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Showing posts from September, 2023

गढ़वाली कहानीः छठों भै कठैत की हत्या!

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प्रतीकात्मक चित्र • भीष्म कुकरेती /    हौर क्वी हूंद त डौरन वैक पराण सूकि जांद पण मेहरबान सिंग कठैत त राजघराना को संबंधी छौ राजा प्रदीप शाह को खासम ख़ास महामंत्री पुरिया नैथाणी सनै कौरिक खड़ो ह्व़े अर वैन कैदी मेहरबान सिंग कठैत तैं द्याख. फिर पुरिया नैथाणी न मेहरबान कठैत को तर्फां देखिक, घूरिक ब्वाल,“ओह! कठैत जी! जाणदवां छंवां तुम पर क्या अभियोग च?“ मेहरबान सिंग कठैत न जबाब दे,’पुरिया बामण जी! अभियोग? जु म्यार ब्वाडा क नौन्याळ पंचभया कठैत तुमर पाळीक बजीर मदन सिंग भंडारी, हमर बैणिक जंवैं भीम सिंग बर्त्वाल जन लोकुं ळीोंन दसौली ज़िना नि मारे जांद अर तुम पकडे़ जांद त तुम क्या जबाब दीन्दा? बामण जी जरा जबाब त द्याओ.“ पुरिया नैथाणी न ब्वाल,“खैर.. हाँ त! खंडूरी जी! डोभाल जी! जरा हम सब्युं समणि मेहरबान सिंग कठैत पर क्या क्या अभियोग छन सुणाओ.!“खंडूरी न पुरिया नैथाणी, भीम सिंग बर्त्वाल, मदन भंडारी, सौणा रौत, भगतु बिष्ट, डंगवाल, भागु क नौनु सांगु सौन्ठियाल अर सात आट और मंत्र्युं ज़िना देखिक ब्वाल,“ मेहरबान सिंग कठैत क भायुं - सादर सिंग, खड्ग सिंग आद्युं न जनता पर स्युंदी सुप्प डंड, हौळ डंड, चुल्लू डं

समीक्षाः जीवन के चित्रों की कथा है ‘आवाज रोशनी है’

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बचपन की स्मृतियां कभी पीछा नहीं छोड़तीं। कितना भी कहते रहो ’छाया मत छूना मन’ मन दौड़ता रहता है दादी, नानी, मामा, मां, पिताजी के पास। अमिता प्रकाश की कृति आवाज़ रोशनी है- जीवन के उस कालखंड की यादें हैं जहां ‘उस मीठी नींद में, नाना-नानी का प्यार दुलार है, मामा-मामी की केयर है, धौली गाय का स्नेह है, अज्जू, सूरी, गब्दू की छेड़खानियां हैं। गुर्रूजी की फटकार है, पानी के लिए लड़ते-झगड़ते अनेकों चेहरे हैं तो घास व लकड़ी की ’बिठकों’ के नीचे हंसती खिलखिलाती, किसी ‘बिसौण’ पर बतियाती या जेठ-बैसाख की दुपहरी में किसी सघन खड़िक या पीपल की छांव में सुस्ताती, या पत्थरों की दीवार पर घड़ी भर को थकान से चूर- नींद की गोद में जाती नानी-मामी-मौसियों के चेहरे हैं। ’पंदेरे’- चैरी और तलौं पर लड़ती-झगड़ती, कोलाहल करती आठ से अस्सी वर्ष तक के स्त्री-पुरुषों के असंख्य चित्र’ इन्हीं चित्रों की कथा है- आवाज रोशनी है। लेखिका अमिता आवाज की इस रोशनी में अपने समूचे बचपन को पूर्ण सच्चाई से जीती हुई, हमारे सामने पहाड़ के किसी भी गांव का चित्र बना देतीं हैं। वैसे इस गांव का नाम सिलेत है। कितनी मजेदार बात है कि जब मैं किताब के मार्फत अम

कंडाळी (बिच्छू घास) के अनेकों फायदे

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- डॉ. बलबीर सिंह रावत कंडळी, (Urtica dioica), बिच्छू घास, सिस्नु, सोई, एक तिरस्कृत पौधा, जिसकी ज़िंदा रहने की शक्ति और जिद अति शक्तिशाली है. क्योंकि यह अपने में कई पौष्टिक तत्वों को जमा करने में सक्षम है. हर उस ठंडी आबोहवा में पैदा हो जाता है जहां थोडा बहुत नमी हमेशा रहती है. उत्तराखंड में इसकी बहुलता है और इसे मनुष्य भी खाते हैं. दुधारू पशुओं को भी इसके मुलायम तनों को गहथ, झंगोरा, कौणी, मकई, गेहूं, जौ, मंडुवे के आटे के साथ पका कर पींडा बना कर देते हैं। कन्डाळ में जस्ता, तांबा सिलिका, सेलेनियम, लौह, केल्सियम, पोटेसियम, बोरोन, फोस्फोरस खनिज, विटामिन ए, बी1, बी2, बी3, बी5, सी और के होते हैं. ओमेगा 3 और 6 के साथ-साथ कई अन्य पौष्टिक तत्व भी होते हैं. इसकी फोरमिक एसिड से युक्त, अत्यंत पीड़ादायक, आसानी से चुभने वाले, सुईदार रोओं से भरी पत्तियों और डंठलों की स्वसुरक्षा अस्त्र के और इसकी हर जगह उग पाने की खूबी के कारण इसकी खेती नहीं की जाती. धबड़ी ठेट पर्वतीय शब्द है, जिसका अर्थ होता है किसी भी हरी सब्जी में आलण डाल कर भात के साथ दाल के स्थान पर खाया जाने वाला भोज्य पदार्थ. हर हरी सब्जी का अपना अ