Posts

Showing posts from June, 2021

अब नहीं दिखते पहाड़ के नए मकानों में उरख्याळी गंज्याळी

Image
- डॉ. सुनील दत्त थपलियाल ओखली अब हिन्दी की किताबों में ‘ओ’ से ओखली के अलावा शायद ही कहीं देखने को मिले. उत्तराखंड में ओखली को ओखल, ऊखल या उरख्याळी कहा जाता है. आज भी किसी पुराने मकान के आँगन में ओखल दिख जायेगा. आज यह घर के आँगन में बरसाती मेढ़कों के आश्रय-स्थल से ज्यादा कुछ नहीं लगते हैं. एक समय था जब ओखल का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान हुआ करता था, हमारे आँगन का राजा हुआ करता था. ओखली को और नामों से भी जाना जाता है. कहीं इसे ओखल तो कहीं खरल कहा जाता है. अंग्रेज़ी में इसे ‘मोर्टार’ (mortar) और मूसल को ‘पॅसल’ (Pestle) कहते हैं. पॅसल शब्द वास्तव में लैटिन भाषा के ‘पिस्तिलम’ (Pistillum) शब्द से सम्बंधित है. लैटिन में इसका अर्थ ‘कुचलकर तोड़ना’ है. मारवाड़ी भाषा में ‘ओखली’ को ‘उकला’ तथा ‘मूसल’ को ‘सोबीला’ कहते हैं. कूटने को मारवाड़ी में ‘खोडना’ कहा जाता है. डेढ़ दशक पहले की बात होगी उत्तराखंड के गाँवों में सभी शुभ कार्य ओखल से ही शुरू होते थे. किसी के घर पर होने वाले मंगल कार्य से कुछ दिन पहले गाँव की महिलाएं एक तय तारीख को उस घर में इकट्ठा होती थी. जहाँ सबसे पहले ओखल को साफ़ करते और उसमें टीका

साहित्य प्रेमियों के बीच आज भी जिंदा हैं अबोध बन्धु बहुगुणा

Image
- आशीष सुंदरियाल गढ़वाळी भाषा का सुप्रसिद्ध साहित्यकार अबोध बन्धु बहुगुणा जी जौंको वास्तविक नाम नागेन्द्र प्रसाद बहुगुणा छौ, को जन्म 15 जून सन् 1927 मा ग्राम- झाला, पट्टी- चलणस्यूं, पौड़ी गढ़वाल मा ह्वे। आरम्भिक शिक्षा गौं मा ल्हेणा बाद बहुगुणा जी रोजगार का वास्ता भैर ऐगिन् अर वूंन अपणि उच्च शिक्षा एम.ए. (हिन्दी, राजनीति शास्त्र) नागपुर विश्वविद्यालय बटे पूरी करे। कार्य क्षेत्र का रूप मा वूंन सरकारी सेवा को चुनाव करे अर वो उपनिदेशक का पद से सेवानिवृत्त ह्वेनी।  अबोध बन्धु बहुगुणा जी को रचना संसार भौत बड़ु छ। गढ़वाळी का दगड़ दगड़ वूंन हिन्दी मा भि भौत लेखी। परन्तु गढ़वाळी साहित्य जगत मा वूंको काम असाधारण व अद्वितीय छ। शायद ही साहित्य कि क्वी इनि विधा होली जैमा अबोध जीन् गढ़वाळी भाषा मा नि लेखी हो। भुम्याळ (महाकाव्य), तिड़का (दोहा), रण-मण्डाण ( देशभक्ति कविताएं), पार्वती (गीत), घोल (अतुकांत कविताएं), दैसत (उत्तराखंड आन्दोलन से प्रेरित कविताएं), भारत-भावना (देशप्रेम कविताएं), कणखिला (चार पंक्तियों की कविताएं), शैलोदय (कविता संग्रै) अर अंख-पंख (बालगीत) गढ़वाळी पद्य साहित्य तैं अबोध जी की अनमोल देन छ।