेजी में शुरू किया था किन्तु फिर अधिसंख्य पाठकों की दृष्टि से मुझे हिंदी में ही इस लेखमाला को लिखने का निश्चय करना पड़ा . आशा है यह लघु कदम मेरे उद्देश्य पूर्ति हेतु एक पहल माना जायेगा. मध्य हिमालय की सभी भाषाएँ ध्वन्यात्म्क हैं
और कम्प्यूटर में प्रत्येक भाषा की विशिष्ठ लिपि न होने से कहीं कहीं सही अक्षर लिखने की दिक्कत अवश्य आती है किन्तु हम कुमाउंनी , गढवालियों व नेपालियों को इस परेशानी को दूसरे ढंग से सुलझानी होगी ना की फोकट की विद्वतापूर्ण बात कर नई लिपि बनाने पर फोकटिया बहस करनी चाहिए. ---- भीष्म कुकरेती )
                                                          कुमाउंनी भाषा में सर्वनाम विधान

अबोध बन्धु बहुगुणा ने लिखा है की संज्ञाओं के बदले प्रयुक्त होने वाले शब्दों को सर्वनाम कहा जाता है.
कुमाउंनी भाषा में सर्वनाम में दो लिंग, दो वचन और विकारी (Declinable ) एवम अविकारी (Indeclinable ) कारक (Cases ) प्रत्ययों से युक्त होते हैं . यह देखा गयी है कि सर्वनामों में संबोधन कारक नही होते हैं. चूँकि लिंग, वचन व कारक तत्व अभिभाज्य होते हैं , इसलिए कुमाउंनी व्याकर्णाचार्य डा. भवानी दत्त उप्रेती ने सर्वनाम अध्ययन हेतु लिंग, वचन व कारक का अध्ययन साथ ही होना अनिवार्य माना है

कुमाउंनी भाषा में लिंग भेद दो स्तरों पर किया जाता है
१- लिंग व्युत्पादकों पर लगाया हुआ प्रत्यय

२- वाक्यस्तर में लिंग भेद
                                                           कुमाउंनी सर्वनाम- लिंग -वोधक प्रत्यय


सर्वनाम में दो ही लिंग होते हैं

१- पुल्लिंग सर्वनाम पर लगा प्रत्यय
२- स्त्रीलिंग सर्वनाम पर लगा प्रत्यय

अ - -ओकारांत का -ओ -

पुल्लिंग वोधक जहां निजवाचक सर्वनाम में न् और सम्बन्ध वाची सर्वनाम में र् अथवा क् के पश्चात लगता है . इसके दो रूप मिलते हैं -ओ और -आ
क--ओ= ओ प्रत्यय एक वचन पुल्लिंग या सम्बन्ध वाचक सर्वनाम के ओकारांत रूपों में मिलता है .यथा
आपुन् +ओ = आपुनो (अपना )
वीक् + ओ=वीको (उसका)
तेर् + ओ = तेरो (तेरा )
ख - ओकारांत का -आ: ओकारांत सर्वनाम सभी बहुवचन रूप में ही मिलते हैं. यथा
आपुन् = आ =आपुना (अपने )
वीक् = आ = वीका (उसके )
त्यार् + आ= त्यारा (तेरे )
हमोर् + ओ =हमोरो (हमारे )
ब- -इ : सर्वनामों मे इ

सर्वनामों मे इ प्रत्यय स्त्रीवोधक है . इ का प्रयोग एक वचन व बहुवचन में एक समान होता है
आपुन् + इ = आपुनि (अपनी)
वीक् + इ = वीकि (उसकी )
तेर् =इ = तेरि (तेरी )
मेर् + इ = मेरि (मेरी )

हमार् + इ = हमारि (हमारी )
                                       कुमाउंनी भाषा मे विशेषण व क्रिया से सर्वनाम का लिंग बोध
जब भी कोई लिंग विशेषण या क्रिया पर आधारित हो तो कुमाउंनी भाषा मे वाक्य स्तर पर सर्वनाम का लिंग बोध क्रियाएं व विशेषणों के लिंग से होता है
                                                वाक्य स्तर पर विशेषण आधारित लिंग बोध

१- -ओ प्रत्यय से स्त्रीलिंग का बोध होता है - यथा
मैं कालो छूं (मै काला हूं ),

तैं बड़ो निको छै (तू बड़ा अच्छा है )
२- -इ प्रत्यय से स्त्रीलिंग का बोध होता है . जैसे
मैं कालि छूं (मै काली हूं )

तैं बड़ी निकि छै (तू बड़ी अच्छी है )
                                          वाक्य स्तर पर क्रिया आधारित लिंग बोध

क्रिया के अंत में जुड़े हुए पुल्लिंग या त्रिलिंग वोधक पर प्रत्ययों से सर्वनाम की लिंग निर्णय होता है .यथा
तैं खांछै (तू खता है )
तैं खांछि (तू खाती है )
वु खान्छ (वह खता है )

वु खान्छी (वह खाती है )
कुमाउंनी में उत्तम पुरुष सर्वनाम का लिंग बोध केवल विशेषण द्वारा सम्भव है क्योंकि उत्तम पुरुष में क्रिया लिंग समान पाए जाते हैं
                                        सर्वनाम वचन व कारक रूप

उत्तम पुरुष वाचक सर्वनाम
एक वचन------------------------------------------- बहुवचन

अविकारी------------विकारी ------------------------अविकारी ----------विकारी
मैं-----------------मैं -------------------------------हम्-----------------हम्

म -----------------मी----------------------------------------------------हमू, हमुन
मध्यम पुरुष वाचक सर्वनाम

---------------------- एक वचन ------------------------------------------------बहुवचन
----------------------- अविकारी --------विकारी----------------------------------अविकारी --------विकारी
मध्य पुरुष वाचक ----------------------- ऐ ----------------------------------------------------------- -उ

मध्य पुरुष वाचक------------------------इ ------------------------------------------------------------ -इ
मध्य पुरुष वाचक------------------------ए--------------------------------------------------------------ऊन

मध्य पुरुष वाचक------------------------या ----------------------------------------------------------------
मध्य पुरुष वाचक ----------------------ऊँ----------------------------------------लोग---------------लोगून, लोगन

मध्य पुरुष आदरसूचक--- तैं -----------तैं-----------------------------------------तुम -----------------तुम्
मध्य पुरुष आदरसूचक---तु -------------त्वी ------------------------------------तिमि ------------------तुमु

मध्य पुरुष आदरसूचक --- -------------ते ----------------------------------------तम--------------------तिमि
मध्य पुरुष आदरसूचक----------------त्या--------------------------------------------------------------तुमुन

मध्य पुरुष आदरसूचक-----------------त्वे ------------------------------------------------------------------
मध्य पुरुष आदरसूचक- आपूं---------आपूं ------------------------------------आपूं लोग -------------आपूं लोगुन/आपूं लोगन (आप कुमाउंनी शब्द नही है )

                                      अन्य पुरुष निश्चय वाचक सर्वनाम
---------------------------- एक वचन ------------------------------------------------बहुवचन
------------------------- --अविकारी --------विकारी----------------------------------अविकारी --------विकारी
१- दूरवर्ती द्योत्तक--- - उ ---------------वी --------------------------------------- उन् --------------उन्, ऊन, उनु

२- निकटवर्ती द्योत्तक --वो---------------ये------------------------------------------इन ---------------इन, इन्, इनु, इनूं
आदर सूचक -------------आफु -------------आफु ------------------------------------आफु----------------आफूं /आफून

आदर सूचक -------------आफ -------------आफ-------------------------------------आफ---------------- आफून /आफूँ
निश्चय वाचक सर्वनाम एक वचन में -ई , तथा बहुवचन में ऐ जुड़ता है. योई, (यही ) , उई (वही ) , इनै (ये ही ), उनै (वे ही )

                                  प्रश्न वाचक सर्वनाम
----------------------------------- एक वचन --------------------------------------------------बहुवचन
------------------------- --अविकारी --------विकारी----------------------------------अविकारी --------विकारी
प्राणी वोधक ---------------को --------------कै ----------------------------------------कन---------------कन् , कनु , कनूं

अप्राणी वोधक-------------के ----------------के -----------------------------------------------------------कनूं (क+न् +उन )
                                    अनिश्चय वाचक सर्वनाम

----------------------------------- एक वचन --------------------------------------------------बहुवचन
------------------------- --अविकारी --------विकारी-------------------------------अविकारी --------विकारी

प्राणी वोधक -------------कवी, कोई ------- के ------------------------------------क्वे ------------ कन , कनु कनूं
परिमाण वोधक-----------कुछ -------------कुछ ----------------------------------कुछ ---------कुछ, कुछून

परिमाण वाचक व
सम्पूर्णता द्योतक ------शब्---------------शब् ------------------------------------शब्------------शबून
----------------------------शप् -------------शप्---------------------------- -------- शप्----------- शप्पैन

                                           सम्बन्ध वाचक सर्वनाम
----------------------------------- एक वचन --------------------------------------------------बहुवचन
------------------------- --अविकारी --------विकारी-------------------------------अविकारी --------विकारी
सम्बन्ध वाचक ----------जो----------------जै --------------------------------------जन ------------जनूं (जन + उन)

नित्य सम्बन्धी ---------शो ----------------तै -------------------------------------------------------तनु , तिनु
नित्य सम्बन्धी---------तो ---------------------------------------------------------तन, तिन -------तनु , तिनु , तिनूं

                                 परस्परता वोधक सर्वनाम
परस्परता वोधक सर्वनाम केवल बहुवचन में होते हैं
------------------------- --अविकारी --------विकारी

परस्परता वोधक -------- आपश------------आपशून
                                       निजवाचक वोधक सर्वनाम
----------------------------------- एक वचन --------------------------------------------------बहुवचन
------------------------- --अविकारी --------विकारी-------------------------------अविकारी --------विकारी
--------------------------आपुन ------------आपुना--------------------------------आपुना -----------आपुनान

अविकारी कारक एकवचन व वहुवचन सर्वनाम
कुमाउंनी में अविकारी कारक एक वचन बहुवचन में परिवर्तित होता है . किन्तु दुसरे के अंतर्गत एक वचन और वहुवचन के रूप समान रहते हैं .

बहुवचन में परिवर्तन होने वाले सर्वनाम
वे जो एकवचन में स्वरांत होते हैं व बहुवचन में ब्यंजनांत हो जाते है - एक वचन क बहुवचन कक में, एकवचन अ बहुवचन अक में बदल जाता है. वैसे हम और हमि भी इसी कोटि में आते हैं जो smay, jati bhed के मुक्त परिवर्तन के उदाहरण

हम -उत्तम पुरुष बहुवचन द्योतक सर्वनाम है
तुम माध्यम पुरुष बहुवचन द्योतक है
----------------------------------- एक वचन --------------------------------------------------बहुवचन

----------------------------------उ (वह) --------------------------------------------------------उन (वे)
---------------------------------यो (यह) --------------------------------------------------------इन (ये)

--------------------------------तो (सो)----------------------------------------------------------तिन, तन
-------------------------------को----------------------------------------------------------------कन

---------------------------------जो --------------------------------------------------------------जन
                                        कुछ अन्य नियमों के उदहारण
कुछ, शप, आफु
हम , हमुन

तुम , तुमन
उन , उनुन
इन , इनून
हमूनले (हमने ), हमून (हमको)
हमुंका (हमारा) , हमुश (हमको) , हमुकैं (हमको) , हमुकणि
आपुनान (अपनों को )
शबोका (सबका ) , शबाका (सबके) , शबकि (सबकी)

हमोरो, हमारा , हमरी , तुमोरो, तुमारा , तुमरी , इनोरो , इनारा, उनोरी , उनारा, उर्नार,
हम लोगून, हम शब्, हम शबुन , शब् जन, शब जनून
मेरवे (मेरा ही ) , तेर्वे (तेरा ही) , तुमी ((तुम ही) , मैंइ (मै ही ) , उनि (वे ही ) इनी (ये ही ) , हमई (हम ही ) , , उनीर्वे (उनका ही ) , इनौर्वे (इनका ही )

संदर्भ् :

१- अबोध बंधु बहुगुणा , १९६० , गढ़वाली व्याकरण की रूप रेखा, गढ़वाल साहित्य मंडल , दिल्ली
२- बाल कृष्ण बाल , स्ट्रक्चर ऑफ़ नेपाली ग्रैमर , मदन पुरूस्कार, पुस्तकालय , नेपाल

३- भवानी दत्त उप्रेती , १९७६, कुमाउंनी भाषा अध्ययन, कुमाउंनी समिति, इलाहाबाद
४- रजनी कुकरेती, २०१०, गढ़वाली भाषा का व्याकरण, विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून

५- कन्हयालाल डंड़रियाल , गढ़वाली शब्दकोश, २०११-२०१२ , शैलवाणी साप्ताहिक, कोटद्वार, में लम्बी लेखमाला
६- अरविन्द पुरोहित , बीना बेंजवाल , २००७, गढ़वाली -हिंदी शब्दकोश , विनसर प्रकाशन, देहरादून

७- श्री एम्'एस. मेहता (मेरा पहाड़ ) से बातचीत
८- श्रीमती हीरा देवी नयाल (पालूड़ी, बेलधार , अल्मोड़ा) , मुंबई से कुमाउंनी शब्दों के बारे में बातचीत

९- श्रीमती शकुंतला देवी , अछ्ब, पन्द्र-बीस क्षेत्र, , नेपाल, नेपाली भाषा सम्बन्धित पूछताछ

१० - भूपति ढकाल , १९८७ , नेपाली व्याकरण को संक्षिप्त दिग्दर्शन , रत्न पुस्तक , भण्डार, नेपाल

११- कृष्ण प्रसाद पराजुली , १९८४, राम्रो रचना , मीठो नेपाली, सहयोगी प्रेस, नेपाल

Comparative Study of Kumauni Grammar , Garhwali Grammar and Nepali Grammar (Grammar of , Mid Himalayan Languages ) to be continued ........

. @ मध्य हिमालयी भाषा संरक्षण समिति
(Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali and Nepali, Mid Himalayan Languages-Part-5 )

सम्पादन : भीष्म कुकरेती

मध्य हिमालयी कुमाउंनी , गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलनात्मक अध्ययन भाग -4

(इस लेखमाला का उद्देश्य मध्य हिमालयी कुमाउंनी, गढ़वाळी एवम नेपाली भाषाओँ के व्याकरण का शास्त्रीय पद्धति कृत अध्ययन नही है अपितु परदेश में बसे नेपालियों, कुमॉनियों व गढ़वालियों में अपनी भाषा के संरक्षण हेतु प्रेरित करना अधिक है. मैंने व्याकरण या व्याकरणीय शास्त्र का कक्षा बारहवीं तक को छोड़ कभी कोई औपचारिक शिक्षा ग्रहण नही की ना ही मेरा यह विषय/क्षेत्र रहा है. अत: यदि मेरे अध्ययन में शास्त्रीय त्रुटी मिले तो मुझे सूचित कर दीजियेगा जिससे मै उन त्रुटियों को समुचित ढंग से सुधार कर लूँगा. वास्तव में मैंने इस लेखमाला को अंग्रेजी में शुरू किया था किन्तु फिर अधिसंख्य पाठकों की दृष्टि से मुझे हिंदी में ही इस लेखमाला को लिखने का निश्चय करना पड़ा . आशा है यह लघु कदम मेरे उद्देश्य पूर्ति हेतु एक पहल माना जायेगा. मध्य हिमालय की सभी भाषाएँ ध्वन्यात्म्क हैं और कम्प्यूटर में प्रत्येक भाषा की विशिष्ठ लिपि न होने से कहीं कहीं सही अक्षर लिखने की दिक्कत अवश्य आती है किन्तु हम कुमाउंनी , गढवालियों व नेपालियों को इस परेशानी को दूसरे ढंग से सुलझानी होगी ना की फोकट की विद्वतापूर्ण बात कर नई लिपि बनाने पर फोकटिया बहस करनी चाहिए. ---- भीष्म कुकरेती )
                                                                                                                                                                 
 नेपाली भाषा में संज्ञां विधान
                  
नेपाली में भी गढ़वाली, कुमाउंनी भाषाओँ की तरह ही संज्ञा बोध होता है . नेपाली में भी स्थान, व्यक्ति या दशा के नाम की अभिव्यक्ति को संज्ञा कहते हैं .

नेपाली संज्ञा प्रकार

नेपाली में संज्ञाएँ तीन तरह की होती हैं
व्यक्ति वाचक संज्ञाएँ :

किसी व्यक्ति, स्थान के विशेष नाम को व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं . जैसे
काठमांडु , जंग बहदुर सिंग , आदि

सामान्य वाचक संज्ञाएँ :
नेपाली व्याकरण विशेषग्य पराजुली के अनुसार जो संज्ञा ना तो व्यक्तिवाचक हो और ना ही भाव वाचक संज्ञा हो उसे सामान्य वाचक संज्ञा कहते हैं जैसे

कलम, घर फूल , मनिस (मनुष्य) आदि
भाववाचक संज्ञा :
भाव वाचक संज्ञाएँ किसी गुण, दशा या कृत्तव का नाम बताती हैं. जैसे

दया, केटोपन, भनाई, चाकरी, अग्लाई, नीलोपन आदि
नेपाली में भाव वाचक संज्ञा बनाने के सिद्धांत

१- जातिवाचक संज्ञा से भाव वाचक संज्ञा बनाने का विधान
जातिवाचक संज्ञा ----------------------------------------भाव वाचक संज्ञा

केटो (बच्चा , लडका ) ------------------------------------केटोपन ( बचपन,लड़कपन )
चाकर ------------------------------------------------------चाकरी

चोर --------------------------------------------------------चोरी
२- मूल क्रिया से भाव वाचक संज्ञा बनाने का विधान

मूल क्रिया -----------------------------------------------भाव वाचक संज्ञा
पढ़-------------------------------------------------------पढे (ढ पर ऐ की मात्रा ) (पढ़ाई )

भन (कहना )-------------------------------------------भनाऊ (कथन )
हांस-----------------------------------------------------हाँसाई ( हंसी )
- विशेषणों से भाववाचक संज्ञा बनाने के नियम
विशेषण -----------------------------------------------भाव वाचक संज्ञा

नौलो-----------------------------------------------------नौलोपन (नयापन)
रातो ----------------------------------------------------रातोपन (ललाई )

अग्लो -------------------------------------------------अग्लाई (उंचाई )
नेपाली भाषा में लिंग विधान

नेपाली व्याकरणाचार्यों जैसे पराजुली के मतानुसार नेपाली में चार प्रकार के लिंग पाए जाते हैं.


१- पुल्लिंग

२- स्त्रीलिंग
३- नपुसंक लिंग ; अप्रानी वाचक पदार्थ, भाव, विचार नपुंसक लिंग में आते हैं यथा:
घर, पुस्तक, रुख, विचार आदि
कवि, कीरा (कीड़ा) , चरा (चिड़िया) , देवता आदि
३- सामान्य लिंग : जिस किसी में दोनों लिंगों की संभावनाएं होती है . यथा
जब कि व्याकरण शास्त्री जय राज आचार्य मानते हैं कि दो ही लिंग होते हैं .

जय आचार्य के अनुसार संज्ञा में लिंग क्रिया अनुसार अभिव्यक्त होता है णा कि संज्ञा से , जैसे
शारदा जान्छा (शारदा जाता है )

शारदा जान्छे (शारदा जाती है )
दुर्गा गयो (दुर्गा गया )
दुर्गा गई (दुर्गा गई)

१- शब्द से पहले लिंग सूचक शब्द जोड़ने से
पुल्लिंग ---------------------------------------स्त्रीलिंग

लोग्ने मान्छे---------------------------------स्वास्नी मान्छे
पुरुष देवता ----------------------------------स्त्री देवता

भाले कमिला-------------------------------पोथी कमिला (चींटी )
२- आनी, इनी, इ, एनी प्रत्यय लगाकर पुल्लिंग से स्त्रीलिंग बदलना

पुल्लिंग ---------------------------------------स्त्रीलिंग
ऊँट --------------------------------------------ऊंटनी
कुकुर -----------------------------------------कुकुर्नी (कुत्ती )

घर्ती-----------------------------------------घर्तीनि
डाक्टर --------------------------------------डाक्टरनी

३- नेपाली के पृथक पृथक पुल्लिंग व स्त्रीलिंग शब्द
नेपाली में भी अन्य भाषाओँ कि तरह पृथक पुल्लिंग शब्द व पृथक स्त्रीलिंग का विधान मिलता है

पुल्लिंग ---------------------------------------स्त्रीलिंग
बुवा (पिता) ----------------------------------आमा (मां )
दाजू (भाई)-----------------------------------बहिनी (बहिन)

सांढे गोरु (बैल) -----------------------------------गाई (गाय)
नेपाली में वचन विधान

नेपाली में गढ़वाली व कुमाउंनी भाषाओँ के बनिस्पत वचन विधान सरल है
१- हरु प्रत्यय जोड़ कर बहुवचन बनना :

संज्ञा के अंत में हरु जोड़ने से संज्ञा बहुवचन हो जात है , जैसे
एकवचन ---------------------------------------बहुवचन

राजा -------------------------------------------राजाहरू
मान्छे (एक व्यक्ति ) ------------------------- मान्छेहरु (कई व्यक्ति )

किताब -----------------------------------------किताबहरु
देस ----------------------------------------------देसहरू
२- सूचनार्थ शब्दों से वचन सूचना

यो एवम त्यो 'यी' और 'ती' में बदल जाते हैं
एकवचन ---------------------------------------बहुवचन
यो मान्छे ---------------------------------------यी मान्छेहरु

३- संख्या को संज्ञा से पहले लगाने से वचन बादल जाता है
एकवचन ---------------------------------------बहुवचन

एक दिन ----------------------------------------दुई दिन , पांच दिन
४- कुछ संज्ञाओं में संज्ञा शब्द (जो जाती वाचक संज्ञाएँ बहुत सा, बहुत से बिबोधित हो पाती हैं ) से पहले धेरै लगाने से भी एकवचन बहुवचन बन जाता है

एकवचन ---------------------------------------बहुवचन
किताब ----------------------------------------धेरै किताब
यद्यपि धेरै किताबहरु भी प्रयोग किया जाता है

५- कारक को शब्द बहुवचन में का में बदल जाता है
एकवचन ---------------------------------------बहुवचन
नेवार को मान्छे -----------------------------नेवार का मान्छेहरु (नेवार के (कई) मनुष्य )

छोरा को किताब -----------------------------छोरा का किताबहरु (पुत्र की किताबें )


संदर्भ् :
१- अबोध बंधु बहुगुणा , १९६० , गढ़वाली व्याकरण की रूप रेखा, गढ़वाल साहित्य मंडल , दिल्ली
२- बाल कृष्ण बाल , स्ट्रक्चर ऑफ़ नेपाली ग्रैमर , मदन पुरूस्कार, पुस्तकालय , नेपाल

३- भवानी दत्त उप्रेती , १९७६, कुमाउंनी भाषा अध्ययन, कुमाउंनी समिति, इलाहाबाद
४- रजनी कुकरेती, २०१०, गढ़वाली भाषा का व्याकरण, विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून

५- कन्हयालाल डंड़रियाल , गढ़वाली शब्दकोश, २०११-२०१२ , शैलवाणी साप्ताहिक, कोटद्वार, में लम्बी लेखमाला
६- अरविन्द पुरोहित , बीना बेंजवाल , २००७, गढ़वाली -हिंदी शब्दकोश , विनसर प्रकाशन, देहरादून

७- श्री एम्'एस. मेहता (मेरा पहाड़ ) से बातचीत
८- श्रीमती हीरा देवी नयाल (पालूड़ी, बेलधार , अल्मोड़ा) , मुंबई से कुमाउंनी शब्दों के बारे में बातचीत

९- श्रीमती शकुंतला देवी , अछ्ब, पन्द्र-बीस क्षेत्र, , नेपाल, नेपाली भाषा सम्बन्धित पूछताछ
१० - भूपति ढकाल , १९८७ , नेपाली व्याकरण को संक्षिप्त दिग्दर्शन , रत्न पुस्तक , भण्डार, नेपाल

११- कृष्ण प्रसाद पराजुली , १९८४, राम्रो रचना , मीठो नेपाली, सहयोगी प्रेस, नेपाल

( Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali and Nepali, Mid Himalayan Languages-Part-4 )

@ मध्य हिमालयी भाषा संरक्षण समिति


सम्पादन : भीष्म कुकरेती

18 January, 2012

मध्य हिमालयी कुमाउंनी , गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण तुलनात्मक अध्ययन


(इस लेखमाला का उद्देश्य मध्य हिमालयी कुमाउंनी, गढ़वाळी एवम नेपाली भाषाओँ के व्याकरण का शास्त्रीय पद्धति कृत अध्ययन नही है अपितु परदेश में बसे नेपालियों, कुमॉनियों व गढ़वालियों में अपनी भाषा के संरक्षण हेतु प्रेरित करना अधिक है. मैंने व्याकरण या व्याकरणीय शास्त्र का कक्षा बारहवीं तक को छोड़ कभी कोई औपचारिक शिक्षा ग्रहण नही की ना ही मेरा यह विषय/क्षेत्र रहा है. अत: यदि मेरे अध्ययन में शास्त्रीय त्रुटी मिले तो मुझे सूचित कर दीजियेगा जिससे मै उन त्रुटियों को समुचित ढंग से सुधार कर लूँगा. वास्तव में मैंने इस लेखमाला को अंग्रेजी में शुरू किया था किन्तु फिर अधिसंख्य पाठकों की दृष्टि से मुझे हिंदी में ही इस लेखमाला को लिखने का निश्चय करना पड़ा . आशा है यह लघु कदम मेरे उद्देश्य पूर्ति हेतु एक पहल माना जायेगा. मध्य हिमालय की सभी भाषाएँ ध्वन्यात्म्क हैं और कम्प्यूटर में प्रत्येक भाषा की विशिष्ठ लिपि न होने से कहीं कहीं सही अक्षर लिखने की दिक्कत अवश्य आती है
किन्तु हम कुमाउनी, गढवालियों व नेपालियों को इस परेशानी को दूसरे ढंग से सुलझानी होगी ना की फोकट की विद्वतापूर्ण बात कर नई लिपि बनाने पर फोकटिया बहस करनी चाहिए. ---- भीष्म कुकरेती )
मध्य हिमालयी कुमाउंनी , गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलनात्मक अध्ययन भाग -2
(Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali and Nepali, Mid Himalayan Languages-Part-2 )
संज्ञा
अबोध बंधु बहुगुणा अनुसार संज्ञा उस विकारी शब्द को कहते हैं जिससे नाम का बोध हो. श्रीमती रजनी कुकरेती ने संज्ञा की परिभाषा देते लिखा कि किसी व्यक्ति , वस्तु , स्थान तथा भाव के नाम को संज्ञा कहते हैं जैसे ब्याला, थाळी, बजार, भलै आदि. वहीं डा भवानी दत्त उप्रेती ने संज्ञा की परिभाषा न देकर लिखा की संज्ञा से तात्पर्य संज्ञाएँ तथा संज्ञावत् प्रयुक्त होने वाले कृदंत रूपों से है.
कुमाउंनी भाषा में संज्ञा रूप
डा भवानी दत्त ने लिखा है कि संज्ञा रूप-सारणी में संज्ञा मूल अथवा संज्ञा व्युत्पन्न प्रतिपादकों के पश्चात् लिंग, वचन, तथा कारक के अनुसार कुमाऊंनी भाषा में प्रत्यय जुड़ते हैं
डा भवानी दत्त उप्रेती ने लिखा कि अधिकाँश पुल्लिंग संज्ञा व्युत्पन्न प्रातिपदिक ओकारांत और स्त्रीलिंग संज्ञा व्युत्पन्न प्रातिपदिक इकारांत हैं . इस तरह पाते हैं कि कुमाउंनी भाषा में ओकारांत संज्ञाएँ सभी पुल्लिंग हैं. और कुमाउंनी में ओकारांत के साथ साथ अपवाद छोड़कर औकारान्त, उकारांत , तथा एकारान्त संज्ञाएं भी अधिकतर पुल्लिंग होती हैं. यद्यपि संख्या न्यूनतम है किन्तु कुमाउंनी भाषा में कुछ इकारांत संज्ञाएँ भी पुल्लिंग होती हैं. कुमाउंनी भाषा में लिंग दृष्टि से अकारांत, व्यंजनान्त, ऐकारांत और ऐंकारांत संज्ञाएँ पुल्लिंग व स्त्रीलिंग दोनों प्रकार कि पाई जाती हैं .
व्यंजनान्त संज्ञाएँ
पुल्लिंग - वन्, घाम् , पात्
स्त्रीलिंग - बात्, ठार, खाट
स्वरांत संज्ञाएँ
पुल्लिंग स्त्रीलिंग
आकारांत कतुवा माला, इजा
इकारांत आदिमि, पानि छाति, बानि
उकारांत गोरु , आरू ---
एकारांत दुबे ज्वे
ऐंकारांत दै मैं
ऐकारांत भैं शै
ओकारांत चेलो , बाटो , लाटो -----
औकारांत द्यौ , मौ , उगौ -----
कुमाउनी भाषा में अंत्य ध्वनि मुक्ति के कारण कई संयुक्त व्यंजनान्त और उत्क्षिप्त प्रतिपादिक वस्तुत : व्यंजनान्त नही होते और स्वरांत कोटि में रखे जाते हैं
यथा - - बल्द, घट्ट, गूड़ (हिंदी अर्थ - बैल पनचक्की, गुड़) जो सभी एकवचन अविकारिकारक हैं
कुमाउनी संज्ञा लिंग भेद
१- कुमाउनी में अधिकतर पुल्लिंग एक बचन संज्ञाएँ ओकारांत होती हैं और अधिकतर स्त्रीलिंग एकवचन इकारांत होती हैं . यथा :
पुल्लिंग स्त्रीलिंग
अ- चेलो (लड़का ) चेली (लडकी )
ब- थोरो (भैंस का बच्चा ) , थोरी (भैंस की बच्ची )
स- पारो (लकड़ी का विशेष पात्र ) , पारी (काठ का पात्र)
ड़- बाछो ( बछडा ) , बाछि (बछिया)
२- औकारान्त्क प्रत्यय भी ओकारान्तक की भांति एकवचन पुल्लिंग संज्ञा का द्योतक होते हैं
संज्ञा व्युत्पन्न में लिंग निर्णय
अ- ओ - निम्न संज्ञाओं में व्यंजनों के पश्चात ओ लगाने से पुल्लिंग का निश्चय होता है यथा
चेलो (चेल = ओ ) =लडका
बातो (बात = ओ) = बत्ती
गल्ओ (गल्+ओ) =गला
ब- औ - निम्नप्रकार के संज्ञाओं में 'औ' प्रत्यय लगाने से पुल्लिंग बन जाता है . यथा
भौ (भ +औ ) = शहद
द्यौ (द्य् +औ ) = वर्षा
स- उ- संज्ञा पर 'उ' प्रत्यय जुड़ने से पुल्लिंग का भास होता है . यथा
गोरु (गोर + उ ) = गाय
आरू (आर = उ ) = आड़ू
द - ए - ए प्रत्यय कुछ विशेष स्थानों में प्रयोग होता है जैसे दुबे, चौबे , खुलबे आदि किन्तु यह जातिवाचक संज्ञा होने से नाम के आगे भी लगता है
स्त्रीलिंग के विशेष सिद्धांत
१- यद्यपि स्त्रीलिंग हेतु कोई निश्चित स्थिति नही मिलती है अपितु अधिकाँश स्त्रीलिंग संज्ञाएँ 'इ' प्रत्यय से संयुक्त होती हैं . यथा .चेली (चेल =इ ) = लडकी
कोई व्यंजन आ, ए, ऐ, से भी युक्त होती हैं , यद्यपि ऐसे कुछ व्यंजन पूलिंग से भी सम्बद्ध होते हैं
क-- 'इ':--- निम्न कोटि की संज्ञाओं में 'इ' रहता है
चेल + इ = चेली
राँ =इ = रानी
वान = इ = वाणी
ख- -नि :- आगत संज्ञा प्रतिपादकों या व्युत्पुन्न प्रतिपादकों में 'र्' ध्वनि के बाद मिलता है यथा
मास्टर् + नि = मास्टरनी
शुबेदार्' +नि = शुबेदारनी
शूनार् = नि = शूनारनी
यद्यपि अन्य ध्वनियों के बाद भी नि लगने से स्त्रीलिंग बनता है जोग + नि = जोगनी
ग - -आनि :- कुमाउनी में अघोष स्पर्शी ध्वनियों के पश्चात् स्त्रीलिंग में 'आनि' मिलता है
पंडित +आनि = पंडितानी
जेठ +आनि = जेठानी
घ- -आनि का प्रयोग ध्वनि परिवर्तन के साथ स्घोस ध्वनि के अप्श्चत भी मिलता है . यथा
कोल + आनि = कोल्य =आनि = कोल्यानी
धोबि + आनि = धोब्यानी
च - आनि/यानि के विकल्प में आन भी लगता है. यथा
; द्योर + आन =द्योरान या द्योर +आनि = द्योरानी
छ- - आ निम्न कोटि की संज्ञाओं में लगता है . यथा
माल् +आ = माला
इज + आ = इजा
ज- - ऐ : कहीं , कहीं 'ऐ' क प्रयोग होता है , यथा
म + ऐ = मै (कृषि उपकरण )
क् + ऐ = कै (वमन)
झ- श +ऐ = शै (दीवार)
गाय का स्त्रीलिंग ' गै' है जब कि गोरु पुल्लिंग है
व्यंजनान्त व अन्य स्वरांत का लिंग विधान
व्यंजनान्त व अन्य स्वरांत का लिंग विधान में लिंग निर्णय सन्दर्भ व वाक्य धरातल पर होता है
अ- पुल्लिंग:- घाम मंदों छ , नाक टेड़ी छ,
आ- स्त्रीलिंग :- बात निकिछ , गाड़ में आद हुनो
ओकारांत और औकारान्त संज्ञाएँ बहुवचन में विकारी रूप प्राप्त होती हैं
एक वचन वहुवचन
चेलो च्याला
घोड़ो घ्वाड़ा
उपरोक्त संज्ञाओं का लिंग निर्णय वाक्यानुसार होता है
च्याला ऐं ग्यान/गईं (लडके आया गए )
घ्वाड़ा दौड़ला (घोड़े दौड़ेंगे )
पृथक पृथक लिंग
बहुत सी संज्ञाओं में लिंग पृथक प्रित्जक होते हैं
पुल्लिंग स्त्रीलिंग
बाबा (पिता) इजा (माँ )
बल्द (बैल) गोरु (गाय)
बैग (पुरुष ) श्यैनी
भेदहीन लिंग
कुछ शब्द दोनों लिंगो का प्रतिनिध्वत्व करते हैं
मैश (स्वामी )
उ कशि मैश छ ((स्त्रीलिंग )
उ कशो मैश छ (पुल्लिंग)
कारक
अ- - कुमाउनी संज्ञाओं ओकारांत एक वचन संज्ञाए वहुवचन में आकारांत हो जाती हैं
ब१-- कुछ इकारांत संज्ञाओं में एकवचन व वहुवचन इकारांत ही रहती हैं
ब२- -अन्य इकारांत संज्ञाओं में एकवचन -इ वहुवचन में - इन में बदला जाती है
दोनों का प्रयोग विकल्पात्मक रूप से होता है . यद्यपि इकारान्तक अप्राणीवाचक संज्ञाओं के वहुवचन में अन्त्य सिर्फ -इ रहता है और अन्यत्र एक वचन तथा वहुवचन ए रूप एकसमान होते हैं
एक वचन;       बहुवचन;          लिंग
ए- चेलो (लडका ) च्याला (लड़के ) पुल्लिंग
घोड़ो (घोड़ा ) घ्वाड़ा (घोड़े) पुल्लिंग
बाटो (रास्ता ) बाटा (रास्ते ) पुल्लिंग
बी१ - चेलि (लड़की ) चेलि (लड़कियां ) स्त्रीलिंग
घोडि (ड़ +इ ) (घोड़ी) घोडि (छोटी ड़ी) (घोड़ियाँ ) स्त्रीलिंग
बैनि (छोटी बहिन ) बैनि (छोटी बहिनें ) स्त्रीलिंग
बि २ - तालि (ताली ) तालि ( तालियाँ ) स्त्रीलिंग
बालि (अनाज की बाल ) बालि (अनाज की बालें ) स्त्रीलिंग
सी१ - बन् (वन ) बन् (वन ) पुल्लिंग
पात् (पत्ता ) पात् (पत्ता ) पुल्लिंग
बात् (बात ) बात् (बात ) पुल्लिंग
सी २- घट्ट ( पनचक्की ) घट्ट ( पनचक्कियां ) पुल्लिंग
बल्द (बैल) बल्द (बैल) पुल्लिंग
डी - ब्याला (कटोरा ) ब्याला (कटोरे ) पुल्लिंग
माला (माला ) माला (मालाएं) स्त्रीलिंग
इजा (माता ) इजा (माताएं ) स्त्रीलिंग
इ- गोरु (गाय ) गोरु (गायें ) पुल्लिंग
आरू (आड़ू) आरू (आड़ू ) पुल्लिंग
ऍफ़ - कै (वमन ) कै (वमन ) स्त्रीलिंग
जी- भै (भाई ) भै (भाइ ) स्त्रीलिंग
शै (दीवार ) शै (दीवारें ) स्त्रीलिंग
एच - उगौ (कृषि उपकरण ) उगौ पुल्लिंग
खल्यौ (लकड़ी का ढेर ) खल्यौ (लकड़ी के ढेर ) पुल्लिंग
कुमाउनी संज्ञाओं में वचन सम्बन्धी तालिका
तिर्यक अथवा विकारी करक में बहुवचन के रूप बदलते रहते हैं. एक वचन तिर्यक में भी ओकारांत व कुछ औकारान्तक संज्ञाएँ कारकीय स्तिथि में बदलती रहती हैं और बदला हुवा रूप एक वचनीय संज्ञाओं के बहुवचन अविकारी के समान होते हैं . ओकारांत तथा औकारान्त को छोड़ अन्य शेष संज्ञाओं का वचन वाक्य स्तरपर होता है.
वचन सम्बन्धी तालिका से यह स्पष्ट हो जाता है
संज्ञा एक वचन अविकारी कारक विकारी कारक बहुवचन रूप साधक पर प्रत्यय
-ओकरान्तक और औकारान्तक ------------- -आ --आ
अन्य संज्ञाएँ ------------- ------- ------
संज्ञाएँ एक वचन विकारी रूप कारक
संज्ञा एक वचन अविकारी कारक विकारी कारक
चेलो ;         चेलो खांछ ; च्यालो ले खाछ
खल्यौ :      खल्यौ नान्छ खल्यौ बै लाल्यूं
चेलि :           चेलि खान्छि चे; लि ले खाछ
पात् :         पात् हरिया छ ; पात् में खाछ
बल्द : बल्द बालो बल्द ले बाछ
इजा इजा खान्छि इजा ले खाछ
गोरु गोरु चर्छ गोरु ले चरछ्य
दुबे दुबे खान्छ दुबेले खाछ
कै कै भैछ कै में ल्वे छियो
शै शै शफेद छ शै बै खितीछ
समान विकारीकारक रूप
कुमाऊंनी भाषा में सभ कारकीय स्तिथियों में विकारीकारक रूप एक समान होते हैं
च्याला ले खाछ (लड़के ने खाया)
च्याला कैं दिय ( लड़के को दो )
च्यालाक्पिति भ्योछ (लड़के के द्वारा हुआ )
च्यालाक् दादा (लड़के का भाई )
च्याला में खोट छ (लड़के में दोष है )
ओ च्याला ! ९अरे लड़के !
कुमाउंनी में प्रतिपादकों के अन्त्यों के अनुसार ही विकारी कारक का रूप बनता है . ओकारांत तथा कुछ औकारान्त एकवचन संज्ञाएँ बहुवचन में पुन्ह विकारी हो जाते हैं
१- आकारांत में - आ के स्थान पर -आन
२--इ, -ए, -ऐ तथा -ऐं अन्त्ययुक्त बहुबचन परिवर्तित हो -ईन हो जाता है
३- व्यंजनान्त के पश्चात विकारी कारक में -ऊन जुड़ जाता है
प्रतिपादक अन्त्य बहुवचन
___________________________________________________
(एक वचन अविकारी कारक ) विकारी कारक संबोधन कारक
-आ; -आन --औ
भाया भायान भाय्औ !
ओ -आन --औ
चेलो च्यालान च्यालौ
-इ; -ए, -ऐ, -ऐं , -ईन -औ
चेलि चेलीन चेलिऔ
मैं मैंईन - (प्राणी वाचक)
शै शैईन - (अप्राणी वाचक )
व्यंजनान्त - उ ; -औ -ऊन -औ
गोरु गोरुऊन गोरौ
उगौ उगौऊन ---(अप्राणी वाचक )
बैग बैगऊन बैगौ
बात् बात्ऊन ---(अप्राणी वाचक )
बहुवचन बोधक संज्ञाएँ
अ- -आ पुल्लिंग ओकारांत संज्ञा के -ओ के स्थान पर बहुवचन में -आ आ जटा है
एक वचन बहुवचन
चेलो च्याला
चल्लो चल्ला
बाटो बाटा
घोड़ो घ्वाड़ा
ब- - होर : अधिकतर - होर का प्रयोग सम्बन्ध सूचक संज्ञाओं में होता है
एक वचन बहुवचन
दादा दादाहोर
काका काकाहोर
भाया भायाहोर
काखि काखिहोर
स- ईं: इकारांत स्त्रीलिंग संज्ञा में -इ के स्थान पर -ई हो जटा है
एकवचन बहुवचन
चेलि चेलीन (लडकियां )
श्यैनि श्यैनीन
द- -औ : औ सम्बोधन बोधक है और केवल प्राणी वाचक संज्ञाओं के साथ प्रयोग होता है
च्यालौ
श्यैनिऔ
शेष , मध्य हिमालयी कुमाउंनी , गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलानाम्त्क अध्ययन भाग - 3 में .....
Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali and Nepali, Mid Himalayan Languages to be continued ..Part-3
संदर्भ् :
१- अबोध बंधु बहुगुणा , १९६० , गढ़वाली व्याकरण की रूप रेखा, गढ़वाल साहित्य मंडल , दिल्ली
२- बाल कृष्ण बाल , स्ट्रक्चर ऑफ़ नेपाली ग्रैमर , मदन पुरूस्कार, पुस्तकालय , नेपाल
३- भवानी दत्त उप्रेती , १९७६, कुमाउंनी भाषा अध्ययन, कुमाउंनी समिति, इलाहाबाद
४- रजनी कुकरेती, २०१०, गढ़वाली भाषा का व्याकरण, विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून
. @ मध्य हिमालयी भाषा संरक्षण समिति

(Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali and Nepali, Mid Himalayan Languages )

भीष्म कुकरेती

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