09 August, 2010

गैरसैंण की अपील 'सलाण्या स्यळी'


            अप्रतिम लोककवि, गीतकार अर गायक नरेन्द्र सिंह नेगी कु लेटेस्ट म्यूजिक एलबम ‘सलाण्या स्यळी’ मंनोरंजन का दगड़ ही उत्तराखण्ड राज्य का अनुत्तरित सवालूं अर सांस्कृतिक चिंता थैं सामणि रखदु अर एक संस्कृतिकर्मी का उद्‍देश्यों, जिम्मेदारियों थैं तय कर्न मा अपणि भूमिका निभौण मा कामयाब दिखेंदु। सलाण्या स्यळी मा ईंदां नेगी न जख गीतिका असवाल अर मंजु सुन्दरियाल जन नयि गायिकौं थैं मौका दे, वखि कुछ नया प्रयोग भी बखुबी आजमायां छन। पमपम सोनी कु संगीत संयोजन अब जरुर बोर कर्दु।

पहाड़ का सांस्कृतिक धरातल पर गीत-संगीत का कई ‘ठेकेदारुन्’ अब तक खुबसूरत पहाड़ी ‘बाँद’ थैं ऑडियो-विजुअल माध्यमूं मा बदशक्ल सि कर्याली। पण, नरेन्द्र सिंह नेगीन् ‘सलाण्या स्यळी’ का अपणा पैला ही गीत ‘तैं ज्वनि को राजपाट’ मा चुनौती का दगड़ यना करतबूं थैं न सिर्फ हतोत्साहित कर्यूं च, बल्कि प्रतिद्वन्दियों थैं भरपूर मात भी देयिं च।
पहाड़ मा जीजा-साली का बीच सदानी ही आत्मीय रिश्ता रैन, त सलाण अर गंगाड़ का बीच का पारस्परिक संबन्धूं मा स्यळी-भिना का रिश्ता स्वस्थ प्रगाढ़ता अर हाजिर जवाबी कु उन्मुक्त छन। एलबम कु शीर्षक गीत ‘सलाण्या स्यळी’ पुराणा विषय थैं पारम्परिकता का दगड़ सौंर्दू। सलाण-गंगाड़ का परिप्रेक्ष्य मा रच्यूं यू गीत वन्न त औसत लगदु। तब बि अंतरौं मा कोरस कु शुरूवाती उठान अच्छु प्रयोग च। गीत मा नई गायिका कि आवाज से ‘स्यळी कि कच्ची उम्र जन स्वाद’ मिल्दु।
हास्य-व्यंग्य का पैनापन का दगड़ रच्यूं तीसरु गीत ‘चल मेरा थौला’ मनोरंजक च। सूत्रधार थैला का जरिया कखि अति महत्वाकांक्षी वर्ग चरित्र त कखि सौंगा बाटौं पर ‘लक्क’ आजमाणै कि चाना, तीसरी तर्फ अकर्म का बाद बि मौज कि उम्मीद जना भाव से गीत कई आयाम बणौंद। सुण्ण वाळों कि जमात मा यू गीत कै ‘आम’ कि अपेक्षा कुछ ‘खास’ थैं ही तजुर्बा देलु। बाक्कि भोरेण कि उम्मीद मा जख-तख जांद ‘थौला’ कतना भोरेलु, कतना खाली रौलु यू बग्त बेहतर बतै सक्द।
‘स्य कनि ड्यूटी तुमारी’ गीत विषय, शैली, भाषा अर धुन हर दृष्टि से एलबम कि मार्मिक अर सबसे उल्लेखनीय रचना च। नरेन्द्र सिंह नेगी कु नैसर्गिक मिजाज बि ई च। यां खुणि नेगी अपणा सुणदारौं का बीच ख्यात बि छन। पहाड़ अर फौजी द्वी स्वयं मा पर्याय छन। देश कि सीमौं पर सैनिक अपणा कर्तव्यूं कि मिसाल च। त, घौर मु वेकु परिवार बि ‘जिन्दगी का युद्ध’ मा जिंदगी भर मोर्चा पर रैंदु। दरोल्या-नचाड़ों का लिहाज से यू गीत जरुर ‘बेमाफिक’ ह्वे सकदु।
नरेन्द्र सिंह नेगी का कैनवास पर एक हौर शब्दचित्र ‘बिनसिरि की बेला’ का रूप मा बेहतर स्ट्रोक, रंगूं अर आकृत्यों मा उभर्द। यखमा पहाड़ कु जीवंत परिवेश, जीवन कि एक मधुर लय अर कौतुहल का विभिन्न दृश्य स्वाभाविकता का दगड़ पेंट होयां छन।
प्रेम का रिश्तों मा बंदिशें जुगूं बिटि आज बि जन कि तन च। सामाजिक जकड़न कि ‘गेड़ाख’ आज बि ढीली नि ह्वे। माया प्लवित तब बि ह्वे। अन्तरजातीय रिश्तों कि मजबूरियों थैं रेखांकित कर्दू गीत ‘झगुली कंठयाली’ संकलन कि एक हौर कर्णप्रिय रचना च। ये गीत से नेगी की लगभग डेढ़ दशक पुराणी छवि ताजा ह्वे जांदि।
लाटा-काला शैद ही समझौन्, किलैकि ‘मिन त सम्झि’ एक चंचल स्त्री कि हकीकत च या फिर ‘चंचल स्त्री’ का माध्यम से कुछ हौर.........ह्रास होण कि पीड़ा कु बयान च। अपणी उलझनूं का बावजूद मेरा ख्याल से ये गीत मा बि स्वस्थ सुण्ण वाळों थैं पर्याप्त स्पेस च।
रिलीज से पैलि ही मीडिया अटेंशन पै चुकि ‘तुम बि सुणा’ सरकारूं कि मंशौं थैं सरेआम नि कर्द, बल्कि जनादोलनों का बाद थौ बिसौंदारा लोखूं तैं बि बोल्द कि ‘लड़ै जारी राली’। राजधानी का दगड़ी पहाड़ का हौरि मसलों पर भाजपा-कांग्रेस कि द्वी अन्वारूं थैं ‘मधुमक्खियों’ का अलावा सब जाणदान् अर माणद्‍न। लेकिन यूकेडी की प्रतिबद्धतौं मा रळी चुकी ‘जक-बक’ तैं नरेन्द्र सिंह नेगीन् देर से सै खुब पछाणी। गीत सुण्ण-सुणौण से ज्यादा गैरसैंण का पक्ष मा मजबूत जमीन तैयार कर्द। यू गीत नेगी कि बौद्धिक अन्वार थैं जनप्रियता दिलौंण मा बि सक्षम च।
सलाण्या स्यळी थैं सिर्फ राजधानी का मसला पर नरेन्द्र सिंह नेगी कि तय सोच कु रहस्योद्‍घाटन कर्न वाळु संकलन मात्र मान लेण काफी नि होलु। बल्कि, सलाण्या स्यळी थैं बेहतर गीतूं, धुनूं, शैली अर रणनीतिक संरचना का माफिक जाण्ण बि उचित होलु। किलैकि, कुछ चटपटा मसालों का दगड़ ही सलाण्या स्यळी मा हर वर्ग, क्षेत्र तक पौंछणै अर ‘कुछ’ थैं मात देण कि रणनीतिक क्षमता भरपूर च। ‘माया कू मुण्डारु’ कि अपेक्षा ‘सलाण्या स्यळी’ रेटिंग मा अव्वल च।
Review By - Dhanesh Kothari

Popular Posts

Blog Archive

Our YouTube Channel

Subscribe Our YouTube Channel BOL PAHADi For Songs, Poem & Local issues

Subscribe