15 April, 2020

भुवन शोम से हुई प्रयोगधर्मी सिनेमा की शुरूआत

https://www.bolpahadi.in/2020/04/blog-post-experimental-film-bhuvan-shome.html

- प्रबोध उनियाल  । 


फिल्मकार मृणाल सेन द्वारा वर्ष 1969 में ‘भुवन शोम’ का निर्माण आधुनिक भारतीय सिनेमा में मील का पत्थर साबित हुई। ये एक नए सिनेमा के विमर्श का आरंभ था। व्यवसायिक सिनेमा हिंदी दर्शकों के लिए एक स्वस्थ और निरापद मनोरंजन भर था। साफ-सुथरी फिल्में भी थीं जिन्हें पूरा परिवार एक साथ बैठकर देख सकता था। अपवाद हो सकता है लेकिन अधिकांश फिल्मों में कलात्मकता व बौद्धिक संवेदना कम दिखती थी। सिनेमा को लेकर मध्यमवर्गीय सोच अपने तरीके की थी। वह अभी सुदूर देहात तक नहीं पहुंचा था। उसकी पटकथा में आम जनजीवन उतना उभर कर नहीं आया।

फिल्म ‘भुवन शोम’ को एक नए सिनेमा की शुरुआत माना जाता है। जो हिंदी दर्शकों को एक मध्यमवर्गीय सोच से खींचकर बाहर निकालने में कामयाब रही। ऐसा पहली बार हुआ जब दर्शक ‘भुवन शोम’ को देखकर इस फिल्म को अपने साथ हॉल से बाहर ले आए। स्वस्थ मनोरंजन अपनी जगह ही रहा लेकिन ‘भुवन शोम’ के बहाने यह माने जाने लगा कि फिल्में, पुस्तक या कोई भी संगीत आपको धीरे से बदलता जरूर है। अगर आप उदासीन और निष्क्रिय हैं तो यह विचार प्रवाह आपको जगाता भी है और शायद उकसाता भी है।

यहीं से नए सिनेमा और अच्छे सिनेमा में भेद होने लगा। जानकारों का कहना है कि दरअसल सन् 1969 से पूर्व हम एक ही प्रकार का सिनेमा का निर्माण करते आ रहे थे। भारतीय दर्शकों की सिनेमा को लेकर एक विशिष्ट किस्म की मानसिकता बन चुकी थी। तब मृणाल सेन की फिल्म ‘भुवन शोम’ ने एक प्रयोगधर्मी सिनेमा की ओर राह बढ़ाई।

फिल्म बांग्ला कहानीकार बलाई चंद मुखर्जी की कहानी पर आधारित है। नायक के किरदार में प्रसिद्ध अभिनेता उत्पल दत्त हैं। नायक रेल महकमे में एक बड़ा अधिकारी है। सख्त है और अनुशासन प्रिय भी। इतना सख्त और अनुशासन प्रिय कि रेलवे में ही काम करने वाले अपने बेटे को भी नहीं बख़्सते। शोमबाबू विधुर हैं, जाहिर सी बात है कि जीवन में बहुत ज्यादा आनंद नहीं है। जीवन शुष्क है।

कहानी में मोड़ तब आता है जब एक दिन वे अचानक ऑफिस की चारदीवारी से बाहर निकलकर कच्छ इलाके में गांव की एक चंचल युवती से मिलते हैं। युवती का पति भी रेलवे में कर्मचारी है। देहात का धूलभरा जीवन लेकिन यहां का निश्चल सौंदर्य उनको आकर्षित करता है।

यहां आकर शोमबाबू का नजरिया बदलने लगता है जो जीवन कभी सख्त और एकाकी था, वह जीवन धीरे से छूटने लगता है। और रेलवे का वह सख्त नौकरशाह एक अल्हड़ बच्चा बन जाता है।

नायिका सुहासिनी मुले ने अपना फिल्मी सफर इसी फिल्म से शुरू किया था। अमिताभ बच्चन ने ‘भुवन शोम’ में पहली बार वॉयस ओवर किया था। कुल एक लाख रुपये के बजट से तैयार ‘भुवन शोम’ में उत्पल दत्त के शानदार अभिनय ने फिल्म को ऐतिहासिक बना दिया था।

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- लेखक प्रबोध उनियाल स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
Film Photo source- Google

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