January 2014 ~ BOL PAHADI

19 January, 2014

लोकल 'पप्पू' भी सांसत में

     वर्षों से कोई 'पप्पू' पुकारता रहा, तो बुरा नहीं लगा। मगर अब उन्हीं लोगों को 'पप्पू' का अखरना, समझ नहीं आ रहा। भई क्या हुआ कि 'पप्पू' अभी तक फेल हो रहा है। यह कुंभ का मेला तो है नहीं कि बारह साल में एक बार आएगा। हर साल कहीं न कहीं यह परीक्षा (विधानसभा, पंचायत, निकाय चुनाव) तो होगी ही, तब राष्ट्रीय न सही लोकल 'पप्पू' तो पास हो जाएगा। रही बात हाल में 'पप्पू' के पास न होने की, तो इससे मैं भी आहत हूं। एक राष्ट्रीय पप्पू ने लोकल पप्पूओं की वाट जो लगा दी है। अब देखो, सब हर फील्ड में पप्पू होने का मतलब नाकामी से जोड़ रहे हैं। ऑक्सफोर्ड वाले भी सोच रहे हैं कि 'पप्पू' को फेल का पर्यायवाची बना दिया जाए। देश में अब मां-दे लाडलों को भी दुत्कार में 'पप्पू' नहीं कहा जा रहा। मांएं भी जाने क्यूं इस नाम से खौफजदा हैं। शायद उन्हें भी लग रहा है, कि कहीं प्यार-दुलार के चक्कर में बेटे की नियति भी 'पप्पू' न हो जाए।
  

   'बाजार' हर साल कैडबरी बेचते हुए इसी उम्मीद में जीता है, आस लगाए रहता है कि 'पप्पू' पास होगा, तो मुहं मीठा जरूर कराएगा, और वह भी निश्चित ही कैडबरी से.। एड में अपने बड़े एबीसीडी भी तो हमेशा पप्पू के पास होने का भरोसा देते हैं। दें भी क्यों न, इस बहाने से उनका भी तो कुछ न कुछ जेब खर्च जो निकलना है। एड एजेंसी से लेकर चैनल तक सबकी दाल रोटी चलेगी। मगर, अफसोस अपने 'पप्पू' को पास होने में शर्म आ रही है। कह रहा है कि अभी 'आप-से' सीखना है। 

कहते हैं कि उम्र ए दराज मांग कर लाए थे चार दिन, दो आरजू में कट गए दो इंतजार में। कहीं सीखने पर ऐसा ही हलंत न लग जाए, कि आरजू और इंतजार सीखने में ही गुजर जाएं। दूसरा अब इन मत- दाताओं को कोसूं नहीं तो क्या करुं, जिनका दिल पत्थर हो गया है। 128 साल का इतिहास भी नजर नहीं आ रहा उन्हें। अब तो मेरे दर्द का दिल दरिया भी थम नहीं रहा। 'पप्पू' के पास होने के लिए की गई मेरी सब दुआएं, मंदिरों में टेका मत्था, घोषणापत्रों की तरह भगवान को दिया गया प्रलोभन भी बेकार हो रहा है।

   ..और रही सही कसर अपना वॉलीवुड भी बार-बार तानें मारकर पूरी कर रहा है, कि 'पप्पू कान्ट डांस साला..'। कभी नहीं सोचा था कि 'पप्पू' इतना निकम्मा निकलेगा। यही सब सुनना बाकी रह गया था हमारे लिए। हमने फेल होना सहा, मगर वह तो 'डांस' में भी अनाड़ी निकला। चुनावों में अनुत्तीर्ण होना तो उसका शगल बन गया। बाप-दादा की 'टोपी' की भी फिक्र नहीं। जबकि दूसरे टोपी पहनकर उछल रहे हैं।


   भई अपुन तो सफाई दे देकर उकता गया, आलोचकों के तानों से कहते हैं, नया रास्ता निकलता है। मगर क्रिटिक्स हमरी बॉडी में यही बाण मार रहे कि काहे इतना 'पप्पू' हुए जा रहे हो। क्या बताऊं उन्हें कि 'पप्पू' के पासिंग- आउट का कोई 'विश्वास' करे न करे, मुझे तो है। हां, ये मत पूछना कि किस पप्पू से उम्मीद है, राष्ट्रीय, बाजार वाले या लोकल, क्योंकि सुबह पड़ोसी 'मलंग बाबू' गुरुमंत्र दे गए, कि 'आप' और 'नमो' मंत्र का जाप करो। 'पप्पू' न सही तुम जरूर पास हो जाओगे। अब करूं क्या, कैसे अपने 'पप्पूपन' को तिलांजली दूं। आपको मालूम हो तो बताएं..।

@Dhanesh Kothari

ये चन्द ..बहुमत पर भारी

लोग कह रहे हैं की इतना ईमानदार था तो कोटद्वार से मुछ्याल क्यूँ हारा ...बात ये है की खुद में ईमानदारी भी कोई चीज होती है ..भाजपा जैसी पार्टी में ईमानदार मुच्छ्याल का होना भी एक निशानी है की अगर कोई और होता तो उत्तराखण्ड को कितना उधेड़ देता ..क्यूँ की मुच्छ्याल के सीएम होते हुए मैं भी सत्ता के उन दलालों की करतूतों में पिसा ..तो इतना अन्दाजा तो लग ही गया की उत्तराखण्ड का भाग्य देहरादून बैठ कर भी नहीं... लिखा जा रहा है ..इसकी एक एक ईबादत दिल्ली से लिखी जा रही है .... जिस "आनन्द" के साथ "सारंगी" का जो संगीत यहाँ बजा ....जिस तरह मेरे सामने विधायकों और मंत्रियों से जनहित के कामों में ( निजी नहीं ) पेश आये उसने साबित कर दिया की ये डोर मुच्छ्याल बौडा के हाथ में नहीं है ...उसके बाद सत्ता की उठक पठक ने साबित कर दिया की हमारे जनप्रतिनिधि या तो वाकई इतने सीधे हैं की वे दिल्ली वालों को अपनी बात नहीं मनवा पाते .

या .........मैं ये नहीं कह सकता की भगत दा.. प्रकाश पन्त ..मुन्ना सिंह चौहान जैसे विधायकों को पहाड़ का दर्द नहीं है . और वो इसे बदलने के लिए कार्य नहीं कर रहे हैं .....विजया बडथ्वाल ..गुड्डू पंवार.. गोपाल रावत ..ओम गोपाल ..किशोर उपाध्याय ..गुनसोला जी ..आदि अनेकों ऐसे नाम हैं की ये विधायक पहाड़ हित के लिए सत्ता को ठुकरा देने का साहस रखते हैं .पर क्या हमारी व्यवस्था ही ऐसी है की शरीफ नेता इस चकरी में ऐसा पिस जाता है ..उस पर भी बिना वजह कुछ ना कर पाने का आरोप लग ही जाता है ..क्यूँ की..जिस राज्य में अधिकारियो के तबादले तक दिल्ली से निर्धारित हो जाते हैं ..ऐसे में वे विधायकों को सामान्य प्रोटोकॉल तक नहीं देते हैं ..इसी के प्रोटेस्ट में गोपाल गुड्डू ओम की तिकड़ी ने मुच्छ्याल बौडा के घर अधिकारीयों को पहले आप पहले आप से शर्मिदा कर दिया था ..पर ये भ्रष्ट अधिकारी गैंडे की खाल से भी ज्यादा बेशर्मी की खाल पहने हुए हैं ...और हमारे चन्द जन प्रतिनिधि इन भ्रष्ट अधिकारियो को पूरा पूरा संरक्ष्ण देते हैं ..जिनकी वजह से पूरे उत्तराखण्ड के जनप्रतिनिधि बदनाम हो रहे हैं ....कुछ लोग याद कर सकते हैं मुच्छ्याल बौडा के घर हुई विधायको की पार्टी में ओम गोपाल ने खुल्ले आम मंत्रीजी को कहा की कितने पैसे चाहिए आपको ट्रान्सफर के ..बिना पैसे के तो तुम ....पर सिवा ओम को चुप कराने के इस भ्रष्टाचार पर पहाड़ी विधायक मुँह नहीं खोल सके ...??? ..क्या कारण है की हमारे ज्यादातर विधायक ठीक ठाक होने के बावजूद उत्तराखण्ड भ्रष्टाचार के दलदल में धंसा हुआ है ????...मुछ्याल बौडा ने भाजपा को जिताने के लिए अपना सारा जोर उत्तराखण्ड की विधानसभाओ में लगा दिया ..और चन्द लोगों ने इस बीच कोटद्वार में बेवजह की अफवाह फैला उन्हें हराने की सारी तरकीबे लड़ा दी ..जिन्होंने जिताने का वादा देकर कोटद्वार बुलाया खुद गायब हो गये ...जो विधायको से नहीं मिलता वो जनता से कैसे मिलेगा ???? अब जिसकी वजह से भाजपा की 31 सीटें आई ....उसे कौन हरा गया इस बात की सही समीक्षा और कार्यवाही कभी भाजपा नेतृत्व नहीं करेगा ..क्यूँ की शायद उसे मुच्छ्याल बौडा की जरूरत भाजपा के उस गेम को खिलवाने के लिए थी जिसके नाम से वो अपने काम करती रहे ..भाजपा कांग्रेस में भले ही एक से एक पहाड़ हितैषी जन प्रतिनिधि भरे हुए हैं ..पर नेतृत्व और चन्द जनप्रतिनिधि सिर्फ उत्तराखण्ड को एक दूकान की तरह चलाना चाहते हैं चन्द अधिकारियो के साथ मिलके ..अफ़सोस इस बात का है की ये चन्द ..बहुमत पर भारी हैं ...जय गढ़वाल ..जय कुमाऊ
साभार- मुजीब नैथानी से

04 January, 2014

अभी से बनाएं अपना मैनेफेस्‍टो

अगर कोई ऊंच नीच न हुई तो उत्‍तराखंड राज्‍य में अगला विधानसभा चुनाव 2017 में होगा। निश्चित ही तब सभी राजनीतिक दल कमर कस कर राज्‍यस्‍तरीय मैनेफेस्‍टो तैयार करेंगे। मगर, मेरा मानना है कि मैनेफेस्‍टो की तैयारी अभी से शुरू हो जानी चाहिए, वह भी विधानसभावार। ताकि यदि कोई ठोस एजेंडा, प्रस्‍ताव, योजना का खाका पहले ही वजूद में आए तो इसे सरकार के सामने मांग के रुप में भी रखा जा सकता है, और यह मंजूर नहीं भी हुआ तो चुनाव पूर्व इस पर राजनीतिक दलों से अपनी नीति स्‍पष्‍ट करने को भी कहा जा सकता है, या फिर किसी समर्थन करने वाले दल के नीतिपत्र में इन्‍हें शामिल कराया जा सकता है।

लिहाजा मेरा मानना है कि प्रत्‍येक विधानसभा वार मैनेफेस्‍टो तैयार करने में जुट जाएं, अपने क्षेत्र की जरुरतों जो व्‍यक्तिगत नहीं बल्कि सार्वभौमिक हों को सामने रखें।

इसकी शुरूआत ऋषिकेश विधानसभा से हो तो अच्‍छी बात है... ऋषिकेश के सभी बुद्धिजीवी मित्र मैनेफेस्‍टो को बनाने में मदद करें.. आपको क्‍या लगता है कि यहां जनहित के लिए किन योजनाओं को और किस तरह से क्रियान्वित कराया जा सकता है।

Popular Posts

Blog Archive

Our YouTube Channel

Subscribe Our YouTube Channel BOL PAHADi For Songs, Poem & Local issues

Subscribe