पहाड़ के गांवों की ऐसी भी एक तस्वीर
नरेंद्र कठैत// साहित्यिक दृष्टि से अगर उत्तराखण्ड की आंचलिक पृष्ठभूमि को स्थान विशेष के परिपेक्ष्य में देखना, समझना चाहें तो इस श्रेणी में पहाड़ से गिने-चुने कलमकारों के नाम ही उभरकर सामने आते हैं। कुमाऊं की ओर से पहाड़ देखना, समझना हो तो टनकपुर से चिल्थी, चम्पावत, लोहाघाट, घाट होते हुए पिथौरागढ़ तक शैलेश मटियानी अपनी कहानियों के साथ ले जाते हैं। गढ़वाल की ओर से साहित्यकार मोहन थपलियाल, विद्यासागर नौटियाल, कुलदीप रावत, सुदामा प्रसाद प्रेमी हमें घुंटी-घनसाली, पौखाळ, डांगचौरा, श्रीनगर, कांडा, देलचौंरी, बिल्वकेदार, कोटद्वार, गुमखाल, कल्जीखाल, दूधातोली, मूसागली जैसे कई स्थान विशेष के न केवल नामों से बल्कि कहीं न कहीं उनके इतिहास भूगोल से भी हमें जोड़कर रखते हैं। दरअसल नाम विशेष से मजबूती के साथ जुड़ी पहाड़ की ये शृंखलाएं ठेट गांवों तक चली जाती हैं। इनकी संख्या सौ-पचास में नहीं अपितु सैकड़ों में है। खोळा, कठुड़, अठूड़, कोट, श्रीकोट, पोखरी, कांडई, डांग, चोपड़ा, नौ गौं, बैध गौं, पाली, बागी इत्यादि नामों के तो एक नहीं अपितु कई-कई गांव पहाड़ की कंदराओं में हैं। प्रथमतः स्थान