कही पे आग कहीं पे नदी बहा के चलो









जनकवि- डॉ. अतुल शर्मा/
गांव-गांव में नई किताब लेके चलो
कहीं पे आग कहीं पे नदी बहा के चलो।

हर आंख में सवाल चीखता रहेगा क्या
जवाब घाटियों में बंद अब रहेगा क्या
गांव-गांव में अब पैर को जमा के चलो
कहीं पे आग कहीं पे नदी बहा के चलो।

भ्रष्ट अन्धकार का समुद्र आयेगा
सूर्य झोपड़ी के द्वार पहुंच जायेगा
आंधियों के घरों में भी जरा जा के चलो
कही पे आग कहीं पे नदी बहा के चलो।

तेरी जुबान का सागर तो आज बोलेगा
ये गांव के गली के राज सभी खोलेगा
दिलों की वादियों में गीत का एक बहा के चलो
कहीं पे आग कहीं पे नदी बहा के चलो।

डॉ. अतुल शर्मा, एक परिचय
- प्रसिद्ध जनकवि, विभिन्न राष्ट्रीय कवि सम्मेलनों के मंचों पर सक्रिय उपस्थिति व गीत प्रचलित।
- उत्तराखंड आंदोलन सहित विभिन्न जनांदोलन में रचनात्मक भागीदारी।
- स्वतंत्र लेखन, कविता, कहानी, उपन्यास व नाटकों पर चालीस से अधिक पुस्तकें प्रकाशित।
- स्वाधीनता संग्राम सेनानी एवं कवि श्रीराम शर्मा ‘प्रेम’पर आधारित पांच पुस्तकों का संपादन, वाह रे बचपन (संपादित) विशेष चर्चित।
- जनकवि डॉ. अतुल शर्मा विविध आयाम : डॉ. गंगाप्रसाद विमल व डॉ. धनंजय सिंह द्वारा संपादित कवि के कृतित्व पर प्रकाशित उल्लेखनीय दस्तावेज।

इंटरनेट प्रस्तुति- धनेश कोठारी