अब नहीं दिखते पहाड़ के नए मकानों में उरख्याळी गंज्याळी
- डॉ. सुनील दत्त थपलियाल ओखली अब हिन्दी की किताबों में ‘ओ’ से ओखली के अलावा शायद ही कहीं देखने को मिले. उत्तराखंड में ओखली को ओखल, ऊखल या उरख्याळी कहा जाता है. आज भी किसी पुराने मकान के आँगन में ओखल दिख जायेगा. आज यह घर के आँगन में बरसाती मेढ़कों के आश्रय-स्थल से ज्यादा कुछ नहीं लगते हैं. एक समय था जब ओखल का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान हुआ करता था, हमारे आँगन का राजा हुआ करता था. ओखली को और नामों से भी जाना जाता है. कहीं इसे ओखल तो कहीं खरल कहा जाता है. अंग्रेज़ी में इसे ‘मोर्टार’ (mortar) और मूसल को ‘पॅसल’ (Pestle) कहते हैं. पॅसल शब्द वास्तव में लैटिन भाषा के ‘पिस्तिलम’ (Pistillum) शब्द से सम्बंधित है. लैटिन में इसका अर्थ ‘कुचलकर तोड़ना’ है. मारवाड़ी भाषा में ‘ओखली’ को ‘उकला’ तथा ‘मूसल’ को ‘सोबीला’ कहते हैं. कूटने को मारवाड़ी में ‘खोडना’ कहा जाता है. डेढ़ दशक पहले की बात होगी उत्तराखंड के गाँवों में सभी शुभ कार्य ओखल से ही शुरू होते थे. किसी के घर पर होने वाले मंगल कार्य से कुछ दिन पहले गाँव की महिलाएं एक तय तारीख को उस घर में इकट्ठा होती थी. जहाँ सबसे पहले ओखल को साफ़ करते और उसमें टीका