माँ
अब कभी-कभी
आती है सपनों में
चुप रहती है,
कुछ नहीं कहती
माँ
सुनाती थी बातों-बातों में
जीवन के कई हिस्से
सुने हुए कई किस्से
भोगे हुए यथार्थ
जिनके थे कुछ निहितार्थ
माँ
आगाह करती थी
लोगों से, बुरे दौर से
सलाह देती थी
चारों तरफ देखने की
माँ
डाँट देती अक्सर मुझे
मेरी गलतियों पर
मेरी कमियों पर
मृत्यु के कुछ दिन पहले
आखिरी बार भी डाँटा था
माँ
अब आती है सपनों में
चुपचाप देखती है
शायद महसूस करती है
मेरा आज, मेरा कल
मगर,
माँ अब कुछ नहीं कहती
माँ अब कुछ नहीं कहती
• धनेश कोठारी
08 मई 2022, ऋषिकेश (उत्तराखंड)