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Showing posts from September, 2019

पहाड़ के गांवों की ऐसी भी एक तस्वीर

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नरेंद्र कठैत//           साहित्यिक दृष्टि से अगर उत्तराखण्ड की आंचलिक पृष्ठभूमि को स्थान विशेष के परिपेक्ष्य में देखना, समझना चाहें तो इस श्रेणी में पहाड़ से गिने-चुने कलमकारों के नाम ही उभरकर सामने आते हैं। कुमाऊं की ओर से पहाड़ देखना, समझना हो तो टनकपुर से चिल्थी, चम्पावत, लोहाघाट, घाट होते हुए पिथौरागढ़ तक शैलेश मटियानी अपनी कहानियों के साथ ले जाते हैं। गढ़वाल की ओर से साहित्यकार मोहन थपलियाल, विद्यासागर नौटियाल, कुलदीप रावत, सुदामा प्रसाद प्रेमी हमें घुंटी-घनसाली, पौखाळ, डांगचौरा, श्रीनगर, कांडा, देलचौंरी, बिल्वकेदार, कोटद्वार, गुमखाल, कल्जीखाल, दूधातोली, मूसागली जैसे कई स्थान विशेष के न केवल नामों से बल्कि कहीं न कहीं उनके इतिहास भूगोल से भी हमें जोड़कर रखते हैं।            दरअसल नाम विशेष से मजबूती के साथ जुड़ी पहाड़ की ये शृंखलाएं ठेट गांवों तक चली जाती हैं। इनकी संख्या सौ-पचास में नहीं अपितु सैकड़ों में है। खोळा, कठुड़, अठूड़, कोट, श्रीकोट, पोखरी, कांडई, डांग, चोपड़ा, नौ गौं, बैध गौं, पाली, बागी इत्यादि नामों के तो एक नहीं अपितु कई-कई गांव पहाड़ की कंदराओं में हैं। प्रथमतः स्थान

मैंने या तूने (हिन्दी कविता)

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प्रदीप रावत ‘खुदेड़' // मैंने या तूने, किसी ने तो मशाल जलानी ही थी चिंगारी मन में जो जल रही थी उसे आग तो बनानी ही थी मैंने या तूने, किसी ने तो मशाल जलानी ही थी। मरना तुझे भी है मरना मुझे भी है यूं कब तक तटस्थ रहता तू यूं कब तक अस्पष्ट रहता तू फिर किस काम की तेरी ये जवानी थी मैंने या तूने, किसी ने तो मशाल जलानी ही थी। रो रही धारा ये सारी है वक्त तेरे आगे खड़ा है तय कर तू तुझे वक्त के साथ चलना है या कोई नया किस्सा गढ़ना है ये तेरी ही नहीं लाखों युवाओं की कहानी थी मैंने या तूने, किसी ने तो मशाल जलानी ही थी। आकांक्षाएं ये तेरी अति महत्वाकांक्षी हैं आसमान में उड़ते भी जमीं पर पांव रख तू बाज़ी हारे न ऐसा एक दांव रख तू हारी बाज़ी तुझे बनानी थी मैंने या तूने, किसी ने तो मशाल जलानी ही थी। तुफानों के थमने तक सब्र रख तू ज़िंदा है तो पड़ोस की खबर रख तू अपने अधिकारों में कब तक मदहोश रहेगा पर कर्तव्यों के प्रति कब तक खामोश रहेगा कुछ तो जिम्मेदारी तुझे उठानी थी मैंने या तूने, किसी ने तो मशाल जलानी ही थी। (युवा प्रदीप रावत ‘खुदेड़’ कवि होने के साथ ही सामाजिक स

गढ़वाल की राजपूत जातियों का इतिहास (भाग-1)

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संकलनकर्ता- नवीन चंद्र नौटियाल // उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल क्षेत्र में निवास करने वाली राजपूत जातियों का इतिहास भी काफी विस्तृत है। यहां बसी राजपूत जातियों के भी देश के विभिन्न हिस्सों से आने का इतिहास मिलता है। इसी से जुड़ी कुछ जानकारियां आपसे साझा की जा रही हें। क्षत्रिय/ राजपूत :- गढ़वाल में राजपूतों के मध्य निम्नलिखित विभाजन देखने को मिलते हैं - 1. परमार (पंवार) :- परमार/ पंवार जाति के लोग गढ़वाल में धार गुजरात से संवत 945 में आए। इनका प्रथम निवास गढ़वाल राजवंश में हुआ। 2. कुंवर :- इन्हें पंवार वंश की ही उपशाखा माना जाता है। ये भी गढ़वाल में धार गुजरात से संवत 945 में आए। इनका प्रथम निवास भी गढ़वाल राजवंश में हुआ। 3. रौतेला :-  रौतेला जाति को भी पंवार वंश की उपशाखा माना जाता है। 4. असवाल :- असवाल जाति के लोगों का सम्बंध नागवंश से माना जाता है। ये दिल्ली के समीप रणथम्भौर से संवत 945 में यहां आए। कुछ विद्वान इनको चौहान कहते हैं। अश्वारोही होने से ये असवाल कहलाए। वैसे इन्हें गढ़वाल में थोकदार माना जाता है। 5. बर्त्वाल :- बर्त्वाल जाति के लोगों को पंवार वंश का वंशज माना जाता

अरे! यु खाणू बि क्य- क्य नि कराणू! (गढ़वाली व्यंग्य)

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नरेन्द्र कठैत //  खाणू जैका हथ मा आणू, दुन्या मा वी राणू। अर जैका हथ मा खाणू नि आणू, वू रोणू, गंगजाणू। पर जु खाणू, वू खैकि तागत अजमाणू, खयां मा बि हौर हत्याणू, बच्यूं-खुच्यूं गंमजाणू, गबदाणू, खपाणू, मर्जी औणी हौर्यूं खुणी बि लि जाणू। कबि इन बि सुण्ण मा आणू कि मनखी खाणू त खूब खाणू पर वेकु खयूं झणी कख जाणू? अर कबि बल खाणू त खाण चाणू पर खाणू वेका गौळा उंद नि जाणू। कबि इन बि ह्वे जाणू कि खलौण वळा तैं अण्दाज हि नि आणू किलैकि खाण वळो त मिस्ये जाणू पर कथगा खाण न वू बताणू न बिंगाणू। इन मा यि होणू कि खाणू बणौण वळो थकी चूर ह्वे जाणू पर खाण वळो  खाब खताड़ी रै जाणू। अर कबि इन बि होणू कि खै-खैकि वेकि धीत नी भ्वरेणी, वू बल अधीतू रै जाणू।  बक्किबात खयां खाणू मा बि बल वेकु च्यूं खाणू ज्यू जाणू।  कबि  खाणू त खूब ठूस ठासी खुब्याणू पर वे पचाण हि नि आणू। तब बल उंद-उब होणू। कति दौं त जथगी दौं खाणू उथगी दौं भैर उक्याणू। कबि खै-खैकि अस्यो-पस्यो, पीड़न जख-तख लमडाणू। आतुरि मा प्वटगी पर कबि कडु तेल अर कबि चुल्लौ खारु लगाणू। भैर-भित्र दिवाल्यूं पकड़ि-पकड़ी बड़ि मुस्कल मा आणू-जाणू। पर मजाल क्या कि कक्खि उठु

45 बर्षों के बाद निकलेगी मां अनुसूया की देवरा यात्रा

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- दशहरे के दिन से होगी देवरा यात्रा की शुरूआत  रजपाल बिष्ट //   जनपद चमोली की मंडल घाटी में पुत्रदायिनी के रूप में विख्यात सती माता अनुसूया देवी की देवरा यात्रा की तैयारियां शुरू हो गई हैं। इसवर्ष 45 वर्ष बाद मां भगवती की उत्सव डोली देवरा यात्रा पर निकलेगी। मां भगवती अनुसूया देवी 1973-74 के बाद देवरा यात्रा पर निकल रही हैं। धार्मिक मान्यताओं और स्थानीय परंपराओं में माता अनुसुया को पुत्रदायिनी माना गया है।  45 वर्ष बाद शुरू होने वाली देवरा यात्रा का निर्णय अनुसूया मंदिर ट्रस्ट की बैठक में लिया गया। माता की मंडल घाटी के खल्ला गांव स्थित उत्सव डोली विजयादशमी के पर्व से 9 माह के लिए देवरा यात्रा पर निकलेगी। ट्रस्ट के अध्यक्ष भजन सिंह झिंक्वाण की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में यात्रा का मुहूर्त निकाला गया। 8 अक्टूवर को विजयादशमी पर्व पर देव डोली गर्भगृह से अनुसूया आश्रम पहुंचेगी। आश्रम में पूजा अर्चना के बाद देव डोली वहां से विभिन्न क्षेत्रों खासकर ध्याणियों को मिलने उनके ससुराली गांवों की यात्रा पर निकलेगी। इस दौरान देव डोली केदारनाथ, बदरीनाथ की यात्रा पर भी जाएगी। देवरा यात्रा क

गढ़वाल में क्या है ब्राह्मण जातियों का इतिहास- (भाग 1)

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संकलन - नवीन नौटियाल //  उत्तराखंड के गढ़वाल (मंडल) परिक्षेत्र में अनेकों जातियों का निवास है। उनका इतिहास हमारी धरोहर है। जरूरी है कि आज और आने वाले कल में नई पीढ़ियां भी इससे वाकिफ हों, यह प्रयास है। यहा निवासरत जातियां कैसे यहां बसे, कहां से और कब यहां आए, इन्हीं सब बिन्दुओं को इतिहास की पूर्व प्रकाशित पुस्तकों से संदर्भ सहित संकलित किया जा रहा है। इस शृंखला के पहले भाग (भाग- 01) में आइए जानते हैं गढ़वाल में निवास कर रही ब्राह्मण जातियों के विषय में-  ब्राह्मण :-  गढ़वाल में निवास करने वाली ब्राह्मण जातियों के बारे में यह माना जाता है कि 8वीं - 10वीं शताब्दी के मध्य में ये लोग अलग-अलग मैदानी भागों से आकर यहां बसे और यहीं के रैबासी (निवासी) हो गए। गढ़वाल में प्राचीन समय से ब्राह्मणों के तीन वर्ग हैं। इतिहासकारों ने उन्हें सरोला, निरोला (नानागोत्री या हसली) तथा गंगाड़ी नाम दिए हैं। राहुल सांकृत्यायन यहां के ब्राह्मणों को सरोला, गंगाड़ी, दुमागी व देवप्रयागी चार श्रेणियों में बांटते हैं। गढ़वाल की ब्राह्मण जातियों को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा जा सकता है - (अ) सरोला ब्राह्म