यद्यपि गढवाली कविता कि समालोचना एवं कवियों कि जीवनवृति लिखने कि शुरुआत पंडित तारादत्त गैरोला ने १९३७ ई. से की किन्तु अबोधबंधु बहुगुणा को गढवाली कविता और गद्य का क्रमगत इतिहास लिखने का श्रेय जाता है। अतः कविता काल कि परिसीमन उन्हीं के अनुसार आज भी हो रही है। इस लेख में भी गढवाली कविता कालखंड बहुगुणा के अनुसार ही विभाजित की जाएगी डा. नन्दकिशोर ढौंडियाल ने कालखंड के स्थान पर नामों को महत्व दिया। जैसे पांथरी युग या सिंह युग।
@Bhishma Kukreti
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