02 November, 2013

बाबा की मूर्ति फिर चर्चाओं में....

       भई देश दुनिया में उत्‍तराखंड त्रासदी की प्रतीक बनी मूर्ति और बाबा एक बार फिर चर्चा में हैं। और यह बहस शुरू हुई, 31 अक्‍टूबर गुरुवार को मूर्ति को लगाने और उसी रात उसे हटाने के बाद से। क्षेत्र में कुछ बाबा के पक्ष और कुछ विपक्ष में आ गए हैं। दुहाई दी जा रही है कि यह यहां का आकर्षण है, इसे दोबारा लगना चाहिए। लेकिन कुछ बैकडोर में यह भी बतिया रहे हैं कि क्‍या यह गंगा पर अतिक्रमण नहीं। जब बीते 17 जून 2013 को पूर्वाह्न करीब साढ़े 11 बजे आक्रोशित गंगा ने रास्‍ते में आड़े आ रही मूर्ति को अपने आगोश में जब्‍त कर लिया, तो महज आध-पौन घंटे के भीतर यह देश दुनिया के मीडिया में सुर्खियां बटोरने लगी थी।
बड़ी बात कि देश के मीडिया को यह फुटेज उनके किसी रिपोर्ट ने नहीं, बल्कि इस मूर्ति के साधकों की तरफ से ही भेजी गई बताते हैं। सवाल तब भी उठे कि आखिर मीडिया में सुर्खियां बटोरने के पीछे फाइबर की इस मूर्ति का फायदा क्‍या रहा होगा। खैर यह बीती बात हो गई।
नतीजा, श्रावणमास के बाद तक तीर्थनगरी ऋषिकेश में भी खौफ के चलते पर्यटक नहीं आए। उन्‍हें लगा कि मूर्ति बह गई, तो अब वहां क्‍या बचा होगा। जिसका नुकसान क्षेत्र के कारोबारियों को करीब तीन-चार महीनों तक भुगतना पड़ा। जिसकी कसक अब तक बाकी है। अभी भी यहां का पर्यटन पूरी तरह से पटरी पर नहीं लौटा है। ऐसे में अब फिर मूर्ति लगाने की वही कवायद शुरु हो गई है।
अब सवाल यह कि हाईकोर्ट के आदेशों से पहले भी यदि आम आदमी यदि गंगा किनारे एक ईंट भी रखता था, तो मुखबिरों की सूचना पर प्रशासन बगैर नोटिस, सूचना के ही उसे ढहा देता था। अब भी ढहाने को आतुर दिखता है। मगर, यहां तो गंगा पर अतिक्रमण को सब देखते रहे, और आरती भी करते रहे। आखिर यह रियायत क्‍यों...
सवाल यह भी कि क्‍या गंगा को अतिक्रमित करती सिर्फ यह मूर्ति ही क्षेत्र में पर्यटन का आधार है। क्‍या इसके बिना देस विदेश के सैलानी यहां नहीं आएंगे। सच क्‍या मानें..। कुछ लोग दबे छुपे कहते हैं- इसके पीछे कोई बड़ा खेल संभव है। लिहाजा अब इस पर सोचा जाना जरुरी लगता है। साथ ही इसका फलित भी निकाला जाना चाहिए, कि आखिर गंगा के हित में क्‍या है।

Popular Posts

Blog Archive

Our YouTube Channel

Subscribe Our YouTube Channel BOL PAHADi For Songs, Poem & Local issues

Subscribe