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Showing posts from April, 2019

जब दहकते अंगारो के बीच नाचते हैं जाख देवता

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रूद्रप्रयाग जनपद के गुप्तकाशी क्षेत्र के अन्तर्गत देवशाल गांव में चौदह गांवों के मध्य स्थापित जाखराजा मंदिर में प्रतिवर्ष बैशाख महीने के आरंभ में जाख मेले का भव्य आयोजन किया जाता है। मेला शुरू होने से दो दिन पूर्व से भक्तजन बड़ी संख्या में नंगे पांव, सिर में टोपी और कमर में कपड़ा बांधकर लकड़ियां, पूजा व खाद्य सामग्री एकत्रित करने में जुट जाते हैं। इसके साथ ही भव्य अग्निकुंड तैयार किया जाता है। इस अग्निकुंड के लिए ग्रामीणों के सहयोग से लगभग 100 कुंतल लकड़ियों से कोयला बनाया जाता है। मेले के पहले दिन बैसाखी पर्व पर रात्रि को अग्निकुंड व मंदिर के दोनों दिशाओं में स्थित देवी देवताओं की पूजा-अर्चना के बाद अग्निकुंड में रखी लकड़ियों पर अग्नि प्रज्वलित की जाती है जो पूरी रात भर जलती रहती है। जिसकी रक्षा में नारायणकोटी व कोठेडा के ग्रामीण रात्रिभर जागरण करके जाख देवता के नृत्य के लिए अंगारे तैयार करते रहते हैं। अगले दिन जाख भगवान के पश्वा इन दहकते हुए अंगारों के बीच में नृत्य करतें हैं। जब जाख भगवान के पश्वा नंगे पांव इन दहकते अंगारों में नृत्य करते है तो सभी श्रद्धालुओं के सिर श्रद्

उत्तराखंड में भी फिल्म पत्रकारिता जरूरीः मदन डुकलाण

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(गढ़वाली-कुमांउनी फिल्म समीक्षा ने अभी कोई विशेष रूप अख्तियार नहीं किया है। इस विषय पर गढ़वाली साहित्यकार,  संपादक, नाट्यकर्मी, अभिनेता श्री मदन मोहन डुकलाण से फोन पर वरिष्ठ साहित्यकार भीष्म कुकरेती की बातचीत) भीष्म कुकरेती- गढ़वाली फिल्म पत्रकारिता के बारे में आपका क्या ख़याल है? मदन डुकलाण- जी, जब प्रोफेस्नालिज्म के हिसाब से गढ़वाली-कुमाउनी फिल्म निर्माण ही नहीं हो पाया तो गढ़वाली-फिल्म पत्रकारिता में भी कोई काम नहीं हुआ। भीष्म कुकरेती- पर समाचार पत्रों में गढ़वाली-कुमाउनी फिल्मों के बारे में समाचार, विश्लेष्ण तो छपता ही है! मदन डुकलाण- कुकरेती जी! अधिकतर सूचना या विश्लेषण फिल्मकारों द्वारा पत्रकारों को पकड़ाया गया होता है, जो आप पढ़ते हैं। भीष्म कुकरेती- आप गढ़वाली फ़िल्मी पत्रकारिता की कितनी आवश्यकता समझते हैं? मदन डुकलाण- गढ़वाली-कुमाउनी फिल्मों के लिए विशेष पत्रकारिता की  आवश्यकता अधिक है। गढ़वाली-कुमाउनी फिल्म उद्योग को बचाने और इसे प्रोफेसनल बनाने के लिए गढ़वाली-कुमाउनी फिल्म जर्नलिज्म की अति आवश्यकता है। भीष्म कुकरेती- आधारभूत फिल्म विश्लेषण पर ही बात की जाय

सिर्फ ‘निजाम’ दर ‘निजाम’ बदलने को बना उत्तराखंड?

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धनेश कोठारी/ युवा उत्तराखंड के सामने साढे़ 17 बरस बाद भी चुनौतियां अपनी जगह हैं। स्थापना के दिन से ही राज्य के मसले राजनीति की विसात पर मोहरों से अधिक नहीं हैं। राज्य के स्वर्णिम भविष्य के दावों के बावजूद अब तक कारगर व्यवस्थाओं के लिए किसी तरह की नीति अस्तित्व में नहीं है। बात मूलभूत सुविधाओं बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा या संस्कृति, खेल, फिल्म, पर्यटन, भूमि क्रय-विक्रय, खनन, आबकारी, उद्योग, स्थानान्तरण, रोजगार, पलायन और स्थायी राजधानी आदि पर किसी तरह का ‘खाका’ सरकार के पास होगा, उम्मीद नहीं जगती। अब तक राज्य में जो घोटाले चर्चाओं में रहे उनपर क्या कार्रवाई हुई, कौन दोषी था, किसे जेल हुई, यह सब भी आरोपों- प्रत्यारोपों तक ही सीमित दिखता है। भ्रष्टाचार के विरूद्ध लड़ने की बात के बाद भी ‘लोकायुक्त’ के वजूद में आने का इंतजार ही है। इसबीच यदि कुछ खास हुआ है, तो वह यह कि इस छोटे से अंतराल में उत्तराखंड में चार बार सत्ता का हस्तांतरण हुआ ओर नौ बार आठ मुखिया जरूर गद्दीनसीन हुए हैं। लेकिन चेहरों की अदला-बदली के बावजूद कार्यशैली में बदलाव आता नहीं दिखा। सिहांसन पर जिसने भी एंट्

गढ़वाली फिल्मों में हिंदी फिल्मों की भौंडी नकलः नरेंद्र सिंह नेगी

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(प्रख्यात लोकगायक/साहित्यकार श्री नरेंद्र सिंह नेगी से फोन पर साहित्यकार श्री भीष्म कुकरेती की बातचीत) भीष्म कुकरेती - नेगीजी नमस्कार आज पौड़ी में या कहीं और ? नरेंद्र सिंह नेगी- नमस्कार कुकरेती जी। आज मैं अभी एक समारोह हेतु श्रीनगर आया हूं। कहिये। भीष्म कुकरेती- नेगीजी! गढ़वाली-कुमाउनी फिल्म उद्योग पर बातचीत करनी थी। समय हो तो .. नरेंद्र सिंह नेगी- हां कहिये! वैसे गढ़वाली फिल्में कुमांउनी फिल्मों के मुकाबले अधिक बनी हैं। जबकि कुमाऊं में अंतरराष्ट्रीयस्तर के राजनेता, वैज्ञानिक, सैनिक अधिकारी, संगीतकार, चित्रकार, साहित्यकार, कलाकार हुए हैं किन्तु यह एक बिडम्बना ही है कि कुमाउनी फिल्में ना तो उस स्तर की बनी और ना ही संख्या की दृष्टि से समुचित फ़िल्में बनीं। भीष्म कुकरेती- गढ़वाली व कुमांउनी फिल्मों का स्तर कैसा रहा है? नरेंद्र सिंह नेगी- देखा जाए तो अमूनन स्तरहीन ही रहा है। हिंदी के कबाडनुमा फिल्मों की नकल रही है गढ़वाली व कुमांउनी फ़िल्में। असल में उत्तराखंडी फिल्म उद्योग में सांस्कृतिक और सामजिक स्तर के   अनुभवी लोग आये ही नहीं। जब आप क्षेत्रीय फिल्म या एलबम बनाते ह

मनखि (गढ़वाली-कविता) धर्मेन्द्र नेगी

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विकास-विकास चिल्लाण लैगे मनखि बिणास बुलाण लैगे घौ सैणैं हिकमत नि रैगे वेफर हिंवाळ आँखा घुर्याण लैगे उड्यार पुटग दम घुटेणूं वींकू गंगाळ अब फड़फड़ाण लैगे धुंआर्ंवळनि पराण फ़्वफ़सेगे वेको अगास मुछ्यळा चुटाण लैगे छनुड़ा खन्द्वार, गोर सड़क्यूंमा स्यु ढ़िराक बग्वाळ मनाण लैगे धर-धरों मा मोबैल टावरों देखी चखल्यूं को पराण घुमटाण लैगे निरजी राज हुयूं छ यख ’धरम’ स्यु सुंगर कूड़्यूं तैं कुर्याण लैगे -          धर्मेन्द्र नेगी चुराणी, रिखणीखाळ, पौड़ी गढ़वाळ