पहाड़ का सबसे बड़ा सवाल

उतराखंड और हिमालय के सबसे बड़े सामाजिक और राजनितिक प्रश्न यानि पहाड़ के गाँव के पलायन और उत्तरजीविता पर एक बड़ी सामाजिक बहस छेड़ने के उद्देश्य से धाद ने आज गाँधी पार्क मै एक पोस्टर का लोकार्पण किया.केंद्र ने क्या हमे दिया सारा हिमालय खाली किया दरअसल ये पोस्टर आज से 16 वर्ष पूर्व 2 oct 1994 को मुजफ्फरनगर कांड के दिवस पर जारी हुआ था और तब का सबसे बड़ा सवाल और सामाजिक चिंता यानि हमारे गाँव का विस्थापन था .दुर्भाग्य से तब से आज तक जब की राज्य बने हुए भी 10 वर्ष हो चुके हैं यह प्रश्न अनुतरित है और अगर ढंग से देखे तो ये समस्या विकराल होती गयी है सोलह साल पहले का सवालजिस पर उत्तराखंड के नौजवान शहीद हुए थे आज और अधिक मौजू हो गया है.पहले केंद्र से शिकायत थी

अब किस से कहें .हमारे दस साल पुराने राज्य आज भी गाँव को सशक्त बनाने में नाकाम रहा है जिसकी उपेक्षा ने राज्य आन्दोलन की नीव राखी थीऔर आज भी हम एक ऐसी ग्राम नीति की बात जोह रहे हैं जो पहाड़ के गाँव को नई दिशा दे सके गाँधी हमारे देश में मजबूत गाँव के सबसे बड़े पैरोकार रहे हैं इसलिए उनकी जयंती पर देश के तमाम गाँव की पक्षधरता में और उत्तराखंड के उजड़ते हुए गाँव के सवाल पर हम यह पोस्टर जारी कर रहे हैं .तथा इस मुद्दे पर एक बड़ी बहस की शुरुवात कर रहे हैंजिसके तहत आने वाले समय में गाँव के पक्ष में कार्यक्रम किये जायेंगे जोह रहे हैं जो पहाड़ के गाँव को नई दिशा दे सके .इस अवसर परलोकेश नवानी,तन्मय ममगाईं,डी.सी . नौटियाल,शांति, श्रीश डोभाल. राजेंद्र कोटनाला तोताराम ढौंडियाल,सोम दत्त बलोदी, हर्ष पर्वतीय, हरी पुरोहित,हरीश भट्ट,सचिदानंद मैंदोला,विजय मधुर,बीना बेंजवाल,दिनेश उनियाल,डॉ आशा रावत,रमाकांत बेंजवाल, सीधी लाल,डॉ लक्ष्मी भट्ट, अम्बुज शर्मा, अदि मोजूद थे.
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