कभी नहीं सुना होगा कि
देश के किसी गांव में देवों के साथ दानव की पूजा भी हो सकती है। आश्चर्य होगा सुन
और जानकर कि उत्तराखंड के एक गांव में भगवान शिव के साथ राहू को भी पूजा जाता है।
इस मंदिर में भोलेनाथ शिव के साथ राहू की प्रतिमा भी स्थापित है। इस मंदिर को देश
ही नहीं दुनिया का भी एकमात्र राहू मंदिर माना जाता है।
यह मंदिर उत्तराखंड के जनपद पौड़ी गढ़वाल अंतर्गत राठ क्षेत्र के
पैठाणी गांव में स्थित है। रेलवे हेड कोटद्वार से करीब 150 किमी. थलीसैण विकासखंड
के पैठाणी गांव में। यह प्राचीन मंदिर पूर्वी और पश्चिमी नयार नदियो ंके संगम पर
स्थापित है। राहू की धड़विहीन प्रतिमा वाला यह मंदिर अपने शिल्प से ही प्राचीनतम
जान पड़ता है। मंदिर की शिल्पकला भी अनोखी और आकर्षक है।
धार्मिक आख्यानों और दंतकथाओं में माना गया है कि जब समुद्र मंथन
में चौदह रत्नों में एक रत्न अमृत भी निकला था। जिसे पीने वाला अजर अमर हो जाता।
तब राहू अमृत पीने और अमर होने की लालसा में वेश बदलकर देवताओं की कतार में बैठ
गया। यहां तक कि राहू ने अमृत पान भी करने लगा, तभी भगवान विष्णु को इस
बात का पता चल गया और उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से राहू का सिर धड़ से अलग कर
दिया। तब राहू का सिर इस स्थान पर गिर गया।
बताते हैं कि जिस स्थान पर राहू का कटा सिर गिरा,
वहां मंदिर का निर्माण
किया गया और भगवान शिव के साथ राहू की प्रतिमा भी साथ में प्रतिष्ठापित की गई। तभी
से यहां देवों के साथ दानव की पूजा भी शुरू हुई। वर्तमान में यह राहू मंदिर के नाम
से प्रसिद्ध है।
स्थानीय लोगों के मुताबिक यहां देश का एकमात्र राहू मंदिर
स्थापित है। इसीलिए धार्मिक स्थलों में इस स्थान को भी अनूठा माना जाता है।
क्योंकि यहां सदियों से देव और दानव की पूजा समान रूप से जारी है। यहां के लोगों
का यह भी मानना है कि राहू की दशा की शांति और भगवान शिव की आराधना के लिए यह
मंदिर पूरी दुनिया में सबसे उपयुक्त स्थान है।
(आलेख- साभार)