दुनिया ने जिन्हें माना पहाड़ों का गांधी


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24 दिसंबर 1925 को अखोड़ी गाँव,पट्टी-ग्यारह गांव, घनसाली, टिहरी गढ़वाल में श्रीमती कल्दी देवी और श्री सुरेशानंद जी के घर एक बालक ने जन्म लिया। जो उत्तराखंड के गांधी के रूप मे विख्यात हुए। इनका नाम था इन्द्रमणी बडोनी । इनकी कक्षा 4 (लोअर मिडिल) अखोड़ी से, कक्षा 7(अपर मिडिल)रौडधार प्रताप नगर से हुई। इन्होने उच्च शिक्षा देहरादून और मसूरी से बहुत कठिनाइयों के बीच पूरी की। इनके पिताजी का जल्दी निधन हो गया था । इन्होने खेती बाड़ी का काम किया और रोजगार हेतु बॉम्बे गये। अपने 2 छोटे भाई महीधर प्रसाद और मेधनीधर को उच्च शिक्षा दिलाई । इन्होने गांव में ही अपने सामाजिक जीवन को विस्तार देना प्रारम्भ किया जगह जगह सांस्कृतिक कार्यक्रम कराये।

इन्होंने वीर भड़ माधो सिंहभंडारी नृत्य नाटिका और रामलीला का मंचन कई गांवों और प्रदर्शनियों में किया ।  यह एक अच्छे अभिनेता, निर्देशक, लेखक, गीतकार, गायक, हारमोनियम और तबले के जानकार और नृतक थे। संगीत में उनके गुरु लाहौर से संगीत की शिक्षा प्राप्त श्री जबर सिंह नेगी थे। ये बालीबाल के कुशल खिलाड़ी थे। इन्होंने जगह-जगह स्कूल खोले। 1956 में स्थानीय कलाकारों के एक दल को लेकर गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित कार्यक्रमों में केदार नृत्य प्रस्तुत कर अपनी लोककला को बड़े मंच पर ले गये। 
1956 में ये  जखोली विकास खण्ड के प्रमुख बने। उससे पहले गांव के प्रधान थे। 1967 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में विजयी होकर पहली बार उत्तर प्रदेश विधानसभा में पहुचे।1969 में अखिल भारतीय कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में दूसरी बार विधायक बने। 1974 में गोविन्द प्रसाद गैरोला जी से चुनाव हारे। 1977 में तीसरी बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में निर्वाचित होकर लखनऊ विधानसभा में पहुचे। 1989 में  ब्रह्मदत्त जी से चुनाव हारे। 1979 से ही पृथक उत्तराखंड राज्य के लिए वे सक्रिय रहे। पर्वतीय विकास परिषद के उपाध्यक्ष रहे। 
1994 में पौड़ी में उन्होंने पृथक उत्तराखंड राज के लिये आमरण अनशन शुरू किया। सरकार द्वारा उन्हें मुजफ्फरनगर जेल में डाल दिया गया । उसके बाद 2 सितम्बर और 2 अक्टूबर का काला इतिहास घटित हुआ। उत्तराखंड आंदोलन में कई मोड़ आये पूरे आंदोलन में वे केंद्रीय भूमिका में रहे । बहुत ज्यादा धड़ो और खेमों में बंटे आंदोलनकारियों का उन्होंने सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। 
एक अहिंसक आंदोलन में उमड़े जन सैलाब की उनकी प्रति अटूट आस्था, करिश्माई  पर सहज -सरल व्यक्तित्व के कारण वाशिंटन पोस्ट ने उन्हें "पर्वतीय गाँधी" की संज्ञा दी।
18 अगस्त 1999 को विठल आश्रम ऋषिकेश में इनका निधन हो गया। लेकिन आज भी पूरा उत्तराखंड इन्हें उत्तराखंड के गांधी के नाम से जानते है । हमारी ओर से उत्तराखंड के गांधी को उनकी पुण्य तिथि पर एक श्रद्धांजलि ।

संकलन - संजय चौहान

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