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गुलज़ार साहब की कविता "गढ़वाली" में

समझौता-विहीन संघर्षों की क्रांतिकारी विरासत को सलाम

दुनिया ने जिन्हें माना पहाड़ों का गांधी

गोर ह्वेग्यो हम

युगों से याद हैं सुमाड़ी के 'पंथ्‍या दादा'

हत्यारी सडक

... जिसकी जागर सुन, बरस जाते हैं बादल

हुजुर !! मुझे गेस्ट राजधानी न बना देना...