जसपुर के बहुगुणाओं का गढ़वाली टीका साहित्य में योगदान



• भीष्म कुकरेती

गढ़वाली साहित्यकार एवं इतिहासकार अबोध बंधु बहुगुणा ने ’गाड म्यटेकी गंगा’ पुस्तक में संस्कृत ज्योतिष व कर्मकांड साहित्य का गढ़वाली में टीका का उल्लेख किया है। अबोध बंधु ने 1925 का धोरा खोळा, कटळस्यूं निवासी पंडित रतनमणि घिल्डियाल द्वारा ज्योतिष गणित का गढ़वाली टीका (प्दजमतचतमजंजपवद) का जिक्र किया है (गाड म्यटेकी गंगा- पृष्ठ 59 )। 

उसके बाद के गढ़वाली साहित्य इतिहासकारों ने इस दिशा में कोई खोजपूर्ण कार्य नही किया। मेरा मानना था कि सन् 1890 से पहले जब कोई स्कूल नही थे और हिंदी का कोई स्थान गढ़वाल में नही था तो कर्मकांडी पंडित अवश्य ही अपने शिष्य (पुत्र, पौत्र, भतीजे, भ्राता आदि) को संस्कृत श्लोकों को गढ़वाली में ही समझाते होंगे और पाण्डुलि। में गढ़वाली में ही टीका करते रहे होंगे।

मेरे गांव जसपुर, ढांगू, पौड़ी गढ़वाल में कर्मकांडी चौथ ब्राह्मण बहुगुणा सन् 1875 के आसपास कुकरेतियों द्वारा बसाए गए थे। अतः मुझे इस दिशा में कुछ-कुछ ज्ञान था कि बहुगुणा पंडितो के पास हस्तलिखित पांडुलिपियां होती थीं।

इस साल के प्रथम चरण में जसपुर के पंडित स्व. पंडित तोताराम बहुगुणा के पौत्र व स्व. विद्यादत्त के द्वितीय पुत्र कर्मकांडी पंडित महेशानन्द बहुगुणा से मुंबई में मिलने का अवसर मिला। मैंने रिश्ते में भ्राता किन्तु सांस्कृतिक रू। से गुरु महेशानन्द बहुगुणा से यही प्रश्न किया कि जब जसपुर में ब्रिटिश शिक्षा नही थी तो कर्मकांड, ज्योतिष टीका अवश्य ही गढ़वाली में हुई होगी। पंडित महेशा नन्द बहुगुणा ने मेरा समर्थन करते कहा कि जसपुर के बहुगुणाओं में ज्योतिष, कर्मकांड को श्रुति रू। से लिखित रू। देने का काम स्व. पंडित जयराम बहुगुणा ने प्रारम्भ किया था। स्व. पंडित जयराम बहुगुणा स्व. तोताराम के भाई थे।

पंडित महेशानन्द ने मुझे आश्वासन सूचना दी थी कि पंडित जयराम बहुगुणा की पांडुलिपियां गांव में पंडित पद्मादत्त बहुगुणा के पास हैं, जिसमे गढ़वाली में टीका उपलब्ध हैं। पंडित पद्मादत्त बहुगुणा पंडित जयराम के भतीजे के पुत्र हैं। पंडित महेशा नन्द ने आश्वासन दिया था कि वे मुझे इस प्रकार के साहित्य को फोटोकॉपी द्वारा उपलब्ध कराएंगे।

इसी दौरान मुझे नागराजा पूजन हेतु मई में गांव जाना पड़ा। वहां सभी बहुगुणा पंडितों से मुलाकात अवश्यम्भावी थी और मैं आश्वस्त था कि मुझे गढ़वाली साहित्य का प्राचीन खजाना अवश्य मिलेगा। किन्तु गांव में त्रिवर्षीय नागराजा पूजन होने से सभी प्रवासी चाहते थे कि अपने कुल गुरुओं बहुगुणाओं से पूजन भी कराया जाए। आसपास के गांवों में भी प्रवासी आए थे, जो इन कुल गुरुओं से पूजा करवाने को इच्छित थे।

अतः सभी बुजुर्ग (मेरे समकक्ष आयु वाले) व युवा पंडित इतने व्यस्त थे कि उन्हें सांस लेने की फुर्सत नही थी। मैंने जिससे भी गढ़वाली टीका की बात की उन पंडित ने साहित्य उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया किन्तु काम फारिग होने के बाद। मैं निराश था कि मुझे खजाना नहीं मिलेगा और फिर यह अवसर नही मिलेगा। दूसरी दिक्कत थी कि पंडित पद्मादत्त बहुगुणा के अतिरिक्त सभी पंडित कोटद्वार या अन्य शहरों में निवास करते हैं अतः यह महत्वपूर्ण साहित्य को देखना व फोटोकॉपी करना कठिन ही था।

मुझे 29 मई को ऋषिकेश के लिए प्रस्थान करना था और मुझे कोई साहित्य उपलब्ध नही हो सका था। एक कारण यह भी था कि प्रिंटिंग सुविधा उपलब्ध होने से पाण्डुलि। साहित्य की अब किसी भी कर्मकांडी पंडित को आवश्यकता नहीं है और पाण्डुलिपि अब किसी कोने में ही मिल सकतीं हैं।

अचानक 7 बजे सांय, मेरी धर्मपत्नी ने मेरे स्कूल के सहपाठी बड़े भाई शत्रुघ्न प्रसाद की दी गई पोथी मेरे हाथ में पकड़ा दी। इस पोथी में कई पोथियां (Boolete) थीं। मूल पोथी नीलकंठी कर्मकांड का है और अंदर कि छोटी पोथियां अन्य ज्योतिषीय विषय।

मुझे निम्न पंडितों की हस्तलिखित पोथियां मिलीं

पंडित सदानंद द्वारा लिखित दो संस्कृत विषयी लघु आकार की पोथियां।

पंडित खिमानन्द द्वारा लिखित व हिंदी में टीका की हुई पोथी।

पंडित तोताराम की दो या तीन विषयों में लिखी पोथियां और सभी में हिंदी में टीका लिखी गईं हैं। उपरोक्त तीनों लेखकों ने द. लिखकर अपने हस्ताक्षर किए हैं। नीलकंठी प्रकरण में एक जगह पंडित जयराम के हस्ताक्षर या नाम हैं दो जगह पंडित लोकमणि के हस्ताक्षर हैं व दो तीन जगह उनका नाम भी लिखा है। पंडित विद्यादत्त का नाम भी है।

पंडित जयराम ने जातक चन्द्रिका संस्कृत में छांटे-छांटी पंक्तियों में कलम से लिखी है और फिर बाद में किसी ने निब से बीच की पंक्ति में हिंदी में टीका लिखी है। कहीं भी लेखकों ने बहुगुणा शब्द नहीं लिखा है बल्कि पंडित शब्द का प्रयोग किया है। पंडित सदानंद ने तो पंडित शब्द भी प्रयोग नहीं किया है।

पंडित तोताराम लिखित टीका व श्लोकों से पहले गणेश का चित्र भी बनाया है व दूसरे पृष्ठ में भी रंगीन चित्रकारी की है। पंडित खिमानन्द ने जसपुर, ढांगू व कुमाऊं कमिनशनरी लिखा है और इसका कारण है कि वे पंडिताई से पहले चकबंदी विभाग में नौकरी की थी।

गढ़वाली टीका पोथी के कुछ भाग

जहां तक गढ़वाली टीका का प्रश्न है इन पोथियों के अंदर चार पृष्ठ की निखालिस गढ़वाली टीका मिलीं हैं। गढ़वाली टीका वाली पोथी में पंडित सदानंद की पोथी में पंडित शब्द भी नहीं है।

मेरे सहपाठी श्री शत्रुघ्न बहुगुणा व कुलगुरु पंडित विवेकानन्द बहुगुणा के अनुसार यह टीका पंडित खिमानन्द बहुगुणा की है। किन्तु मैं आदर सहित लिखना चाहूंगा कि पंडित खिमानन्द ने गढ़वाली टीका नहीं लिखी है।  उसके कारण निम्न हैं -

1- इस पुस्तिका का आकार पंडित खिमानन्द लिखित पोथी से मेल नहीं खाती है। 

2- पंडित खिमानन्द ने हिंदी टीका निब से लिखी है।

3- पंडित खिमानन्द का हस्थलि। भी मेल नहीं खाती है। जबकि पंडित जयराम की हस्थलि। से मेल खाती है।

4- मूल पोथी का आकार भी छोटा है किन्तु पंडित सदानंद द्वारा लिखित पोथी से एक इंच बड़ा होगा।

5- कागज भी अन्य पोथियों से मेल नहीं खाते हैं।

6- एक पोथी के उपलब्ध भाग लाल रंग के दो लाइनों से बनी हाशिए दोनों तरफ हैं व स्याही अब मटमैली हो गई है। इसी तरह काली स्याही केवल पंडित जयराम द्वारा लिखित श्लोकों से मेल खाती है। दूसरी पोथी के भाग का पृष्ठ पर दोनो ओर लाल स्याही से दो दो हाशिए बने हैं। जो अन्य पोथियों से भिन्न हैं।

7- चूंकि पंडित लोकमणि, पंडित सदानंद, पंडित खिमानन्द, पंडित तोताराम ने सन् 1890 में ब्रिटिश स्थापित स्कूल टंकाण स्कूल में शिक्षा पाई है अतः इन्हे हिंदी का पूरा ज्ञान था। पंडित जयराम ने टंकाण में शिक्षा नहीं पाई थी अतः उन्होंने गढ़वाली में टीका लिखी होगी जो पंडित महेशानन्द व पंडित पद्मादत्त ने भी स्वीकारा है।

अतः साफ़ है कि जो दो पोथियों के एक-एक पृष्ठ मेरे पास हैं वे पंडित जयराम द्वारा या उनसे पहले किसी अन्य द्वारा लिखी टीका है। पंडित जयराम की जीवनी विश्लेषण से लगता है यह टीका सन् 1900 से पहले की होगी।

पोथियों के उपलब्ध पृष्ठों की इबारत इस प्रकार हैं

दस दोष निरोपण की गढ़वाली टीका

संस्कृत शोक के बाद टीका ।। १ ।। भाषा आद्य भद्रा नी होवूः दुतिय शूल चक्र नि होवूः जनु सूर्य नक्षेत्र तक गणणो। १। १२। १५। १८। २८। होवू त शूल हूंदः शुभ काम बर्जित बोले= तृतीय ग्रह संजोगः जोदिन नक्षेत्र पर पा। ग्रह हो वो त नी लेणो दुसरी एक बात या छ कि जनु अशु नक्षेत्र प्रः आश्वार दग्ध तिथी और वार जोडिक तेर हो वू त वारदग्ध होंद अथमासदग्ध

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बै। ज्येष्ठ । आषा । श्रावण । भाद्रपद । असूज । कार्तिक । मंगसीर।  पुख । माघ। फा । चैत्र । ६ । ४ । ८। ६। १०। ८ । १२। ८। २ । ।१२।   

अवरविरेखावोदः सूर्जन न क्षेत्र ते सताईस रेखा धरणी अश्लेषा -मघा -चीत्राः अनुराधा. रेवत. श्रवण. यूंका निचे भि रेखा मारणी तव असुनी ते दिन नक्षेत्र तक गणणो जो निचे को चिरो आवत नी लेणो. जामैत्रिवोद . दिन का नक्षेत्र ते चौदवें नक्षेत्र पर पा। ग्रह होवू त नी लेणो शुभ होवू त दोस नी होंदो - गरहवेद तथा अष्टम वेद दोष चक्रमा देखणो जनु नी नक्षेत्र पर विवाह और पु र्फालगुनी पर पा। ग्रह क्षेत्र वेद होयो सो नी लिणोः अथः तलातवोद -दिन नक्षेत्र ते १२ वूंआ नक्षेत्र पर सूर्य्यत्वात मार ३ तीसरा नक्षेत्र पर मंगल ६ छटा नक्षेत्र पर वृहस्पति ८ आटवूआं नक्षेत्र पर शनी

इस प्रकरण का इतना ही साहित्य उपलब्ध है।



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