१९२५ से १९५० का काल ~ BOL PAHADI

19 October, 2010

१९२५ से १९५० का काल

सामाजिक स्थिति तो वही रही किन्तु स्थितियों में गुणकारक वृद्धि हुई। याने की शिक्षा वृद्धि, उच्च शिक्षा के प्रति प्रबल इच्छा, कृषि पैदावार की जगह धन की अत्यंत आवश्यकता, गढ़वाल से पलायन में वृद्धि, कई सामजिक कुरीतियों व सामजिक ढांचों पर कई तरह के सामाजिक आक्रमण में वृद्धि, सैकड़ों साल से चली आ रही जातिगत व्यवस्था पर प्रहार, स्वतंत्र आन्दोलन में तीव्रता और ग्रामीणों का इसमें अभिनव योगदान, शिक्षा में ब्राह्मणों के एकाधिकार पर प्रबल आघात, नए सामाजिक समीकरणों की उत्पत्ति आदि इस काल की मुख्य सामाजिक प्रवृतियां रही हैं। १९४७ में भारत को स्वतंत्रता मिलना भी इसी काल में हुआ और इस घटना का प्रभाव आने वाली कविताओं पर पड़ा। इस काल में पुरूष वर्ग का नौकरी हेतु गढ़वाली से बाहर रहने से श्रृंगार विरह रस में भी वृद्धि हुई, हिंदी व अंग्रेजी से अति मोह, वास्तुशिल्प में बदलाव, धार्मिक अनुष्ठानो में बदलाव के संकेत, कृषि उपकरणों, कपड़ों में परिवर्तन, गढ़वाली सभ्यता में बाह्य प्रभाव जैसे सामजिक स्थिति इस काल की देन है। प्रवास में गढ़वाली सामाजिक संस्थाएं गढ़वाली साहित्यिक उत्थान में कार्यरत होने लग गयीं थीं
जहाँ तक कविताओं का प्रश्न है सभी कुछ प्रथम काल जैसा ही रहा। हाँ कवियों की भाषा अधिक मुखर दिखती है और गढ़वाली कविताओं पर हिंदी साहित्य विकास का सीधा प्रभाव अधिक मुखर होकर आया है। अंग्रेजी साहित्य का भी प्रभाव कहीं-कहीं दिखने लगता है। यद्यपि यह मुखर होकर नहीं आयी है। गढ़वाली लोकवृति एवं छ्न्द्शैली में कमी दिखने लगी है। विषयों में सामजिक सुधार को प्रधानता मिली है, विषयगत व कविता शैली में नये प्रयोग भी इस काल में मिलने लगे हैं।
इस काल में जनमानस को यदि किसी कवि ने उद्वेलित किया है तो वह हैं रामी बौराणी के रचयिता बलदेव प्रसाद शर्मा दीन’, रामी बौराणी कविता आज कुमाऊनी और गढ़वाली समाज में लोकगीत का स्थान ग्रहण कर चुकी है। इस काल की दूसरी महत्वपूर्ण घटना अथवा उपलब्धि रूपमोहन सकलानी द्वारा रचित गढ़वाली में प्रथम महाकाव्य 'गढ़ बीर महाकाव्य’ (१९२७-२८) है। महाकवि भजनसिंह सिंहका इस क्षेत्र में आना एक अन्य महत्वपूर्ण उपलब्धि है, कई संस्कृत साहित्य का अनुवाद भी इस युग में हुआ यथा ऋग्वेद का अनुवाद, कालिदास की अनुकृति आदि।
इस काल के कवियों में तोताकृष्ण गैरोला, योगेन्द्र पुरी , केशवानन्द कैंथोला, शिवनारायण सिंह बिष्ट, बलदेव प्रसाद नौटियाल, सदानंद जखमोला, भोलादत्त देवरानी, कमल साहित्यालंकार, भगवतीचरण निर्मोही’, सत्य प्रसाद रतूड़ी, दयाधर भट्ट आदि प्रमुख कवि हैं  
@Bhishma Kukreti

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