हमें सोचना तो होगा...!!
दिल्ली में निर्भया कांड के बाद जिस तरह से तत्कालीन केंद्र सरकार सक्रिय हुई, नाबालिगों से रेप के मामलों पर कड़ी कार्रवाई के लिए एक नया कानून अस्तित्व में आया। 2014 में केंद्र में आई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार ने भी ऐसे मामलों पर कार्रवाई की अपनी प्रतिबद्धताओं को जाहिर किया, तो लगा कि देश में महिला उत्पीड़न और खासकर रेप जैसी वारदातों पर समाज में डर पैदा होगा। जो कि जरूरी भी था। मगर, एनसीआरबी के आंकड़े इसकी तस्दीक नहीं करते। समाज में ऐसी विकृत मनोवृत्तियों में कानून का खौफ आज भी नहीं दिखता। हाल ही में कठुआ (जम्मू कश्मीर) में महज आठ साल, सूरत (गुजरात) में 10 साल, सासाराम (बिहार) में सात साल की बच्चियों से गैंगरेप और रेप, उन्नाव (उत्तरप्रदेश) में नाबालिग से कथित बलात्कार प्रकरण में स्थानीय विधायक का नाम जुड़ना, मौजूदा हालातों को आसानी से समझा दे रहे हैं। यहां सवाल यह नहीं कि ऐसी वारदातों को रोकने और मुजरिमों को सजा देने में सरकारें फेल हुई हैं। बल्कि यह है कि पीड़ितों को न्याय दिलाने की बजाए जम्मू कश्मीर और उत्तर प्रदेश में जिस तरह से रेप के आरोपियों को बचाने के ल