लोकसाहित्य में मनोविज्ञान एवं दर्शन

नाथपन्थी साहित्य और गढ़वाली लोकसाहित्य में मनोविज्ञान एवम दर्शनशास्त्र

नाथपंथी साहित्य आने से गढवाली भाषा में मनोविज्ञान और दर्शनशास्त्र की व्याख्याएं जनजीवन में आया। यह एक विडम्बना ही है की कर्मकांडी ब्राह्मण जिस साहित्य की व्याख्या कर्मकांड के समय करते हैं वह विद्वता की दृष्टि से उथला है, और जो जन साहित्य सारगर्भित है, जिसमें मनोविज्ञान की परिभाषाएं छुपी हैं, जिस साहित्य में भारतीय षट दर्शनशास्त्र का निचोड़ है उसे सदियों से वह सर्वोच्च स्थान नहीं मिला जिसका यह साहित्य हकदार है। नाथपंथी साहित्य के वाचक डळया नाथ या गोस्वामी, ओल्या, जागरी, औजी/दास होते हैं। किन्तु सामजिक स्थिति के हिसाब से इन वाचकों को अछूतों की श्रेणी में रखा गया और आश्चर्य यह भी है की आमजनों को यह साहित्य अधिक भाता था/है और उनके निकट भी रहा है। 
@Bhishma Kukreti