February 2012 ~ BOL PAHADI

28 February, 2012

भाषाई विरासत को बचाना बड़ी चुनौती

धाद : लोकभाषा एकांश द्वारा आयोजित  ”आखिर कैसे बचेंगी लोकभाषाएं  ” व्याख्यान माला-4

समाज और सरकार दोनों स्तरों पर उत्तराखंड की लोकभाषाओं की निरन्तर अनदेखी होती रही है जिसका नतीजा है के कुमाऊंनी और गढ़वाली दोनों भाषाएं अपने मूल से कटने लगी हैं। मौजूदा वक्त में भाषायी विरासत को बचाये रखना एक बड़ी चुनौती है। ये बातें सामने आईं देहरादून में हुए एक संगोष्ठी में। अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर धाद : लोकभाषा एकांश की ओर से “आखिर कैसे बचेंगी लोक भाषाएं ” व्याख्यान माला – 4 के तहत ये आयोजन किया गया था। प्राथमिक शिक्षा  में लोक भाषाओं की प्रासंगिता' विषय पर ये संगोष्ठी राजेश्वर नगर सामुदायिक केंद्र , सहस्रधारा रोड में आयोजित की गई थी।

हिमालयी  लोकभाषाओं पर शोधकर्ता डाo कमला पन्त ने मुख्य वक्ता के रूप में कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि हमारी लोकभाषाओं में कुछ ऐसी विशेषताएं हैं जो अन्य भाषाओं में नहीं हैं | आज के वैश्विकरण के दबाव  में इन भाषाओं पर मंडरा रहे खतरे के प्रति हमें सजग होकर अपनी मातृभाषाओं के विकास  के लिये  इस रचनात्मक आन्दोलन  को आगे बढ़ाना चाहिए  |

धाद के संस्थापक लोकेश नवानी ने आधार वक्तव्य देते हुए कहा कि उत्तराखंड भारत का भिन्न भाषायी क्षेत्र है जिसमे गढ़वाली और कुमाउनी दो प्रमुख लोक भाषाएं हैं परन्तु समाज और सरकार दोनों स्तरों पर उत्तराखंड कि लोकभाषाओं कि निरन्तर अनदेखी होती रही है | फलतः ये भाषाएं अपने मूल से कटने लगी  हैं| आज भाषायी विरासत को बचाने एवं उसके विकास के उद्देश्य से धाद ने लोकभाषा आन्दोलन का सूत्रपात किया है |

मातृभाषा दिवस की पूर्व संध्या पर आदित्य राम नवानी लोकभाषा साहित्य सम्मान से सम्मानित एवं ‘ उत्तराखंड खबर सार ‘  के सम्पादक श्री विमल नेगी ने  यूनेस्को की  एक भाषा रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा की दुनिया में 96 % लोग 4 % भाषाओं को बोलते हैं और ठीक इसके उलट 96 % भाषाओं को 4 % लोग ही बोलतें हैं | इससे स्पष्ट है की बड़ी भाषाएं छोटी भाषाओं को हजम करने में लगीं हैं |
धाद के केंद्रीय समन्वयक श्री तन्मय ममगाईं ने कहा की हाल  ही मैं प्रथम संस्था द्वारा जारी कि गयी असर 2011 की रिपोर्ट बताती है की उत्तराखंड की लगभग 67 प्रतिशत विद्यार्थियों  की स्कूली भाषा और मात्रभाषा भिन्न है इसलिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या के अनुसार  लोकभाषाओं को प्राथमिक शिक्षा का हिस्सा बनाने की बात अविलम्ब प्रारंभ होनी चाहिए।

धाद लोकभाषा एकांश के सचिव श्री शांति प्रकाश ज़िज्ञासु ने व्याख्यान माला  की रुपरेखा श्रोताओं  के सम्मुख रखते हुए  कहा की प्राथमिक,माध्यमिक एवं विश्वविद्यालय स्तर पर लोकभाषाओं को उचित स्थान दिलाने ले लिये एक संगठित भाषायी आन्दोलन की आवश्यकता है |

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डाo कुटज भारती ने कहा की वस्तुतः  धाद का लोकभाषा आन्दोलन चतुर्मुखी  है | हमें स्वयं परिवार के बीच अपनी मातृभाषाओं में संवाद को प्राथमिकता देनी होगी तथा समाज को उसके मूल्यों के प्रति जागरूक करना होगा | संगोष्ठी को अन्य वक्ताओं ने भी संबोधित किया  जिनमें  आदित्यराम  नवानी लोकभाषा सम्मान से नवाजे गए डाo हयात  सिंह  रावत (सम्पादक  :  पहरू ,अल्मोड़ा), कवि जगदीश जोशी (कालाढूंगी,नैनीताल), युवा कवि गीतेश सिंह नेगी (मुंबई), डाo राजेन्द्र बलोधी  (देहरादून) आदि प्रमुख थे। कार्यक्रम का संचालन लोकभाषाविद डाo  अरविन्द गौड़ ने किया | साहित्यकार तोताराम ढौंढीयाल ने आमंत्रित अतिथियों एवं श्रोताओं का आभार व्यक्त किया|

कार्यक्रम में अनेक बुद्धिजीवियो, कलाकारों एवं साहित्यकारों ने शिरकत कि जिनमे ख्याति प्राप्त रेखा चित्रकार बी.मोहन नेगी (पौड़ी), गणेश वीरान (पौड़ी), नवीन नौटियाल, जीतेन्द्र जुयाल, कवियत्री बीना कंडारी, दिनेश कुकरेती (कोटद्वार), कवि धनेश कोठारी (ऋषिकेश), बी.बी.एस. रावत (कोटद्वार), रणजीत सिंह पायल, श्रीमती कमला टम्टा, शूरवीर सिंह नेगी, कृष्ण चन्द्र उनियाल, डी.एस.डोभाल, शैलेन्द्र भंडारी, विन्नी उनियाल, एन.के.शाह, धीरेन्द्र गाँधी, आर.के.ध्यानी, सतेन्द्र रावत आदि मुख्या श्रोता कार्यक्रम में उपस्थित थे । 
- तन्मय ममगाईं

25 February, 2012

बुडया लापता : रौंस दिलंदेर हंसोड्या स्वांग फाड़ी - १



मुंबई का सामाजिक कार्यकर्ता, बुद्धिजीवी, लिखवार, स्वांगकर्ता भग्यान दिनेश भारद्वाज ,

अर सामाजिक कार्यकर्ता रमण कुकरेती को लिख्युं नाटक 'बुडया लापता' पर लिखण से पैली

नाटक कत्ति किस्मौ होन्दन पर ज़रा छ्वीं लगी जवान त ठीकि रालो
स्वांग/नाटकूं तैं भौं भौं ढंग मा फड़े (विभाजित ) जै सक्यांद
- रचनौ हिसाबन- एक दृषौ एकांकी, बिंडी दृश्यौ एकांकी, सूत्रधारी अर एक पात्रीय नाटक
२-साधनौ हिसाबन - स्टेज, टेलीविजन/वीडिओ/फिल्म/रेडिओ , नुक्कड़ बानौ जन स्वांग

३- भाषौ हिसाबन - गद्यात्मक, पद्यात्मक, गद्य-पद्य वळ, म्यूजिकल ड्रामा
४- वाद या सिधांत वळा स्वांग - आदर्शवादी, असलियत वादी , अति असलियत वादी, प्रगतिवादी, साम्यवादी या समाजवादी,

धार्मिक पंथवादी, कलावादी, प्रभाव वादी, प्रतीकात्मक या हौर कें हैंकि कला से प्रभावित नाटक
५- विषयौ हिसाबन - सामाजिक, इतियासौ , राजनैतिक, चरित्र प्रधान स्वांग
६-बृति हिसाबन - समस्या प्रधान, व्यंगात्मक , हंसोड़ी गम्भीर, आलोचनात्मक , अनुभूति प्रधान जन रुवाण वळ आदि

७- ब्युंत/शैली हिसाबन - शब्द-अर्थ से सरल वळ, चबोड्या /व्यंगात्मक, हंसोड्या, विचार प्रधानी , गिताड़, भड़ प्रधान/ओज पूर्ण ,
८ -अंत हिसाबन - दुख्यर अंत, सुख्यरु अंत, मजेदार /रौन्सदार

कौमेडी या हंसोड्या स्वान्गुं बारा मा कुछ विचार
कॉमेडी पर भौत सा विचार छन अर हंसोड्या स्वांग दुन्या मा भाषौ दगड़ इ ऐ गे होला

कॉमेडी स्वान्गुं बारा मा संक्षेप मा जणगरूं इन विचार छन
१- पुराणो भारतीय हंसोड्या ब्यूंत - विदुसक को होण जरूरी छौ. इक तलक की बीसवीं सदी मा
अमिताभ बच्चन को आण से पैल हिंदी फिल्मुं या भारतीय फिल्मुं मा हीरो क अलावा हंसोड्या कलाकार फिल्मुं मा जरुरी

छया. आज बि इनी च
२- पुराणो युनानौ ब्यूंत :प्रथम, मध्य अर आधुनिक अर अरिस्टोफेंस व मेनानडर का स्वांग प्रसिद्ध छन
३- पुराणो रोमनौ ब्यूंत ; यूनान बिटेन जयुं ब्यूंत रोम मा खूब फल अर फब बि च . प्लेटो अर टेरेंस कॉमेडी क फून्दा स्वान्ग्कार माने जान्दन .

रोम मा स्टौक चरित्रुं भरमार राई जन कि ऐडलेसेन्स, सेनेक्ष, लीनो, माइल्स ग्लोरिऔस , पैरासिट्स, गुलाम, अनसिला, मैट्रोना, मेरेत्रिक्ष,
अर विर्गो .
खौंळयाणो बात या च यूँ चरित्रुं बारा मा वात्सायन न अपण 'काम सूत्र' मा वर्णन कर्युं च .

४- बुरलेस्क ब्यूंत : सोळवीं सदी मा इटली अर फ़्रांस मा जनम्युं सत्र्वीं सदी मा सरा यूरोप मा फैल.
५- सिटिजन कौमेडी : लन्दन मा सोळवीं सदी मा यू ब्यूंत प्रसिद्ध ह्व़े अर ये ब्यूंतौ नाम ऐलिजाबेतियन,

जाकोबियन,कारोलाइन बि च. बेन जौनसन, थॉमस मिडलटन अर जौन मार्सटन प्रसिद्ध स्वान्ग्कार ह्वेन
६- जोकर या क्लाउन्स - पच्छमी साहित्यकार माणदन बल मिश्र मा ४५०० साल पैल जोकर ब्युंत आई पन ये इ समौ पर

भारत मा विदूषक स्वान्गुं मा छया अर जानको पुरो वर्णन भारत मुनि क नाट्य शाश्त्र मा विदूषक तकरीबन जोकर बि होंद थौ.
आज सर्कस क अलावा स्वान्गुं मा जोकरूं महत्ता बचीं च
७- कौमेडी ऑफ़ ह्युमर्स: हजारों साल पैल नाट्य शास्त्र मा नाटकुं मा हौंस कनै पैदा करे जान्द मा जानकारी दिए गे.

यूरोप मा सोळवीं सदी मा कौमेडी ऑफ़ ह्युमर्स तैं प्रसिधी मील अर धड्वे छ्या स्वान्ग्कार -बेन जौनसन अर जौर्ज चैपमैन
८- स्थितियूँ से जन्मीं कॉमेडी या कौमेडी ऑफ़ इन्ट्रीग: ये ब्यूंतौ निकोलो माछिवेली अर लोप डे विगा प्रसिद्ध स्वांग लिख्वार ह्वेन

९- कॉमेडी ऑफ़ मैनर्स : कौमेडी ऑफ़ मैनर्स मा कें ख़ास ज़ात/वर्ग पर व्यंग्य करे जांद अर वीं ज़ात या वै वर्ग का ख़ास
चरित्रुं खाल खैंचे जान्द . विलियम कंग्रीव आदि प्रसिद्ध ह्वेन

१०- ड़रयौण्या -धमकौण्या कॉमेडी : कॉमेडी ऑफ़ मेनास क जनम डेविड क्रौम्पटन (१९५८) को स्वांग 'दि लुनाटिक व्यू' से ह्व़े.
इन स्वान्गुं मा ध्वंस बृति पाए जान्द अर फिर हौंस पैदा करे जान्द

११- कळकळी अर हौंसौ मिळवाक, कोमेडी लैमोयांटे या कॉमेडी ऑफ़ टियर्स : उन त यू ब्यूंत सबि लोक नाटकुं मा मिल्दो पण साहित्यौ हिसाबन
पैल पैलु कॉमेडी ऑफ़ टियर्स फ़्रांस मा अठारवीं सदी मा शुरू ह्व़े. थौमस हेवुड ये ब्युंत को मास्टर बुले जान्द

१२- मुखौटों कौंळ : या विधि सोळवीं सदी मा इटली मा शुरू ह्व़े छे जां मा चरित्र को मुख सजाये जान्द, जांको जिक्र नाट्य शाश्त्र मा छें च
फ़्रांस को जैक कोपे (१८७९-१९४९) न ये ब्यूंत से आधुनिक स्वान्गुं तैं गाँ गाँ पंहुचाये.

१३- भावनात्मक हंस्योड्या स्वांग : यूरोप मा कोली सिब्बर अर रिचर्ड स्टीले ये ब्युंत का सूत्रधार माने जान्दन
१४- अति यथार्थवादी : बीसवीं सदी क देन यीं ल़ा शाखा मा बि हंसदेरा स्वांग छन.

१५-तर्कहीन या अब्सर्ड नाटक : अब्सर्ड नाटकुं शुरुवात १९६० को उपरान्त ह्व़े अर अब्सर्ड नाटकुं मा कौमेडी बि च.
अब्सर्ड नाटककारूं मा सैमुअल बेकेट , यूजीन लोनेस्को जीन जेनेट जां नाटककार प्रसिद्ध छन. दिखे जाव त अब्सर्ड मा प्रकृति वाद इ च

इख्मा गाळी गलौज तैं बुरु नि माने जान्द
सन्दर्भ -
१- भारत नाट्य शाश्त्र अर भौं भौं आलोचकुं मीमांशा
२- भौं भौं उपनिषद
३- शंकर की आत्मा की कवितानुमा प्रार्थना ४-और्बास , एरिक , १९४६ , मिमेसिस
५- अरस्तु क पोएटिक्स

६- प्लेटो क रिपब्लिक
७-काव्यप्रकाश, ध्वन्यालोक ,
८- इम्मैनुअल कांट को साहित्य
९- हेनरिक इब्सन क नाटकूं पर विचार

१०- डा हरद्वारी लाल शर्मा
११ - ड्रामा लिटरेचर
१२ - डा सूरज कांत शर्मा
१३- इरविंग वार्डले, थियेटर क्रिटीसिज्म

१४- भीष्म कुकरेती क लेख
१५- डा दाताराम पुरोहित क लेख १६- अबोध बंधु बहुगुणा अर डा हरि दत्त भट्ट शैलेश का लेख
१७- शंकर भाष्य

१८- मारजोरी बौल्टन, १९६०. ऐनोटोमी ऑफ़ ड्रामा
१९- अल्लार्ड़ैस निकोल
२० -डा डी. एन श्रीवास्तव, व्यवहारिक मनोविज्ञान
२१- डा. कृष्ण चन्द्र शर्मा , एकांकी संकलन मा भूमिका

२२- ए सी.स्कौट, १९५७, द क्लासिकल थियेटर ऑफ़ चाइना
२३-मारेन एलवुड ,१९४९, कैरेकटर्स मेक युअर स्टोरी

बकै अग्वाड़ी क सोळियूँ मा......बुडया लापता : रौंस दिलंदेर हंसोड्या स्वांग फाड़ी -२

फाड़ी -१
१- नरेंद्र कठैत का नाटक डा ' आशाराम ' मा भाव
२-- भीष्म कुकरेती क नाटक ' बखरौं ग्वेर स्याळ ' मा बचळयात /वार्तालाप/डाइलोग

3- कुलानंद घनसाला औ नाटक संसार

फाड़ी -2
१--स्वरूप ढौंडियालौ मंगतू बौळया
२ - स्वरूप ढौंडियालौ अदालत
Copyright@ Bhishm Kukreti

21 February, 2012

खाडू लापता नाटक : अंध विश्वासुं पर कटाक्ष

ललित मोहन थपलियाल जी कु लिख्युं एकांकी' खडू लापता ' गढवाळ ऐ जिंदगी कु

भौत इ सजीव चित्रण प्रस्तुत करदो
एकांकी मा सिरफ़ चार इ पत्र छन - पंडित जी , जु अपणि ज्वानी मा डिल्ली कै सरकारी दफ्तर मा चपड़ासी छ्या

अर अब उना कुछ टूणा-मूणा , दवै-दारु सीख अर गाँव मा मजा की जिंदगी बिताणा छन. यांका अलावा
गाँवों मोती अकलौ हरि सिंग , गौं कु चकडैत परमा अर डिल्ली बटें छूटी फर अयूं तुलसी राम.
गौं मा जारी अंधविश्वास फर कटाक्ष थपलियाल जीन भलो तरीका से करै, हरि सिंगू खाडू चुरयै जांद

वो गणत कराणो बैद जी क पास जान्द. बैद जी ब्तान्दन बल नरसिंग क द्वाष लग्युं च .फिर हरि सिंग तैं बौम
होंद बल ना हो कि कखि चकडैत परमा अर तुलसीराम न जी खाडू चट्ट नि कौरी दे ह्वाऊ .सरल मनिख
हरि सिंग खाडू तैं खुजदा खुजदा हडका मिल्दन परमा क कुलण. हरि सिंग कुलादी लेकी जांद बैद जीक

पास की आज वैन परमा तैं कचे दीण जैन वैको खाडू चट्ट कै दे. इखम लिख्वार गाँव कु सरल हिरदै मनिखों
चित्रण करदो .
तुलसी राम जु डिल्ली मा चपड़सि च अर वो पन्डि जी मा अपणि हड़का मरदो बल
' बैद राज बोडा मी त डिल्ली दफ्तर मा काम करदू . एक दफ्तर भटें हैंक दफ्तर अर ये दफ्तर बिटेन वै दफ्तर "
पन्डि जी - ये भै तुलसी टु कब ऐ घार ?
तुलसी - बैद जी ! एक सप्ताह ह्व़े गे
पन्डि जी - तेरो ददा जीक रै होलो सप्ताह .हैं?

सम्वाद चुलबुला अर पैना छन अर हरेक सम्वाद से दर्शकुं हंसी गुन्जद .
पैलि बार 'खाडू लापता' को मंचन डिल्ली मा ओक्टोबर १९५८ मा ह्व़े छौ. मुंबई मा
गढ़वाल भ्रात्री मंडल, गढ़वाल छात्र संघ न ये नाटक औ कम से कम आठ बार मंचन कौरी

अर सबि दों ये नाटक न वाह ! वाही ही जीत . आज बि यू नाटक उथगा इ नया लगदो जथगा
२०-२५ साल पैल लगदो छौ.
(मुम्बै प्रवासी, सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक, मंच संयोजक अर उद्घोषक , स्वांग-लिख्वार, नाटक निदेशक, नाटक कलाकार

स्व दिनेश भारद्वाज क एक भूमिका ज्वा ऊन गढवाळ भरतरी मंडल को एक प्रोग्रैम मा 'खाडू लापता ' मंचन से पैलि बोली छौ.
स्व दिनेश भारद्वाज न ए नाटक मा कथा दें पंडित/बैद जीक पाठ खेली छौ.)

सन्दर्भ -
१- भारत नाट्य शाश्त्र अर भौं भौं आलोचकुं मीमांशा
२- भौं भौं उपनिषद
३- शंकर की आत्मा की कवितानुमा प्रार्थना

४-और्बास , एरिक , १९४६ , मिमेसिस
५- अरस्तु क पोएटिक्स
६- प्लेटो क रिपब्लिक
७-काव्यप्रकाश, ध्वन्यालोक ,

८- इम्मैनुअल कांट को साहित्य
९- हेनरिक इब्सन क नाटकूं पर विचार १०- डा हरद्वारी लाल शर्मा
११ - ड्रामा लिटरेचर

१२ - डा सूरज कांत शर्मा
१३- इरविंग वार्डले, थियेटर क्रिटीसिज्म
१४- भीष्म कुकरेती क लेख
१५- डा दाताराम पुरोहित क लेख

१६- अबोध बंधु बहुगुणा अर डा हरि दत्त भट्ट शैलेश का लेख
१७- शंकर भाष्य
१८- मारजोरी बौल्टन, १९६०. ऐनोटोमी ऑफ़ ड्रामा
१९- अल्लार्ड़ैस निकोल
२० -डा डी. एन श्रीवास्तव, व्यवहारिक मनोविज्ञान
२१- डा. कृष्ण चन्द्र शर्मा , एकांकी संकलन मा भूमिका
२२- ए सी.स्कौट, १९५७, द क्लासिकल थियेटर ऑफ़ चाइना

२३-मारेन एलवुड ,१९४९, कैरेकटर्स मेक युअर स्टोरी

बकै अग्वाड़ी क सोळियूँ मा......

फाड़ी -१
१- नरेंद्र कठैत का नाटक डा ' आशाराम ' मा भाव
२- गिरीश सुंदरियाल क नाटक 'असगार' मा चरित्र चित्रण

३- भीष्म कुकरेती क नाटक ' बखरौं ग्वेर स्याळ ' मा वार्तालाप/डाइलोग
५- कुलानंद घनसाला औ नाटक संसार
६- दिनेश भारद्वाज अर रमण कुकरेती औ स्वांग बुड्या लापता क खासियत
फाड़ी -२
१-ललित मोहन थपलियालौ खाडू लापता
२-स्वरूप ढौंडियालौ मंगतू बौळया

३- स्वरूप ढौंडियालौ अदालत 

स्व.दिनेश भारद्वाज
इन्टरनेट प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती
Copyright@ Bhishm Kukreti

20 February, 2012

गिरीश सुंदरियालौ नाटक 'असगार' मा चरित्र चित्रण - फाड़ी -१

इकीसवीं सदी क गढ़वाळी स्वांग/नाटक -२
'असगार' गिरीश सुन्दरियालौ स्वांग खौळ 'असगार' मादे एक स्वांग च .
हाँ असगार मा चरित्र चित्रण से पैलि 'स्वांगु मा चरित्र चित्रण ' पर छ्वीं लगाण जरूरी ह्व़े जांद.
१- पुरातन चीनी सिद्धांत
२- पाश्चात्य सिद्धांत
३-- भारतीय सिद्धांत
४- मनोविज्ञानऔ ज्ञान
चीन मा स्वांग
चीन मां स्वांग भैर बिटेन आई . मंगोल स्वांग तैं चीन मा लैन पण चीन मा स्वांग बढण मा कन्फ्युसिस अर बुद्धौ सिधांत दगड़ी चलीन. इलै
चीन मा उद्येसात्म्क स्वांग जलदा मिल्दा छ्या
चीन मा क्वी भरत या अरस्तु जन क्वी नाट्य शास्त्री नि ह्व़े जैन क्वी किताब लेखी ह्वाओ . पण चीन का पुराणा स्टाइल च .
चीन मा आठवीं सदी पैथर इ नाटक जादा विकसित ह्व़े . अर इन बुले जान्द बल हरेक गाँ मा स्वांग खिले जांद छा.
पैल स्वान्गुं मा नाच अर गाणा जरुरी छ्या. स्वान्गुं मा प्रतीक को जादा इस्तेमाल हूंद छयो. 'टछौउएन खि' प्रकारौ (७०० -९०७ ई.) वीर रसौ स्वांग छ्या.
संग राज मा (९६०-१११९) स्वान्गु मा हौर विकास ह्व़े .अर ये जुगौ स्वांगु खुण 'हाई-खिओ' बुल्दन. ये जुग मा अब स्वान्गुं मा एक बड़ो महत्वपूर्ण चरित्र आई
जु गांदो बि छयो .
११२५ बिटेन १३६७ ई. क टैम चीनी स्वान्गुं खुण सौब से बढिया टैम बुले जान्द . ये बग तौ स्वान्गुं कुण -यूएन-पेन अर टसाकी बुले जांद यूएन-पेन
क छ्वटु रूप .कुण यें किया बुले जान्द.
ये बगत सैकड़ों स्वांग रचे गेन
काओ टोंग किया क स्वांग 'पी-पा-की' (१४ वीं सदी ) अबि तलक भौति रौन्स्दार स्वांगु मादे एक स्वांग माने जांद.ये स्वांग को मुख्य उदेश्य च चरित्रवानऔ गुण अर शिक्षा.
असल मा यू ड्रामा दुस्चरित्र वळा स्वांगु विरुद्ध लिखे गे छौ अर भाती पोपुलर ह्व़े. याने कि चीनी ड्रामा मा शिक्षा अर चरित्रवान गुण पैलो शर्त माने गे .
शास्त्रीय चीनी स्वान्गुं मा चरित्र वान, सीख अर उदेश्य होण जरुरी छौ.
चीन मा बि भारतौं तरां नाटकों तैं पाश्चात्य जन खाली ट्रेजिडी अर कौमेडी मा नि बंटे गे. चीन मा विसयुं क हिसाब से बारा तरां शास्त्रीय स्वांग होन्दन
चीन स्वांगु मा धार्मिक प्रवृति -धर्म पर विश्वास, भगवत कृपा, दैवीय शक्ति , त्याग भावना, (बुद्धौ नियम आदि) ,
ऐतिहासिक नाटक बि शास्त्रीय स्वांगु मा मिल्दन ट ऐतिहासिक चरित्र बि चीनी स्वांगु मा चीन मा मिल्दन.
अपराधी चीनी स्वांग बि भौत छन अर यूँ स्वांगु खासियत च - पापी/पाप कि खोज अर निर्दोष तैं न्याय-निसाब.
चीन मा प्रेम युक्त -हंसदर्या ड्रामा बि मिल्दन
जन कि चीन मा भारत जन जाति हिसाब नि होंद त नाटकों मा बि जात क हिसाब से स्वांग चरित्र नि रचे जान्दन.
शास्त्रीय चीनी स्वान्गु मा चरित्र पद का हिसाब से रचे जान्दन. स्वान्गुं कथों मा पद पर जोर होंद
भौत सा सीन अर चरित्र केवल प्रतीकुं से चित्रित होन्दन.
चीनी नाटकूं मा जनान्यूँ चरित्र प्रकार भौत छन- उच्च पदासीन से जुड़ी , त्यागी जनानी से नौकर्याण तक
सौत्या डाह आदि बि खूब मिल्द.
चीनी नाटकूं मा अंक अर सीन होन्दन अर पैल त विषय भौति लम्बा होंदा छ्या त चरित्र चित्रण बि वनी होंदा छ्या.
तौ ळ का कुछ विषय चरित्र चित्रण औ अन्थाज लगाणो बान काफी छन
-दर्शकुं समणि भुक डुबण, विष से, फांसी से, त्रास आदि से मिरत्यु
-अचरज/आश्चर्य
-जादू/जादूगरी
-भूत/पिचासुं से बदला लीण या भूतुं से न्याय दिलाण
-भौं भौं किस्मौ ब्यौ
-पैत्रिक सत्ता क वर्चव्स
-राजा तैं महान बथाण
चीन का पुराणा स्वान्गु एक बडी खासियत छे - लेखक इ मुख्य कैरेक्टर अर मुख्य वक्ता बि होंद छौ.
-नाटक मा गितांग होण जरूरी छौ, माना कि गितांग को चरित्र नाटक मा मोरी जान्दो त फिर दुसर चरित्र गाणा गालो
-प्रतीक अर अलंकृत भाषाऔ भरमार होंदी छे
चीनी ड्रामा दर्शकुं रूचि हिसाब से इ रचे जांद छ्या याने कि ड्रामों मा पॉप-कल्चर छौ , याने कि मौज -मस्ती क बान ड्रामा रचे जान्द छ्या ( संस्कृत मा इन नि छौ, ड्रामा शास्त्रीय हिसाब से लिखे जांद छ्या जन कि कालिदास का स्वांग)
चीन मा पाठ खिलण वाळ तैं ट्रेनिंग मा भौत मेनत करण पड़दो छौ. नाट्य गुरु दर्शकुं समणि इ वैकी (च्याला) परीक्षा लीन्दा छ्या
चीनी नाटकूं मा चरित्र /पाठ खिलण वाळ तैं यूँ चीजुं पर ध्यान दीण पड़दो छौ
१- वाच/स्पीचअर गीत गाणो ढंग /गीतुं मा माहरथ
२- चलणो ढंग
३- सरैल से पाठ खिलण याने बौडी लैंगवेज को स्वांग मा महत्व
४-कपड़ा, मेक अप, स्टेज कि जानकारी
चीनी नाटकों मा मास्क /मुखौटों महत्व अर मुखौटों प्रतीक chhan
१- सुफेद मुखौटा - पापी, दोषी, राक्षस , कुमति , धोकेबाज, घुन्ना, अण-अंथंजण्या याने कि विलियन या प्रतिनायक
२-हौरू मुखौटा - भिरंगी, दौन्कार/ गुस्सैल् , टणक्या, जु अफु पर काबू नि कौर सकदो
३- लाल मुखौटा - भड़ , वीर, भक्त . समर्पित
४-काळो मुखौटा - जडबडो, बबर, खरो
५-पिंगुळ मुखौटा - महत्वाकांक्षी , बबर, ठंडो-दिमागौ
६-नीलू मुखौटा - इरादा पक्को , अडिग निष्ठावान
सन्दर्भ -१- भारत नाट्य शाश्त्र अर भौं भौं आलोचकुं मीमांशा
२- भौं भौं उपनिषद
३- शंकर की आत्मा की कवितानुमा प्रार्थना ४-और्बास , एरिक , १९४६ , मिमेसिस
५- अरस्तु क पोएटिक्स
६- प्लेटो क रिपब्लिक
७-काव्यप्रकाश, ध्वन्यालोक ,
८- इम्मैनुअल कांट को साहित्य
९- हेनरिक इब्सन क नाटकूं पर विचार १०- डा हरद्वारी लाल शर्मा
११ - ड्रामा लिटरेचर
१२ - डा सूरज कांत शर्मा
१३- इरविंग वार्डले, थियेटर क्रिटीसिज्म
१४- भीष्म कुकरेती क लेख
१५- डा दाताराम पुरोहित क लेख १६- अबोध बंधु बहुगुणा अर डा हरि दत्त भट्ट शैलेश का लेख
१७- शंकर भाष्य
१८- मारजोरी बौल्टन, १९६०. ऐनोटोमी ऑफ़ ड्रामा
१९- अल्लार्ड़ैस निकोल
२० -डा डी. एन श्रीवास्तव, व्यवहारिक मनोविज्ञान
२१- डा. कृष्ण चन्द्र शर्मा , एकांकी संकलन मा भूमिका
२२- ए सी.स्कौट, १९५७, द क्लासिकल थियेटर ऑफ़ चाइना

बकै अग्वाड़ी क सोळियूँ मा......
फाड़ी -१
१- नरेंद्र कठैत का नाटक डा ' आशाराम ' मा भाव
२- गिरीश सुंदरियाल क नाटक 'असगार' मा चरित्र चित्रण
३- भीष्म कुकरेती क नाटक ' बखरौं ग्वेर स्याळ ' मा वार्तालाप/डाइलोग
५- कुलानंद घनसाला औ नाटक संसार
६- दिनेश भारद्वाज अर रमण कुकरेती औ स्वांग बुड्या लापता क खासियत
फाड़ी -२
१-ललित मोहन थपलियालौ खाडू लापता
२-स्वरूप ढौंडियालौ मंगतू बौळया
३- स्वरूप ढौंडियालौ अदालत
Copyright@ Bhishm Kukreti

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