सामयिक गीतों से दिलों में बसे 'नेगी' ~ BOL PAHADI

16 August, 2016

सामयिक गीतों से दिलों में बसे 'नेगी'

https://www.bolpahadi.in/

  
     अप्रतिम लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी के उत्तराखंड से लेकर देश दुनिया में चमकने के कई कारक माने जाते हैं. नेगी को गढ़वाली गीत संगीत के क्षितिज में लोकगायक जीत सिंह नेगी का पार्श्व में जाने का भी बड़ा लाभ मिला. वहींमुंबईदिल्‍ली जैसे महानगरों में सांस्‍कृतिक कार्यक्रमों में सक्रियतासुरों की साधनासंगीत की समुचित शिक्षागीतों में लोकतत्‍व की प्रधानता जैसी कई बातों ने नरेंद्र सिंह नेगी को लोगों के दिलों में बसाया.
अपनी गायकी में संगीत के नियमों का पूरा अनुपालन का ही कारण हैकि उनके गीतों की धुनें न सिर्फ कर्णप्रिय रहीबल्कि वह अपने वैशिष्‍टय से भी भरपूर रहे हैं.
जब नरेंद्र सिंह नेगी आचंलिक संगीत के धरातल पर कदम रख ही रहे थेतो सी दौर में टेप रिकॉर्डर के साथ ऑडियो कैसेट इंडस्‍ट्री में भी क्रान्ति शुरू हुई. जिसकी बदौलत जहां तहां बिखरे पर्वतजनों को अपने लोक के संगीत की आसान उपलब्‍धता सुनिश्चित हुई. उन्‍हें नरेंद्र सिंह नेगी सरीखे गायकों के गीतों को सुनने के अवसर मिल गये. ऑडियो कैसेट इंडस्‍ट्री के विकास से आंचलिक गायकों के बीच प्रतिस्‍पर्धा भी बढ़ी. जिसमें नेगी अपने सर्वोत्‍तम योगदान के कारण खासे सफल रहे. वह इस प्रतिस्‍पर्धा में हीरे की मानिंद चमके.
आंचलिक गीत संगीत में नरेंद्र सिंह नेगी की कामयाबी में उनकी साहित्यिक समझ ने भी बड़ा रोल अदा किया. वह स्‍वयं को भी एक लोकगायक से पहले गीतकार ही मानते रहे हैं. गीतों में कविता की मौजूदगी का असर उन्‍हें लोगों के और करीब ले गया. इससे उनके गीतों में सामयिक विषय भी खूब उभरे. यह गुण हर कलाकार को लोक से जुड़ने में सबसे अधिक सहायक सिद्ध होता है.
प्रारंभिक दौर में उनका गाया गीत 'ऊंचा निसा डांडो मांटेढ़ा मेढ़ा बाटों माचलि भै मोटर चलि ... को खूब पसंद किया गया.  उस वक्‍त पहाड़ों में पब्लिक ट्रांसपोर्ट के हालात बुरे थे. बसों में सफर करने के लोगों के भी अपने ही तौर तरीके थे. उन्‍हीं अनुभवों को समेटे इस गीत ने हर व्‍यक्ति के मन को छुआ. मौजूदा दौर में भी कमोबेश पहाड़ों की यात्रा करते हुए पब्लिक ट्रांसपोर्ट के अनुभव ऐसे ही हैं. गीतों में इसी तरह सामयिक विषयों के चुनाव ने नेगी को पर्वतजनों ही नहीं बल्कि गैर पहाड़ी समाज में भी पहचान दी.
वहींब्रिटिश काल से ही पहाड़ों में वनों के दोहन हेतू जंगलों का प्रान्तीयकरण करना शुरू कर दिया था. भारतीय सरकारों ने भी ब्रिटिश नीति को ही आगे बढ़ाया. अपने जंगल जब सरकारी होने लगे तो इस अधिनियम की सबसे बड़ी मार पहाड़ की महिलाओं को सहनी पड़ी. जिन्हें चारा और जलावन लकड़ी के लिए हर रोज संघर्ष करना पड़ा. ढाई सौ वर्षों से आज तक पहाड़ी महिलाएं आज तक सरकारी नीतियों के कारण जूझ रही हैं. जलजंगल, जमीन की समस्‍या को संवेदनशील जनकवि नरेंद्र सिंह नेगी ने बखूबी समझाऔर उसे अपने गीत का तानाबाना बनाया. इस गीत '' बण भी सरकारी तेरो मन भी सरकारीतिन क्या समझण हम लोगूं कि खैरिआण नि देंदी तू सरकारी बौण ... गोर भैंस्युं मिन क्या खलाण '' नेगी को स्‍वत: ही महिलाओं से जोड़ दिया.
पलायन के कारण अपनी धरती से दूर प्रत्येक मनुष्य जड़ों को खोजता हैअपने इतिहास को खोजना उसकी विडम्बना बन जाती है. इसी जनभावना को नेगी ने समझा. तभी उनकी गायकी में 'बावन गढ़ों  को देश मेरो गढवालउभरा. आज भी गढ़वाल हो या विशाखापत्‍तनम आपको प्रवासियों को नेगी के गीत बावन गढ़ो को देस...सुनने को मिल जाएगा.
गैरसैण को उत्‍तराखंड की राजधानी बनाना पर्वतीय समाज के लिए भावुकता पूर्ण विषय है. मगरइसके निर्माण में सरकारों की हीलाहवाली से पहाडि़यों की भावनाओं का आदर नहीं हुआ. नरेंद्र सिंह नेगी ने इस भावना को भी बखूबी समझा. और तब जन्‍मा '' तुम भि सुणा मिन सुणियालि गढ़वाल ना कुमौं जालि... उत्तरखंडै राजधानी... बल देहरादून रालिदीक्षित आयोगन बोल्यालि... ऊंन बोलण छौ बोल्यालि हमन सुणन छौ सुण्यालि...'' एक और सामयिक गीत.
उत्तराखंड में नारायण दत्त तिवारी के मुख्यमंत्रीत्व काल में श्रृंगार रस की जो नदी बहीवह आम जनता को अभी भी याद है. आमजन के दिलों की आवाज को पहचाने में नेगी को महारत हासिल रही है. तभी तो 'नौछमी नारयणजैसा कालजयी गीत रचा गया. जिसने सरकार की नींव को ही हिलाकर रख दिया था. इस गीत ने रचनाकारों को सामयिक विषयों की ताकत को बताया.
ऐसे ही एक और गीत अब कथगा खैल्‍यो रे...ने भी सत्‍ता के गलियारों में भूचाल लाया. कविगीतकार नेगी ने इस गीत के जरिए राजनीति में भ्रष्‍टाचार की परतों को बखूबी उघाड़ा. आमजन केवल दूसरों पर व्यंग्य ही पसंद नहीं करताबल्कि खुद को भी आइने में देखना चाहता है. नरेंद्र सिंह नेगी का सामयिक गीत 'मुझको  पहाड़ी मत बोलो मैं देहरादूण वाला हूं..उतना ही प्रसिद्ध हुआ जितना कि नौछमी नारेण और अब कथगा खैल्‍यो रे जैसा खिल्‍ली उड़ाने वाले गीत.
मेरी दृष्टी में श्री नरेंद्र सिंह नेगी की प्रसिद्धि  में जितना योगदान उनके सुरीले गले, संगीत में महारथसाहित्‍यकार प्रतिभा का हैउससे कहीं अधिक उनका समाज की हर नब्‍ज को पहचान कर उन्‍हें गीतों में समाहित करने का है. जिसके कारण वह मातृशक्ति युवाशक्ति के साथ ही आयु वर्ग और समाज से जुडे़.

आलेख- भीष्‍म कुकरेती

Popular Posts

Blog Archive

Our YouTube Channel

Subscribe Our YouTube Channel BOL PAHADi For Songs, Poem & Local issues

Subscribe