विरोधाभास के बीच झूलती टीम अन्‍ना

टीम अण्णा का दो दिन का उत्‍तराखण्ड दौरा विरोध, सवाल और शंकाओं से भरा रहा। टीम अण्णा ने हरिद्वार, देहरादून, हल्द्वानी और रूद्रपुर में सभाएं कर केन्द्र सरकार के लोकपाल बिल को कोसा। उत्‍तराखण्ड के लोकायुक्त विधेयक और मुख्यमंत्री भुवन चन्द्र खण्डूडी़ की खुद जमकर तारीफ की और लोगों से भी कराई। लगे हाथ कांग्रेस-भाजपा समेत सभी राजनीतिक दलों को भ्रष्ट करार दे दिया। टीम अण्णा ने केन्द्र के लोकपाल बिल की कमजोरियों और उत्‍तराखण्ड के लोकायुक्त विधेयक की खूबियों को लेकर उठे सवालों का जवाब देना गैर जरूरी समझा। उत्‍तराखण्ड के लोकायुक्त विधेयक की खुली हिमायत की वजह जानने की जुर्रत करने वालों का मुंह बन्द कर बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। गोकि सवाल करना सिर्फ टीम अण्णा का ही विशेषाधिकार हो। पूरे दौरे के दौरान केन्द्र के लोकपाल और उत्‍तराखण्ड के लोकायुक्त विधेयक को लेकर उठे सवालों से कन्नी काटती टीम अण्णा खुद विरोधाभासों में फॅसी नजर आई।

टीम अण्णा ने सभी जगह कमोवेश एक सी बातें दोहराई। टीम के वरिष्ठ सदस्य अरविन्द केजरीवाल ने कहा कि कांग्रेस ही नहीं निशंक सरकार में भी भ्रष्टाचार हुआ है। सपा-बसपा भी भ्रष्टाचार से अछूते नहीं है। अब मौका आ गया है कि जनता भष्टाचारियों को सबक सिखायें। बकौल अरविन्द केजरीवाल उत्‍तराखण्ड के लोकायुक्त बिल को हू-ब-हू पूरे देश में लागू कर दिया जाना चाहिए। अगर केजरीवाल की इस बात को मंजूर कर लिया जाए, तो देश में ऐसा लोकपाल विधेयक आना चाहिए, जिसके चयन समिति का अध्यक्ष प्रधानमंत्री और राज्यों के संदर्भ में मुख्यमंत्री हो। लोकपाल के वार्षिक क्रियाकलापों की निगरानी के लिए लोकसभा और राज्यों के संदर्भ में विधान सभा की एक कमेटी बने। 

किसी को बेवजह उत्पीड़ित करने की मंशा से झूठी शिकायत करने पर शिकायतकर्ता के ऊपर एक लाख रुपये तक का जुर्माना हो, जिसकी वसूली राजस्व बकाये की भॉति की जाए। प्रधानमंत्री, केन्द्रीय मंत्रिमण्डल के सभी सदस्यों और सभी सांसदों, राज्य के मुख्यमंत्री, मंत्रिमण्डल के सभी सदस्यों और सभी विधायकों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों में तब तक जॉच या सुनवाई नहीं हो, जब तक लोकपाल की बैंच के अध्यक्ष सहित पूरी पीठ के सभी सदस्य एक राय से इस बात की इजाजत नहीं दें। यानी न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी।
जी हॉ, सरसरी नजर में ये खूबियॉ है- उत्‍तराखण्ड सरकार द्वारा पास किये गये सशक्त लोकायुक्त विधेयक की। उत्‍तराखण्ड के लोकायुक्त विधेयक की प्रस्तावना भ्रष्टाचार उन्मूलन अधिनियम-1988 से शुरू होती है। यानी यह विधेयक भ्रष्टाचार उन्मूलन अधिनियम-1988 के तहत बनाया गया है। यह केन्द्रीय एक्ट है, जो कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने के लिए अपने आप में सम्पूर्ण और सक्षम है। उत्‍तराखण्ड के लोकायुक्त विधेयक की धारा-4(9-एक) के मुताबिक लोकायुक्त के चयन के लिए एक चयन समिति बनेगी। मुख्यमंत्री इस चयन समिति के अध्यक्ष होगें। चयन समिति में नेता प्रतिपक्ष समेत छह सदस्य होगें। धारा-14(2) में लोकायुक्त के वार्षिक क्रियाकलापों की निगरानी के लिए विधानसभा की एक कमेटी गठित करने का प्राविधान रखा गया है। विधेयक की धारा-18 के मुताबिक लोकायुक्त की बैंच के अध्यक्ष सहित सम्पूर्ण पीठ के सभी सदस्यों की एक राय से इजाजत के बिना मुख्यमंत्री, मंत्रिपरिषद के किसी सदस्य और विधानसभा के किसी सदस्य के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में जॉच या सुनवाई नहीं हो सकती है। यानी राजनीतिक भ्रष्टाचार की खुली छूट। सवाल यह है कि अगर हजारे पक्ष के लोग इस लोकायुक्त विधेयक को बेहद मजबूत और आर्दश बता रहे है, तो केन्द्र सरकार द्वारा संसद में पेश लोकपाल बिल पर उन्हें आपत्ति क्यों है?

हजारे पक्ष के उत्‍तराखण्ड के लोकायुक्त विधेयक को एक मजबूत बिल बताने की एक वजह तो समझ में आती है। वह यह कि इस विधेयक में लोकायुक्त को जॉच तथा सजा के लिए अपनी मशीनरी को नियुक्त करने का अधिकार दिया गया है। किसी शिकायत की जॉच और सजा देने वाली मशीनरी लोकायुक्त की खुद की होगी। लोकायुक्त को नियम बनाने का अधिकार दिया गया है। लोकायुक्त को मानहानि के मामले में हाईकोर्ट के बराबर अधिकार दिये गये है। लोकायुक्त में की गई शिकायत वापस नहीं ली जा सकती है। ये सभी बिन्दु टीम अण्णा के एजेन्डे में शामिल रहे हैं। टीम अण्णा ने एक ओर देश के सभी राजनीतिक दलों को भ्रष्टाचार में डूबा बताया। उत्‍तराखण्ड की निशंक सरकार को भी भ्रष्ट करार दिया। कहा कि - देश के किसी राजनीतिक दल ने जन लोकपाल बिल की सच्ची हिमायत नहीं की। लिहाजा विधानसभा चुनाव में जनता भ्रष्टाचारियों को हराये और सिर्फ ईमानदार सियासी पार्टियों को ही वोट देने की अपील की।

सवाल यह है कि बकौल टीम अण्णा घोटाले करने वाले भाजपा समेत सभी पार्टी के उम्मीदवारों को अगर जनता हरा दे, तो जीतने वाला बचेगा कौन। अगर उत्‍तराखण्ड में लोकायुक्त बिल लाने के ऐवज में जनता वोट करती है, तो खण्डूडी़ के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। मुश्किल यह है कि उत्‍तराखण्ड की विधानसभा में सत्तर सीटें है। खण्डूडी़ एक ही सीट से चुनाव लड़ रहे है। बाकी बची 69 विधानसभा सीटों पर जनता वोट दे, तो आखिर किसको दें। टीम अण्णा ने जनता को इस दुविधा से निकलने का कोई साफ रास्ता नहीं सुझाया। टीम अण्णा की इस पूरी कसरत से आम लोगों में यह संदेश साफ तौर पर गया कि टीम अण्णा लोकायुक्त विधेयक के बहाने भाजपा को मदद करने की इच्छा तो रखती हैं, लेकिन भाजपा पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों से भी दूरी बनाये रखना चाहती हैं। टीम अण्णा की इस दुविधा और विरोधाभास के चलते ही उनका उत्‍तराखण्ड दौरा कई सवालों को जन्म दे गया।
नैनीताल से वरिष्‍ठ पत्रकार प्रयाग पाण्‍डे की रिपोर्ट