चौंठी भुक्कि

छौं मि ये ही मुल्क कु,
भुलिग्यों यख कि माया
भुलिग्यों वा चौंठी भुक्कि,
कोख जैंन मि खिलाया

कन नचदा रांसौं मण्डाण,
चड़दा कन युं ऊंचा डांडौं
क्या च कौंणि कंडाळी कु स्वाद,
हिसर खिलदा कन बीच कांडौं
भुलिग्यों दानों कु मान,
सेवा पैलगु शिमान्या

कैन बंटाई पुंगड़्यों कि धाण,
द्याई कैन गौं मेळ्वाक
कख च बगणि धौळी गंगा,
गैन कख सी काख कांद
याद नि च रिंगदा घट्ट,
चुलखांदों कि आग खर्याया

रुड़्यों धर मा फफरांदी पौन,
ह्‍युंदै कि निवाति कुणेटी
मौ कि पंचमी, भैला बग्वाळ्,
दंग-दंगि सि पैडुल्या सिलोटी
बणिग्यों मि इत्यास अफ्वू मा,
बगदिग्यों थमण नि पाया

Source : Jyundal (A Collection of Garhwali Poems)
Copyright@ Dhanesh Kothari

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