tag:blogger.com,1999:blog-39705564642010037372024-03-15T21:28:01.828+05:30BOL PAHADIबातें सरोकारों की...
Dhanesh Kotharihttp://www.blogger.com/profile/00932460129594239970noreply@blogger.comBlogger418125tag:blogger.com,1999:blog-3970556464201003737.post-25057635987274885512023-11-16T12:16:00.004+05:302023-11-16T12:16:37.311+05:30 गढ़वाल: इस गांव में आज भी निभाई जा रही मामा पौणा की परंपरा<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhQqGdFlGWjGPufUm5H0c4A532zMsav0Dhq6Nq5UPk4nVR67iPZUTh0dzQn3gWO4ywBKtBaXZzTGU1ibH1oJvsGPn7QJCbrpDA-oO2ta-MbNpUVAu73b32gW0WGgEK3GKLqkbuTUl0iY30GUMHFCd8mieTqHaCc9nyXwE_hribyOVkb5TQIKhy1YRREcG0W/s620/mama%20pauna-mama%20mehman_uttarakhand.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="400" data-original-width="620" height="206" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhQqGdFlGWjGPufUm5H0c4A532zMsav0Dhq6Nq5UPk4nVR67iPZUTh0dzQn3gWO4ywBKtBaXZzTGU1ibH1oJvsGPn7QJCbrpDA-oO2ta-MbNpUVAu73b32gW0WGgEK3GKLqkbuTUl0iY30GUMHFCd8mieTqHaCc9nyXwE_hribyOVkb5TQIKhy1YRREcG0W/s320/mama%20pauna-mama%20mehman_uttarakhand.jpg" width="320" /></a></div><br /><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><br /></div><p><b>• शीशपाल गुसाईं</b></p><p><b>Mama Pauna Tradition :</b> सदियों से चली आ रही मामा पौणा (मामा मेहमान) की प्रथा नरेंद्रनगर ब्लॉक के दोगी पट्टी में आज भी जीवित है। जो कि महान संस्कृति को जीवित रखती है। प्रथा के अनुसार भांजे की शादी में मामा को घोड़े में मेहमान के रूप में लड़की (वधु) के यहां ले जाया जाता है और उनके गले में मालाएं होती हैं जिससे वह विशेष मेहमान के दर्जे में आते हैं। लोकगीतों में भी मामा पौणा के बहुत सारे गीत सुनने को मिलते हैं। गढ़वाल क्षेत्र यह इलाका धन्य है जिन्होंने इस परंपरा को आज भी जीवित रखा है। </p><p>मामा पौणा ( मामा मेहमान) लोगों को अपनी विरासत को महत्व देने के लिए प्रेरित करती है। मामा पौणा की प्रथा आज भी समाज में बहुत महत्वपूर्ण है। यह संस्कृति एक सामाजिक सम्बंध को प्रदर्शित करती है और सभी नाते-रिस्तेदारों गांव के बीच सद्भाव एवं मित्रता को बढ़ावा देती है। मामा को विशेष रूप से व्यवस्थित घोड़े पर बैठा कर और देखने से भांजे के परिवार में प्रेम और सम्मान का भी बोध होता है। यह हमारी संस्कृति में अनुसरित गहन रीतियों और रीति-रिवाजों की प्रमाणित करती है। </p><p>पूरे विवाह उत्सव के दौरान, मामा की महत्वता का पालन किया जाता है। वह एक साधारण अतिथि नहीं रहते हैं, उनकी सम्मान और आदर की स्थिति अन्य मेहमानों से तीन गुनी ज्यादा रहती है। उनका योगदान एक पारिवारिक बंधन को प्रतिष्ठा और मान्यता का प्रतीक रूप में देखा जाता है। उनकी भूमिका एक रिश्तेदार से आगे की रहती है, दूल्हे की खुशी और सुख की जिम्मेदारी उठाने की जिम्मेदारी मामा की होती है। वर को घोड़ी में ले जाया जाता था और मामा के लिए एक अलग घोड़े की व्यवस्था की जाती थी, उनके गले में भी वर नारायण की भांति माला होती थी। </p><p>मामा पौणा की काफी जगहों पर यह परंपरा खत्म हो गई है। क्योंकि सड़कें पहुँच गईं हैं, घोड़े अब गाँव में नहीं रहे, गांव खाली हो रहे हैं। ज्यादातर शादियां कस्बे, शहरों में हो रही हैं। लेकिन फिर भी नरेंद्रनगर के दोगी पट्टी सहित गढ़वाल के कई क्षेत्र में यह परंपरा कुछ गांव के लोगों ने जिंदा रखी हुई हैं। जरूर आज की चकाचौंध से सामाजिक स्तर पर कड़ी मुश्किलें भी आती होंगी, इन प्राचीन परंपराओं का समर्थन कोई नहीं करेगा, तो कैसे हमारी महान संस्कृति जीवित रह सकेगी? </p><p>फोटो में मामा पौणा हमारे मित्र अधिशासी अभियंता सिंचाई विभाग हैं। जो दोगी पट्टी के रहने वाले हैं। भांजे संदीप की शादी में ल्वेल गांव जा रहे हैं। वह मुझे 6 साल पहले जब मैं गढ़वाल का अंतिम महाराजा शहीद प्रद्युमन शाह पर काम कर रहा था, तब वह एक दिन देहरादून में मिले थे। तब से हम फेसबुक मित्र बने। यह चित्र उन्हीं की वाल से लिया गया है! </p><span><a name='more'></a></span><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi0cONVYg1Vw75p491CaFIASh5_nX7x0MtI4T7oniI8qWEaxD0gUlPUTdbwg8eTE1QcBLhk-O9RPhCOImoNk6kV7Xx6xNqFAmXYUbFYzizyxWs8tgK6IFSax5w9kkDxdNgIe2aGYIdTjrkPDjE0NqluhfOVdYV5V53YSO6041RPwdZO0FiSOJ29gjACRPSe/s316/Shishpal%20Gusain.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="316" data-original-width="300" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi0cONVYg1Vw75p491CaFIASh5_nX7x0MtI4T7oniI8qWEaxD0gUlPUTdbwg8eTE1QcBLhk-O9RPhCOImoNk6kV7Xx6xNqFAmXYUbFYzizyxWs8tgK6IFSax5w9kkDxdNgIe2aGYIdTjrkPDjE0NqluhfOVdYV5V53YSO6041RPwdZO0FiSOJ29gjACRPSe/w190-h200/Shishpal%20Gusain.jpg" width="190" /></a></div><p style="text-align: center;"><b>(शीशपाल गुसाईं का नाम उत्तराखंड के जाने माने वरिष्ठ पत्रकारों और लेखकों में शुमार है)</b></p>Dhanesh Kotharihttp://www.blogger.com/profile/00932460129594239970noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3970556464201003737.post-52977228454384148942023-09-30T12:04:00.001+05:302023-09-30T12:04:08.885+05:30 गढ़वाली कहानीः छठों भै कठैत की हत्या! <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhFACrtID7WXPdympBi780gKcmzRcN6AnUQzJJbBLId1KcU4RjUeaJTRfU63qNMw5QoFy-0HjXdhg2AO-QxodrCJSmBjUimybjNhPFG79Sa4b7jGpfXPcqrN9IPFtYDtdYnzAHWeXxs2kg5AerXvG7X3Qjuexf4wdzjRet6kUF8w1w4NEDTErxgEsrt-nmV/s620/meharban%20kathait-garwali%20kahani.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="349" data-original-width="620" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhFACrtID7WXPdympBi780gKcmzRcN6AnUQzJJbBLId1KcU4RjUeaJTRfU63qNMw5QoFy-0HjXdhg2AO-QxodrCJSmBjUimybjNhPFG79Sa4b7jGpfXPcqrN9IPFtYDtdYnzAHWeXxs2kg5AerXvG7X3Qjuexf4wdzjRet6kUF8w1w4NEDTErxgEsrt-nmV/w320-h180/meharban%20kathait-garwali%20kahani.jpg" width="320" /></a></div><div style="text-align: center;">प्रतीकात्मक चित्र</div><p style="text-align: justify;"><b>• भीष्म कुकरेती / </b></p><p style="text-align: justify;">हौर क्वी हूंद त डौरन वैक पराण सूकि जांद पण मेहरबान सिंग कठैत त राजघराना को संबंधी छौ राजा प्रदीप शाह को खासम ख़ास महामंत्री पुरिया नैथाणी सनै कौरिक खड़ो ह्व़े अर वैन कैदी मेहरबान सिंग कठैत तैं द्याख. फिर पुरिया नैथाणी न मेहरबान कठैत को तर्फां देखिक, घूरिक ब्वाल,“ओह! कठैत जी! जाणदवां छंवां तुम पर क्या अभियोग च?“</p><p style="text-align: justify;">मेहरबान सिंग कठैत न जबाब दे,’पुरिया बामण जी! अभियोग? जु म्यार ब्वाडा क नौन्याळ पंचभया कठैत तुमर पाळीक बजीर मदन सिंग भंडारी, हमर बैणिक जंवैं भीम सिंग बर्त्वाल जन लोकुं ळीोंन दसौली ज़िना नि मारे जांद अर तुम पकडे़ जांद त तुम क्या जबाब दीन्दा? बामण जी जरा जबाब त द्याओ.“</p><p style="text-align: justify;">पुरिया नैथाणी न ब्वाल,“खैर.. हाँ त! खंडूरी जी! डोभाल जी! जरा हम सब्युं समणि मेहरबान सिंग कठैत पर क्या क्या अभियोग छन सुणाओ.!“खंडूरी न पुरिया नैथाणी, भीम सिंग बर्त्वाल, मदन भंडारी, सौणा रौत, भगतु बिष्ट, डंगवाल, भागु क नौनु सांगु सौन्ठियाल अर सात आट और मंत्र्युं ज़िना देखिक ब्वाल,“</p><p style="text-align: justify;">मेहरबान सिंग कठैत क भायुं - सादर सिंग, खड्ग सिंग आद्युं न जनता पर स्युंदी सुप्प डंड, हौळ डंड, चुल्लू डंड, सौणि सेर जन क़र लगैन अर जनता तैं राणि राज अर प्रदीप शाही खिलाफ कार.“</p><p style="text-align: justify;">मेहरबान न बेधडक ब्वाल, ”डंड लगाण त क्वी राजशाही कि खिलाफात नी होंद. राजाक बान इ कर लगयेगेन.“</p><p style="text-align: justify;">सांगु सौन्ठियाल न ब्वाल, ’पण जब कर राजकोष मा आओ त ठीक छौ. भाभर, रवाईं से लेकि बद्रीनाथ तक इन दिखेगे कि डंड को तीन चौथे से बिंडि भाग तुम कठैत भयूँ न गबद कॉरी. गबन कौरी.“</p><p style="text-align: justify;">अबै दें दिवाकर डोभाल न ब्वाल, ’अर फिर कठैत भायुं न कथगा काम का मंत्र्युं जन शंकर डोभाल, गंभीर सिंग भंडारी, भागु सौन्ठियाल की बर्बर हत्या कराई.“</p><p style="text-align: justify;">मेहरबान सिंग न ब्वाल,“ठीक च त आप लोकुं न म्यार ब्वाडा क पंची नौन्याळू हत्या कौरी आल. अब में फर क्यांक अभियोग?“</p><p style="text-align: justify;">भीम सिंग बर्त्वालन ब्वाल,“मेहरबान जी तुम पर इ त बड़ो अभियोग लगण चयेंद. हम सौब तैं पता च बल पंच भया कठैतऊं असली दिमाग त तुम छ्या. अर को नि जाणदो बल तुम इ त कर चोरीक धन का हिसाब किताब दिखदा छया.“</p><p style="text-align: justify;">पुरिया नैथाणी क आंख्युं सैन से एक सिपै न मेहरबान कु गात पर बंध्युं लगुल खैंच अर मेहरबान तैं चलण पोड़. दगड मा मेहरबान क दगड का कैदियूँ तैं बि म्वाटा लगुलोँ से खिंचेगे अर सौब कैदि चलण बिसेन. </p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;">एक उड़्यार जन कूड़ सि कुछ छौ. उख मेहरबान अर हौरी कैदि बि लएगेन. दगड़ मा सबि मंत्री बि छ्या.</p><p style="text-align: justify;">एक मंत्री भंडारी न क्रूरता से ब्वाल,“ देख बै मेहरबान!.तयार दगड़ माका चार अपराध्युं तैं एक एक कौरिक फांसी दिए जाली. अर देख ली कन फांसी दिए जाली.“</p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;">सब्युं न द्याख कि मथि बौळी पर एक बड़ो म्वाटो ज्यूड़ जन डुडड़ा छौ. ज्यूड़ पर कैदिक गौळु बंधे जांद छौ अर फिर वै तैं छटाक से तौळ छुडे जांद छौ. भंडारी न ब्वाल,’फांसी ऊं तैं इ दियी जाली जौन कम अपराध कार.“</p><p style="text-align: justify;">फिर सौब हैंक उड़्यार ज़िना ऐन जख मथि जंदर बरोबर बडी बडी पथरौ जंती छौ. कैदी तैं तौळ पड़ळे जांद छौ अर फिर मथि बिटेन पथरौ जंती डुड़डों मदद से छुडे जांद छौ. अर य़ी जंती मोरण वाळक गात तैं तब तक थींचदा छ्या जब तलक मोरण वाळक ह्ड्की बूरा नि बौणि जवान.</p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;">हैंक उड्यारम राम तेल गाडणो इंतजाम छौ. कैदिक मुंड सुधारीक वै तैं जिन्दो इ उलटो लटगये जांद छौ अर तौळ बडी कढाई चुल्ल मा धरीं रौंदी छे. फिर एक सुव्वा से कैदिक मुंड पर दुंळ करे जांद छे. धीरे धीरे कौरिक कैदिक ल्वे/खून गरम तचीं कढ़ाई मा टपकदो छौ अर फिर धीरे धीरे तेल जन बौण जांद छौ.कैदी भौत देर तलक ज़िंदा रौंद छौ अर यो डंड भौत इ खतरनाक, बीभत्स निर्दयी डंड माने जांद छौ. राम तेल की सजा बिरला इ लोगूँ तैं दिए जांद छे. एक हैंको मिरतु दंड को इंतजाम बि छौ जख मथि बिटेन पैनी कील लग्यां जंदर जन चल्ली अपराधी मनिख मा फिंके जांद छया</p><p style="text-align: justify;">इन भयानक भिलंकर्या मिरतु दंड सजा दिखाणो गाऊँ क सयाणो तैं बुलये जांद छौ जां से प्रजा मा राजाक डौर ह्वाओ. पुरिया नैथाणी न ब्वाल,“मेहरबान सिंग जी आप तैं कठैत भायूं तै सहयोग दीणो बान पन्दरा गति ’राम तेल गाडणो’या क्वी हौरी सजा दिए जाली.</p><p style="text-align: justify;">फिर मेहरबान सिंग तैं वीं जगा लयेगे जो जघन्य अपराध्युं बान बणी छे. वैक दगड्यों तैं कख ल्हिजयेगे वै तैं कुछ नि बतयेगे.मेहरबान सिंग कठैत तैं मरणो डौर उथगा नि लगणो छौ जथगा डौर मिरतु मा देर हूण से लगणि छै. हिमाचल या इख सिरीनगर मा राजघराना मा हूण से वो जाणदो छौ कि मंत्री या वैका पाळी दारूं मुंड धळकाण आम बात च. मेहरबान सुचदोगे पण पुरिया नैथाणी हैंको लुतको/हाड मांस को मनिख छौ. सौब भयुं तैं वैन जान से मरवै दे पण मी तैं जिंदु इ पकड़वाई. जरूर ओ मेरो मिरतु डंड तैं इथगा बीभत्स बणालो कि क्वी हैंको मनिख वैको विरुद्ध हूणो सोची बि नि साको. मेहरबान तैं राजघराना मा रैक पता छौ बल मिरतु डंड मा जथगा देर लगद वो डंड वो उथगा इ तरास दिन्देर होंद.</p><p style="text-align: justify;">य़ी कुठड़ी ब्वालो या उड़्यार औ जेल ब्वालो क बारा मा मेहरबान तैं कुछ कुछ अन्थाज त छौ. जब रात अलकनंदा क स्वां स्वां से वै तैं निंद नि आई त वो समजीगे कि या जगा कखम च. वो शिरीनगर कम इ आंदो छौ. बदरीनाथौ रस्ता मा खांकरा मथि अर फतेपुर औ तौळ वैको घौर छौ पंच भया कठैत सला मसवरा लीणो बान या राजकोष से लुकयूँ धन दीणो वै तैं शिरीनगर बुलान्दा छया. मेहरबान न य़ी कोठड़ी बारा मा सुणी छौ.क्वी अलकनंदा ज़िना भागल त सीधो रौड़ीक गंगळ इ जालो अर हैंक तरफ सिपयों जाळ अर बीच बीच मा पाणी ढंडीयूँ से क्वी नि बची सकदो छौ. </p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;">राजघराना परिवारौ हूण से वै तैं कैदखाना से भगणै सुजणि इ छे. कैद से भगणो मतलब जिन्दगी. सुबेर दिन मा या स्याम दै तीन चार भृत भुर्त्या आंदा छ्या. एक सुबेर जौ क सतु दे जांद छौ. दिन मा हैंको जौ क रुटि प्याज अर एक छ्वटि कंकरी लूणै देण वाळु पर वै तैं भर्वस नि होणु छौ. हाँ स्याम दै कुठड़ी से भैर दिवळ छिल्ल जगाण वळु अर जौ को बाड़ी, बाड़ी दगड़ो वास्ता लुण्या पाणि दीण वळ पर कुज्याण किलै भर्वस होण लगे बल यो ई मनिख कामौ च.</p><p style="text-align: justify;">तिसर दिन वैन स्याम दै वळु भुर्त्या /भृत तैं पूछ,“त्यार नाम क्य च?“</p><p style="text-align: justify;">“म्यार नाम फगुण्या नेगी च.“भृत न जबाब दे </p><p style="text-align: justify;">मेहरबान न पूछ,“नेगी जी तुम जाणदा छंवां बल पन्दरा गति औंसी दिन म्यार रामतेल गाडे जालो या कुचः बडी भयानक सजा?.“</p><p style="text-align: justify;">“हाँ सूण त मीन बि इन्नी च बल तुम तैं उलटो लटगैक मुंड पर स्यूण न दुंळ कौरिक तुमारो खून से रामतेल गाडे जालो.“फगुण्या न जबाब दे</p><p style="text-align: justify;">थोड़ा देर तलक मेहरबान क पुटुकउन्द डौरन च्याळ पोड़ना रैन. मुंड बिटेन जरा जरा कौरिक गर्म कढ़ाई मा खून टपकणो बारा मा सोचिक वै तैं डौरन उकै/उल्टी आणो ह्व़ेगे. फिर कैड़ो जिकुड़ी कौरिक मेहरबान न पूछ,“त स्याम दें तू इ मेरी टहल सेवा मा रैली?“</p><p style="text-align: justify;">फगुण्या न सुरक सुरक बाच मा ब्वाल,“हाँ जब तलक मथि वाळ चाल त स्याम दै मी इ तुमारि नेगिचारी, सेवा टहल मा रौलू.हाँ जु तुम जोर से बोलिल्या या मी जादा देर तलक तुमारो दगड छ्वीं लगौलू त ह्व़े सकद च मेरी जगा क्वी हैंको भुर्त्या (भृत) ऐ जालो.“</p><p style="text-align: justify;">मेहरबान समजीगे कि यू फगुण्या कुछ ना कुछ मदद दीणो तैयार ह्व़े जालो. वैदिन इ फगुण्या न बथों बथों मा बताई बल कठैतूं एक खाश भुर्त्या घुगतू रौत तैं लाल गरम तवा मा नचै नचै क मारेगे. फगुण्या न बथै जब घुगतू रौत तैं लाल लाल गरम तवा मा नचाणा छया त वैक ऐड़ाट भुभ्याट, रूण-धूण सूणिक राणि बि बिज़ीगे छे बल. घुगतु रौत क किराण से कत्ति बाळ/बच्चा छळेगेन बल. मंत्री पुरिया नैथाणि न फिर राणी सणि समजाई बुझाई बल बिद्रोहियों तैं इनी निर्दयी पन से डंड्याण चएंद जां से हौर क्वी बि राजशाही बिरुद्ध सोचो इ ना.</p><p style="text-align: justify;">रात भर अलकनंदा क स्यूंसाट अर घुगतु राउत को लाल लाल गरम तवा मा नचाणो बारा मा सोचिक सोचिक मेहरबान तैं निंद नि ऐ. जरा सी निंद आणो ता मेहरबानो आंख्युं मा गरम लाल लाल लोखरै पटाळ जै लोखरै पटाळ तौळ म्वाटा म्वाटा गिंडा जळणा छन अर अळग मा घुगतू रौत केवल नाची इ सकुद छौ. खड़ी दीवार इन छे कि क्वी बि कुछ नि कौरी सकुद छौ. बस मोरण वाळ रोई इ सकुद छौ अर नाची सकुद छौ। मेहरबान तैं याद आई बल जब खड्ग सिग कठैत न शंकर डोभाल का एक खास समर्थक घोगड़ बिष्ट तैं लाल लाल गरम तवा मा नाचणै सजा दे छौ त तब मेहरबान न गरम तवा मा घोगड़ बिष्ट क नचण क्या जिन्दगी से संघर्ष देखी छौ. जब लोखरै पटाळ कम गरम छे त घोगड़ बिष्ट किराणो छौ बल,“मी तैं कुलाड़ी न मारी द्याओ.. ए ब्व़े.. मेरी मौण धळकै द्याओ पण इन तरसे तरसेक नि मारो’. धीरे धीरे घोगड़ बिष्ट केवल किराणो इ छौ. अर जथगा बि दिखण वाळ छ्या वो हंसणा छया. तब मेहरबान बि हंसणो छौ. </p><p style="text-align: justify;">चौथू दिन स्याम दै फगुण्या आई, भैर दिवळ छिल्ल जळैक वैन बथाई बल आज कठैतूं घोर पाळीदार मंगला नन्द मैठाणी तैं घणो जंगळ मा लिजयेगे अर उख खड्डा पुटुक किनग्वड़ो, हिसरौ काण्ड अर दगड मा कळी बुट्या डाळेगेन अर फिर मंगला नन्द मैठाणी तैं जिंदु वै खड्डा मा डाळेगे. फगुण्या न अगने बथाई बल सौब बुना छया बल भोळ या पर्स्युं तक मंगला नन्द मैठाणी तरसी तरसी क मोरी इ जालो. यीं बात सूणिक मेहरबान सिंग क अंग फंग कामीगेन.</p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;">फिर फगुण्या न अपण खिसा उन्दन द्वी बड़ो प्याजौ दाण अर पांछ छै कंकर ल़ूणो निकाळ अर कोठड़ी क जंगला बिटेन मेहरबान तैं पकडै क ब्वाल. ”कनि कौरिक बि मी अपण घौरन यूं चीजुं तै लौंउ. बाड़ी मा या रुट्टी मा...“</p><p style="text-align: justify;">मेहरबान न ब्वाल, ’हूँ! ज्यू त इन बुल्याणु कि त्वे तैं भौत सा इनाम किताब द्यों पण इख मीम क्या च? खन्नू बि नी च.“</p><p style="text-align: justify;">फगुण्या न कुछ नि ब्वाल पण मेहरबान न ब्वाल,“हाँ जो बि मेरी सेवा टहल करदारा रैन मीन ऊं तैं खूब इनाम दे.पण आज त्वे तैं मी क्या द्यूं?“</p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;">“नै जी! मी तैं बदरीनाथै किरपा से तनखा मिलदी छें च. इनाम किताब कि क्या बात?“फगुण्या न ब्वाल.</p><p style="text-align: justify;">मेहरबान न कनफणि सि, अजीब सि भौण मा ब्वाल,’हाँ तनखा अलग बात च अर मातबर, थोकदारूं थोकदार मेहरबानौ तर्फां न इनाम किताब अलग इ बात च. चार दिन पैलि मींमंगन इनाम पाणो बान ढांगू, उदैपुर, रवाईं, बदलपुर, माणा, जन दूर जगौं बिटेन उखाक थोकदारूं पंगत लगीन रौंदी छे.“</p><p style="text-align: justify;">फगुण्या न बोली,’जी! जाणदो छौं.“</p><p style="text-align: justify;">मेहरबान न सुरक ब्वाल,“क्या बात नेगी जी तुम भौत मातबर छं वां क्या?“</p><p style="text-align: justify;">फगुण्या न जबाब दे, केक मातबर! मी बि ढांगू क छौं जख जौ बि उथगा नी होन्दन जथगा इना ग्युं होन्दन.गरीब इ छौं.“</p><p style="text-align: justify;">“मि तुम तैं मातबर बणै सकुद छौं....? ’मेहरबान न भौत इ भेद भोरीं भौण मा ब्वाल.</p><p style="text-align: justify;">’सची! तुम मि तैं मातबर बणै सकदवां क्या? ब्वालो क्या काम करण? ’फगुण्या न बि भेद भरीं बाच मा पूछ.</p><p style="text-align: justify;">’हाँ....जु तुम मेरी मदद करील्या त..!“मेहरबान सिंग न सरासरी ब्वाल.</p><p style="text-align: justify;">फगुण्या न पूछ,“ब्वालो! काम क्या च..?“</p><p style="text-align: justify;">इथगा मा भैर ज़िना कुछ छिड़बिड़ाट ह्व़े. फगुण्या सुरक सुरक न ब्वाल, ’म्यार पैथर बि राजा क हौरी सिपै लग्यां रौंदन कि मि कखी..</p><p style="text-align: justify;">तुमारि मदद त नि करणु होऊँ.बकै बात भोळ करला...हाँ.. मि अबि भैर कैदखाना क जग्वाळी मा जाणु छौं.“</p><p style="text-align: justify;">आज मेहरबान तैं अलकनंदा क स्युंसाट से फ़रक नि पोड़ पण द्वी बतुं से आज रात बि निंद नि आई. एक तरफ मेहरबान तैं पूरो भरवास हैगे कि फगुण्या लालच मा ऐगे अर अब मेहरबान तैं कैदखाना से भगण मा मदद मीलली इ. पण जनि मेहरबान मंगला नन्द मैठाणी तैं काण्ड अर कळी पुटुक मारेगे कि याद आँदी छे त सरा आसा पर बणाक लगी जांदी छे.</p><p style="text-align: justify;">मेहरबान न काण्ड अर कळी से कन मौत होन्द् दिखीं छे.जब पंच भै कटोचूं तैं भट्ट सिरा मा कत्ले आम करेगे छौ त सिरीनगर मा असली राज मेहरबानौ ब्वाडौ नौनुं ह्व़ेगे छौ. कठैतूं न कटोचूं ख़ास ख़ास पाळीदारूं तैं इन निर्दयी सजा दिएगे कि कटोचूं मौतौ दसों दिन बिटेन सिरीनगर मा बुल्याण बिसेगे बल अब त राणी राज नी च बल्कण मा असल राज त कठैतगर्दी को च.</p><p style="text-align: justify;">वै दिन मेहरबान सुदन सिंग कठैत क बुलण पर कटोचूं खासम खासदार भक्तु डिमरी क सजा दिखणो जंगळगे. एक खड्डा पुटुक किनग्वड़, हिसरूं काण्ड आर दगड़ म कंडाळी क बुट्या डाळेगेन अर फिर उख पुटुक जोर से भक्तु डिमरी तैं जिंदु इचुलयेगे. भौत देर तलक भक्तु डिमरी किराई छौ, ऐड़ाइ छौ. फिर ऐड़ाट भुभ्याट खतम ह्व़े बस भक्तु डिमरी क कणाट इ कणाट छ्या. अर फिर ल्वे बौगण से कणाट बि नि राई बस भक्तु डिमरी किनग्वड़, हिसरूं काण्ड आर दगड़ म कंडाळी म उन्द -उब हो णु रै.</p><p style="text-align: justify;">जन बुल्यां क्वी मर्युं मनिख अफिक बचणो कोशिश करणो ह्वाऊ. पीला, हौरा काण्ड अर कंडळी लाल ह्व़ेगे छ्या. जब भक्तु डिमरीक कणाट बन्द ह्व़े त सुदन सिंग कठैत अर मेहरबान सिंग कठैत सिरीनगर ऐगेन. दुसर दिन फिर सुदन सिंग कठैत अर मेहरबान सिंग कठैत भक्तु डिमरी क लाश दिखणोगेन (कि क्वी वै तैं बचाओ ना ). सुदन सिंग तैं त ना पण मेहरबान सिंग तैं उल्टी ऐगे. सरा खड्डा क काण्ड कंडाळी भूरिण भूरिण रंग मा बदलीगे छौ अर सरा खड्डा मा किरम्वळ, सिपड़ी अर छ्वटा-बड़ा कीड़ो सळाबळी मचीं छे. सड्याणि न बि सब्यूँ तैं उकै सि आणि छे.</p><p style="text-align: justify;">एक तरफ भक्तु डिमरी क सजा कि याद से डौर अर दुसरी तरफ फगुण्या की मदद से कैदखाना बिटेन भजणै बडी आस. मेहरबान न सोची आली छौ कि भोळ कन कौरिक फगुण्या तैं लोभ मा संस्याण. मेहरबान न घड्याइ कि फगु ण्या तैं आधा खजानों दिए बि जावो तबी बि खजानों मा इथगा माल च बल कि आधा गढ़वाळ मोले सक्यांद च. फिर कन कौरिक बि वो खजाना लेकी ळीरद्वार या बिजनौर ज़िना भाजी जाल अर उख फिर धन का बल पर भौं कुछ करे सक्यांद. त मेहरबान तैं कैदखाना से भैर हूण जरूरी च.</p><p style="text-align: justify;">मेहरबान न पक्को इरादा कौरी याल कि कैदखाना बिटेन भगण इ च, अर भाजी नि सौकल त कुज्याण वै तैं क्वा निरदै सजा दिए जांद धौं. मेहरबान सिंग इथगा त जाण दो छौ बल ज्वा बि सजा/डंड होली वा भयानक इ होली. भयानक सजा को भयंकर / भिलंकारि डौर अर कैदखाना बिटेन ळीरद्वार /बिजनौर ज़िना भगणो आस का बीच मेहरबान सिंग सरा रात झुल्याणो राई. आज दिन भर मेहरबान सियूँ सी रै पण वै पर डौर अर आसा क दौरा बि पड़णा इ रैन.</p><p style="text-align: justify;"> स्याम दें फगुण्या आई अर वैन बथै बल कठैत भायूं क घोर पाळीदार टिहरी को सुबान सिंग थोकदार तैं भितर ग्वडै मा तमाखू अर सुरै लखडों धुंवा देक सजा दिएगे. मेहरबान तै भितर ग्वडै मा धुंवां देक सजा दीणो सौब पता छौ. वैक कठैत भैयुं न बि कटोच भयात अर डोभाल, भंडारी जन लोकुं क कति पाळीदारूं तैं भितर ग्वाडिक तमाखू अर सुरै क धुंवां से मार. खिराणि न खांसी खांसी क मनिख मोरी जांद छौ. फिर से मेहरबान की आस खतम हूंदगे अर डौर भितर आन्दगे. निर्दयी सजाऊं याद कौरिक इ मेहरबान क पुटुकुंद च्याळ पोड़ण बिसेगेन. मेहरबान बिसरीगे बल वैन त फगुण्या तैं लालच देक, पटैक कैदखाना बिटेन भगणो कौंळ/योजना बणाण छे. पन कुज्याण भौत देर सजों तलक डौर से वो अद्बकायुं सी गाणि मा चलेगे. फिर आस वैक भितर बैठ. भौत देर परांत मेहरबान न पूछ,“मातबर बणनो कि ना?“</p><p style="text-align: justify;">फगुण्या न जबाब दे,“यीं दुन्या मा क्या गरीब क्या कुबेर बि हौर अमीर होण चाणा छन. मी त एक गरीब मनिख छौं.“</p><p style="text-align: justify;">मेहरबान समजी गयो बल फगुण्या लालच मा ऐगे. मेहरबान न,“मि त्वे तैं इथगा मातबर बणै सकुद कि तुमारा चालीस पुस्त बि कुछ नी कौरन तो बि से-से की जिन्दगी काटे जै सक्याली.“</p><p style="text-align: justify;">फगुण्या क आंख्युं मा जैंगण जन उज्यळ देखिक मेहरबान न बोलि,“पण यांखुण मै तैं कैदखाना से भैर हूण पोड़ल.“</p><p style="text-align: justify;">फगुण्या न लळसे क पूछ,“मतबल?“ मेहरबान न बोली,“हम कठैतूं मा हमर अर कटोचूं क दबायूँ खजानो अबि बि च. जो खजाना पुरिया नैथाणी या हमर रिश्तेदार बर्त्वाल न लूठी वैक समणि जु अबि लुकायुं खजाना च कुछ बि नी च. मी बुलणु छौं तेरी चालीस पुस्त बगैर कुछ कर्याँ खै सकदी. बस मै तैं भैर होण पोड़ल. अर त्वे तैं मि तैं खजानों तलक लिजाण पोडल. जु तू मि तैं खजानों तलक सही सलामत ली जैली त त्याई हिस्सा त्यार. अर जु हम वै खजानों तैं हरद्वार ली जाण मा सफल ह्व़े जान्द्वां त खजाना अदा अदा. अदा खजानों क मतलब च तू सरा भाभर अर ड्याराडूण मुले ( खरीद ) सकदी“</p><p style="text-align: justify;">मेहरबान न जंगला क बीच क जगौं से फगुण्या क आन्खुं मा लोभ कागेणा द्याख. मेहरबान तैं भरोसा ह्वेगे बल फगुण्या वै तैं भगाण मा अब अपणि जिन्दगी लगै दयालो.</p><p style="text-align: justify;">फगुण्या न बोली,“धरती रस्ता त भगण कठण च अर गंगा जी क जिना भगणो मतबल सीदो रौड़ीक मोरण. पण भोळ तक मी कुछ सोचदू छौं कि...!“</p><p style="text-align: justify;">फगुण्या मेहरबान तैं भगणो आस दिलैक चलीगे. मेहरबान तैं कुछ पता छौ बल अलकनंदा ज़िना जाण मतबल सीधा तौळ. यांक मतलब च फगुण्या सीधो बाटो से इ वै तैं भगैक लिजालु? पण इथगा सरल त नी ह्व़े सकदो. मेहरबान तैं याद आई बल जब कठैतगर्दी क बगत पर इख कैदखाना बिटेन कटोचूं एक समर्थक भाग त कैदखाना क समणि इ पकडेगे छौ अर कती गंगा ज़िना भगद दै अलकनंदा जोग ह्वेन. भागणै आस मा निंद हर्चीगे। फिर वै तैं डौर लग कि कखी पकडेगे त?? एक आस हैकि आस तैं लांद अर एक डौर हैंक डौर मन मा लांद.</p><p style="text-align: justify;">फगुण्या की मदद से भगद दै पकड्याणो डौर से मेहरबान तैं टिहरी को सुबान सिंग कि मिरत्यु दंड याद आई. कनो मोरी होलू वो कठैतूं समर्थक सुबान सिंग. छ्वटि सि कुठड़ी अर जै कुठड़ी क अगल बगल मा कुठड़ी. दुई कुठड्यु दिवालूं मा दुंळ इ दुंळ. मेहरबान कल्पना करदोगे कि बीचै कुठड़ी मा सुबान सिंग तै ग्वडेगे होलू अर फिर द्वी छ्वाड़ो कुठड्यु मा तमाखू अर सुरै जळयेगे होलू अर जैक धुंवा बीचै कुठड़ी मा आन्दगे होलू. पैल पैली त सुबान सिंग खिराण न खान्स्दोगे होलू. जिन्दगी क भीक मांगणो रै होलू. खांसद खांसद. ऐड़ाट भुभ्याट बि करदो रै होलू. फिर सुबान सिंग फगोसीन तड़फि होलू, फगोस से सुबान सिंगौ द्वी आँखी भैर ऐ होली अर अंत मा तड़फि तड़फिक मोरीगे होलू. </p><p style="text-align: justify;">जब तलक कठैत भायुं क मंत्री पद से मेहरबान क मजा रैन तब तलक मेहरबान न इन दुरजनी सजा क बारा मा कबि नि सोची. पण आज मेहरबान तै लगो कि राजकरणि मा इन निर्दयी सजा नि होण चयेन्दन. जब अपण खुटों पर ब्युंछी पोड़दन तबि ब्युंछीक डा या दर्द पता चल्दो. मेहरबान फिर अपण मन तैं भागणो आस मा लायो. अर वो सुपन्याण बिस्याई कि कन भागलु वो फगुण्या दगड. फिर खजानों से खजाना बिजनौर ज़िना या हरद्वार ज़िना या.... हैं! नेपाल ज़िना लिजाला अर फिर स्वतंत्र जिंदगी काटे जाली. </p><p style="text-align: justify;">जब हैंक दिन स्याम दै फगुण्या आई त फिर ऊ एक नई दैसत को बिरतांत बथाणो बिसेगे बल कठैतूं एक समर्थक रामप्रसाद बडोला तैं इगासुर चौन्दकोट लिजयेगे जख बल रामप्रसाद बडोला तै शौलकुंडो सजा दिए जाली. मेहरबान सुचदोगे बल जब बि क्वी बिरोधी पाळीदार कटोचगर्दी या कठैत गर्दी जन गर्दी खतम करदो त बिरोधी क समर्थकूं तै देस का अलग अलग हिस्सों मा सजा दिए जांद जां से जनता मा नै पाळीवळु दैसत सौरी जावो, फ़ैली जवो। शौलकुंडो सजा देवप्रयाग अर इगासुर मा दिए जांद. यूँ जगा एक कुठड़ी मा शौल पळे जान्दन अर जब बि कैतै शौलकुंडो सजा दीण ह्वाओ त वैक ळी पैथर बंधे जान्दन, वैका सरैल पर ग्यूं,जौ, झन्ग्वर या कोदो बलड़ बंधे जान्दन अर मथि बिटेन शौलूं बीच डाळे ज्यान्द्। शौल तेजी से शौलकुण्डो छुड़दन जो सजा पाण वाळक सरैल पर पुड़णा रौंदन.बिस, ल्वेखतरी से मनिख चार पांच दिनु मा मोरी जान्द.</p><p style="text-align: justify;">या खबर बि दैसती खबर छे. मतबल पुरिया नैथाणी अर पाळी पुरियागर्दी फैलाणा छन. आण वळी सजा की डौर को डौरन मेहरबानौ ल्वे मुंड मथि चौड़ीगे, कन्दूड़ लाल ह्व़ेगेन, कंदुड़ो मा झमझम्याट हों बिस्याई, जीब खुसक ह्व़ेगे. मेहरबानौ आँखी भैर जन आण बिसयाणा छ्या.अंख पंख कमण बिसेगेन. अबै दै इ भगवान बौणिक आई, </p><p style="text-align: justify;">वैन ब्वाल,“मेहरबान जी! आप खजानों क अदा हिसा देल्या ना?“</p><p style="text-align: justify;">मेहरबानौ पराण पर पराण ऐ, ल्वे मुंड से खुटों तरफ आण बिस्याई, कंदुड़ो झमझम्याट कम ह्व़े, जीब पर पाणी आण बिस्याई अर सबड़ाट मा मेहरबान न जबाब दे,“बद्रीनाथ जी की कसम, मा धारी देवी की कसम, ग्विल्ल कि कसम उख पौंचीगे त खजानों क अदा भाग तुमारो.“</p><p style="text-align: justify;">फगुण्या न बोलि,“ठीक च भोळ काम शुरू होलू. तुम दिन मा बिटेन हरेक घड़ी झाड़ा जाणा रैन. इख सैनिकुं तैं लगण चएंद बल तुमारो पुटुक चलणो च. अर हाँ जाण कना च?“</p><p style="text-align: justify;">मेहरबान न पूरो राजघरानों चोळा मा ऐक ब्वाल,“फ़गुण्या जी!मेहरबानी तुमारी च ।तुम बि राजकरणि मा छंवां त.. कख जाण यो त मी तबी बतौल़ू</p><p style="text-align: justify;">जब मी सिरीनगर से कुछ दूर भैर ह्व़े जौंलू.“</p><p style="text-align: justify;">फगुण्या बि बात बिंगदो छौ, समजदो छौ.वैन ब्वाल,’ठीक च. जब कैदखाना से भैर जौंला त दिसा को होली? चलो ठीक च नि बथाओ. यि ल्याओ मी सतेंदर अघोरी बाबा से कुछ टूण -टणमणो समान लै छौ. य़ी तीन पथरी छन यूँ तैं कुड़ी जन धौरिक, य़ी बि चार पटाळी छन,</p><p style="text-align: justify;">यूं तैं बि एकमंज्यूळया कुड़ जन बणैक अर यी घासौ बुट्या छन यूँ तैं बांधिक रात कुछ पूजा करी लेन. मी त अघोरी बाबा क बड़ो च्याला छौं.“ अर फिर फगुण्या न खाणो दगड धरयां टूण -टणमणो समान मेहरबानौ तरफ सरकाई.</p><p style="text-align: justify;">मेहरबान समजीगे बल फगुण्या मातबर बणनो बड़ो सुपिन दिखंदेर ह्व़े इगे. तबी त टूण-टणमणो इथगा समान लाइ.</p><p style="text-align: justify;">फगुण्या क जाणो परांत मेहरबान न उनि कार जन फगुण्या न बोली छौ. आज मेहरबान तैं डौर नि लग. भागणै आस आज दैसत पर हावी ह्वेगे।</p><p style="text-align: justify;">इन नी च कि मेहरबान तैं दैसत वळी सजाऊं याद नि आई हो धौं!. कथगा इ कैडी दैसती, ड़रौण्या, भिलंकारी सजौं याद आई पण पण भाजणो आस क समणि सबि दैसत आँदी छे अर ख़तम हूंदा जांदी छे.. राजकरणी मा आस, अहम्, आन,बान, शान इ राज करान्दन अर यूँ मा आस सबसे बडी संजीवनी होंद. आस मा इ स्वास च. </p><p style="text-align: justify;">दुसर दिन दुफरा इ बिटेन मेहरबान बार बार झाड़ा जाण बिसेगे अर गुदनड़ जोर जोर से इन किरांदगे जन बुल्यां बडी भारी करास लगी ह्वाऊ. सैनिक समजीगेन कि मेहरबानौ पुटुक चलणो च. एक न त बोली च,“घ्यू मा खाण वळ थोकदार जौ क रुटि खालो त बिचारो तै करास होणि च.“ स्याम दै जब फगुण्या आइ त फिर दुयूंन सुरक फुरक कार अर मेहरबान गुदनड़ ज़िना चल अर पैथर पैथर फगुण्या बि चौल.</p><p style="text-align: justify;">गुदनड़ भेळ मा छौ अर तौळ छे गंगा बौगणि. जूनी क उज्यळ मा बि गंगा जी क फ्यूण रूंआ जन सुफेद दिख्याणु छौ. गुदनड़ क बगल मा लम्बा लम्बा बबूलो (घास) बुट्या छ्या. दुयुंन बबूलो घास पकड़ अर स्यें स्यें तौळ रड़ण लगीगेन. इना उना गुओक पिंदका ऊँ फर लगणा छ्या पण इन मा गुओक घीण कै तै छे. तौळ अटगणो छ्वटो सि जगा छे.बबूलो घास पकड़ीक उखमा ठौ ले. जरा बि इना उना ह्व़े ना कि तौळ सीदो अलकनंदा मा इ ग्वे लगाला. फिर पैल फगुण्या न बबूलो घास झुळा बणाइ अर समां झुळा झुळीक जरा दूर हैंको अटगणो जगा मा खुट धौरिन अर फिर हैंको बबूलो बुट्या पकड़ी दे. फिर फगुण्या न एक दै हैंक झुळी ख्याल </p><p style="text-align: justify;">अर हैंको पथर मा चलीगे. मेहरबान बि कम नि छयो वो बि राजघरानो को इ छौ त अयेड़ी खिल्दा दै रात बिर्त इन दुर्दांत काम करणो हभ्यास त छें इ छौ. अर फिर दैसती मिरतु डंड से त जिंदगी क दगड इनो जुआ खिलण राजपूतों बान जादा भलो छौ. मेहरबान न बि उनि झुळी ख्याल जन फगुण्या न बबूलो बुट्या से झुळी ख्याल. झुळा झुळीक अर बबूल या हौरी घास या क्वी पथर पकडिक द्वी अब इन जगा पोंछीगेन जखम जमीन जरा सैणि छे अर उख बिटेन क्वी डांग, डाळ बूट या घास पकडिक मथि तर्फां पौन्छिन जख से अलकनंदा मा रड़णो कतै डौर नि छौ. फगुण्या न सबसे पैल घासौ द्वी बुट्योँ तै बाँध, द्वी लखड़ी जमीन मा धरीन अर फिर कुछ मंतर ब्वाल.</p><p style="text-align: justify;">अब जूनो उज्यळ मा रस्ता त असान छौ पण राजाक सैनिकुं तैं अर मन्त्रियुं तैं कुछ इ देर मा दुयुंक भगणो पता चौलि इ जाण. बद्रीनाथ बाटो ज़िना जै नि सकद छया. किलैकि सब्यून अन्थाज लगाण कि मेहरबान अपण घौर ज़िना भाजी होलू. अर दिप्रयाग ज़िना जै नि सकदा छ्या किलैकि इख बिटेन त सिरीनगर दिव्प्रयाग बाटो मा इ छौ. </p><p style="text-align: justify;">फगुण्या न सल्ला डे बल चलो सीदो मथि जये जाओ. अर द्वी सीदो मथि घणघोर जंगळ मा उकाळी चढ़दगेन. फिर एक उद्यार सी मील अर मेहरबानौ आँख तड्याण बिसेगेन. जब वैन द्याख कि उख कुछ सामान पैली बिटेन धर्युं च. फिर फगुण्या न बताई कि इनी समान वैन दिन मा बद्रीनाथ रस्ता अर दिबप्रयाग बाटो मा बि लुकायुं च. उड़्यार मथि बिटेन पाणि छिन्छ्वड़ पोड़णो छौ इथगा ठण्ड मा बि दुयुन अपण सरैल साफ़ करी. अर फगुण्या न मेहरबान तै राठ ज़िना पैर्याण वळु कमळो लबादा दे आर अफ़ु बि भंगलो लबादा पैर. मेहरबान तै फगुण्या कि हुस्यारी पर कुज्याण किलै घंघतोळ जन भाव पैदा ह्वेन धौं. जब अग्वाड़ी भजद दै लोक मेहरबान क मिर्जई -रेबदार सुलार दिखदा त साफ़ पता चौल जांद कि मेहरबान क्वी राजघराना को मनिख च. अर इनी फगुण्या क लारा बि बथै दीन्दा कि फगुण्या क्वी सैनिक च. फगुण्या न बथाई बल अब सरासरी भगण पोड़ल किलैकि बस कुछ इ घड्यू मा जून अछल जाली. फगुण्या क द्वी भंगलो पिठू लयां छ्या जख मा बुखण /खाजा अर टूण टणमणो सामान धर्युं छौ. ये उड़्यार से जांद दै फगुण्या न द्वी पथर जमीन मा धरीन अर ऊं द्वी पथरूं अळग एक पटाळ धार अर फिर वीं पटाळ पर पिठे लगाई. अर फिर कुछ पूजा सी कौर.</p><p style="text-align: justify;">फिर द्वी बढ़दगेन उभारी खुण. फगुण्या सैनिक इ ना हुस्यारुं हुस्यार मनिख छौ. वैन द्वी टिक्वा-लाठो बि निड़याँ छ्या. टिक्वा क एक हिसा कील जन भौती पैनो अर हैंको हिस्सा सपाट. फगुण्या क सपाट टिक्वा जब भ्यूं पोड़दो त माटो मा एक क्वी छाप बि छोड़दो थौ जन बुल्याँ मुहर लगी ह्वाऊ. सैत च यू टिक्वा सरकारी टिक्वा ह्वाऊ. </p><p style="text-align: justify;">जब धार मा कोगेणा दिखेण लगीगे त फगुण्या न बोली, बस अब जून अछ्ल्याणि वाळ च तख गदन पोड़ जांदवां. गदन मा एक डाळो तौळ फगुण्या न पैल अज्ञलू अर कबासलू से आग जळाइ आर र्फि़ बुगुल्, लाइकेन, लिँगड़ खूंतड़ो घास पर आग लगै अर आग मा छ्वटि छ्वटि घंटि /लोड़ी धौरीन. द्वी आग टप न लगिन. जब आग बुजीगे तो बि घंटि/लोडियूँ तपन आग को काम करदीगे.</p><p style="text-align: justify;">जब ब्यंणस्यरिक होणि वाळ छे त फगुण्या न ब्वाल,“जब सुबेर ह्व़े जाली त इना उना राजा क बड़ा बड़ा ढोल दमाऊ से सबि जगा इख तलक कि रवाई, भाभर, माणा, बलपूर जनि जगा रैबार पोंछी जालो बल हम द्वी राज-भगोड़ा भागीगेवां. त हम तैं सुबेर हूण से पैलि क्वी इन उड़्यार खुज्याण पोडल जख क्वी सोचि नि साको कि हम उख लुक्याँ छंवां. बस द्वी फिर चलण बिसिगेन. </p><p style="text-align: justify;">कुछ देर उपरान्त एक इन उड़्यार मील जै पर मथि बिटेन पाणी गिरणो छौ. कै बि मौसम मा इख मिनख एकाध घडि से जादा नि रै सकदो छौ. वु द्वी पैल भितरगेन. फिर फगुण्या भैर आई अर इना उना बिटेन बुगुल, लाइकेन, बांजौ सुक्या लखड़ क्या क्याडा लाइ. फिर भैर जैक वो घंटी/ लोडि लाइ अर फिर आग जळैक घंटी/ लोडियूं तै करदोगे। आग बुझैक घंटी/ लोडियूं तैं फगुण्या न रंगुड़ तौळ दबाई दे. भितर सिलापौ उस्मिसि, ठंड, कीच छौ. द्वी कनि कौरिक मथि ढीस्वाळी चिपक्यां. अबि आग से गरम वतावरण छौ. जनि सुबेर घाम आई कि दुयूँ तैं सिरीनगर से ढोल- रौंटळो बजण सुणे देगे. इन बजण अर ताल नयो इ छौ. अर फिर जब सिरिनगरौ ढोल-दमाऊ बन्द ह्वेन त न्याड़ ध्वारो गौं क ढोल- रौंटळो पैलि वळी ताल की अवाज सुण्याण बिस्याई जांको मतबल छौ बल राजा क रैबार थ्वड़ा देर मा चौ छ्वड़ी चली जालो. अब उड़्यार बिटेन भैर आण खतरनाक छौ पण भितर भापो अर ठंड को अजीब प्रभाव छौ. गर्म घंटी/ लोडियूँ गर्मी से ठंड त कम होणि छे पण सिलापौ कुछ नि ह्व़े सकद छौ. फगुण्या क लयां बुखण /खाजा भूक मिटौणो काफी छया. थ्वड़ा देर मा एक बागौं डार पट उड्यारौ भैर आई. सैत च बागुं तैं मनिखूं गंध लगी ह्वेली अर ले सबि बाग़ घुरण लगीगेन. द्वी हल्ला कौरी सकदा नि छया. फगुण्या न करामत दिखाई फटाक से बुगुल पर अज्ञौ कार अर बागूं ज़िना चुलाण बिस्याई, अज्ञौ देखिक बागुं डार भाजीगे.</p><p style="text-align: justify;">अर बुल्दन बल जब दिन इ खराब ह्वाओ त सबि जगौं दिन मा परेशानी आन्द. कै हैंकि जगा अयेड्यू भगाण से या क्यां से धौं उना रिकुं डार भागदी आई. रिकुं से बचणो कि उपाय छौ उन्धारी खुण भजण पण फिर कखी हैंको धार, छाल, खाळ से यि द्वी लोकुं नजर मा आईगे त? दुसरो उपाय छौ बल रिक समणि आईगे त मुंड तौ ळ धरती मा गडे द्याओ अर साँस रोकी द्याओ.फगुण्या न सुरक ब्वाल बल भितर इ मुंड धरती मा गडे क रौण ठीक च. पण कुछ हौरी ह्व़े रिक उना बिटेन जोर से भजण लगीगेन. दुयुंक साँस मा साँस आई. अर उड़्यार से मथि ज़िना घ्वीड़ -काखड़ो आवाज औणि छे जन बुल्या वो ड़र्या होवन. याने कि न्याड़ ध्वार अयेडि खिलयाणि छे. दुयूं तैं धुकधुकी लगीं छे बल कखी अयेडि खिलण वळ या घसेरी या लखड़ वळी इना ऐगे ट कुज्याण क्य हुंद धौं!</p><p style="text-align: justify;">जब भौत देर तलक अब जैक दुयुंन देखी बल उड़्यार भितर सिपड्यू अर किरम्वळो लन्गत्यार लगीन छे. सिपड़ी, किरम्वळ भगौणो एकी तरीका छौ बल धुंआ, अज्ञौ करे जाओ पण दुयूं तैं पता छौ कि अबि जु रिक, बाग़ अर भाजिक ऐन अरगेन त मतबल छौ मनिख आस पास छन. बस दुयूं ध्यान छौ कि सिपड़ी, किरम्वळ ऊं तै नि तड़कावन.</p><p style="text-align: justify;">दुफरा परांत फगुण्या उड़्यार से भैर आई अर उड्यारौ मुख बिटेन पोड़ीक क्वीनो बल पर अग्वाड़ीगे. वैन पोडि पोडीक इना उना रौडिक तौळौ जायजा ले फिर उल्टा उताणो ह्वेक् मथि ज़िना द्याख. वैक इन सल्ली पट्टी देखिक कुज्याण मेहरबानौ मन मा फगुण्या बान शंका अर बडै वळ द्विई भाव किलै ऐन धौं! मन इ मन मा मेहरबानौ ब्वाल बल मनण पोडल कि फगुण्या हुस्यार, सांसदार,अर दिलदेर च.</p><p style="text-align: justify;">फिर सैन इ सैन मा फगुण्या न मेहरबान तै भैर आणो ब्वाल. मेहरबान बि उड्यारौ मुख बिटेन पोड़ीक क्वीनो बल पर आई. अर फिर पड्यू राई. दुयूँ घाम से, खुली हवा से कुछ चैन मील. फिर वो द्वी भितर चलीगेन. अब फगुण्या न ब्वाल,“मेहरबान जी जाण कना च? अब त बथाणो इ पोडल!“</p><p style="text-align: justify;">मेहरबान न ह्यूंलि ढौळ मा जबाब दे,“द्यौप्रयाग से पाँच मील करीब..“</p><p style="text-align: justify;">फगुण्या कुछ देर तलक घड्याणु राई अर फिर वैन बोलि,“त हम तैं इख बिटेन कुकुरगां, घुडदौड़ी, डांडापाणी, खोळाचौरी, सबदरखाळ ज़िना ह्वेक द्यौप्रयाग जा न पोडल“</p><p style="text-align: justify;">मेहरबान न बि हंगरी पूज बल बद्रीनाथ द्यौपर्याग बाटो से जा न मा खतरा इ खतरा च. इथगा मा फगुण्या न अपण झुळा बिटेन एक दाथी जन खुन्करी मेहरबान तैं दींद ब्वाल,“</p><p style="text-align: justify;">इख बिटेन सबदर खाळो बाटो मतबल च जंगळ इ जंगळ. लाठो अर दाथी काम आली“ मेहरबान न फिर हंगरी पूज.</p><p style="text-align: justify;">फगुण्या न ब्वाल,“हम तैं ब्यणसरिक से सुबेर या कुछ हौरी देर तलक अर झामटो परांत जब तलक जूनो उज्यळ ह्वाओ इ चलण. बासो उड़्यार, क्वी घणो जंगळ मा डाळु फौंट्यु मा करण पोडल, रस्तौ मा ग्वरबट त होलू ना बस ध्यान से अर जल्दी बि हिटण पोडल.रिक बाग़, शौलू, अर बन बनिक जानवरूं से बचिक चलण“</p><p style="text-align: justify;">फिर जरा सी झामट से पैलि दुयूँ न उड़्यार छ्वाड़. जाण से पैल फगुण्या न कुछ टूण -टणमणो पूजा कौर, द्वी पथरूं अळग एक पत्र धार अर मंतर बोलिन. अर इनी जखम बि कुछ ह्वाओ त फगुण्या टूण -टणमणो पूजा करदो छौ. मेहरबान न इन भगत क्वी नि देखी छौ. रस्ता कठण छौ पण बुल्दन बल भड़ू क मदद भगवान बि जादा इ करदो. पंचौ दिन द्वी दिबपर्यागौ नजीक पौंछीगेन. मेहरबान न यूँ पांच दिनू मा जो जो बि जिन्दगी अर मौत क बीच दूरी द्याख वांको बार मा सुचणो मौक़ा नि छौ. अब त एकी मकसद रयूँ छौ बल कठैतूं लुकायुं खजानों लेकी अब तलक मेहरबान फगुण्या क पैथर रौंदू छौ अर फगुण्या क बुल्यूं माणदो छौ. अब मेहरबान अब फगुण्या से अग्वडि छौ अर फगुण्या पैथर. अबि तलक फगुण्या बाटो दिख्वा छौ अब मेहरबान बाटु दिख्वा छौ.</p><p style="text-align: justify;">द्वी सुबेर सुबेर एक जगा पौन्छीन जगा जंगळ मा छौ. उख चार छ्वटा छटा मन्दिर छ्या अर मंदिरों आस पास रग ड्या जगा छे. मन्दिर देखिक मेहरबान क मुख मा कांति आई. मेहरबान मंदिरों से दै तरफ एक मील दूर पछिम ज़िना चौल फिर नापी नापिक अळग उतरैणिगे फिर तौळ ऐ अर इनी ट्याड -ब्याड हिटीक एक भेळ क पास ऐ. भेळ इन सपाट कि जरा रौड़ ना त तौळ मोरिक अलकनंदा मा इ मोक्ष मीलल. वैन पट भेळ क चूंच पर ऐक बुबूलोँ अर हौरी घास हटाई त रस्ता बौणिगे, फिर उख उड़्यार. उड़्यार पुटुक इ कठैतूं लुकायुं खजानों छौ. मेहरबान न खजानों फगुण्या तै दिखाई अर घमंड मा ब्वाल,“फगुण्या जी! या च खजानों अर हम दुयूँ तैं यू खजानों नेपाळ लिजाण!“</p><p style="text-align: justify;">फगुण्या न खौंळे क ब्वाल,“पण तुम त हरद्वार या बिजनूर कि छ्वीं लगाणा छ्या? </p><p style="text-align: justify;">मेहरबान न ब्वाल,“ना ना हिन्दोस्तान मा अब नि जाण. त्वे सरीखा बीर भड़ मीमा होलू त मी नेपाल जौलू अर उख रैक इखाक राजा तै ख़तम कौरिक राजा बणणो इंतजाम नि करलो?“</p><p style="text-align: justify;">भौत समौ तलक मेहरबान नेपाल राजा क दगड सकड़ पकड़ कि छ्वीं लगौणु राई अर फगुण्या तै प्रधान सेनापति बणाणो बात करणो राई.’ आखिरें मेहरबान न ब्वाल,’पण भै प्रधान मंत्री त पुरिया नैथाणी इ चयेणु च.किलैकि वै से जादा भविष्य दिखणेर क्वी नी च“</p><p style="text-align: justify;">फिर द्वी उड़्यार बिटेन भैर ऐन अर समो रस्ता मा ऐन कि मेहरबान न द्याख बल समणि पुरिया नैथाणि एक सेना लेकी खड़ो छौ. पुरिया नैथाणी न बोले, “मेहरबान जी यि फगुण्या सिपै नी च बल्कण मा मेरो प्रशिक्षित अयार (जासूस) च, फगुण्या नेगी मनियार्स्युं क जखनोळी गौं को च अर यि फगुण्या नेगी जो टूण -टणमणो पूजा करदो छौ ओ सौब कफोळस्यूं क चैतराम थपलियालौ बान एक सूचना होंदी छे. चैतराम अर वैका हौर अयार तुमर पैथर इ आणा छया चैतराम थपलियाल बि म्यरो सिखायुं अयार (जासूस) च.“</p><p style="text-align: justify;">मेहरबानौ सरैल कि सरा ल्वै पाणी बणीगे. वो कबि पुरिया नैथाणी, कबि चैतराम थपलियाल अर कबि मनियार्स्युं क फगुण्या नेगी तै घुरूणो छौ.</p><p style="text-align: justify;">पुरिया नैथाणी न बिंगाई, “तुम तै चटाक से सजा दीणि होंदी त हम किलै जगवाळ करदां हैं?. हम तैं पता छौ कि पांच भै कठैतूं खजाना तुमारो पास च. बस..“</p><p style="text-align: justify;">चैतराम थपलियालौ न पूछ’अब मेहरबान जी तैं कख लिजाण?“</p><p style="text-align: justify;">पुरिया नैथाणी को जबाब छौ,“आज पन्दरा गति छन. इख इ मेहरबान जी तै शौलकुंडो से मरवाई जालो“</p><p style="text-align: justify;"><b>Copyright@ Bhishma Kukreti</b></p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><br /></p>Dhanesh Kotharihttp://www.blogger.com/profile/00932460129594239970noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3970556464201003737.post-34597119585002986212023-09-25T13:22:00.002+05:302023-09-25T13:22:49.194+05:30 समीक्षाः जीवन के चित्रों की कथा है ‘आवाज रोशनी है’<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEibQnfWsX8p5bamN34qsAfZhNQfAwRqZcdSuNjqT5u3dq_x-jxxXT_KvAhclrGbnTJCc6UK8zLLVshCW053IgelMxS9Jpmz3glnldsmqKmhCbbF3WWskwfHf4BRHbU4C_JXdSXGsaSAPN6ul6J1Vy0hTAIy6IFK_3pWsphvle_20gw3zaU-ft_ADyi4oHuu/s611/awaj%20roshani%20hai.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="611" data-original-width="396" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEibQnfWsX8p5bamN34qsAfZhNQfAwRqZcdSuNjqT5u3dq_x-jxxXT_KvAhclrGbnTJCc6UK8zLLVshCW053IgelMxS9Jpmz3glnldsmqKmhCbbF3WWskwfHf4BRHbU4C_JXdSXGsaSAPN6ul6J1Vy0hTAIy6IFK_3pWsphvle_20gw3zaU-ft_ADyi4oHuu/w206-h320/awaj%20roshani%20hai.jpg" width="206" /></a></div><p style="text-align: justify;">बचपन की स्मृतियां कभी पीछा नहीं छोड़तीं। कितना भी कहते रहो ’छाया मत छूना मन’ मन दौड़ता रहता है दादी, नानी, मामा, मां, पिताजी के पास। अमिता प्रकाश की कृति आवाज़ रोशनी है- जीवन के उस कालखंड की यादें हैं जहां ‘उस मीठी नींद में, नाना-नानी का प्यार दुलार है, मामा-मामी की केयर है, धौली गाय का स्नेह है, अज्जू, सूरी, गब्दू की छेड़खानियां हैं। गुर्रूजी की फटकार है, पानी के लिए लड़ते-झगड़ते अनेकों चेहरे हैं तो घास व लकड़ी की ’बिठकों’ के नीचे हंसती खिलखिलाती, किसी ‘बिसौण’ पर बतियाती या जेठ-बैसाख की दुपहरी में किसी सघन खड़िक या पीपल की छांव में सुस्ताती, या पत्थरों की दीवार पर घड़ी भर को थकान से चूर- नींद की गोद में जाती नानी-मामी-मौसियों के चेहरे हैं। ’पंदेरे’- चैरी और तलौं पर लड़ती-झगड़ती, कोलाहल करती आठ से अस्सी वर्ष तक के स्त्री-पुरुषों के असंख्य चित्र’ इन्हीं चित्रों की कथा है- आवाज रोशनी है।</p><p style="text-align: justify;">लेखिका अमिता आवाज की इस रोशनी में अपने समूचे बचपन को पूर्ण सच्चाई से जीती हुई, हमारे सामने पहाड़ के किसी भी गांव का चित्र बना देतीं हैं। वैसे इस गांव का नाम सिलेत है। कितनी मजेदार बात है कि जब मैं किताब के मार्फत अमिता के बचपन को पढ़ रही थी, मुझे अपना बचपन बार-बार याद आ रहा था। वैसे ही खेत, वही खेल, वैसे ही मास्टर जी की संटी, मुंगरी, ककड़ी, खाजा, बुकांणा, कौदे की रोटी और हर्यूं लूंण। लिखते-लिखते ही मेरे मुंह में पानी आ रहा है। पहाड़ कब- कब हंसता है, कब गुस्साता है, कब रुदन में भीग जाता है, सभी बहुत ही सरल और सहज रूप में लिख दिया भुली अमिता ने।</p><p style="text-align: center;"><i>‘मीथैं लगीं च खुद ममकोट की</i></p><p style="text-align: center;"><i>ननकी खुचली मा पौंछण द्यावा।’</i></p><p style="text-align: justify;">मात्र गांव का जीवन ही नहीं उकेरा लेखिका ने, पहाड़ के इतिहास में होने वाले सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए उसे भी यथा स्थान वर्णित किया। पहाड़ ने बहुत जल्दी-जल्दी करवट बदली है, इन सिलवटों का जिक्र है किताब में। संक्षेप में कहूं तो एक इतिहास- बचपन से लेखिका विवाह तक और आज तक का भी। अपनी कथा की अभिव्यक्ति कौशल में सफल है कृति। पठनीय और संग्रहणीय भी।</p><p style="text-align: justify;">मेरी बात अधूरी रह गई बीच में ही। मैं ‘आवाज रोशनी है’ पढ़ रही थी और मेरे दादाजी जी तिबारी में बैठे मुझे धै लगा रहे थे। ऐसा कैसे हो सकता है! इतना साधारणीकरण असंभव! मैंने सीधे लेखिका को फोन लगा दिया कौन हो तुम! (ठीक मनु की तरह) कहां की हो? मेरे ही गांव के पास सिलेत की कथा, और लेखिका भी ढौंडियाल! भई वाह! तभी तो कथा से ककड़ी की सुगंध आ रही है, दही मथने की आवाज आ रही है। ऊंमी भूनने की गर्माहट आ रही है, हद हो गई इसमें तो भट्ट भूनने की भट्यांण भी है।</p><p style="text-align: justify;">अमिता ने गढ़वाली लोकगीत, शब्द खूब प्रयुक्त किए हैं, परन्तु अर्थवत्ता कहीं भी बोझिल नहीं है। उन्नीस अध्याय और एक सौ छत्तीस पृष्ठों में विस्तार पाता बचपन आपको पुस्तक पूरी पढ़ लेने तक जवान नहीं होने देगा। इतनी गारंटी तो अमिता के पक्ष में ले सकती हूं। काव्यांश प्रकाशन के अधिपति प्रबोध उनियाल जी को शुभकामनाएं। श्रेष्ठ साहित्य प्रकाशित कर रहे हैं। </p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><b>समीक्षक : डॉ. सविता मोहन</b></p><p style="text-align: justify;"><b>कहानी संग्रह : आवाज रोशनी है</b></p><p style="text-align: justify;"><b>लेखक : अमिता प्रकाश</b></p><p style="text-align: justify;"><b>प्रकाशक : काव्यांश प्रकाशन, ऋषिकेश</b></p><p style="text-align: justify;"><b>पृष्ठ : 136</b></p><p style="text-align: justify;"><b>मूल्य : 200 रुपये</b></p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><br /></p>Dhanesh Kotharihttp://www.blogger.com/profile/00932460129594239970noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3970556464201003737.post-5036207706299715102023-09-25T12:24:00.000+05:302023-09-25T12:24:01.783+05:30कंडाळी (बिच्छू घास) के अनेकों फायदे<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiQeP6IalVRVsYoHBplKCrQ1h4cdotDoP5PgQ-IJ4ma7S9tRFWS832UknLpeTmcfWAnKYXa4Arb53pPW_CF9ko9FKWyi2Y2RLyQZoF4-JWk0VWW8bVNxH2bl6xsxZTaxNV3aY6nx5wHn1aHlnZftZyknReDqU30Rpfd3C6Aq3dFs0ijuHFCXR-B-zIcjLli/s620/kandali-bichchhu%20ghas.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Urtica dioica" border="0" data-original-height="350" data-original-width="620" height="226" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiQeP6IalVRVsYoHBplKCrQ1h4cdotDoP5PgQ-IJ4ma7S9tRFWS832UknLpeTmcfWAnKYXa4Arb53pPW_CF9ko9FKWyi2Y2RLyQZoF4-JWk0VWW8bVNxH2bl6xsxZTaxNV3aY6nx5wHn1aHlnZftZyknReDqU30Rpfd3C6Aq3dFs0ijuHFCXR-B-zIcjLli/w400-h226/kandali-bichchhu%20ghas.jpg" title="Bichchhu Ghas" width="400" /></a></div><br /><b><br /></b><p></p><p><b>- डॉ. बलबीर सिंह रावत</b></p><p>कंडळी, (Urtica dioica), बिच्छू घास, सिस्नु, सोई, एक तिरस्कृत पौधा, जिसकी ज़िंदा रहने की शक्ति और जिद अति शक्तिशाली है. क्योंकि यह अपने में कई पौष्टिक तत्वों को जमा करने में सक्षम है. हर उस ठंडी आबोहवा में पैदा हो जाता है जहां थोडा बहुत नमी हमेशा रहती है. उत्तराखंड में इसकी बहुलता है और इसे मनुष्य भी खाते हैं. दुधारू पशुओं को भी इसके मुलायम तनों को गहथ, झंगोरा, कौणी, मकई, गेहूं, जौ, मंडुवे के आटे के साथ पका कर पींडा बना कर देते हैं।</p><p>कन्डाळ में जस्ता, तांबा सिलिका, सेलेनियम, लौह, केल्सियम, पोटेसियम, बोरोन, फोस्फोरस खनिज, विटामिन ए, बी1, बी2, बी3, बी5, सी और के होते हैं. ओमेगा 3 और 6 के साथ-साथ कई अन्य पौष्टिक तत्व भी होते हैं. इसकी फोरमिक एसिड से युक्त, अत्यंत पीड़ादायक, आसानी से चुभने वाले, सुईदार रोओं से भरी पत्तियों और डंठलों की स्वसुरक्षा अस्त्र के और इसकी हर जगह उग पाने की खूबी के कारण इसकी खेती नहीं की जाती.</p><p>धबड़ी ठेट पर्वतीय शब्द है, जिसका अर्थ होता है किसी भी हरी सब्जी में आलण डाल कर भात के साथ दाल के स्थान पर खाया जाने वाला भोज्य पदार्थ. हर हरी सब्जी का अपना अलग स्वाद होता है, तो धबड़ी के लिए पालक, पहाड़ी पालक, राई और मेथी तो उगाए जाने वाली सब्जिया हैं. स्वतः उगने वालियों में से कंडली सबसे चहेती है. </p><p>प्रायः इसकी धबड़ी जाड़ों में ही बनती है, क्योंकि तब इसकी नईं कोंपलें बड़ी मुलायम और आसानी से पकने वाली होती हैं. चूंकि इसके रोयें चुभते ही तेजी से जलन पैदा करते हैं, तो इसे तोड़ने के लिए चिमटे और चाकू का और हाथ में मोटे कपड़े का आवरण या दस्ताने का होना जरूरी होता है. </p><p>केवल शीर्ष की मुलायम नईं कोंपलें ही लेनी चाहिए. एक बार के लिए जितना भात पकाया जाता है उसी के हिसाब से कंडली की मात्रा ली जाती है, चार जनों के लिए 350 ग्राम ताजी कंडली काफी रहती है इसे खूब धो लेना चाहिए, क्योंकि जहां से तोडी गई है वहां की धूल और अन्य गन्दगी के कण इस पर जमा हो सकते हैं.</p><p>आलण के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली वस्तुएं नाना प्रकार की होती हैं, जैसे गेहूँ या जौ का आटा, बेसन, गहथ भिगोया हुआ झंगोरा, कौणी, चावलों को पीस कर बनाया गया द्रव्य इत्यादि. इनका अलग-अलग सब्जियों के साथ का जोड़ा होता है. कन्डली के लिए आटा ही उपयुक्त होता है, इसके स्थान पर बेसन भी लिया जा सकता है. इन वस्तुओं की मात्रा, तैयार धबड़ी के ऐच्छिक गाढे पन पर निर्भर करता है, बहुत पतली या गाढी ठीक नहीं होती। </p><p>घोल को पहले से तैयार करके रखना ठीक रहता है। कढाई में सरसों का तेल गरम करके, कटे प्याज को गुलाबी भून के आंच हल्की कर देनी चाहिए। फिर हींग और मसाले और तुरंत कंडली डाल कर और नमक मिर्च मिला कर, थोड़ा चलाकर ढक कर पकाने रखते हैं. 10 मिनट बाद आलण के घोल को डाल कर चलाते रहते हैं ताकि आलण ठीक से मिल जाए. अब इसे चलाते रहना चाहिए जब तक पक न जाए. बस स्वादिष्ट और पौष्टिक धबड़ी तैयार है.</p><p><br /></p><p><b>कंडाळी के अन्य भोजन प्रयोग</b></p><p>सूखी पत्तियों से कपिलु या धपडिः कंडाळी की पतियों और डंठल को सुखाकर रख दिया जाता है और फिर आवश्यकता अनुसार गहथ आदि के साथ फाणु बनाने के काम आता है.</p><p><b>पेस्टो : </b>कंडाळी की पत्तियों को मसाले, नमक, तेल, मूंगफली, चिलगोजा में मिलाकर पीस कर पेस्ट बनाया जाता और किसी भी अन्य खाद्य पदार्थ के साथ मिलाकर खाने के लिए तैयार किया जा सकता है.</p><p><b>सूप :</b> कंडाळी की पत्तियों को पानी में उबाला जाता है फिर छाने हुए पानी में घी, नमक, काली मिर्च व थोड़ा सा आटा डालकर गरम करने से सूप भी बनाया जाता है.</p><p><b>ठंडा पेय : </b> कंडाळी की पत्तियों को चीनी की चासनी में मिलाकर छोड़ देते हैं. फिर कंडाळी की पत्तियों को बाहर निकाल देते हैं। नींबू आदि मिलाकर पानी के साथ ठंडा पेय स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है।</p><p><b>बीयर : </b> कहीं-कहीं कंडाळी की पत्तियों की सहायता से बीयर भी तैयार की जाती है. </p><p><b>कंडाळी का औषधि उपयोग</b></p><p>कंडाळी का विभिन्न देशों में औषधीय उपयोग भी होता है. गढ़वाल-कुमाऊं में शरीर के किसी भाग में सुन्नता हटाने के लिए शरीर पर कंडाळी स्पर्श से कंडाळी का उपयोग होता है. भूत भगाने के लिए भी कंडाळी स्पर्श किया जाता है. हैजा आदि की बीमारी ना हो इसके लिए सिंघाड़ (चौखट) पर कंडाळी/कांड भी बांधा जाता था.</p><p>जर्मनी में गठिया के रोग उपचार में कंडाळी उपयोग होती है। यूरोप में कुछ लोग इसे कई अन्य औषधियों में प्रयोग करते थे. कई देशों में कहा जाता है कि कंडाळी को जेब में रखने से बिजली गिरने का भय नहीं रहता है.</p><p><b>रेशा उपयोग</b></p><p>यूरोप में कंडाळी के डंटल से रेशा निकाला जाता है. जर्मनी में एक कंपनी कंडाळी के रेशों का व्यापार भी करती है. कंडाळी की जड़ों से पीला रंग भी निर्मित होता है. पत्तियों से पीला और हरा मिश्रित रंग भी बनता था. ताम्र युग में कंडाळी रेशा उपयोग प्रचलित था.</p><p><b>कंडाळी का भाषाओं, साहित्य में अलंकार</b></p><p>कंडाळी का भाषा को अलंकृत करने में भी उपयोग होता है। गढ़वाली में कहते हैं, ज्यू बुल्याणु च त्वै तैं कंडाळीन चूटि द्यूं. या तै तैं कंडाळीन चूटो.</p><p>प्राचीन रोमन साहित्य में कंडाळी के मुहावरे मिलते हैं। शेक्सपियर के कई नाटकों में कंडाळी संम्बन्धित मुहावरे प्रयोग हुए हैं. जर्मनी और हंगरी भाषा में कई मुहावरे कंडाळी संबन्धित है. स्कॉट लैंड आदि जगहों में कंडाळी सम्बन्धित लोकगीत पाए जाते हैं. स्कैंडीवियायि लोक साहित्य में कंडाळी सम्बन्धी लोक कथायें मिलती हैं.</p><p><b>सौजन्यः भीष्म कुकरेती (साहित्यकार)</b></p>Dhanesh Kotharihttp://www.blogger.com/profile/00932460129594239970noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3970556464201003737.post-9941820995945458642023-08-28T12:21:00.001+05:302023-08-28T12:23:04.357+05:30 गढ़वाली, कुमाउनी और जौनसारी की शब्दावली में विदेशी भाषाओं के शब्द<p style="text-align: center;"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjMuCxCttk4uQiWe-OIO41hwvEtmarzcfduBDJUCKh3Mao4HunLrgsTyed47rIyIZko_utONv1CTo1w4y5U7D0BSljUIITFZNv4Dk82rhWXJfHDkwwysXXTzkGLCtW_CBkyWbFTJ9WHcry78H7t4bfOkJMJqNE3ndltThzQfIMftiHsFozmPvnU-mbSQm8E/s620/pahadi%20bhasha%20men%20videshi%20shabd.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="350" data-original-width="620" height="226" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjMuCxCttk4uQiWe-OIO41hwvEtmarzcfduBDJUCKh3Mao4HunLrgsTyed47rIyIZko_utONv1CTo1w4y5U7D0BSljUIITFZNv4Dk82rhWXJfHDkwwysXXTzkGLCtW_CBkyWbFTJ9WHcry78H7t4bfOkJMJqNE3ndltThzQfIMftiHsFozmPvnU-mbSQm8E/w400-h226/pahadi%20bhasha%20men%20videshi%20shabd.jpg" width="400" /></a></div><br /><p class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: center;"><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; mso-fareast-font-family: "Kruti Dev 010";"><b>संकलन-
भीष्म कुकरेती</b><o:p></o:p></span></p><p></p><p style="text-align: center;"><b>अरबी और इरानी शब्द </b></p><p><b>अ- अक्षर से शब्द</b></p><p>- अदब , अमरुद , अब्बल , असर , असल , अहम</p><p><br /></p><p><b>आ- अक्षर से शब्द</b></p><p>- आइन्दा , आइना , आखिर , आखिरें, आदि, आदत , आदतन , आगाह , अजमाना , आजाद , आतिशबाजी , आदत , आदमी , आदाब , आदी, आफत , आबकारी , आबरू , आबला , आबाद , आम (कॉमन) , आमदनी , आरजू , आराम , आलम , आलम (नाम) , आलिशान , आवाज , आशिक , आसमान , आसमानी , आसार , आस्तीन , आहिस्ता </p><p><b><br /></b></p><p><b>इ- अक्षर से शब्द </b></p><p>- इन्कलाब , इंतकाम , इंतकाल , इंसान , इन्तजार , इंसान , इकरार, इख्तियार, इजाफा, इज्जत , इजाजत , इत्तेफाक , इत्तेला , इंतजाम , इत्मीनान , इनकार , इमदाद , इम्तिहान, इमरती , इमारत , इरादा , इर्दगिर्द , इलाहाबाद , इल्म (एलम) , इशारा , इश्क , इस्तीफा , इस्तेमाल ,</p><p><br /></p><p><b>ई- अक्षर से शब्द </b></p><p>- ईमान , ईमानदार , ईसा</p><p><br /></p><p><b>उ- अक्षर से शब्द </b></p><p>- उमर, उसूल , उम्दा, उस्तरा , उस्ताद</p><p><br /></p><p><b>ए- अक्षर से शब्द</b></p><p>- एकाएक , एहसान (अहसान) , एतवार (ऐतवार) , एवज , एहसास </p><p><br /></p><p><b>ऐ- अक्षर से शब्द</b></p><p>- ऐतराज , ऐनक , ऐयासी, ऐलान , ऐश</p><p><br /></p><p><b>औ- अक्षर से शब्द</b></p><p>- औकात , औरत , औलाद (आन औलाद ) , औसतन </p><p><br /></p><p><b>क- अक्षर से शब्द</b></p><p>कद्दू , कफन, कमान , कमाल, कसर , कमर , कबूतर , कम , कमीना , कसरत , कतई (परिवर्तित कतै), कतरा (कत्तर) , कत्ल , कद , कदम , कदर/कद्र , कबूल , कब्ज , कब्जा , कयामत (साहित्य म प्रयोग) , करार , करीब , करीबन , कलम , कब्बाली , कसम , कसाई , कसूर , कस्बा , काज , काजी , कतल , कातिल , क़ानून , काबिज , काबिल, काबलियत, कायदा , कायम , किला , किसम, किस्मत , करिश्मा , किस्सा , कीमत , कुरबान, कुल्फी , कौम , किफायत , किफायती , किराया , कुर्सी , कुल, कुहराम , कैंची , कद , कैद , कैदी, कैदखाना , कागज , कागद , कागजात , काफी , कामयाब , कामयाबी , कार , कारखाना , कारगर , कारोबार , काश , कि, किताब , कुदरत , कूच (कूच कर ग्याई) , कुश्ती , कोर , कोशिस, किशमिश</p><p><br /></p><p><b> ख- अक्षर से शब्द</b></p><p>- खतरनाक, खंजर, खजाना , खत , खफा , खबर , ख़याल , खरगोश , खराश , खरीद , खर्च , खसरा , ख़ाक , खाका , खातिर , खानदान , खाना , खामी , खामोश , खाली , खुद ,खुदकशी खुदा , खुश , खुशबु , खुशहाल , खून , खूब , खूबसूरत , खूबी , खैर , खौफ , खैरियत , ख्वाब , खीसा/कीसा , खलास, खत्म , खिदमत , खिलाफ, खुलासा , खुफिया ,</p><p><br /></p><p><b>ग- अक्षर से शब्द</b></p><p>- गन्दगी, गंदा , गज , गजब , गर्दन , गर्दिश , गर्मी , गवाह , गस्त , गजब , गद्दार , गनीमत , गम , गरारा , गरीबी , गलत , गलती , गुस्सा , गुस्सा , गुरुर , गैर, गैर (प्रत्यय प्रयोग) गिरफ्तार , गिरफ्तारी , गिरह, गिलास , गुंजायश , गुजर , गुजरना , गुजारा, गुनाह , गम , गुमनाम , गुमसुदा , गुलाब , गुलबन्द , गोता</p><p><br /></p><p><b>च- अक्षर से शब्द</b></p><p>- चमच , चमचा , चरखा , चरबी, चश्मदीद , चराग , चारागाह (साहित्य) , चाक़ू , चादर , चाबुक , चाय , चायखाना , चाशनी , चिराग , चिलम , चीख , चीज , चुकुन्दर , चूजा , चेहरा , चोगा .</p><p><br /></p><p><b>ज- अक्षर से शब्द</b></p><p>- जंग , जंगी , जगह , जनाजा , जी , जमा , जलवा , जल्लाद , जलील , जवानी , जश्न , जज्बा , जहाज , जंजीर , जहान, जनाना , जबर्दस्त , जबान , जबानी , जफत , जमींदार , जमीन , जर , जरा , जरूरत , जलूस /जुलुस , जार , जात , जिन्दगी , जिन्दा , जिन्दाबाद , जिकर, जिद्द , जिम्मा , जिम्मेदार , जिला , जिल्द , जिस्म , जीना , जीरा , जुकाम , जुल्फ , जोर , जोरदार , जादू , जानवर , जान , जामा , जाली , जासूस , जुर्बाना/ जुर्माना , जेब , जोश , जिगर , जलवा , जल्लाद , जल्द , जबाब , जमानत , जमीर , ज्यादा , जादा</p><p><br /></p><p><b>त- अक्षर से शब्द</b></p><p>- तंग , तंगी , तन्दुरस्त , तम्बाकू (पुर्तगाली शब्द) , तम्बू , तकदीर , तकरीबन , तकसीम , तकिया , तख्त , तजुर्बा , तनखा, तपेदिक , तब्दील , तबादला , तबाही , तबियत , तमगा , तमन्ना, तमीज , तर , तरक्की , तरतीब , तरकीब , तरफदार , तरबूज , तराजू , तरोताजा , तर्ज , तलाक , तर्रार तश्तरी , तस्मा , तसला , तसदीक , तस्बीर , तह , तहसील , ताउम्र , ताकत , ताकि , ताज , ताजपोशी , तादाद , तार , तारीख , तालाब , ताल्लुक , तीर , तीरंदाज, तुक्का , तर्क , तूफ़ान , तेज , तेज़ाब , तैयार , तोप, तोहफा , तोती , तोपची. तलास , तहजीब , तिजारत , ताबीज ,</p><p><br /></p><p><b>द- अक्षर से शब्द</b></p><p>- दंग, दंगल , दंगा , दफ्तर , दफा , दम, दर, दरअसल , दरखास्त , दरबार , दरवाजा , दरमियान, दरवान , दरोगा , दर्ज , दर्जी , दर्जा , दर्द , दलाल , दलील , दवात , दस्तखत , दस्तावेज , दस्ता , दहलीज , दाखिल , दाग , दान , दवा , दारु , दिक्कत , दिल , दिलचस्प , दिलासा , दिलेरी , दीवान , दीवानी , दूर , दूरबीन , दुकान, दुरस्त , दुश्मन , देर , दोस्त , दोस्ती , दौर , दौलत , दौलतमन्द दावत , दीन, दुआ , दुनिया</p><p><br /></p><p><b>न- अक्षर से शब्द</b></p><p>- नकल , नकद , नकाब , नक्काशी , नक्सा , नखरा , नगाड़ा, नफा , नजर , नतीजा , नदारद , नफरत , नमक , नमूना ,नर्म , नबाब , नबाब जादा , नशा , नसीब , नसीहत , नश्ल , नहर, नाइंसाफी , नाखून , नाज , नाजुक , नाजयाज , नादां , नामी-गिरामी , नामो नारा , नाल , निशान , नायब , नाराजगी , नाश्ता , निगरानी , निवाला , निसान , नीयत , नीलाम , नुमैश , नुक्सान , नौकर , नौकरी , नौबत</p><p><br /></p><p><b>प- अक्षर से शब्द</b></p><p>- पंजा , परगना , परचम , परवरिस , परवाह , परेशान , पर्दा , पलीता , पहरेदार , पहलवान , पाजामा , पाबंदी , पारस , पुख्ता , पुल , पुदीना , पुर्जा , पुल , पेच , पेचकश , पेश , पेशा, पैदाइश , प्याज , प्याला , प्यादा , पैरोकार ,</p><p><br /></p><p><b>फ- अक्षर से शब्द</b></p><p>- फरक , फरमान , फरार , फरेब , फर्ज , फर्जी , फर्श , फसल , फंसना , फायदा , फासला , फिकर , फिराक , फीसद (प्रति) , फुरसत, फेहरस्त , फैसला , फौज , फ़ौरन , फौलाद</p><p><br /></p><p><b>ब- अक्षर से शब्द</b></p><p>- बंद , बन्दर , बंदरगा , बन्दा , बंदी , बन्दोबस्त , बगल , बगैर , बजाय , बतौर , बदनाम , बदमाश , बदल , बदलना , बदला , बदसुरत , बदौलत , बबर , बयान , बरकत , बरकरार , बरामद , बर्खास्त , बर्दाश्त , बरफ , बर्फानी , बल्कि , बहस , बबासीर , बस्ता , बहार , बाकायदा , बाकी , बाग़ , बजार , बादशाह , बादाम , बाबत , बारीक , बारूद , बारूदखाना , बाशिंदा , बाबर्ची , बिलकुल , बीबी , बीमार , बुखार , बुखारा , बुजदिल , बुजुर्ग , बुनियाद , बुलंद , बू , बेईमान , बेकार , बेगुनाह , बेजुबान, बेदखल , बेमेल , बेरुखी , बेलचा , बेहतर , </p><p><br /></p><p><b>म- अक्षर से शब्द</b></p><p>- मंजिल, मंशा , मकसद , मकान , मक्कार , मखमल , मगर , मजबूर , मजदूर , मजदूरी , मजबूत , मगज , मजा , मजाक , मतलब , मतलबी , मदद , मददगार , मन , मनहूस , मरम्मत , मरीज , मरहम, मरज, मरीज , मर्तबा , मर्द , मलाल , मशहूर , मसला , मशविरा , मसाला , मस्ताना , मस्ती , महकमा , महल , मामला , महारत , महावरेदार , बदौलत , मादा , माफ़ , माफी , माल , मालिक / मालिकाना , मालिश , मासूम , माह , माहिर , मिजाज , मिल्कियत , मिन्नत , मिंया , मिर्जई , मीनार , मुंशी , मुकदमा , मुवावजा , मुक्कदर , मुकरर , मुगल , मुजरिम , मुताबिक़ , मुद्दा, मुद्दई मुनीम , मुर्दा , मुर्गा , मुर्दानी, मुल्क , मुलाक़ात , मुलजिम , मुश्किल , मुसाफिर ,मुसीबत , मेज , मेहनत , मेहमान , मेहरबान , मोम, मोर्चा , मौजूद , मौसम , म्यान , मोहलत , मौजूद , मौत , </p><p><br /></p><p><b>य- अक्षर से शब्द</b></p><p>- यतीम , यकीन , याद , यादास्त , यानी , यार , </p><p><br /></p><p><b>र- अक्षर से शब्द</b></p><p>- रंगीन , रंज , रईस , रकबा , रद्द, रफू , रफ्तार , रवाना , रवया, रस्म , राज , राजी , रान , राय , रिआया , रियासत , रिवाज , रिश्ता , रिशवत , रिहा , रुख , रुझान , रेजगारी , रेशम , रोजगार , रोजाना , रौशनी ,</p><p><br /></p><p><b>ल- अक्षर से शब्द</b></p><p>- लफंगा , लहजा , लायक , लाल , लाला, लाजिम , लाश , लिफाफा , लिबास , लेकिन</p><p><br /></p><p><b>व- अक्षर से शब्द</b></p><p>- वकील , वगैरह , वजीर , वफा , वर्जिस , वसीहत , वहम , वादा, वारिस , विलायत , विरासत , वजह ,</p><p><br /></p><p><b>श- अक्षर से शब्द</b></p><p>- शक , शक्ल , शब्द , शर्मिन्दा , शराब , शर्त , शर्म , शहजादा , शलगम , शहद , शहर , शादी, शानदार , शाबाश , शामिल , शाम , शाल , शाह , शिकस्त , शुबहा, शिकार , शीशा , शीशी , शुक्रिया , शुरू , शुबा (शक्क) , शुदा , शुक्रगुजार , शेर , शेरनी , शैतान , शैतानी , शौक</p><p><br /></p><p><b>स- अक्षर से शब्द</b></p><p>- संग , सन्दूक , सकता , सख्त , सजा , सजा ए मौत , सदरी , सन, सफर , सफेद , सबूत , सब्जी , सब्र , समोसा , सरदार , सरहद , सर्दी , सलवार , सलाम , सलामी , सलाह , सलाहकार , सलीका , सवाल , सस्ता , सहारा , साजिस , सादा , साफ़, साबित , साल , सालाना , साहिब , सिक्का , सिफत , सिफारिस , सुरमा , सुपुर्द , सुबह (सुबेर) , सुलह , सुल्तान , सुस्त , सूद , सूरत , सेहत , सौदा , सैर , स्याही</p><p><br /></p><p><b>ह- अक्षर से शब्द</b></p><p>- हंगामा , हक्क , हकीम, हजार , हजम , हद्द , हफ्ता , हम , हमला , हमशकल , हर , हरकत , हरगिज , हराम , हर्ज , हराम , हल्का , हलवा , हवलदार , हवेली , हवा , हवाला , हाल , हालात , हिन्द , हिंदी , हिकमत , हिज्जा , हिम्मत , हकूमत , हुक्म , हुक्मरान , हजूर , हैजा , हैसियत , होशियार , हौसला , हैवान</p><p><br /></p><p style="text-align: center;"><b>कुमाउंनी व गढवाली भाषाओं में तुर्की शब्द</b></p><p style="text-align: left;">- कैंची , काबू , कुली , लाश , चक्कू , दोस्त , दुश्मन , मुसाफिर , इशारा</p><p><br /></p><p style="text-align: center;"><b>कुमाउंनी व गढवाली भाषाओं में फ्रांसिसी शब्द</b></p><p>- अकादमी . अटैची , आराम , कारतूस , किलो , किलोमीटर , गिरफ्तार , पतलून , बटालियन , ब्यूरो , मैडम , रंगरूट , रेस्तरां , रेस्टोरेंट , मील ,</p><p><br /></p><p style="text-align: center;"><b>गढ़वाली, कुमाउंनी भाषाओं में पुर्तगाली शब्द</b></p><p> - अंग्रेज , अंग्रेजी , अक्टूबर, अगस्त , अनन्नास, अप्रैल , अलमारी , अस्पताल, आया , आलपिन, इस्त्री , इस्पात , कमरा , काज , काजू , गिरिजा , गोवा , गोभी , चाभी, चाबी , जंगला , जनवरी , जापान , जुलाई , जून , तौलिया , दिसम्बर, नवम्बर , नीलाम , परात , पिस्तौल , पीपा , पुर्तगाल , फरवरी , फालतू , फीता ,बम्बई , बरामदा , बाल्टी , मई , मानसून , मार्च , मिस्त्री , मील , मौसंबी , मेज , संतरा , साबुन , साया , साबू , सितम्बर</p><p><br /></p><p style="text-align: center;"><b>अंग्रेजी से लिए गए शब्द, जो बदल गए</b></p><p><br /></p><p>अंग्रेजी शब्द ............................... बदले शब्द</p><p>डजन ........................................... दर्जन</p><p>ट्रेजरी ........................................... तिजोरी</p><p>मैच ........................................... .....माचिस</p><p>डॉक्टर ........................................... डागधर</p><p>बुगुल ........................................... ..बिगुल</p><p>गोडाउन ....................................... गुदाम</p><p>टैंक ........................................... ...टंकी</p><p>रिक्रुट ........................................... रंगरूट</p><p>बौम्ब ........................................... बम</p><p>बौक्स ......................................... बक्सा</p><p>क्लास ....................................... किलास</p><p><br /></p><p style="text-align: center;"><b>अन्य देशों से लिए गए शब्द</b></p><p style="text-align: left;">चाय - चीन</p><p>लीची - चीन</p><p>रिक्सा - जापान</p><p><br /></p><p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi2MJza_Iy1-hXGXj-jZA-f-luklr1wkrvm9J6arluDR2DFuc-b2gPq3PIQLdCq8OAXgoyxTfvHJc1NQxCaRNRWUBPC5ioHnoQXLI9iCHXtXKG7p9sVxgFKf2GnSnxHXL-Xyv0_Ue105ROovfH0toKTgicNCUOckeC68vkW9cxRW_uNFKuoyoyDZpjWy8Nt/s480/Bhisham%20Kukreti.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Bhishm Kukreti" border="0" data-original-height="480" data-original-width="480" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi2MJza_Iy1-hXGXj-jZA-f-luklr1wkrvm9J6arluDR2DFuc-b2gPq3PIQLdCq8OAXgoyxTfvHJc1NQxCaRNRWUBPC5ioHnoQXLI9iCHXtXKG7p9sVxgFKf2GnSnxHXL-Xyv0_Ue105ROovfH0toKTgicNCUOckeC68vkW9cxRW_uNFKuoyoyDZpjWy8Nt/w200-h200/Bhisham%20Kukreti.jpg" width="200" /></a></div><p></p><p style="text-align: center;"><b>(लेखक श्री भीष्म कुकरेती उत्तराखंड के जाने माने साहित्यकारों में शुमार हैं)</b></p><div><br /></div>Dhanesh Kotharihttp://www.blogger.com/profile/00932460129594239970noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3970556464201003737.post-59079177512919911812022-08-06T11:51:00.000+05:302022-08-06T11:51:34.267+05:30‘इमोशन’ की डोर से बंधी ‘खैरी का दिन’ (Garhwali Film Review)<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjHB8TPgZ0lWg2YtZdiswdCr1cZzZ5zkBKu7JR7-v-5Mr1cevX9dy2HyEc0MJvyj1cJYkraFYmkyHROb9o6RorI55QzwehPchf5VG1MPTTJmrPULcvfRUsD3SSt2DC8BQ42CcHi2gcflJULEfQ-hJdk1i0utPrLkkEBMF11ZJkXWOE637RaCCZzYnrXLg/s800/khairi%20ka%20din-garhwali%20fime%2001.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="800" data-original-width="744" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjHB8TPgZ0lWg2YtZdiswdCr1cZzZ5zkBKu7JR7-v-5Mr1cevX9dy2HyEc0MJvyj1cJYkraFYmkyHROb9o6RorI55QzwehPchf5VG1MPTTJmrPULcvfRUsD3SSt2DC8BQ42CcHi2gcflJULEfQ-hJdk1i0utPrLkkEBMF11ZJkXWOE637RaCCZzYnrXLg/s320/khairi%20ka%20din-garhwali%20fime%2001.jpg" width="298" /></a></div><p></p><p><b> <span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">- </span><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">धनेश कोठारी</span></b></p>
<p align="left" class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: left;"><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt; mso-ansi-font-weight: bold; mso-bidi-language: HI;">भारतीय सिनेमा के हर दौर में सौतेले भाई के बलिदान की कहानियां रुपहले पर्दे
पर अवतरित होती रही हैं। हालिया रिलीज गढ़वाली फीचर </span><b style="mso-bidi-font-weight: normal;"><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">(Garhwali Feature Film) </span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt; mso-ansi-font-weight: bold; mso-bidi-language: HI;">फिल्म </span><b style="mso-bidi-font-weight: normal;"><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">‘</span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt; mso-ansi-font-weight: bold; mso-bidi-language: HI;">खैरी का दिन</span><b style="mso-bidi-font-weight: normal;"><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">’ (Khairi
Ka Din) </span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt; mso-ansi-font-weight: bold; mso-bidi-language: HI;">का कथानक भी ऐसे ही एक तानेबाने पर
बुनी गई है। जिसमें नायक से लेकर खलनायक तक हर कोई अपने हिस्से की </span><b style="mso-bidi-font-weight: normal;"><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">‘</span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt; mso-ansi-font-weight: bold; mso-bidi-language: HI;">खैरि</span><b style="mso-bidi-font-weight: normal;"><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">’ (</span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt; mso-ansi-font-weight: bold; mso-bidi-language: HI;">दर्द) को पर्दे पर निभाता है</span><b style="mso-bidi-font-weight: normal;"><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">, </span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt; mso-ansi-font-weight: bold; mso-bidi-language: HI;">और क्लाईमेक्स में यही </span><b style="mso-bidi-font-weight: normal;"><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">‘</span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt; mso-ansi-font-weight: bold; mso-bidi-language: HI;">खैरि</span><b style="mso-bidi-font-weight: normal;"><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">’ </span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt; mso-ansi-font-weight: bold; mso-bidi-language: HI;">दर्शकों को उनकी आंखें भिगोकर थियेटर से लौटाती है।
</span><b style="mso-bidi-font-weight: normal;"><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></b></p>
<p align="left" class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: left;"><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">माहेश्वरी फिल्मस </span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">(Maheshwari Films) </span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">के बैनर पर डीएस पंवार कृत और अशोक चौहान </span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">‘</span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">आशु</span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">’ </span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">द्वारा निर्देशित फिल्म </span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">‘</span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">खैरी का दिन</span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">’ </span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">एक देवस्थल पर नायक कुलदीप (राजेश मालगुड़ी) के सवालों
से शुरू होकर फ्लैश बैक में चली जाती है। जहां सौतेली मां की मौत के बाद तीन भाई-बहनों
की जिम्मेदारी कुलदीप पहले खुद और फिर संयोगवश उसकी पत्नी बनी दीपा (गीता उनियाल) मिलकर
निभाते है। उनके त्याग की बुनियाद पर सौतेले भाई-बहन बड़े और कामयाब होते हैं।</span></p>
<p align="left" class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: left;"><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">वहीं</span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">, </span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">विलेन किरतु प्रधान (रमेश रावत) के कारनामों से तंग
गांववासी चुनाव में कुलदीप को प्रधान चुनते हैं। जिसके बाद कुलदीप के खिलाफ शुरू होते
हैं किरतु के षडयंत्र। मंझले भाई प्रद्युम्न (पुरूषोत्तम जेठुड़ी) की नई नवेली दुल्हन
(पूजा काला) परिवार में फूट डालने के लिए उसका हथियार बनती है। रही सही कसर सबसे छोटा
भाई अरुण (रणवीर चौहान) मंदिर में शादी के बाद दुल्हन (शिवांगी देवली) को घर लाकर पूरी
कर देता है। बहस के दौरान अरुण बंटवारा मांगता है</span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">, </span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">तो कुलदीप बीमार पत्नी दीपा को लेकर घर छोड़ देता है।
बहन अरुणा (निशा भंडारी) भी अरुण को गरियाते हुए बड़े भाई के साथ चल देती है।</span></p>
<p align="left" class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: left;"><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">अस्पताल में भर्ती दीपा के इलाज के लिए कुलदीप जब भाईयों से मदद मांगता है</span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">, </span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">तो बदले में उसे सिर्फ बहाने मिलते हैं। दीपा की मौत कुलदीप को तोड़ देती है।
यहीं पर फिल्म फ्लैश बैक से वापस लौट आती है। यहां कुलदीप को देवता से जवाब तो नहीं
मिलते</span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">, </span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">मगर पश्चाताप से भरा परिवार वहां जरूर साथ दिखता है।
हालांकि तब देर हो चुकी होती है और एक हादसा कुलदीप को उनसे जुदा कर देता है।</span></p>
<p align="left" class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: left;"><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">फिल्म की स्टोरी</span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">, </span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">स्क्रिप्ट</span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">, </span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">डायलॉग सब निर्देशक अशोक चौहान ने रचे हैं। फिल्म का
सबसे स्ट्रॉन्ग प्वाइंट है </span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">‘</span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">इमोशन</span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">’</span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">। जो कि दर्शकों को अपील भी करता है। बाकी </span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">‘</span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">स्क्रीनप्ले</span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">’ </span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">अधिकांश जगह कट टू कट सिर्फ </span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">‘</span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">स्विच</span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">’ </span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">होता दिखता है। दृश्य कई बार अधूरे में ही कहानी के
नए सिरे को पकड़ लेते हैं। फिल्म जहां-जहां स्विच करती है</span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">, </span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">दर्शक वहां स्टोरी को खुद </span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">‘</span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">अंडरस्टूड</span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">’ </span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">कर आगे बढ़ा देते हैं। जैसे कि नायिका के विवाह के यकायक
बदलते सीन</span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">, </span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">कुलदीप की बिना परंपराओं की शादी</span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">, </span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">एक फाइट सीन में प्रद्युम्न का घायल होना और अगले ही दृश्य में ठीक दिखना</span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">, </span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">अरुण का शादी कर घर पहुंचना और आंगन में ही सारे फैसले हो जाना... आदि।</span></p>
<p align="left" class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: left;"><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">फिल्म का सामयिक गीत </span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">‘</span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">किरतु परधान अब खुलली तेरि पोल..</span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">’ </span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">दर्शकों को याद रह सकता है। बाकी जुबां पर शायद ही चढ़ें। होली के गीत </span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">‘</span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">रंगूं कि मचि छरोळ...</span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">’ </span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">फिल्मांकन के लिहाज से कुछ अच्छा लगता है। डायलॉग और
डिलीवरी में शिद्दत की कमी महसूस होती है। कलाकारों द्वारा अपने ही </span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">‘</span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">डायलेक्ट्स</span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">’ </span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">में डायलॉग डिलीवरी भाषायी विविधता के लिहाज से काबिले
तारीफ है।</span></p>
<p align="left" class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: left;"><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">फिल्म के किरदारों में निशा भंडारी</span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">, </span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">रवि ममगाईं</span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">, </span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">गोकुल पंवार खासा प्रभावित करते हैं। राजेश मालगुड़ी</span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">, </span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">गीता उनियाल</span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">, </span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">पुरूषोत्तम जेठुड़ी की अदाकारी औसत रही है। रणवीर चौहान
के हिस्से ज्यादा मौका नहीं आया। विलेन रमेश रावत इस फिल्म में अपनी पहली फिल्म </span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">‘</span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">भूली ऐ भूली</span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">’ </span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">जैसा असर नहीं छोड़ सके।</span></p>
<p align="left" class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: left;"><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">फिल्म की शुरूआती रील का धुंधलापन पेशेवर नजरिए से अच्छा नहीं माना जा सकता।
टिहरी झील और उसके आसपास के अलावा सितोनस्यूं कोट ब्लॉक के गांव धनकुर में फिल्माकन
बेहतर दिखा। फिल्म में महंगी बाइक</span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">, </span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">रेस्टोरेंट</span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">, </span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">कुछ शहरी कल्चर आदि का तड़का बुरा नहीं लगता। मगर</span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">, </span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">विवाहित महिला किरदारों का हर सीन में गुलाबंद (गले का गहना) पहने रहना स्क्रीनप्ले
और निर्देशन के सेंस को सवालों में ला देता है।</span></p>
<p align="left" class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: left;"><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">सो</span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">, ‘</span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">इमोशन</span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">’ </span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">की डोर पर बंधी </span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">‘</span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">खैरी का दिन</span><b><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">’ </span></b><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">को तकनीकी खामियों के लिहाज से इतर देखें तो पारिवारिक
पृष्ठभूमि की ये फिल्म दर्शकों को थियेटर तक जरूर खींच रही है। इसकी कामयाबी भविष्य
में निश्चित ही निर्माताओं को पारिवारिक कहानियों पर फिल्म बनाने के लिए उत्साहित करेगी।
जो कि आंचलिक सिनेमा के लिए अच्छी बात कही जा सकती है।</span></p>Dhanesh Kotharihttp://www.blogger.com/profile/00932460129594239970noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3970556464201003737.post-3054171360526398012022-06-27T11:29:00.002+05:302022-06-27T11:29:44.041+05:30जसपुर के बहुगुणाओं का ज्योतिष का गढ़वाली टीका साहित्य- 3<p><b></b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><b><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgijzzQTYRYYFKKy-RXdugwTYFNabvs6RH2HGwwHJjSl1IzWvNiLaemDN03zmMdLiDdVG29xqWWCjf1WcJnNDsrySavzifBBNFaG7WXGUO5aHx-KQ_gka3j-wzWhDSiKv5MCavy0F5B9BDvK57_w89e6-2MQR8ZQBLo2T5nZ2wq1AtKGmJ1MgvFJTA8aw/s800/uttarakhand%20teeka%20sahitya%201.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="661" data-original-width="800" height="264" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgijzzQTYRYYFKKy-RXdugwTYFNabvs6RH2HGwwHJjSl1IzWvNiLaemDN03zmMdLiDdVG29xqWWCjf1WcJnNDsrySavzifBBNFaG7WXGUO5aHx-KQ_gka3j-wzWhDSiKv5MCavy0F5B9BDvK57_w89e6-2MQR8ZQBLo2T5nZ2wq1AtKGmJ1MgvFJTA8aw/s320/uttarakhand%20teeka%20sahitya%201.jpg" width="320" /></a></b></div><b><br /> </b><p></p><p><b><span style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">• </span><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">भीष्म कुकरेती</span></b></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">यह लेखक हिंदी टीकाओं से गढ़वाली शब्दों की खोज कर रहा था कि
उसे कुछ पंक्तियों के बाद गढ़वाली पक्तियों की टीका भी मिली। याने की पहले हिंदी
में टीका फिर गढ़वाली और फिर हिंदी में। इस भाग में भी ग्रहों की गणना करने की विधि
और फलादेश की टीका है।</span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;"><b>गढ़वाली टीका का भाग इस प्रकार है -</b></span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">।। भाषालिख्यते ।। प्रथम भूजबोल्याजांद ।। पैले २१२९<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>अंशतौ भुज होयु होयो जषते ३ राश होया तव ६
राशिमा घटाणो याने ६। ०। ०। ० । मा घटाणो ५ राश २९ अंश तक जषते फिर ६। ७। ८ राश
होयातो ६। ०। ०। ० ।<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>मा उलटा घटाणो ९ राश
उप्र १२। ०। ०। ० मा घटाणो।<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सो भुज होयो
ना सूर्य को मन्दो च्च ७८ अंश को होयो तो सो ३० न चढ़णो।। अथ सूर्य स्फष्ट ।। पैलो
सूर्य मध्य माउ को २।<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>१८।<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>०।<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>०
मा घटाणो। तव तैको नामकेंद्र होयो २ राश से केंद्र अधिक होवूत भुज करनो तव भुजकी
राश ३० न गुणनि तलांक जीउणा तव ९ न भाग लीणो ३ अंक पौणा . तव सो तीन अंक। २०। ०। ०
०। मा घटाणो। </span><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">...</span><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">तव इन तरह से गोमूत्री करणी तव जो ९ उन मौगपाय सो दुई जगा रखणा सो गो मूत्री
काका उपर रखणो विष। २० मा घटायूं जो छ सो नीचे रखणो तव आपस मा गुणी देणा.सो ६० से
उपर चंद्रांद जाण आखीरमा ३ तीन पौणा सो तीन ३ अंक ५७ मा घटाण तव ऊं अंक को
लिप्तापिंड गणणो सो भाजक होयो. तव जो ९ से भाग पायुं जो दूसरी रख्युं छ तैको भी
लिप्तापिंड वनांणो सोभाज्य होयो भाज्य मा भाजक को भाग पाणो. सो ३ अंक पाणा तव जो
भागपाय सो सूर्य को मध्यमामा मेषादौ धन तुलादौ ऋण देखिक दिणो सो प्रातः काल स्फष्ट
होयो. ऋण घटाणो समझणो धन जोड़णो होयो ... ८</span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">इसके बाद हिंदी टीका शुरू हो जाती है। </span><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">इस टीका और पहले की टीकाओं में कुछ अंतर</span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">यह टीका शायद १९०० ईश्वी के करीब है।<span style="mso-spacerun: yes;"> </span></span><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">पहली दो टीकाओं में श्रीनगरया गढ़वाली का प्रभाव है जैसे
लेणो</span><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">,
</span><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">देणो किन्तु इस टीका में ढांगू में प्रचलित लीणो शब्द आया
है।</span><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">Prose
of Nineteenth Century from Garhwal</span></p><p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi0j4nkQWF7YpUOJ9Vmw32aPNzBu0bHAlWpQi5L0R6stPMlcAb561OSxTC-mAUJ_xZAsZmoyjjO-w391e7a5_8U1MJiqeA2rXYoGoJDegTVSdCHDGjKHnyTFVFg5Cu66fp5kXvlmjaBM7tdcc08DqPrtA-PfUT0SsHYHqCEHkmOWn5xWZfCSuUdwdamQA/s480/Bhisham%20Kukreti.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="480" data-original-width="480" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi0j4nkQWF7YpUOJ9Vmw32aPNzBu0bHAlWpQi5L0R6stPMlcAb561OSxTC-mAUJ_xZAsZmoyjjO-w391e7a5_8U1MJiqeA2rXYoGoJDegTVSdCHDGjKHnyTFVFg5Cu66fp5kXvlmjaBM7tdcc08DqPrtA-PfUT0SsHYHqCEHkmOWn5xWZfCSuUdwdamQA/w200-h200/Bhisham%20Kukreti.jpg" width="200" /></a></div><br /><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;"><br /></span><p></p>Dhanesh Kotharihttp://www.blogger.com/profile/00932460129594239970noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3970556464201003737.post-68612804743700930822022-06-26T11:07:00.000+05:302022-06-26T11:07:11.533+05:30जसपुर के बहुगुणाओं का संस्कृत से गढ़वाली टीका साहित्य में योगदान- 2<div><b><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgYv6LMigpx-X5ia63KTkUiG7HSJijWs13TmP787byJwC8oVoSGkNVUXkpEROtM4JWAQoLOfvUGCMnrBX9BbthQPLLKR6RP2dvTrHw0vx7GbhuSoKY0HwZEORa_WsFx9OEu8BQ69033DcG5FCMmcKtGOlFL6reMOSmlFSc7jiCvDNDL-1HaN9FtJE41Og/s800/Bahguna%201%20%20teeka%20jaspur.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="419" data-original-width="800" height="168" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgYv6LMigpx-X5ia63KTkUiG7HSJijWs13TmP787byJwC8oVoSGkNVUXkpEROtM4JWAQoLOfvUGCMnrBX9BbthQPLLKR6RP2dvTrHw0vx7GbhuSoKY0HwZEORa_WsFx9OEu8BQ69033DcG5FCMmcKtGOlFL6reMOSmlFSc7jiCvDNDL-1HaN9FtJE41Og/s320/Bahguna%201%20%20teeka%20jaspur.jpg" width="320" /></a></div><br /><span style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;"><br /></span></b></div><div><b><span style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">• </span><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">भीष्म कुकरेती </span></b></div>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">अन्य दो गढ़वाली में टीका के पृष्ठ जो मुझे प्राप्त हुए उनसे
लगता है कि ये पृष्ठ किसी विषय के बीच के अंश हैं और उपरोक्त दो पृष्ठों के बाद के
लिखे गए हैं। कारण है स्याही अभी भी ताज़ी हैं और लाल स्याही से बनाए गए दोनों ओर
दो दो हाशिए हैं। प्रथम पृष्ठ में दाहिने हाशिए के अंदर वर्टिकली श्री गणेशाय नमः
और सीधा गोरी लिखा है। नीचे साकलं और गोरी लिखा है। </span><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;"> </span><span style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;"><b>इबारत इस प्रकार है -</b></span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">ग लेणो फिर शेष ३०
न भाग लेणो फिर शेष ६० न गुणणो टीवी ता को धक (अस्पष्ट) व क कर्नो अपणी
दशान गुणणो योग नी दशा की तरह रीत र्नी ।। </span><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">2</span><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> ।। अष्टो तरि
दशा होवू : अथ काल चक्री दशा : अ । आ । ध । श । मृ । सुर्य्य दशा अ । कृ । पु ।
श्ले । ह। मूल पू। र्भा । भौम दशा उः षा। रे । भ । ति । चि । शनि दशाः पू। षा ।
स्वा । शुक्र दशा उत्र। भा । चन्द्र दशाः रो । म । वि । श्र । गुरु दशा = पु । फा । उ । फा । ज्ये. वुध दशाः काल चक्री जै न
क्षेत्र को भुक्त हो वू तैमा १५ घटाणो नी घट त रण देणो जैकी दशा होवू तै तै गुणणो
१५ न भाग लेणो शेष १२ न गुणों १५ ना भाग लेणो प्रथम दशा गो छ ढीस तै का वर्ष घटाण
स्या प्रथम दशा होवू दसौं का वर्ष जोड़ दो जांणो काल चक्री दशा होवू : ।। ३ ।। अथ
स्वर दशा कि भाकाः साकल दो २ जगा धर्नो एक जगा २२ न गुणणो ४२ ६१ जोड़णो १८७५ न भाग
लेणो सो भाग पृथक जो साकाल धरयूं छ तैमा जोड़णो ६० न नष्ट कर्नो शेष जो छ सम्ब्त्सर
होवू तै सम्ब्त्सर मा ५ न भाग लेणो शेष । वाल १ कुमार २ युवा ३ वृद्धि ४ मृति स्वर
दशा होवू जैमा १८७५ को भाग लेय सो सेष अंक १२ न गुणणो १८७५ न भाग लेणो फिर शेष ३०
न गुणणो १८७५ न भाग लेणो फिर सेष ६० न गुणणो १८७५ को भाग लेणो तैमा टुप्प स्फुट
युक्त कर्नो ढीस वर्सुमा १२ जोड़ दो जाणो स्यास्वर दशा होवू ।। ४ ।।</span><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">अथ कलुयुग दशा की भाशाः जन्म नक्षेत्र मा ७ जोड़नो ९ न नष्ट
कर्नो शेष जतना रवू गर्भ १ जन्म २ उत्स्व ३ काम ४ क्रोध ५ लोभ ६ माह ७ अहंकार ८
मृत्यु ९ माह दशा का धक्र वक युंका वर्षुन गुणणो फेर वर्ष जोड़ दो जांणो कलियुग दशा
होवू ।। ५ ।।</span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">(</span><span lang="HI" style="font-family: "Sanskrit Text", "serif"; font-size: 12pt;">आभार- जसपुर के समस्त बहुगुणा परिवार विशेषतः श्री शत्रुघ्न प्रसाद पुत्र स्व.
पंडित खिमानन्द बहुगुणा )</span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;">Prose
of Nineteenth Century from Garhwal<o:p></o:p></span></p><p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhIKbVWZ72ypNG4kgXWFOuCB5LEPmQDYtjE0Wvnr7UdYTDlc4ly6DbkeyjLzXzwfGsrwgBitsBXSBoiQ8I5YdMiLPKuJlwKLdv5dYBNx5Z_pkZtpWGvkxfyZYYqPKyG88YAwLczMC-wBPkuUsjxmSBLdaFY1r_a-xqEcLQnnvnWqP7Vr3jiGAITuz6ZxQ/s480/Bhisham%20Kukreti.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="480" data-original-width="480" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhIKbVWZ72ypNG4kgXWFOuCB5LEPmQDYtjE0Wvnr7UdYTDlc4ly6DbkeyjLzXzwfGsrwgBitsBXSBoiQ8I5YdMiLPKuJlwKLdv5dYBNx5Z_pkZtpWGvkxfyZYYqPKyG88YAwLczMC-wBPkuUsjxmSBLdaFY1r_a-xqEcLQnnvnWqP7Vr3jiGAITuz6ZxQ/w200-h200/Bhisham%20Kukreti.jpg" width="200" /></a></div><br /><span style="font-family: "Sanskrit Text","serif"; font-size: 12.0pt;"><br /></span><p></p>
Dhanesh Kotharihttp://www.blogger.com/profile/00932460129594239970noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3970556464201003737.post-68804952755938363902022-06-25T14:27:00.007+05:302022-06-25T14:34:15.934+05:30 जसपुर के बहुगुणाओं का गढ़वाली टीका साहित्य में योगदान<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgwjMV3PgTZ_UOBrsN9ZmSKufvG5H_q4BsR8g2QSUBx4DBed65dzs-Oh6iPM2hQvQy-TvrxclVNH_lhuRcytqJkps5q_Y2yHYhLB01VVpE2b79AlpxRqbMmMjo6tYbBEhjL5d16YBo8_3oBsW5WvD-BEFG7W-vM8SKk5pFIUeP6IQOAideolJk57JlKVA/s800/uttarakhand%20teeka%20sahitya%201.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="661" data-original-width="800" height="264" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgwjMV3PgTZ_UOBrsN9ZmSKufvG5H_q4BsR8g2QSUBx4DBed65dzs-Oh6iPM2hQvQy-TvrxclVNH_lhuRcytqJkps5q_Y2yHYhLB01VVpE2b79AlpxRqbMmMjo6tYbBEhjL5d16YBo8_3oBsW5WvD-BEFG7W-vM8SKk5pFIUeP6IQOAideolJk57JlKVA/s320/uttarakhand%20teeka%20sahitya%201.jpg" width="320" /></a></div><br /><b><br /></b><p></p><p><b>• भीष्म कुकरेती</b></p><p>गढ़वाली साहित्यकार एवं इतिहासकार अबोध बंधु बहुगुणा ने ’गाड म्यटेकी गंगा’ पुस्तक में संस्कृत ज्योतिष व कर्मकांड साहित्य का गढ़वाली में टीका का उल्लेख किया है। अबोध बंधु ने 1925 का धोरा खोळा, कटळस्यूं निवासी पंडित रतनमणि घिल्डियाल द्वारा ज्योतिष गणित का गढ़वाली टीका (प्दजमतचतमजंजपवद) का जिक्र किया है (गाड म्यटेकी गंगा- पृष्ठ 59 )। </p><p>उसके बाद के गढ़वाली साहित्य इतिहासकारों ने इस दिशा में कोई खोजपूर्ण कार्य नही किया। मेरा मानना था कि सन् 1890 से पहले जब कोई स्कूल नही थे और हिंदी का कोई स्थान गढ़वाल में नही था तो कर्मकांडी पंडित अवश्य ही अपने शिष्य (पुत्र, पौत्र, भतीजे, भ्राता आदि) को संस्कृत श्लोकों को गढ़वाली में ही समझाते होंगे और पाण्डुलि। में गढ़वाली में ही टीका करते रहे होंगे।</p><p>मेरे गांव जसपुर, ढांगू, पौड़ी गढ़वाल में कर्मकांडी चौथ ब्राह्मण बहुगुणा सन् 1875 के आसपास कुकरेतियों द्वारा बसाए गए थे। अतः मुझे इस दिशा में कुछ-कुछ ज्ञान था कि बहुगुणा पंडितो के पास हस्तलिखित पांडुलिपियां होती थीं।</p><p>इस साल के प्रथम चरण में जसपुर के पंडित स्व. पंडित तोताराम बहुगुणा के पौत्र व स्व. विद्यादत्त के द्वितीय पुत्र कर्मकांडी पंडित महेशानन्द बहुगुणा से मुंबई में मिलने का अवसर मिला। मैंने रिश्ते में भ्राता किन्तु सांस्कृतिक रू। से गुरु महेशानन्द बहुगुणा से यही प्रश्न किया कि जब जसपुर में ब्रिटिश शिक्षा नही थी तो कर्मकांड, ज्योतिष टीका अवश्य ही गढ़वाली में हुई होगी। पंडित महेशा नन्द बहुगुणा ने मेरा समर्थन करते कहा कि जसपुर के बहुगुणाओं में ज्योतिष, कर्मकांड को श्रुति रू। से लिखित रू। देने का काम स्व. पंडित जयराम बहुगुणा ने प्रारम्भ किया था। स्व. पंडित जयराम बहुगुणा स्व. तोताराम के भाई थे।</p><p>पंडित महेशानन्द ने मुझे आश्वासन सूचना दी थी कि पंडित जयराम बहुगुणा की पांडुलिपियां गांव में पंडित पद्मादत्त बहुगुणा के पास हैं, जिसमे गढ़वाली में टीका उपलब्ध हैं। पंडित पद्मादत्त बहुगुणा पंडित जयराम के भतीजे के पुत्र हैं। पंडित महेशा नन्द ने आश्वासन दिया था कि वे मुझे इस प्रकार के साहित्य को फोटोकॉपी द्वारा उपलब्ध कराएंगे।</p><p>इसी दौरान मुझे नागराजा पूजन हेतु मई में गांव जाना पड़ा। वहां सभी बहुगुणा पंडितों से मुलाकात अवश्यम्भावी थी और मैं आश्वस्त था कि मुझे गढ़वाली साहित्य का प्राचीन खजाना अवश्य मिलेगा। किन्तु गांव में त्रिवर्षीय नागराजा पूजन होने से सभी प्रवासी चाहते थे कि अपने कुल गुरुओं बहुगुणाओं से पूजन भी कराया जाए। आसपास के गांवों में भी प्रवासी आए थे, जो इन कुल गुरुओं से पूजा करवाने को इच्छित थे।</p><p>अतः सभी बुजुर्ग (मेरे समकक्ष आयु वाले) व युवा पंडित इतने व्यस्त थे कि उन्हें सांस लेने की फुर्सत नही थी। मैंने जिससे भी गढ़वाली टीका की बात की उन पंडित ने साहित्य उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया किन्तु काम फारिग होने के बाद। मैं निराश था कि मुझे खजाना नहीं मिलेगा और फिर यह अवसर नही मिलेगा। दूसरी दिक्कत थी कि पंडित पद्मादत्त बहुगुणा के अतिरिक्त सभी पंडित कोटद्वार या अन्य शहरों में निवास करते हैं अतः यह महत्वपूर्ण साहित्य को देखना व फोटोकॉपी करना कठिन ही था।</p><p>मुझे 29 मई को ऋषिकेश के लिए प्रस्थान करना था और मुझे कोई साहित्य उपलब्ध नही हो सका था। एक कारण यह भी था कि प्रिंटिंग सुविधा उपलब्ध होने से पाण्डुलि। साहित्य की अब किसी भी कर्मकांडी पंडित को आवश्यकता नहीं है और पाण्डुलिपि अब किसी कोने में ही मिल सकतीं हैं।</p><p>अचानक 7 बजे सांय, मेरी धर्मपत्नी ने मेरे स्कूल के सहपाठी बड़े भाई शत्रुघ्न प्रसाद की दी गई पोथी मेरे हाथ में पकड़ा दी। इस पोथी में कई पोथियां (Boolete) थीं। मूल पोथी नीलकंठी कर्मकांड का है और अंदर कि छोटी पोथियां अन्य ज्योतिषीय विषय।</p><p><b>मुझे निम्न पंडितों की हस्तलिखित पोथियां मिलीं</b></p><p>पंडित सदानंद द्वारा लिखित दो संस्कृत विषयी लघु आकार की पोथियां।</p><p>पंडित खिमानन्द द्वारा लिखित व हिंदी में टीका की हुई पोथी।</p><p>पंडित तोताराम की दो या तीन विषयों में लिखी पोथियां और सभी में हिंदी में टीका लिखी गईं हैं। उपरोक्त तीनों लेखकों ने द. लिखकर अपने हस्ताक्षर किए हैं। नीलकंठी प्रकरण में एक जगह पंडित जयराम के हस्ताक्षर या नाम हैं दो जगह पंडित लोकमणि के हस्ताक्षर हैं व दो तीन जगह उनका नाम भी लिखा है। पंडित विद्यादत्त का नाम भी है।</p><p>पंडित जयराम ने जातक चन्द्रिका संस्कृत में छांटे-छांटी पंक्तियों में कलम से लिखी है और फिर बाद में किसी ने निब से बीच की पंक्ति में हिंदी में टीका लिखी है। कहीं भी लेखकों ने बहुगुणा शब्द नहीं लिखा है बल्कि पंडित शब्द का प्रयोग किया है। पंडित सदानंद ने तो पंडित शब्द भी प्रयोग नहीं किया है।</p><p>पंडित तोताराम लिखित टीका व श्लोकों से पहले गणेश का चित्र भी बनाया है व दूसरे पृष्ठ में भी रंगीन चित्रकारी की है। पंडित खिमानन्द ने जसपुर, ढांगू व कुमाऊं कमिनशनरी लिखा है और इसका कारण है कि वे पंडिताई से पहले चकबंदी विभाग में नौकरी की थी।</p><p><b>गढ़वाली टीका पोथी के कुछ भाग</b></p><p>जहां तक गढ़वाली टीका का प्रश्न है इन पोथियों के अंदर चार पृष्ठ की निखालिस गढ़वाली टीका मिलीं हैं। गढ़वाली टीका वाली पोथी में पंडित सदानंद की पोथी में पंडित शब्द भी नहीं है।</p><p>मेरे सहपाठी श्री शत्रुघ्न बहुगुणा व कुलगुरु पंडित विवेकानन्द बहुगुणा के अनुसार यह टीका पंडित खिमानन्द बहुगुणा की है। किन्तु मैं आदर सहित लिखना चाहूंगा कि पंडित खिमानन्द ने गढ़वाली टीका नहीं लिखी है। उसके कारण निम्न हैं -</p><p>1- इस पुस्तिका का आकार पंडित खिमानन्द लिखित पोथी से मेल नहीं खाती है। </p><p>2- पंडित खिमानन्द ने हिंदी टीका निब से लिखी है।</p><p>3- पंडित खिमानन्द का हस्थलि। भी मेल नहीं खाती है। जबकि पंडित जयराम की हस्थलि। से मेल खाती है।</p><p>4- मूल पोथी का आकार भी छोटा है किन्तु पंडित सदानंद द्वारा लिखित पोथी से एक इंच बड़ा होगा।</p><p>5- कागज भी अन्य पोथियों से मेल नहीं खाते हैं।</p><p>6- एक पोथी के उपलब्ध भाग लाल रंग के दो लाइनों से बनी हाशिए दोनों तरफ हैं व स्याही अब मटमैली हो गई है। इसी तरह काली स्याही केवल पंडित जयराम द्वारा लिखित श्लोकों से मेल खाती है। दूसरी पोथी के भाग का पृष्ठ पर दोनो ओर लाल स्याही से दो दो हाशिए बने हैं। जो अन्य पोथियों से भिन्न हैं।</p><p>7- चूंकि पंडित लोकमणि, पंडित सदानंद, पंडित खिमानन्द, पंडित तोताराम ने सन् 1890 में ब्रिटिश स्थापित स्कूल टंकाण स्कूल में शिक्षा पाई है अतः इन्हे हिंदी का पूरा ज्ञान था। पंडित जयराम ने टंकाण में शिक्षा नहीं पाई थी अतः उन्होंने गढ़वाली में टीका लिखी होगी जो पंडित महेशानन्द व पंडित पद्मादत्त ने भी स्वीकारा है।</p><p>अतः साफ़ है कि जो दो पोथियों के एक-एक पृष्ठ मेरे पास हैं वे पंडित जयराम द्वारा या उनसे पहले किसी अन्य द्वारा लिखी टीका है। पंडित जयराम की जीवनी विश्लेषण से लगता है यह टीका सन् 1900 से पहले की होगी।</p><p><b>पोथियों के उपलब्ध पृष्ठों की इबारत इस प्रकार हैं</b></p><p><b>दस दोष निरोपण की गढ़वाली टीका</b></p><p>संस्कृत शोक के बाद टीका ।। १ ।। भाषा आद्य भद्रा नी होवूः दुतिय शूल चक्र नि होवूः जनु सूर्य नक्षेत्र तक गणणो। १। १२। १५। १८। २८। होवू त शूल हूंदः शुभ काम बर्जित बोले= तृतीय ग्रह संजोगः जोदिन नक्षेत्र पर पा। ग्रह हो वो त नी लेणो दुसरी एक बात या छ कि जनु अशु नक्षेत्र प्रः आश्वार दग्ध तिथी और वार जोडिक तेर हो वू त वारदग्ध होंद अथमासदग्ध</p><p>------------------------------------------</p><p>बै। ज्येष्ठ । आषा । श्रावण । भाद्रपद । असूज । कार्तिक । मंगसीर। पुख । माघ। फा । चैत्र । ६ । ४ । ८। ६। १०। ८ । १२। ८। २ । ।१२। </p><p>अवरविरेखावोदः सूर्जन न क्षेत्र ते सताईस रेखा धरणी अश्लेषा -मघा -चीत्राः अनुराधा. रेवत. श्रवण. यूंका निचे भि रेखा मारणी तव असुनी ते दिन नक्षेत्र तक गणणो जो निचे को चिरो आवत नी लेणो. जामैत्रिवोद . दिन का नक्षेत्र ते चौदवें नक्षेत्र पर पा। ग्रह होवू त नी लेणो शुभ होवू त दोस नी होंदो - गरहवेद तथा अष्टम वेद दोष चक्रमा देखणो जनु नी नक्षेत्र पर विवाह और पु र्फालगुनी पर पा। ग्रह क्षेत्र वेद होयो सो नी लिणोः अथः तलातवोद -दिन नक्षेत्र ते १२ वूंआ नक्षेत्र पर सूर्य्यत्वात मार ३ तीसरा नक्षेत्र पर मंगल ६ छटा नक्षेत्र पर वृहस्पति ८ आटवूआं नक्षेत्र पर शनी</p><p>इस प्रकरण का इतना ही साहित्य उपलब्ध है।</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhjUT1JoCBG_-bM8eZNY861U91RMMfkM0fF7d8BPBP5OPa0ZHBdzKKGBZGAPPyFzP5KfmN2fHDVQdaX0kUgKf1mPqnZR2mJoIEKb-VoPFydD4zZBWPkxPHiiaMLn0rjstDfnOiBm43I0FCeWhbsEDHk8rouv9K7dq6yw38bPT3DAy-PNbrLiXiNzB4nYw/s480/Bhisham%20Kukreti.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="480" data-original-width="480" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhjUT1JoCBG_-bM8eZNY861U91RMMfkM0fF7d8BPBP5OPa0ZHBdzKKGBZGAPPyFzP5KfmN2fHDVQdaX0kUgKf1mPqnZR2mJoIEKb-VoPFydD4zZBWPkxPHiiaMLn0rjstDfnOiBm43I0FCeWhbsEDHk8rouv9K7dq6yw38bPT3DAy-PNbrLiXiNzB4nYw/w200-h200/Bhisham%20Kukreti.jpg" width="200" /></a></div><br /><p><br /></p>Dhanesh Kotharihttp://www.blogger.com/profile/00932460129594239970noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3970556464201003737.post-74313468522113453652022-05-08T11:37:00.002+05:302022-05-08T11:37:36.175+05:30 माँ अब कुछ नहीं कहती - (हिंदी कविता)<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiprUjylF9xzr2-HrNyyZZSRY85WaUfzXF6jRCAUsUAYMWqktvWuLm-ClHpFHll0YeSJhTQg5X2PhSwt5059ZgJrZgnD7tTKQW-h-lQhuZI0idy_tIkerjYKtJI-dRqzYiYdFEnfIj89gUZtNdX7ViEOzJTSe1f0ZZnopvW5Qd218uKpL3Qdm1qw9d8OQ/s600/Maan-%20Mangi%20devi%20Kothari.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="454" data-original-width="600" height="242" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiprUjylF9xzr2-HrNyyZZSRY85WaUfzXF6jRCAUsUAYMWqktvWuLm-ClHpFHll0YeSJhTQg5X2PhSwt5059ZgJrZgnD7tTKQW-h-lQhuZI0idy_tIkerjYKtJI-dRqzYiYdFEnfIj89gUZtNdX7ViEOzJTSe1f0ZZnopvW5Qd218uKpL3Qdm1qw9d8OQ/s320/Maan-%20Mangi%20devi%20Kothari.jpg" width="320" /></a></div><br /><p><br /></p><p style="text-align: center;">माँ</p><p style="text-align: center;">अब कभी-कभी</p><p style="text-align: center;">आती है सपनों में</p><p style="text-align: center;">चुप रहती है,</p><p style="text-align: center;">कुछ नहीं कहती</p><p style="text-align: center;"><br /></p><p style="text-align: center;">माँ</p><p style="text-align: center;">सुनाती थी बातों-बातों में</p><p style="text-align: center;">जीवन के कई हिस्से</p><p style="text-align: center;">सुने हुए कई किस्से</p><p style="text-align: center;">भोगे हुए यथार्थ</p><p style="text-align: center;">जिनके थे कुछ निहितार्थ</p><p style="text-align: center;"><br /></p><p style="text-align: center;">माँ</p><p style="text-align: center;">आगाह करती थी</p><p style="text-align: center;">लोगों से, बुरे दौर से</p><p style="text-align: center;">सलाह देती थी</p><p style="text-align: center;">चारों तरफ देखने की</p><p style="text-align: center;"><br /></p><p style="text-align: center;">माँ</p><p style="text-align: center;">डाँट देती अक्सर मुझे</p><p style="text-align: center;">मेरी गलतियों पर</p><p style="text-align: center;">मेरी कमियों पर</p><p style="text-align: center;">मृत्यु के कुछ दिन पहले</p><p style="text-align: center;">आखिरी बार भी डाँटा था</p><p style="text-align: center;"><br /></p><p style="text-align: center;">माँ</p><p style="text-align: center;">अब आती है सपनों में</p><p style="text-align: center;">चुपचाप देखती है</p><p style="text-align: center;">शायद महसूस करती है</p><p style="text-align: center;">मेरा आज, मेरा कल</p><p style="text-align: center;"><br /></p><p style="text-align: center;">मगर,</p><p style="text-align: center;">माँ अब कुछ नहीं कहती</p><p style="text-align: center;">माँ अब कुछ नहीं कहती</p><p style="text-align: center;"><br /></p><p style="text-align: center;"><b>• धनेश कोठारी</b></p><p style="text-align: center;"><b>08 मई 2022, ऋषिकेश (उत्तराखंड)</b></p>Dhanesh Kotharihttp://www.blogger.com/profile/00932460129594239970noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-3970556464201003737.post-40797607476577009132021-08-22T13:46:00.008+05:302021-08-22T13:49:09.168+05:30 अब....!<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgC_4nkL8u0gsghwW11ZsppEHb6wZRHiGHw9QtwG7BXDz9o_wUV7ImfJ5tV6CXOym1DbXzFAXy1P_dedjnv935GQZ9D6GzWSPipDpym8lVJF6494tcnYhK4oATTtvnHdyROmsix60a1MCnP/s266/Girish+Tiwari+Girda-01.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="https://www.bolpahadi.in/2021/08/uttarakhand-ab-hindi-poetry.html" border="0" data-original-height="184" data-original-width="266" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgC_4nkL8u0gsghwW11ZsppEHb6wZRHiGHw9QtwG7BXDz9o_wUV7ImfJ5tV6CXOym1DbXzFAXy1P_dedjnv935GQZ9D6GzWSPipDpym8lVJF6494tcnYhK4oATTtvnHdyROmsix60a1MCnP/s16000/Girish+Tiwari+Girda-01.jpg" title="girish tiwari girda" /></a></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><br /></div><div style="clear: both; text-align: left;">गिर्दा !<br />आपने कहा था<br />हमारी हिम्मत बांधे रखने के लिए<br />‘जैंता इक दिन त आलो ये दिन ये दुनि में’</div><div style="clear: both; text-align: left;"><br />तब से हम भी इंतजार में हैं<br />वो ‘दिन’ आने के <br />हिम्मत हमने अब भी बांधी हुई है<br />उसी एक पंक्ति के भरोसे</div><div style="clear: both; text-align: left;"><br />दिन हमारे आएंगे; नहीं मालूम<br />हाँ, उन ब्योपारियों के आ गए<br />जिनसे तुमने पूछा था<br />‘बोल ब्योपारी अब क्या होगा..’</div><div style="clear: both; text-align: left;"><br />तुम्हारे चले जाने के दस साल/ और<br />उत्तराखंड राज्य बनने के बीस साल/ बाद<br />हमारे अंदर टूटते ‘पहाड़’ को <br />अब कौन थामे हुए रखेगा</div><div style="clear: both; text-align: left;"><br />गिर्दा!<br />कदाचित अब हम <br />हिम्मत को बांध कर नहीं रख सके<br />तो कौन कहेगा फिर हमसे<br />‘जैंता इक दिन त आलो ये दिन ये दुनि में’</div><div style="clear: both; text-align: left;"><br />गिर्दा!<br />चले आओ फिर से<br />और गाओ बार बार गाओ<br />... धन मयेड़ी मेरो यो जनम<br />तेरि कोखि महान, मेरा हिमाला.....</div><div style="clear: both; text-align: left;"><br /><b>• धनेश कोठारी - </b></div><div style="clear: both; text-align: left;"><br />फोटो साभार - Google</div>Dhanesh Kotharihttp://www.blogger.com/profile/00932460129594239970noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-3970556464201003737.post-13648213403741953032021-08-20T12:54:00.004+05:302021-08-20T12:54:20.816+05:30 साहित्यकारों के कमरों की कहानी 'मेरा कमरा'<br /><p style="text-align: center;"><img alt="https://www.bolpahadi.in/2021/08/story-of-the-writers-room-in-mera-kamra.html" border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg_YHtBdtqZklNztueGSbmpRSOKxUGEtxjRY4riLmVJL_rlse1GFsBCqptYLbasrBDMsU6EwlyML5vXPhI44gh8rp3-aCHapYCGZ6Iu6tLK5jEd1l_7JCQHTsZw-_pVyeZ5n5ko0NeLtZzm/w201-h320/Mera+Kamra+Cover.jpg" title="mera kamra" width="201" /></p><div style="text-align: justify;">प्रबोध उनियाल द्वारा संपादित 'मेरा कमरा' चालीस लेखकों के अपने अध्ययन कक्ष के संबन्ध में सुखद-दुःखद अनुभवों को समेटे पठनीय व संग्रहणीय कृति है। </div><div style="text-align: justify;"><br />पुस्तक में साहित्यकारों के अध्ययन कक्ष या आवासीय लेखन कक्ष का लेखा-जोखा अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। समकालीन और तत्कालीन जीवन शैली की विविध चुनौतियों, रचनाधर्मिता में उपस्थित होने वाली समस्याओं, अनेक विसंगतियों और कुछ सकारात्मक पक्षों पर प्रकाश डालने वाली यह कृति लेखकों के जीवन के अनछुए पक्षों को प्रस्तुत करती है। इसमें संगृहीत वरिष्ठ व नए लेखकों के लेखों का सार प्रस्तुत करते हुए हर्ष हो रहा है। </div><div style="text-align: justify;"><br />पुस्तक का पहला आलेख स्वयं सम्पादक प्रबोध उनियाल का है; शीर्षक है- वह अपना कमरा। इस आलेख को पढ़ते हुए लेखक के जीवन की अविस्मरणीय झलकियाँ मिलती हैं। उनके जीवन की अध्ययन और साहित्यिक प्रतिबद्धता स्पष्ट होती है। वे किस प्रकार से किसी कम्पनी में नौकरी करते हुए भी किस प्रकार साहित्य को समर्पित रहे और उनके सामने क्या परिवारिक परिदृश्य उपस्थित हुए यही प्रमुख बात उभरकर आती है। साहित्य के प्रति लेखक की तन्मयता प्रेरणादायक है। </div><div style="text-align: justify;"><br />अगला आलेख प्रसिद्ध साहित्यकार स्मृतिशेष गंगा प्रसाद विमल का है। मुझे 2019 में उनसे मिलने का सौभाग्य मिला था, उन्हें और मुझे नई दिल्ली में स्मृतिशेष डॉ. मृदुला सिन्हा द्वारा अंतरराष्ट्रीय जेपी अवार्ड से साहित्य सेवा के क्षेत्र में एक ही मंच पर सम्मानित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। </div><div style="text-align: justify;"><br />विमल जी सरल और विद्वान व्यक्ति थे। उनका आलेख इस पुस्तक में संगृहीत होना प्रसन्नता देता है। विमल जी के अंतिम आलेखों में से यह आलेख 'उस एकांत का अकेलापन' टिहरी गढ़वाल के चम्बा और सुरकण्डा क्षेत्र की सुंदरता के साथ ही लेखक के तत्कालीन अध्ययन और लेखन सम्बन्धी विवेचन को प्रस्तुत करता है। यह सुन्दर विवेचन है। <br />अगला आलेख जनकवि और लाखों हृदयों के प्रिय डॉ. अतुल शर्मा का 'वो बुलाता है... हमेशा पास रहता है' शीर्षक से है। अतुल जी ने अपने पिता स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व कवि श्रीराम शर्मा 'प्रेम' के के संदर्भों को प्रस्तुत करते हुए अपने बचपन, किशोरवय और युवावस्था के दिनों की स्मृतियों को अपने कमरे के साथ जोड़ते हुए प्रस्तुत किया है। </div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;">उन्होंने बाबा नागार्जुन सहित अनेक साहित्यकारों की यादों को उकेरने के साथ ही उत्तराखण्ड आंदोलन के लिए लिखे गए अपने जनगीतों को भी उद्धृत किया है। लिटन रोड स्थित अपने घर के अध्ययन कक्ष को उन्होंने बहुत रोचक ढंग से प्रस्तुत किया। </div><div style="text-align: justify;"><br />सुरेश उनियाल जी का आलेख 'जहाँ मेरे लेखक ने जन्म लिया' में गढ़वाल में पुराने समय में लैंप की रोशनी में अध्ययन करने से लेकर सुविधाओं के पहुँचने तक का सुन्दर शब्द चित्रण किया है। </div><div style="text-align: justify;"><br />इसी क्रम में गंभीर सिंह पालनी का लेख 'किसको कहूँ - मेरा कमरा' ऋण लेकर बनाए गए शहरी आवासों की व्यवस्था और गहरा चिंतन है। उन्होंने अपनी समय-समय पर प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित और पुरस्कृत कहानियों की चर्चा आलेख में की है। उनके आलेख से प्रेरणा मिलती है कि विपरीत परिस्थितियों में भी व्यक्ति साहित्य को समर्पित रह सकता है। </div><div style="text-align: justify;"><br />फिर शिवप्रसाद जोशी द्वारा लिखित 'जिंदगी के कमरे से होकर गुजरती दुनिया' टिहरी गढ़वाल के जाख-मरोड़ा से जयपुर, बॉन और फ्राईबुर्ग तक का सफर है। ग्रामीण जीवन के अध्ययन से शहरी जीवन तक कि झलकियों से सजा आलेख सुन्दर है। </div><div style="text-align: justify;"><br />मदन शर्मा का लेख 'बीसवें मकान का कोने वाला कमरा' एक ही शहर में बदले गए अनेक कमरों का लेखा-जोखा है। इस लेख में लेखकों की पीड़ा प्रस्तुत की गई है। पत्नी हो या घर के सदस्य लेखक द्वारा रची गयी, प्राप्त हुई या प्रकाशनाधीन पुस्तकों के साथ कितनी उपेक्षा, दुराग्रह और निंदा का भाव रखते हैं यह आलेख में पठनीय और विचाणीय है। </div><div style="text-align: justify;"><br />डॉ. सविता मोहन का लेख 'जब कमरा आकाश हो गया' बचपन की सुन्दर स्मृतियों- जिनमें उनकी दीदी की मार, लैंप, गिट्टे, पुराना पिचका सन्दूक और उनके पिता के नैनीताल के मकान की एक कोठरी इत्यादि हैं। निश्चित रूप से आलेख श्रेष्ठ है। बिना लाग-लपेट के लेखिका ने मन के उद्गार और तत्कालीन परिस्थितियों को प्रस्तुत किया है। </div><div style="text-align: justify;"><br />कृष्ण कुमार भगत का लेख 'कमरा सँवारने का अधूरा ख्याल' में उन्होंने गृहशोभा, जाह्नवी और सरिता आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित अपनी कहानियों तथा अपना कमरा न बन पाने की पीड़ा उकेरी है। </div><div style="text-align: justify;"><br />शालिनी जोशी का लेख 'सन्दूक वाला कमरा' उनके बचपन, दादी, मायके और एक सन्दूक की स्मृतियों को प्रस्तुत करते हुए महिलाओं की गहन पीड़ा को प्रस्तुत करता है। </div><div style="text-align: justify;"><br />रामकिशोर मेहता का लेख 'मैं और मेरा कमरा' अपने कमरे पर एकछत्र अधिकार की पठनीय संकल्पना को प्रस्तुत करता है। </div><div style="text-align: justify;"><br />डॉ. एचसी पाठक के लेख 'कई कमरों से गुजरी जिंदगी' छात्रावास से लेकर सरकारी आवास मिलने तक का चित्र खींचता है; जो पठनीय है। </div><div style="text-align: justify;"><br />रणवीर सिंह चौहान का लेख 'पुराने घर की सूरत टटोलता हूँ' उर्दू के कुछ शब्दों को सहेजते हुए उनके जीवन की झलकियों को प्रस्तुत करता है।</div><div style="text-align: justify;"><br />ललित मोहन रयाल का लेख 'कमरे के केंद्र में रहता हूँ मैं' लोकसेवक के जीवन के चित्रांकन से प्रारम्भ होता है और होम तथा स्वछंद कमरे की अवधारणा को पुष्ट करता है। लेख अच्छा है। </div><div style="text-align: justify;"><br />अमित श्रीवास्तव का लेख 'मैं बार-बार लौटता हूँ वहाँ' सपनों और हकीकत के घर के बीच का तारतम्य प्रस्तुत करता है। </div><div style="text-align: justify;"><br />हेमचंद्र सकलानी का लेख 'मेरा कमरा और माँ की सीख' टिहरी गढ़वाल भगवतपुर गाँव की स्मृतियों और उनकी माँ के संस्कारों पर प्रकाश डालता है; सुन्दर लेखन है। </div><div style="text-align: justify;"><br />शशिभूषण बडोनी का लेख 'अपना कमरा जो आज भी सपना है' पारिवारिक जीवन की भेंट चढ़े कमरे के बाद अपना कोई निजी अध्ययन कक्ष न होने की पीड़ा प्रस्तुत करता है।</div><div style="text-align: justify;"><br />गुरुचरन लिखित 'कमरे का कंसेप्ट सोचकर अच्छा लगता है' श्रीनगर गढ़वाल में अपनी पढ़ाई के दिनों से लेकर बाद में परिवार तक का चित्रण है। </div><div style="text-align: justify;"><br />जहूर आलम लिखित 'अपने कोने की तलाश आज भी' अभावों के जीवन को चित्रित करता पठनीय लेख है।</div><div style="text-align: justify;"> <br />महिपाल सिंह नेगी 'हम किताबों के कमरे में रहते हैं' किताबों के साथ परिवार और अपना सामंजस्य और आत्मीयता को प्रस्तुत करता सुन्दर लेख है। </div><div style="text-align: justify;"><br />जगमोहन रौतेला का लेख 'आज भी प्रतीक्षा है उस कोने की' पत्रकारिता के जीवन में अध्ययन कक्ष की महत्ता का सुन्दर प्रस्तुतीकरण है। </div><div style="text-align: justify;"><br />योगेश भट्ट का लेख 'मैं, मेरा कमरा और खुली खिड़कियाँ' घर में अपने एक अलग कमरे की विशेषता को दर्शाता सुन्दर आलेख है। </div><div style="text-align: justify;"><br />रंजना शर्मा का लेख 'हम बहते धारे' यादों के कैनवास पर अतीत और वर्तमान के दृश्यों को सुन्दर ढंग से प्रस्तुत करता है। </div><div style="text-align: justify;"><br />शिवप्रसाद सेमवाल का लेख 'न मालूम कितने घर और कमरे बदले' गढ़वाल के रुद्रप्रयाग, उखीमठ से शुरू करते हुए बेसिक शिक्षा अधिकारी, देहरादून बनने तक और उसके बाद कि उनकी जीवन यात्रा को प्रस्तुत करता है। </div><div style="text-align: justify;"><br />मुकेश नौटियाल का लेख 'जहाँ शब्द ढल जाए वही लेखन कक्ष' उनके गाँव से लेकर अपना व्यक्तिगत अध्ययन कक्ष तक के सफर को सुन्दर ढंग से प्रस्तुत करता है। </div><div style="text-align: justify;"><br />अनिल कार्की का लेख 'मेरे पढ़ने-लिखने का कमरा' कुमायूँ मण्डल के पिथौरागढ़ और नैनीताल की स्मृतियों को पठनीय बनाता है। </div><div style="text-align: justify;"><br />डॉ. एमआर सकलानी का लेख 'मेरा कमरा' उनके दादाजी के घर चम्बा तथा उनके ननिहाल (जो अमर शहीद श्रीदेव सुमन का भी गाँव है- जौल) की महत्त्वपूर्ण स्मृतियों को दर्शाता श्रेष्ठ आलेख है। </div><div style="text-align: justify;"><br />जगमोहन 'आजाद' 'वजूद का हिस्सा है वह कोना' गाँव से शुरू करके परिवार और बेराजगारी की पीड़ा को प्रस्तुत करता उत्तम आलेख है। </div><div style="text-align: justify;"><br />चंद्र बी. रसाइली का लेख 'मेरे दिल और दिमाग का वर्कशॉप' उनकी अपनी आलमारियों में 30 वर्ष का स्केच है। यह लेख उनकी अध्ययनशीलता को दर्शाता है। </div><div style="text-align: justify;"><br />राजेश पाण्डेय का लेख 'जिसकी दीवारों से बातें की मैंने' कमरे की सजीवता को प्रस्तुत करने वाला सुन्दर आलेख है। </div><div style="text-align: justify;"><br />दिनेश कुकरेती का लेख 'एक कमरा बने न्यारा' देहरादून और मेरठ की उनकी स्मृतियों को प्रस्तुत करते हुए अध्ययन कक्ष की आवश्यकता व महत्त्व को दर्शाता है।</div><div style="text-align: justify;"><br />राजेश सकलानी का लेख 'लेखन की जगहें' अध्ययन कक्ष की उनकी संकल्पना को प्रस्तुत करता है। </div><div style="text-align: justify;"><br />रुचिता उनियाल का लेख 'मेरा कमरा मेरा साथी' उनके विद्यार्थी जीवन में उनके मायके के कमरे से विवाहोपरांत बिछड़ने की पीड़ा को प्रस्तुत करता है। </div><div style="text-align: justify;"><br />नवीन चन्द्र उपाध्याय का लेख 'जहाँ रहा वहाँ अपना कोना दूँढ लिया' परिवर्तनशील जीवन का यथार्थ दर्शाता है। </div><div style="text-align: justify;"><br />महेश चिटकारिया का लेख 'बिना खिड़की के वह कमरा' उनके कॉलेज के दिनों की यादों को सुन्दर ढंग से प्रस्तुत करता है। </div><div style="text-align: justify;"><br />ज्योति शर्मा का लेख 'कमरे की दीवारें अब आँसुओं से भीग गई' ससुराल के रिवाजों और मायके के विविध घटनाक्रम और पीड़ाओं को अभिव्यक्त करता है।</div><div style="text-align: justify;"><br />डॉ. अशोक शर्मा का लेख 'कमरों के साथ होता रहा बदलाव' ऋषिकेश, पठानकोट और लैंसडाउन इत्यादि स्थानों पर प्राचार्य रहते हुए उनके जीवन के विविध पक्षों का चित्रण है। </div><div style="text-align: justify;"><br />प्रीति बहुखंडी के लेख ' कमरे में मैं और मुझमें कमरा' 'घर' और मन की संकल्पना को दर्शाता है। </div><div style="text-align: justify;"><br />वैशाली डबराल का लेख 'साहित्य साधक का कमरा' 20 वर्षों के उनके अनुभव और अध्ययन को समेटे हुए है। </div><div style="text-align: justify;"><br />रोशनी उनियाल का लेख 'मिट्टी की महक वाला कमरा' उनके बचपन की यादों को सँजोये हुए है।</div><p style="text-align: justify;"><br /></p><div style="text-align: justify;"><b>किताब- मेरा कमरा, <br /></b><b>सम्पादक- प्रबोध उनियाल, <br /></b><b>प्रकाशक- काव्यांश प्रकाशन, ऋषिकेश, <br /></b><b>पृष्ठ- 180 <br /></b><b>मूल्य- रु. 250<br /></b><b>समीक्षक- डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री'</b></div>Dhanesh Kotharihttp://www.blogger.com/profile/00932460129594239970noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3970556464201003737.post-17308071698858028702021-08-20T10:51:00.000+05:302021-08-20T10:51:17.134+05:30अद्भुत थी कवि चंद्रकुँवर बर्त्वाल की काव्य-दृष्टि<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjxVSyo7-qkd_Rx6mHvmkpOcFMjgGoyOhZs-yhwkTAopb0RjbWzXmK95dmuKbgExFqaT0yGW8FnySgnYXEFs6_n1uWOE3Nd5UR5QbYunBD_cH7thDBlrbJsbEk35q6vq0qvFt4INOyDAJiE/s398/Chandra+Kunwar+Bartwal1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="https://www.bolpahadi.in/2021/08/uttarakhand-wonderful-poetic-vision-of-chandrakunwar-bartwal.html" border="0" data-original-height="367" data-original-width="398" height="295" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjxVSyo7-qkd_Rx6mHvmkpOcFMjgGoyOhZs-yhwkTAopb0RjbWzXmK95dmuKbgExFqaT0yGW8FnySgnYXEFs6_n1uWOE3Nd5UR5QbYunBD_cH7thDBlrbJsbEk35q6vq0qvFt4INOyDAJiE/w320-h295/Chandra+Kunwar+Bartwal1.jpg" title="chandrakunwar bartwal" width="320" /></a></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><b>• बीना बेंजवाल / </b></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;">कैलासों पर उगे रैमासी के दिव्य फूलों को निहारने वाली कवि चंद्रकुँवर बर्त्वाल की काव्य-दृष्टि उस विराट सौंदर्य चेतना से संपन्न हो उन्हें रैमासी कविता का कवि बना गई। प्रकृति के इस सान्निध्य में ऋषियों जैसी सौम्यता लिए कवि स्वयं कहते हैं- </div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><i>मेरी आँखों में आए वे</i></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><i>रैमासी के दिव्य फूल! </i></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><i>मैं भूल गया इस पृथ्वी को</i></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><i>मैं अपने को ही भूल गया! </i></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;">सम्मोहन की इस स्थिति में जागृत हुई उनकी काव्य चेतना! और ऐसी उच्च भावभूमि पर खिली कविता का परिवेश भी हिमालयी हो गया! फूलों के ऐसे देश चलकर घन छाया में नाचते मनोहर झरने देखने तथा तरुओं के वृंतों पर बैठे विहगों की मधुर ध्वनियाँ सुनने के साथ कविता समवेत स्वर में गाने का भी ’आमंत्रण’ देने लगी-</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><i>आओ गाएँ छोटे गीत</i></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><i>पेड़ और पौधों के गीत</i></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><i>आओ गाएँ सुन्दर गीत</i></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><i>नदी और पर्वत के गीत</i></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><i>आओ गाएँ मीठे गीत</i></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><i>पवन और माटी के गीत</i></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><i>आओ गाएँ प्यारे गीत</i></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><i>भूमि और भुवन के गीत। </i></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;">कवि इस पर्वत प्रदेश में ’नागनाथ’ की महापुरातन नगरी के बाँज, हिम-से ठण्डे पानी, लाल संध्या-से फूलों को देखते हुए काफल से स्नेह रखने वाले काफल पाक्कू का स्वर पूरे साहित्य जगत को सुनाने लगा-</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;">मेरे घर के भीतर, आकर लगा गूंजने धीरे एक मधुर परिचित स्वर-</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><i>’काफल-पाक्कू’ ’काफल-पाक्कू’</i></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><i>’काफल-पाक्कू’ ’काफल-पाक्कू’। </i></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;">प्रेम को गहराई से जीने वाला यह कवि गिरि शिखरों पर छाये ’घन’ के गर्जन में सागर का संदेश पढ़ता रहा। मछलियों की चल-चितवन देखता रहा। और ’मन्दाकिनी’ से उसकी कविता इस तरह संवाद करती रही-</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><i>हे तट मृदंगोत्ताल ध्वनिते,</i></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><i>लहर वीणा-वादिनी</i></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><i>मुझको डुबा निज काव्य में </i></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><i>हे स्वर्गसरि मन्दाकिनी।</i></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;">प्रकृति की स्थानीयता के साथ कवि की वैश्विक दृष्टि संपन्नता मानवता की रक्षा हेतु वृक्षों से छाया, नदियों से पानी लेने वाले ’मनुष्य’ से स्वार्थ छोड़ प्रेम भाव अपनाने की बात कहते हुए ’नवयुग’ का आह्वान करती है-</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><i>आओ, हे नवीन युग, आओ हे सखा शान्ति के </i></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><i>चलकर झरे हुए पत्रों पर गत अशान्ति के। </i></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;">’हिमालय’ और ’कालिदास के प्रति’ जैसी कविता लिखने वाली कवि की कलम यथार्थ के धरातल पर खड़ी हो ’कंकड़-पत्थर’ के माध्यम से बदलाव का संकेत देती हुई प्रयोगधर्मिता की ओर बढ़ती नजर आती है। </div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;">प्रकृति के विराट रूप के दर्शन कराती कवि की कविता उनकी अस्वस्थता के कारण अंत में ’क्यों ये इतने फूल खिले’, ’रुग्ण द्रुम’ और ’क्षयरोग’ की बात करती हुई द्वार पर अतिथि बन आए मृत्युदेव ’यम’ को भी संबोधित करने लगी। ’पृथ्वी’ कविता का यह कवि प्राणों के दीपक को विलीन कर देने वाले अंधकार में अपने उर की ज्योति को शब्दों में सहेज यह कहकर 14 सितम्बर 1947 को अपनी इहलीला संवरण कर गया कि -</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><i>मैं न चाहता युग-युग तक </i></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><i>पृथ्वी पर जीना</i></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><i>पर उतना जी लूँ</i></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><i>जितना जीना सुंदर हो।</i></div></div><p style="text-align: justify;"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjIC7lqMJE6wsH5G7_CzZgxv9qJR2MUpEZwe6veO97Z5JFDW1V1ucvWxi5B7QOC_4RvSMjbi9bgdX52rWJ0FXpG6GIQMCOYOItSMG1kr18JAb8aQwCHJAGBIrX0OL7b01qjDuThhjgKVgox/s379/Beena+Benjwal-04.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="https://www.bolpahadi.in/2021/08/uttarakhand-wonderful-poetic-vision-of-chandrakunwar-bartwal.html" border="0" data-original-height="374" data-original-width="379" height="198" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjIC7lqMJE6wsH5G7_CzZgxv9qJR2MUpEZwe6veO97Z5JFDW1V1ucvWxi5B7QOC_4RvSMjbi9bgdX52rWJ0FXpG6GIQMCOYOItSMG1kr18JAb8aQwCHJAGBIrX0OL7b01qjDuThhjgKVgox/w200-h198/Beena+Benjwal-04.jpg" title="beena benjwal" width="200" /></a></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><br /></div><span style="color: #800180;">( लेखिका बीना बेंजवाल उत्तराखंड की वरिष्ठ साहित्यकार हैं )</span><br /><i><br /></i><p></p>Dhanesh Kotharihttp://www.blogger.com/profile/00932460129594239970noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3970556464201003737.post-15213170909040435332021-08-19T13:10:00.005+05:302021-08-19T13:10:56.246+05:30 प्रकृति का हमसफ़र छायाकार डॉ. मनोज रांगड़<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEglSIN5pFMDzcx6OVFtg2cPB9H-oVU84l5mRJ_fecidioeGVXewo1PPOA0caOjC1U096f2t0VUk1kz8QlvGE6vNbx1VvhvMjPaEHBSiEjSUQMy1UAFHjRRaiYi_IoV0zr9o9YxzeUK8Y2Sb/s897/Manoj+Rangar+Photo-01.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="https://www.bolpahadi.in/2021/08/uttarakhand-nature-cinematographer-dr-manoj-rangad.html" border="0" data-original-height="897" data-original-width="750" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEglSIN5pFMDzcx6OVFtg2cPB9H-oVU84l5mRJ_fecidioeGVXewo1PPOA0caOjC1U096f2t0VUk1kz8QlvGE6vNbx1VvhvMjPaEHBSiEjSUQMy1UAFHjRRaiYi_IoV0zr9o9YxzeUK8Y2Sb/w269-h320/Manoj+Rangar+Photo-01.jpg" title="प्रकृति का हमसफ़र छायाकार डॉ. मनोज रांगड़" width="269" /></a></div><p style="text-align: justify;"><b>• प्रबोध उनियाल</b></p><p style="text-align: justify;">चेहरे में हमेशा मुस्कान, व्यवहार में बेहद आत्मीयता और प्रकृति को अपनी ही नजर से देखने का अंदाज अगर देखना हो तो एक बार आप जरूर डॉ. मनोज रांगड़ से मिल सकते हैं.</p><p style="text-align: justify;">यूँ तो तस्वीरें बोलती ही हैं लेकिन अगर ये मनोज रांगड़ के कैमरे से खींची हों तो रुकिए! ये तस्वीरें आपसे संवाद भी करेंगी. उनका कहना है कि फोटोग्राफी उनका पेशा नहीं, ये तो उनका जुनून है या कह लो कि सुकून भी.</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiDqHieLkazwTZwZ9oFwRH138CKvDO1EkIsZ36HAM81xHZU3jhCYR-ct7yOGSHQ2HIxsFbKj8zMPmuwP1BxDAUERtHp_KewurZx78TEiFhzWXtaVG2ufKaHaVsZiWZJpT0cU3tAEI0dxjcB/s1121/Manoj+Rangar+Photo-03.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="https://www.bolpahadi.in/2021/08/uttarakhand-nature-cinematographer-dr-manoj-rangad.html" border="0" data-original-height="1121" data-original-width="750" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiDqHieLkazwTZwZ9oFwRH138CKvDO1EkIsZ36HAM81xHZU3jhCYR-ct7yOGSHQ2HIxsFbKj8zMPmuwP1BxDAUERtHp_KewurZx78TEiFhzWXtaVG2ufKaHaVsZiWZJpT0cU3tAEI0dxjcB/w134-h200/Manoj+Rangar+Photo-03.jpg" title="प्रकृति का हमसफ़र छायाकार डॉ. मनोज रांगड़" width="134" /></a><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiqN6-w5u8U2glIsZ67DrnkalkfPTkms9n9CwGSmcS6OiF3N8ae_NZQF30DrQ8ShE3fBp9SsMaZi2iyZ8UVSI2KkPFBDts0abjN1zGDVFH7PErAWeNxtQy2uKVuKIW8I4_xpqqpcZcY1-BX/s1067/Manoj+Rangar+Photo-04.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="https://www.bolpahadi.in/2021/08/uttarakhand-nature-cinematographer-dr-manoj-rangad.html" border="0" data-original-height="1067" data-original-width="750" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiqN6-w5u8U2glIsZ67DrnkalkfPTkms9n9CwGSmcS6OiF3N8ae_NZQF30DrQ8ShE3fBp9SsMaZi2iyZ8UVSI2KkPFBDts0abjN1zGDVFH7PErAWeNxtQy2uKVuKIW8I4_xpqqpcZcY1-BX/w141-h200/Manoj+Rangar+Photo-04.jpg" title="प्रकृति का हमसफ़र छायाकार डॉ. मनोज रांगड़" width="141" /></a></div><br /><p style="text-align: justify;">मनोज जी टीएसडीसी में प्रबंधक पर्यावरण के पद पर कार्यरत हैं. वही ओशो ध्यान केंद्र से भी जुड़े हैं. जहाँ वे अध्यात्म और ध्यान-योग में लीन होकर स्वामी बोधि वर्त्तमान हो जाते हैं. अध्यात्म दर्शन नहीं है, अध्ययन-आत्म इसका शाब्दिक अर्थ है. तब जब ये आत्मा और प्रकृति के साथ हो तो विग्रह में अलौकिक छवि का उतरना स्वाभाविक ही है.</p><p style="text-align: justify;">आज विश्व फोटोग्राफी दिवस है। ऐसे में प्रकृति के इस चितेरे फोटोग्राफर को शुभकामनाएं तो दी ही जानी चाहिए. उम्मीद है कि आगे भी आपकी आँख और कैमरे के बेहतर सामंजस्य से हमें प्रकृति के अद्भुत नजारे देखने को मिलते रहेंगे जो आप अपने किसी मन के कोने से खींच कर लाते हैं। </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh6ZIhiOWU8nisZ1_gR0Uk8fg5YnN8krWodC2hSvhXFTW5Ab43X0qK3LzOy97FqgNKk13N9cnMVbogd1OijYmVIyTfF0XcI1Lscl1Joa940xiMbkUfdOsBIabUnufCwRlT-11Ql6EnTxf6q/s1020/Manoj+Rangar+Photo-02.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="https://www.bolpahadi.in/2021/08/uttarakhand-nature-cinematographer-dr-manoj-rangad.html" border="0" data-original-height="1020" data-original-width="750" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh6ZIhiOWU8nisZ1_gR0Uk8fg5YnN8krWodC2hSvhXFTW5Ab43X0qK3LzOy97FqgNKk13N9cnMVbogd1OijYmVIyTfF0XcI1Lscl1Joa940xiMbkUfdOsBIabUnufCwRlT-11Ql6EnTxf6q/w147-h200/Manoj+Rangar+Photo-02.jpg" title="प्रकृति का हमसफ़र छायाकार डॉ. मनोज रांगड़" width="147" /></a></div><p style="text-align: justify;">प्रत्येक वर्ष एक जनवरी को वे ऋषिकेश में राकेश सहाय जी की स्मृति में फोटो प्रदर्शनी का आयोजन करते हैं जो कला प्रेमियों के इन चित्रों को बेहद करीब से देखने और समझने का एक मौका होता है।</p><p style="text-align: justify;">आप और आपके सहयोगी संदीप अवस्थी को पुनः इस अवसर पर ढेर सारी शुभकामनाएं.</p><table cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="float: left;"><tbody><tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiOCC2NdC9UxPzt2iO3A6artIM11wKPP7YrVNp4cmSYxlGA8NgJPcnl-CrnNlEh48Cz8WX8b35IIpwiq0EbCJm5F-kUrmUcKdVO5FbD0-T6kdbRk_x53yt8lwtL0Zr4yv_MOyBh3du76cgV/s246/Manoj+Rangar1.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; margin-bottom: 1em; margin-left: auto; margin-right: auto;"><img alt="https://www.bolpahadi.in/2021/08/uttarakhand-nature-cinematographer-dr-manoj-rangad.html" border="0" data-original-height="231" data-original-width="246" height="188" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiOCC2NdC9UxPzt2iO3A6artIM11wKPP7YrVNp4cmSYxlGA8NgJPcnl-CrnNlEh48Cz8WX8b35IIpwiq0EbCJm5F-kUrmUcKdVO5FbD0-T6kdbRk_x53yt8lwtL0Zr4yv_MOyBh3du76cgV/w200-h188/Manoj+Rangar1.jpg" title="Manoj Rangar" width="200" /></a></td></tr><tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><b>- डॉ. मनोज रांगड़</b></td></tr></tbody></table><br /><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><br /></p>Dhanesh Kotharihttp://www.blogger.com/profile/00932460129594239970noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3970556464201003737.post-68939115132466964552021-08-12T09:57:00.000+05:302021-08-12T09:57:16.672+05:30 गढ़वाली भाषा के 'की-बोर्ड' हैं 'नरेन्द्र सिंह नेगी'<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgucy31ktJacrywH9Ly3Y9BpeYnEzf8dpWtiRx8IJVOYdg1fBPNajDv7F5MJyQMsHQP-4D1KE7SZPCxOeuZALJcATQxYIZwOsZpWkc7cHdnWlGEtI3XDYdcYSC2Gmjl7m2rc8VfHlpkXldc/s720/Narendra+Singh+Negi-12.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="https://www.bolpahadi.in/2021/08/narendra-singh-negi-keyboard-of-Garhwali-language.html" border="0" data-original-height="479" data-original-width="720" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgucy31ktJacrywH9Ly3Y9BpeYnEzf8dpWtiRx8IJVOYdg1fBPNajDv7F5MJyQMsHQP-4D1KE7SZPCxOeuZALJcATQxYIZwOsZpWkc7cHdnWlGEtI3XDYdcYSC2Gmjl7m2rc8VfHlpkXldc/w320-h213/Narendra+Singh+Negi-12.jpg" title="narendra singh negi" width="320" /></a></div><br /><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><b>• बीना बेंजवाल</b></p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;">शब्द विभूति एवं लोकानुभूति के माध्यम से गढ़वाली भाषा के संरक्षण, उसके प्रचार-प्रसार में अभूतपूर्व योगदान देने वाले नरेन्द्र सिंह नेगी युग प्रतिनिधि गीतकार एवं गायक हैं। उन्होंने शुरुआती दौर में पारंपरिक लोकगीतों को गाकर गढ़वाली भाषा को एक पहचान दी। लगभग तीन दर्जन कैसेट्स में लोकगीतों, गढ़वाली गीतकारों द्वारा रचे गीतों को गाने के साथ-साथ स्वयं 200 से अधिक गीत रचकर, उन गीतों को संगीत एवं स्वर देते हुए गढ़वाली भाषा के विकास में अपना ऐतिहासिक योगदान देते आ रहे हैं। </p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;">गढ़वाली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की बात जोर-शोर से उठ रही है। बोलने वालों की संख्या कम होते जाने के कारण इसे उस मुकाम तक पहुँचाना चुनौतीपूर्ण है। ऐसी स्थिति में आप गीत, कविता, संगीत एवं गायन के साथ विभिन्न मंचों और अब सोशल मीडिया के माध्यम से भी गढ़वाली भाषा के प्रति जन-जन में लगाव पैदा करते आ रहे हैं। भाषा के जिस मानक रूप को आपने अपनाया है, वह सर्वमान्य एवं सर्वस्वीकृत है। यही कारण है कि आपके गीतों को इतनी ख्याति मिली है। </p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;">अभी तक नेगी जी के चार गीत संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं इनके गीत साहित्य में लोक संस्कृति का आलोक तथा प्रकृति का अपार वैभव बिखरा पड़ा है। 'खुचकण्डी' में संजोई गई गीतों की धरोहर लेकर अपनी गीत यात्रा में आगे बढ़ते हुए 'गाण्यूँ की गंगा अर स्याण्यूँ का समोदर' के गीत गुनगुनाकर सबको आह्लादित करते हुए फिर जनपक्षीय रचनाओं की पोथी 'मुट्ट बोटिकि रख' की सौगात भी आपने समाज को दी है। आपका चौथा गीत संग्रह 'तेरी खुद तेरु ख्याल' फिल्मों के लिए लिखे गए गीतों का संकलन है। </p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;">पहाड़ की अत्यंत विविधतापूर्ण जीवन चेतना को वाणी देने वाले गीतकार नेगी जी ने श्रुतिमधुर शब्दावली का प्रयोग करके गढ़वाली की अकूत शब्द-संपदा से परिचित कराया है। आम बोलचाल की भाषा को आधार बनाकर उन्होंने एक से बढ़कर एक गीतों का प्रणयन किया है। प्रकृति एवं मानव दोनों के रूप चित्रों को इन्होंने बड़े सुंदर ढंग से अपने गीतों में उकेरा है। सूक्ष्म सौंदर्य चेतना एवं विचारों का औदात्य इनके गीतों का प्राण तत्व है। इनकी भाषा कभी बुरांस की लालिमा से मन को रंग देती है तो कभी फ्यूंली की पीताभा से उसे बासंती बना देती है। जहाँ एक ओर हिमालय की भव्यता, उसकी रमणीयता का वर्णन करने वाली इनकी लोकभाषा उसके सौंदर्य से जगमगाती है वहीं दूसरी ओर खाली मकानों, प्यासे बर्तनों, दरकते पहाडों तथा पलायन करते लोगों का दुःख-दर्द बयां करते हुए अंतर्मन को झकझोर देती है। </p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;">नेगीदा की भाषा में स्थानीयता के सभी रंग बिखरे पड़े हैं। ग्रामीण संवेदना के इस गीतकार के गीत लोकभाषा की लयात्मक शक्ति से संपन्न हैं। इन्होंने लोकमाटी का मन पढ़ा है। पहाड़ का लोकजीवन इनके शब्द-शब्द में धड़कता है। खेतों की गूलों से होकर गाड-गदन्यों के संगीत से लयबद्ध इनकी भाषा गंगा-सा रूप धर लेती है। उसमें 'पैंणै' की पकोड़ी का स्वाद है। किसी 'कौथिगेर' के गहनों की छणमणाहट है, बाँसुरी की भौण है और है 'म्वारियों' का रुमणाट। </p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;">लोकजीवन से ऊर्जा ग्रहण करने वाली इनकी भाषा की जड़ें लोकमाटी में गहराई तक धंसी हैं। जिस गढ़वाली को बोलने में हम कतराते हैं इन्होंने उसी की शक्ति को पहचाना और उसे प्रसिद्धि दिलाई। गढ़वाली का शब्द वैभव इनके काव्य में अपनी स्निग्धता एवं भव्यता के साथ दमकता है। अपनी उर्वर कल्पनाशक्ति के बल पर इन्होंने लय और छंद के अनुसार शब्दों को ध्वनियों के सांचों में बखूबी फिट किया है। किसी छुंयाळ की पोल-पट्टी खोलने वाला ये गीतकार खुद खेत, जंगल, धारा, मंगरा, ऊँचे पर्वत, गहरी घाटी तथा डांडी-कांठियों की छ्वीं लगाते नहीं थकता। अनुभवप्रवण इस गीतकार की काव्य प्रेरणा छिल्लों की तरह जलकर अपनी भाषा के प्रति मन में फैले उदासीनता के घटाटोप अंधेरे को पिघलाकर उस परिदृश्य पर एक उजास की तरह छा जाती है। और तब वबरा, खोळी, चौक, खेत, जंगल इतने करीब आ जाते हैं कि उन्हें भेंटने का मन करता है। </p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;">नेगी जी के पास शब्दों की टकसाल है जिससे निकले शब्दों की खनखनाहट इनके गीतों में साफ सुनी जा सकती है और जिसने गढ़वाली के शब्द भण्डार में वृद्धि करके उसे समृद्ध किया है। इनके व्यक्तित्व की सरलता एवं सहजता इनकी भाषा में भी स्पष्टतः दृष्टिगोचर होती है। यांत्रिकता के बहरा बना देने वाले इस शोर में ये झरने, हवा, पंदेरों, गधेरों, वनपाखियों तथा रिमझिम बरखा से धुनें लेकर गढ़वाली को प्राणवान बनाए हुए हैं। जब व्यावसायिकता के इस अंधड़ में हमारी लोकसंस्कृति तथा लोकभाषा नष्ट-भ्रष्ट हो रही हैं, ये एक ग्वाले की तरह भाषा के सुरम्य जंगल में कलम की सोटगी पकड़ उन शब्दों की भी रखवाली कर रहे हैं जो लोकस्मृति से विस्मृत होते जा रहे हैं। संस्कृति और भाषा के ह्रस के इस भयावह समय में भी कलम और सुर का यह सिपाही अपनी भाषा और संस्कृति को बचाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है। </p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;">नेगी जी शब्दों से बट्टी खेलते हैं। लोकमाटी में से खोज-खोजकर उठाए गए ये शब्द इनकी लेखनी से खेले जाते हुए इनके गीतों में अपनी स्फटिक आभा बिखेरते हैं। इनका शब्द वैशिष्ट्य भाषा के बुग्यालों, फूलों की घाटियों, हिंवाळि कांठियों की सैर का ही परिणाम है। एक फुलारी की तरह लोक से चुनकर हर हृदय के द्वार पर रखे जाते उनके पुष्प रूपी कतिपय शब्दों का वैभव इस प्रकार है :-</p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><b>प्रकृति एवं जनजीवन संबंधी शब्दावली-</b></p><p style="text-align: justify;">प्रकृति एवं जनजीवन संबंधी शब्दों के माध्यम से नेगी जी ने हमारी संवेदना की रक्षा का काम किया है। पहाड़ के प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक वैभव को उजागर करने वाले शब्दों का इनके गीतों में समारोहपूर्वक प्रयोग हुआ है। इनकी लेखनी का स्पर्श पाते ही ये शब्द रसीले काफलों की तरह अंतर्मन में एक छपछपी लगा जाते हैं। लोकजीवन एवं लोक संस्कृति के अक्षय रस-स्रोतों से शक्ति प्राप्त करके ही इन्होंने गढ़वाली भाषा को ऊर्जा प्रदान की है। तभी तो ये आत्मविश्वास पूर्वक कह सके हैं -</p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;">मिट्ठी बोली मिट्ठी भाषा, ल्हीजा ई च समळौंण मेरा गौं मा...। नेगी जी के गीतों में इसी मिट्ठी भाषा का शब्द सौष्ठव -</p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><b>प्रकृति - </b></p><p style="text-align: justify;">हिमालै, सुर्ज, जोनि, गैणा, सर्ग, अगास, बरखा, गंगा, जमुना, पाणि, नयार</p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><b>वनस्पति- </b></p><p style="text-align: justify;">बांज, बुरांस, कांस, देवदार, कुळैं, पय्यां, अयांर, माळू, ग्वीर्याळ, रंसुळा, कैल, रिंगाळ, सेमल, तोण, डैंकण, भीमल, खड़ीक, गैंठी, पीपळ, खर्सु, मोरु, कण्डाळ, मळसु, भंगेलु</p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><b>फल- </b></p><p style="text-align: justify;">काफळ, बेडु, भमोरा, तिमला, मेळु, घिंघोरा, हिंसर, किलमोड़, तोतर, आम, अखोड़, स्यो, आरु, अनार, नारंगी </p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><b>फूल- </b></p><p style="text-align: justify;">बुरांस, फ्यूंली, जई, सकीना</p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><b>जीव-जंतु - </b></p><p style="text-align: justify;">गौड़ि, बळ्द, बछुरु, भैंसि, बागि, कुकूर, बिराळ, ढेबरा, बखरा, खाडु, लगोठ्या, बुगठ्या, स्याळ, घ्वीड़, बाघ, बांदर, मूसा, छिपाड़ा, मैर, पोतळि, चिमाड़ा, म्वारि, भौंर, गरूड़, चकोर, कफ्फू, घुघुती, घिंडुड़ि, हिलांस, चोळि</p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><b>महीने (बारामास) - </b></p><p style="text-align: justify;">चैत, बैसाख, जेठ, असाड़, सौंण, भादों, कातिक, मंगसीर, पूस, मोऊ, फागुण </p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><b>ऋतुएँ- </b></p><p style="text-align: justify;">मौळ्यार, बसंत, रूड़, बसग्याळ, चौमास, ह्यूंद</p><p style="text-align: justify;"><b><br /></b></p><p style="text-align: justify;"><b>पहर- </b></p><p style="text-align: justify;">सुबेर, दोफरा, ब्यखुनि, रुमुक</p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><b>मकान संबंधी- </b></p><p style="text-align: justify;">खोळी, देळि, द्वार-मोर, मोरि, डंड्याळी, तिबारि, छज्जा, सतीर, धुर्पुळू, ढैपुरा, ओबरा, पठाळि</p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><b>बर्तन -</b></p><p style="text-align: justify;">ठेकि, कितली, परोठी, तौलि, डिग्चि, थकुलि, डौली, कसेरी</p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><b>अनाज- </b></p><p style="text-align: justify;">ग्यूं, जौ, झंगोरु, कौंणि, चौंळ, भट्ट, गौथ, लय्या</p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><b>भोजन सामग्री - </b></p><p style="text-align: justify;">खीर, दुदभाति भात, दाळ, खिचड़ी, मुंगाणी, रोटि, कोदाळी, भुज्जि, पकोड़ि, मूळै थिंच्वाणी, जख्या की तड़का, माण्ड, च्यापति, ग्यूंकि फुल्की, घ्यू, दूद दै छांछ, नौण, गुड़, चणा, भेली, खाजा, बुखणा, काखड़ी, मुंगरी, ऊमि, सैत</p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><b>घरेलू एवं कृषि उपकरण- </b></p><p style="text-align: justify;">थमाळी, दाथि, कुटळि, जूड़ी, बक्सा जंदरी उरख्याळु, गंजेळि, कुलाड़ि, आरि, छतरु, सिलोटी, हौळ, डिल्लु</p><p style="text-align: justify;"> </p><p style="text-align: justify;"><b>त्योहार - </b></p><p style="text-align: justify;">बिखोति, बग्वाळ, इगास, पंचमी, फूलपाती, होरी</p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><b>देवी-देवता- </b></p><p style="text-align: justify;">गणेस, सिव, नारैण, नरसिंग, नागरजा, भैंरों, बजरंग, भगवती, सरसुती, केदार, बदरी, पण्डौं</p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><b>लोकगीत / लोकनृत्य- </b></p><p style="text-align: justify;">झुमैलो, थड़्या, चौंफला, बाजूबंद</p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><b>वस्त्र- </b></p><p style="text-align: justify;">झुलि, साड़ी, धोती, बिलोज, सदिरि, चदिरि, टल्खि, टोपलि </p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><b>गहने- </b></p><p style="text-align: justify;">नथुलि, हंसुळि, मुरखलि, बिसार, सूत, चूड़ी, धागुला, झंवरा</p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><b>श्रृंगार सामग्री -</b></p><p style="text-align: justify;">बिन्दी, बेंदुली, फोन्दि, सुरमा, टिकुलि, लालि, पौडर</p><p style="text-align: justify;"> </p><p style="text-align: justify;"><b>रिश्ते-नाते-</b></p><p style="text-align: justify;">ब्वे, बोई, बाबा, नौनि, नौनु, बोडा, बोडी, कक्का, काकी, दादि, दादा, भै, बैण, भैजि, दिदा, बौ, भौजि, स्वामी, द्यूर, द्यूराण, जेठ, जिठाण, भेना, स्याळि, सासु, ससुर, ब्वारि, नाति, नतेणा, मयेड़ी, समदेण, सौत, गैल्या, सौंजड़्या</p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><b>शरीरांग -</b></p><p style="text-align: justify;">दंतुड़ि, उंठिड़ि, आंखि, डेबळी, कंदुड़ि, मुक्क, मुखड़ि, गिच्चु, जीब, चौंठि, गौळि, मूण, कांध, जिकुड़ि, मुंड, अंगोठु, भट्यूड़, खोपरि, कपाळी, कंदुड़ि, लटुलि, धौंपेलि, हात, गलोड़ि, हटगि, हत्थि-खुट्टि, हतगुळी, पोटगी, गेर, फांड, घुण्डा, फिफना, कळेजी, कमर, </p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><b>बीमारी - </b></p><p style="text-align: justify;">मुण्डारु, बुखार, दाड़ पिड़ा, पिसड़ा </p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><b>समूहवाची -</b></p><p style="text-align: justify;">घिमसाण, फौज, कछड़ी, भीड़, पंचैत, कुटुमदारि, मौ, मवासि, पट्टी, कौथिग, रैली</p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><b>जीवन की अवस्थाएँ- </b></p><p style="text-align: justify;">बाळापन, ज्वानि, बुढ़ापा </p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><b>भाव एवं कार्य - </b></p><p style="text-align: justify;">भल्यार, खुद, सुदबुद, सक्क, स्येळि, निवाति, पुजै, अंग्वाळ, फाळ, बौलु, बिस्वास, सेवा, निंद, सगोर, मान, निसाब, भलै, बुरै, मजुरि, बिरधी, भयात, मनख्यात, चाल, जस, असंद, भरम, घंघतोळ, हौंस, यकुलांस, बैराग, बैम, भरमणा, भमाण, सांसु, टक, पिड़ा, आस, सेक्कि, उमाळ, त्रास, माया, प्रेम, खैरि, चैन, सरधा, सर्म, गैलु, तीस, कुतगिळि, भताग, छुछकार, पाण, पछ्याण, किरपा स्याणि, असगार, फजितु, बिणास, </p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><b>विशेषण शब्दों का सौंदर्य- </b></p><p style="text-align: justify;">नरेन्द्र सिंह नेगी जी की रंगों की छटा बिखेरती शब्दावली में हिंवाळि कांठी चांदी तथा पितलण्यां मुखड़ी सूनै के रंग में रंगी नजर आती हैं। 'किरमिची केसरी रंग की बार प्रेम के रंग में भिगो देती है। भाषा भी नीली, पिंगळी, हैरि लाल मुखड़ी लिए गुलाल मलने को उत्सुक दिखाई देती है।</p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><b>स्वभाव संबंधी शब्द द्रष्टव्य हैं- </b></p><p style="text-align: justify;">मयाळु, जिदेरि, हौंसिया, रंगमतु, रसिया, बौळ्या, मायादार, उदमातो, लाटी, खुदेड़, निरदैई, निठुर, रिसाड़, नखर्याळ, छुंयाळ, ज़ुल्मी, झूटा, खुसमिजाज</p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><b>स्वाद- </b></p><p style="text-align: justify;">मिट्ठी, खट्टि, कड़ि, चटपटु चरचरु, बरबरु, चलमला, मरचण्या</p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><b>स्पर्श -</b></p><p style="text-align: justify;">गुंदक्यळि, निवाति, ताती, कठोर, कुंगळि</p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;">(नेगी जी की लेखनी से निःसृत खड्योणी, निहोण्या, निरभागी तथा बेमान जैसे नकारात्मक विशेषण भी शिकवे-शिकायत के लहजे में ही सही पर संबोधित व्यक्ति के प्रति विशेष लगाव एवं अनुराग की प्रतीति कराते हैं। </p><p style="text-align: justify;">सुपिन्या अर्थात् सपनों के लिए 'चलमला', मजाक के लिए 'खट्टि', गाळि के लिए 'मिट्ठी', माया के लिए 'खोटी' तथा बाटों यानी रास्तों के लिए 'सौतेला' जैसे विशेषणों का प्रयोग अनूठा है।) </p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><b>उनके गीतों में प्रयुक्त कुछ विशेषण विशेष्य - </b></p><p style="text-align: justify;">मायादार आँखि, तैलु घाम, बिगरैला बैख, रौंत्यळो मुलुक, अधीतो पराण, चटपटु ठुंगार, रूखा डांडा, मौळ्यां घौ, कंकर्याळू घ्यू, हौंसिया उमर, छुंयाळ आँखि, झुटा सुपिन्या आदि।</p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><b>अनुकरणमूलक क्रिया विशेषणों का सौंदर्य- </b></p><p style="text-align: justify;">नेगी जी के गीतों में अनुकरणमूलक शब्दों की द्विरुक्ति से बनने वाले क्रिया विशेषण शब्दों का प्रयोग बड़ी खूबसूरती से हुआ है। यथा- खिल्ल-खिल्ल हैंसद जांद, खित-खित हैंसण, धमा-धम्म हिटण, टप्प-टप्प ह्यूं -सी गळण, ठुमुक -ठुमुक हिटीकि ऐ, सुरक सुपिन्यों मा ऐक, घळ्ळ घूळण, चट्ट चीमिली, घट्ट घूट्यालि, झम्म झौळ लगण, खळ्ळ खतेण, खस्स रड़दि गयूं, गर्र निंद पड़ण, सराररा कुयेड़ी छैगे, हिरिरिरि बर्खा झुकी आंद, तराररा झुलि रुझैगे, झराररा जिकुड़ि झुराण तथा छुळ्ळ-छुळ्ळ देखण।</p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;">नरेन्द्र सिंह नेगी जी की शब्दावली को जब समूचा उत्तराखंड समझता है तो उनके गीतों में प्रयुक्त गढ़वाली शब्दों को ही मानक मानने में एतराज नहीं होना चाहिए। साफ शब्दों में हम कह सकते हैं कि नेगी जी गढ़वाली भाषा के 'की बोर्ड' हैं। </p><p style="text-align: justify;">(गढ़ नंदनी 2011-12 में प्रकाशित लेख का अंश)</p><p style="text-align: justify;">फोटो साभार- विनय केडी </p><p style="text-align: justify;"><br /></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEglwCOxcEc5uz2drnuLWPf54fqKb9bI7zZCsBaCS_RCbthXXs9I18T7xCsMRdDPWFW3WpAB97g4GuQLaoCWFxr3EB4HnNFMkriAjb2QfHzhffqLYGZLm1NHRf9HzrvoQ9wUy6wnQ-ek_iqr/s379/Beena+Benjwal-04.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="https://www.bolpahadi.in/2021/08/narendra-singh-negi-keyboard-of-Garhwali-language.html" border="0" data-original-height="374" data-original-width="379" height="198" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEglwCOxcEc5uz2drnuLWPf54fqKb9bI7zZCsBaCS_RCbthXXs9I18T7xCsMRdDPWFW3WpAB97g4GuQLaoCWFxr3EB4HnNFMkriAjb2QfHzhffqLYGZLm1NHRf9HzrvoQ9wUy6wnQ-ek_iqr/w200-h198/Beena+Benjwal-04.jpg" title="beena benjwal" width="200" /></a></div><p style="text-align: justify;"><span style="color: #800180;">(लेखिका बीना बेंजवाल उत्तराखण्ड में गढ़वाली और हिंदी भाषा की वरिष्ठ साहित्कार हैं)</span></p>Dhanesh Kotharihttp://www.blogger.com/profile/00932460129594239970noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-3970556464201003737.post-39847949197515294852021-07-14T11:08:00.001+05:302021-07-14T11:08:11.422+05:30 विलक्षण, बहुमुखी, प्रखर मेधा के धनी हैं ‘गणी’<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj6cOXa_8Z-Qh-FY8DjxGn7Me8vo19SkKNnqWKOZMib23BUd58p_207mV_NRZEjnWUBz4FgTk46nNi3GV3PiFmFFOFTzp67Y9lg0u64By3PFc0p5kPb5Ud_69PrCryqKTfgzQOaCMcNNlF2/s609/Ganesh+Khugshal+%2527gani%2527.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="https://www.bolpahadi.in/2021/07/Gani-is-unique-versatile-rich-in-intelligence.html" border="0" data-original-height="609" data-original-width="500" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj6cOXa_8Z-Qh-FY8DjxGn7Me8vo19SkKNnqWKOZMib23BUd58p_207mV_NRZEjnWUBz4FgTk46nNi3GV3PiFmFFOFTzp67Y9lg0u64By3PFc0p5kPb5Ud_69PrCryqKTfgzQOaCMcNNlF2/w164-h200/Ganesh+Khugshal+%2527gani%2527.jpg" title="ganesh khugshal gani" width="164" /></a></div><br /><b><br /></b><p></p><p><b>• नरेंद्र कठैत - </b></p><p><br /></p><p>अग्नि, हवा और पानी- इन तीन ईश्वर प्रदत्त तत्वों के बिना जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। चाहे हम मंगल तक की दौड़ लगा लें या दूर प्लेटो तक की। किंतु जहां जीव जगत के लिए ये तत्व हितकर हैं वहीं इनकी अति भी अहितकर सिद्ध हुई। इसलिए ये तीन तत्व हमारे लिए अमरतत्व भी हैं और गरल भी। किंतु जिसने इन तीन तत्वों में स्वयं को ढालने की आत्मशक्ति विकसित कर ली वही सच्चा साधक है और लोकप्रिय भी। सच्चे साधक और लोकप्रियता की इसी श्रेणी में आते हैं विलक्षण, बहुमुखी, प्रखर मेधा के धनी, मातृभाषा प्रेमी भ्राता गणेश खुगशाल ‘गणी’!</p><p><br /></p><p>गणी दा की गिनती जनप्रिय अथवा लोकप्रिय महानुभावों की श्रेणी में यूं ही नहीं होती। मंच संचालन और गणी- यह अब एक किवदंती सी है बन पड़ी। किंतु मंच संचालन और ध्वनि यंत्रों से पहले आपकी सजग जनपक्षीय लेखन यात्रा 1989 से 2001 तक क्रमशः ‘दैनिक अमर उजाला’ तथा ‘दैनिक जागरण’ के संवाददाता से शुरू हुई। यकीनन कविताएं उससे पहले भी आपके लहू में रही होंगी। स्वनामधन्य गीतकार नरेन्द्रसिंह नेगी का सानिंध्य मिला तो भाषा पर पकड़ और कविता की समझ बढ़ी। अतः यह लिखने में भी कदापि गुरेज नहीं कि आप आज जहां पूर्णकालिक पत्रकार हैं वहीं सजग कवि भी हैं और गूढ़ साहित्यकार भी! और यूं- चाहे वह किसी भी क्षेत्र की रही हो जमीन- तपे, मंझे, सधे ‘गणी दा’ जहां खड़े हुए- वहीं उन्होंने अपनी एक अलग ही छाप छोड़ी। </p><p><br /></p><p>अलग छाप और छपे हुए दस्तावेजों के बीच सन 2014 में ‘विनसर प्रकाशन’ से ‘वूं मा बोलि दे’ नाम से एक पुस्तक निकली। पुस्तक के लेखक हैं- गणेश खुगशाल ‘गणी’। लेकिन यह बात हर पाठक, कलमकार के मन में निश्चित रूप से उठी कि दशकों से लेखनरत और संचयन में इतनी देरी? वास्तव में- एक लम्बे अंतराल के बाद गणी दा के संचयन की यह पहली कसरत थी। किंतु कभी भी, किसी को भी अलग से गणी दा को संचयन में देरी का कारण पूछने की जरूरत नहीं पड़ी। क्योंकि उन्होंने इसी संकलन में लिखा है कि -</p><p><br /></p><p>‘किताब की सकल ल्हेकि तुम तक पौछण मा सत्ताईस साल लगि गेनि मेरी कविता तैं। मंच मा त मि कविता छंटि-छंटि ल्यांदो छौ। सुणदरौं तैं सुन्दर लगदि छै तब छपछपि पड़ि जांदि छै। पर किताब छपण मा डौर लगदि छै कि न हो क्वी कुछ बोलु, किलैकि किताब मा त सबि बानी कवितौंल औंण छौ। अब, जब सर्या किताब छाप्याली त इन डौर लगणी छ कि न हो क्वी कुछ बि नि बोलु।... ई सर्या जंकजोड़ छ ‘वूं मा बोलि दे’। </p><p><br /></p><p> गणी दा! भले ही अपने इस काव्य संग्रह को सताईस साल का जंकजोड़ कह लें लेकिन पिछले दो दशक में इतने मंझे हुए अंदाज में गढ़वाली भाषा का कोई काव्य संग्रह मेरी दृष्ठि में आया ही नहीं है। इस काव्य संग्रह में गणी दा ने विभिन्न काल-खण्डों में लिखी गई रचनाओं को मैत बिटि, गौं गाळ, उकरान्त, हमारा मनै, जीवन मा, आणौं मा कविता, ब्वन पर औंदन त, नीत्यूं कि नीति जैसे खण्डों में उनके भावों के अनुरूप अभिव्यक्ति दी है।</p><p><br /></p><p>आपके भावों की अनुभूति में माँ पहली पंग्ति में है। माँ पर आपने भावनाएं गहराई से व्यक्त की हैं। माँ को संबोधित करते हुए लिखा है-</p><p><i>‘त्यरा खुटौं कि/बिवयूं बिटि छड़कद ल्वे</i></p><p><i>पर तू नि छोड़दि</i></p><p><i>ढुंगा माटा को काम</i></p><p><i>आखिर/कै माटै बणीं छै तु ब्वे?’</i></p><p><br /></p><p>-या-</p><p><i>सर्रा पिरथ्या दुख वींकै भागौ छा धर्यां/अर वींल बोटि मुट्ठ अर सबि दुख वां मा अटर्यां।’ - या कि- ‘जुगु-जुगु बिटि ज्यूंदि छ वींकि प्रीत/यांलै सैरि दुन्या लगांद अपणि ब्वे का गीत।’</i></p><p><br /></p><p>-अथवा-</p><p><br /></p><p><i>‘तब अच्छि लगिन/घासै पूळ अर लखड़ू बिट्गि/फुल्यूं लया, धण्ये क्यारी/ पिंगळी मर्च, लगुलि उंद लगीं कखड़ि/ गोड़ि बाछि, ठेकि मा पिजयां दूधौ फेण/ हैरि गिंवड़ि भ्वरीं सट्यड़ि/ जबरि तक ब्वे बचीं रै।’ </i></p><p><br /></p><p>निसंकोच कह सकते हैं कि मां पर लिखे आपके ये एक अलग ही ढंग के काव्याचरण हैं।</p><p><br /></p><p>इसी संचयन के मध्य ही कर्मठ नारी की महिमा भी उच्च कोटी की लिखी है- ‘यूं डांडौं मा यूं डांडौं से बड़ो फंचु च वीं मा।’ और- शृंगारिक छवि देखिए- </p><p><i>‘मिन तेरी आंख्यू मा देखी/ पिंगळदप्प फूल कखड़ि को....। मिन तेरी आंख्यूं मा देखी/ कौंपदा ह्यूंद मा खिल्दु पयां।’ </i></p><p>लेकिन पहाड़ में अब वह रौनक कहां! पहाड़ से जो नीचे उतरा वह ऊपर चढ़ने का साहस न बटोर सका। और अपने पीछे छोड़ गया सुनसान घर आंगन और दरवाजे पर लटकता ताला। ताले के लीवर को भी कुछ समय बाद जंक चाट गया। </p><p><br /></p><p>लिखते हैं गणी दा!-</p><p><i>‘जब बोलण पर अंदिन कूड़ि/ त आदम्यूं से जादा बोलदन....</i></p><p><i>हम त वूंको भरोसु छां जो/हमूं तैं यूं मोरुंद लटकै गेनी/ लोग लीवर बोलदन ज्यां खुणि/ हमारि त अंदड़ि चाट्यलिन जंकन।’ </i></p><p> या-</p><p><i>कइ कूड़ि यन्नि कि/ अगनै ताळा लग्यां अर पिछनै कूड़ि खन्द्वार होंयीं।.../ वूं खंद्वार कूड़यूं का भितर जमीं कंडळी/ पौंछिगे धुरपळा तक/ व झपझपि कंडळी लपलपि ह्वेकि बोनी कि/ मि कबि नि जमदू कैका भितर...’</i></p><p><br /></p><p>कवि का कार्य मात्र लिखना भर नहीं। कवि का एक संदेश उनके लिए भी है जिन्होंने वर्षों से अपना पुस्तैनी घर देखा ही नहीं है।-</p><p><i>‘पुंगड्यूं का ओडा जख्या तखि छन/सरकंदरा क्वी नि छन</i></p><p><i>ऊंको दुबलो/हमारा पुंगड़ सौरिगे</i></p><p><i>वूं मा बोलि दे।’ </i></p><p><br /></p><p>किंतु संदेश पहुंचाकर भी क्या करें? क्योंकि आबाद गांवों की स्थिति भी बड़ी अजीबोगरीब हो गई है। गांवों वह अजीबोगरीब तस्वीर आपने कुछ यूं खींची है- </p><p><i>‘दिनभर तास ख्यलदा बैख/ य त गौं का घपलै पंचैत। - ईं दुन्या मा क्या ई गौं रे गे छौ सल्यूं को/ सर्या पिरथ्या सल्लि यखि छन सड़णां..../ हे भगवान!/ तेरा ईंइ गंवड़ि खुणि छा यि धर्यां/ यि यख नि होंदा त क्या/ बांझ पड़ि जांदो यो गौं?’ </i></p><p><br /></p><p>इसी कृति में जहां-तहां व्यंग्य के तंज उनके असरदार ढंग को कुछ यूं व्याख्यायित करते हैं - </p><p><i>‘उन त जुत्ता लोगु खुणै की बण्यां छन/ पर लोग ईं बात मनौ तयार नि छन/ जुत्तौं बिगर क्वी चलदु नी/ अर जुत्ता चलदन त क्वी बरदास्त करदु नी’ - ‘ ह्वे सकद कैको बि पाटु-पैणु, हुक्का-पाणी बंद/ कैकि बि देळमि क्वी बि धैर सकद खंद/ जब बिटि मेरा गौं को एक आदिम मंत्री बण।’ और एक सलाह - ‘आज वूनै कैदे तू टटकार/ दारू मासु वळौं का बीच अंक्वे रौणू/ खबरदार!’ </i></p><p> </p><p>खबरदार! सचेत होना भी चाहिए। अन्यथा सभी प्रतीक चिन्ह स्मृति में ही रह जाएंगे। कवि ने लिखा भी है- </p><p><i>’एक तरफ जांदरू छ जांदरौ हथन्यड़ु छ/ जांदरा ये हथन्यड़ा पर/ कथगै दौं बंध्यूं रै मेरू खुट्टू/ जब ब्वे चलि जांदि घास, लखड़ू...। - न कैल देखी न कैल सूणी/ झणि कब अफ्वी-अफ्वी/ कै खटला मूड़/ मोरिगे/ कुण्या बूढ़। - चुल्लि बोनी मित जन बोलेंद अळ्येग्यों - भड्डु / न त लमडु/ न टुटु/ पर न फुटु/ पर जख गै होलु/ स्वादी स्वाद रयूं। - यह भी कि- झणि कब समझलि भागीरथी कि/ टीरी कि जैं ढण्डि उंद व प्वणीं छ/ वींई ढण्डि उंद भिलंगना बि म्वरीं छ/ अब द्वी का द्वी/ साख्यूं तक रैलि टीरी की की ईं ढण्डि उंद रिटणी।’ इतने गहरे बिम्ब वही ला सकता है जिसने ग्राम्य जीवन देखा भी हो और भोगा भी।</i></p><p><br /></p><p>इसीलिए- अन्तर्मन में जो है वह अक्षरशः लिखा - </p><p><i>लसम्वड्यां खुटा पर/ कंडळी कि सि झपाक। - कख कैरि जग्वाळ जबारी जोतु तबारी ज्वत्ये ग्यों।’ अथवा ये पीड़ा सतही नहीं है श्रीमान!- ‘हे भगवान/ तू कख ह्वेगे/ अन्तर्धान/ रूणू छ गौं कि/ स्य ह्वेगे भगयान! माया मोह/ त्यारै दियान/ पर/ कैका कथुगु दिन/ सि/ तेरा अफुमै रख्यान।’ </i></p><p>व्यथा सुनायें तो सुनायें किसको? - </p><p><i>‘कै दिन? आलो उ दिन/ जैका सार कटेणा छन इ दिन/ कै दिन? आलो उ दिन/ जैका सार बीतिगे आजौ ...?’ </i></p><p><br /></p><p>फिर भी तमाम विसंगतियों के बाद भी कवि मन में हताशा नहीं है। और-चाहते हैं कुछ न कुछ बचे तो! विश्वास न हो तो पढ़ो! - </p><p><i>‘ये लोळा डरौण्या बगत मा बि/कथगा चीज छन हमुम बचैणौं/बस-/बच्यां रै जैं लोग/ बच्यां रै जैं गौं।’ क्या सतही कह सकते हैं हम इस प्रकार की भावना को? </i></p><p>भाषा से जुड़े इन्हीं आचार-विचार और संस्कारों को बचाने की मुहीम में तल्लीन हैं पिछले चार दशकों से भ्राता गणी! स्वनाम धन्य नरेन्द्र सिंह नेगी ने आपकी पुस्तक में अपनी बात ‘कबितौं की सार-तार’ अंश में लिखा भी है कि- <i>‘गढ़वाळी भाषा थैं पयेड़ा लगै-लगै कि ठड्याण वळौं मा गणेश खुगशाल ‘गणी’ को भौत बड़ो योगदान छ। मातृभाषा का प्रति वेको प्रेम अर आदर वेकि कबितौं का साथ-साथ वेका सुभौ मा भी सदानि दिखेणू रौंदू।’</i></p><p><br /></p><p>भाग दौड़ आपके जीवन में कुछ ज्यादा ही रही! या यूं भी कह सकते हैं कि आप गृहस्थ हैं लेकिन गृह सीमित कभी रहे नहीं। लेकिन 22 मार्च 2008 को इसी भाग दौड़ के बीच में सुबह सबेरे एक दुर्घटना घटी। देहरादून से पौड़ी आते हुए देवप्रयाग से पहले ड्राइवर ने शिव की विशाल मूर्ति की पीठ देखी और वाहन की स्पीड कुछ ज्यादा ही बढ़ा दी। और एकाएक जीप ड्राइवर से संतुलन खोकर गहरी खाई में जा गिरी। उस दुर्घटना में सात लोगों की सांसें दुबारा लौटकर नहीं आई। किंतु त्रिनेत्र की वही पीठ गणी दा का सहारा बनी। वरना उस सीधी खड़ी चट्टान में जीवन देने की क्षमता कहां थी? आज भी आते-जाते उस खड़ी चट्टान पर जब दृष्टि पड़ती है तो लगता है वो एक दुस्वप्न था हकीकत हो ही नहीं सकती है। खैर अरिष्ठ छटे! विघ्न हटे! कृपालु रहे वही महादेव!</p><p> </p><p>इसी दुर्घटना के बाद कुशलक्षेम के उदेश्य से- एक दिन गणी दा से आत्मीयता पूर्वक ये शब्द कहे- ‘गणी दा! अब दौड़ भाग कम करदें! जादा दौड़ भाग बि ठीक नहीं है!’</p><p>आपने जवाब दिया- ‘भाई साहब दौड़ धूप नहीं होगी तो घर-परिवार....!’ बात भी सही कह गए गणी दा! सन्यासी हो तो एक जगह पालथी मार लें! दहलीज से बाहर निकलना ही होगा अगर घर परिवार है। लेकिन जीवन यापन के लिए कठिन संघर्ष के साथ-साथ कला, सहित्य, संस्कृति के लिए आपका काम निसंदेह प्रशसंनीय है।</p><p><br /></p><p>एक प्रतीक और जुड़ा है गणी दा से। वह है उनका थैला! सदाबहार लटकता हुआ कांधे से! एक बार अवसर मिला तो पूछा- ‘गणी दा! क्या रहता है आपके इस थैले में?</p><p>जवाब मिला -एक डायरी और एक पैंट।</p><p>- पैंट क्यों?</p><p>- वो इसलिए कि न जाने बीच में ही कहीं और की राह पकड़नी पड़े।’ </p><p><br /></p><p>हम जानते हैं आम जीवन में आम आदमी के लिए राजमार्ग नहीं बल्कि उबड़-खाबड़ पथरीली रास्ते होते हैं। लेकिन सत्य यही है कि इन्हीं रास्तों पर चलते-हिलते-मिलते गणी दा ने भांति-भांति के अनुभव हासिल किये हैं। यही कारण है कि बात विचार ही नहीं अपितु गणी दा की कार्य संस्कृति भी समकालीनों से एकदम हटकर के है। यह कहने में भी कोई संकोच नहीं है कि कुछेक साहित्यिक विमर्षों पर आपसे मतभेद जरूर रहे हैं। हो सकता है ये मतभेद आगे भी रहेंगे। लेकिन मनो में भेद कभी भूल से भी नहीं पनपे हैं।</p><p><br /></p><p>मूल साहित्य, कला, संस्कृति के अभेद किले में गणी दा कुछ न कुछ सृजनात्मक करते ही रहते हैं। उसी सृजनात्मकता के अक्स जब-तब धरातल पर दिखते भी रहे हैं। गढ़वाली ही नहीं बल्कि हिंदी में भी गद्य-पद्य दोनों विधाओं में समान अधिकार रखते हैं। गढ़वाली भाषा में ‘प्राथमिक पाठशाला’ के लिए पाठ्यक्रम तैयार करवाने में आप महति भूमिका में रहे हैं। कई पुस्तकों की भूमिका, अनुवाद तथा पत्र पत्रिकाओं के संपादकीय अंश भी आपके वृहद अनुभव से ही लिखे गये हैं। वर्तमान में गढ़वाली मासिक पत्रिका ‘धाद’ के सफल संपादक कर रहे हैं। साथ ही कई प्रतिष्ठानों में व्याख्याता, परामर्शदाता के रूप में भी अपनी नियमित सेवायें दे रहे हैं। समग्रता से यदि कहें तो आप व्यस्तता में भी व्यस्त ही रहे हैं।</p><p>गणी दा! सत्य यह है कि आप तन मन से मातृभाषा की सेवा में जुटे हुए हैं! कर्मशील हैं तो कई सम्मान, पुरस्कार आपके खाते में स्वतः ही आये हैं। अन्तर्मन से निकट भविष्य में हम साहित्य, संस्कृति, सामाजिक सरोकारों में आपकी उपस्थिति का और अधिक विस्तार देख रहे हैं!</p><p>मां सरस्वती के आगे इसी मनोकामना के निम्मित ये हाथ जुड़े हैं!</p><p><br /></p><p><b>( लेखक उत्तराखंड के वरिष्ठ साहित्यकार हैं )</b></p>Dhanesh Kotharihttp://www.blogger.com/profile/00932460129594239970noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3970556464201003737.post-5924963582180108152021-06-18T10:49:00.002+05:302021-06-19T17:17:48.516+05:30 अब नहीं दिखते पहाड़ के नए मकानों में उरख्याळी गंज्याळी<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6OeMO-Z2eU00IlpuP1WLcZpv6Pkeu9oxq_jQ_6i-QMSGo5G_fsYCJQcr2RwFNfldIvHi24wgzUyFMyjuXdwdBl0EAkN_9VOWja11rXJNbl31Sqh_MaLDXJI24arnZjdFxU1kgin30l4je/s863/okhal+in+garhwal.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="https://www.bolpahadi.in/2021/06/ab-nahi-dikhatye-pahad-ke-naye-makanon-men-urkhyali-ganjyali.html" border="0" data-original-height="591" data-original-width="863" height="219" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6OeMO-Z2eU00IlpuP1WLcZpv6Pkeu9oxq_jQ_6i-QMSGo5G_fsYCJQcr2RwFNfldIvHi24wgzUyFMyjuXdwdBl0EAkN_9VOWja11rXJNbl31Sqh_MaLDXJI24arnZjdFxU1kgin30l4je/w320-h219/okhal+in+garhwal.jpg" title="उरख्याली-गंज्याली" width="320" /></a></div><br /><p style="text-align: justify;"><b>- डॉ. सुनील दत्त थपलियाल</b></p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;">ओखली अब हिन्दी की किताबों में ‘ओ’ से ओखली के अलावा शायद ही कहीं देखने को मिले. उत्तराखंड में ओखली को ओखल, ऊखल या उरख्याळी कहा जाता है. आज भी किसी पुराने मकान के आँगन में ओखल दिख जायेगा.</p><p style="text-align: justify;">आज यह घर के आँगन में बरसाती मेढ़कों के आश्रय-स्थल से ज्यादा कुछ नहीं लगते हैं. एक समय था जब ओखल का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान हुआ करता था, हमारे आँगन का राजा हुआ करता था.</p><p style="text-align: justify;">ओखली को और नामों से भी जाना जाता है. कहीं इसे ओखल तो कहीं खरल कहा जाता है. अंग्रेज़ी में इसे ‘मोर्टार’ (mortar) और मूसल को ‘पॅसल’ (Pestle) कहते हैं. पॅसल शब्द वास्तव में लैटिन भाषा के ‘पिस्तिलम’ (Pistillum) शब्द से सम्बंधित है. लैटिन में इसका अर्थ ‘कुचलकर तोड़ना’ है. मारवाड़ी भाषा में ‘ओखली’ को ‘उकला’ तथा ‘मूसल’ को ‘सोबीला’ कहते हैं. कूटने को मारवाड़ी में ‘खोडना’ कहा जाता है.</p><p style="text-align: justify;">डेढ़ दशक पहले की बात होगी उत्तराखंड के गाँवों में सभी शुभ कार्य ओखल से ही शुरू होते थे. किसी के घर पर होने वाले मंगल कार्य से कुछ दिन पहले गाँव की महिलाएं एक तय तारीख को उस घर में इकट्ठा होती थी. जहाँ सबसे पहले ओखल को साफ़ करते और उसमें टीका लगाते. टीका लगाने के बाद सबसे पहले पांच सुहागन महिलायें अनाज कूटना शुरू करती बाकी महिलाएं मंगल गीत गातीं. इसके बाद सभी महिलाएं और लड़कियाँ मिलकर अनाज, मसाले आदि कूटने और साफ़ करने का काम करती.</p><p style="text-align: justify;">गढ़वाल क्षेत्र में तो ओखली का आज भी मांगलिक कार्य में बहुत अधिक महत्त्व है. गढ़वाल में ओखली को उरख्याली (उरख्याळी) और उसके साथी मुसल को गंज्याळी (गंज्याळी) कहते हैं. आज भी गढ़वाल के गाँवों में मांगलिक कार्य में प्रयोग होने वाली हल्दी उरख्याली में ही कूटी जाती है.</p><p style="text-align: justify;">पुराने समय में पूरे गांव की एक संयुक्त छत के नीचे कई सारी ओखलियाँ हुआ करती थी. आठ बाई छह के इन कमरों में एक से अधिक ओखल हुआ करते थे. इस कमरे को ‘ओखलसारी’ कहा करते थे.</p><p style="text-align: justify;">ओखल उत्तराखंड के जन से बड़े गहरे रूप से जुड़ा है. ओखल को पत्थर के अलावा बांज या फ्ल्यांट की मजबूत लकड़ी से बनाया जाता है. पत्थर से बने ओखल में पत्थर का वजन 50-60 किलो होता है. जिसे डांसी पत्थर कहते हैं. ओखल का पत्थर चौकोर होता है जिसे किसी आँगन में नियत स्थान पर गाढ़ा जाता है. ओखली के चारों ओर पटाल बिछा दिये जाते हैं.</p><p style="text-align: justify;">ओखल ऊपर से चौड़ा और नीचे की ओर संकरा होता जाता है. जो कि सात से आठ इंच गहरा होता है. दिवाली में इसकी लिपाई पुताई की जाती है और इसके पास एक दीपक जलाया जाता है. कहा जाता है कि यह दीपक अपने पितरों के लिए जलाया जाता है.</p><p style="text-align: justify;">ओखल में कूटने के लिए एक लम्बी लकड़ी का प्रयोग किया जाता है जिसे मूसल कहते हैं. मूसल साल या शीशम की लकड़ी का बना होता है. मूसल की गोलाई चार से छ्ह इंच होती है ओर लंबाई लगभग पाँच से सात फीट तक होती है. मूसल बीच में पतला होता है ताकि उसे पकड़ने में आसानी हो. मूसल के निचले सिरे पर लोहे के छल्ले लगे होते हैं. जिन्हें सोंपा या साम कहते हैं. इनसे भूसा निकालने में मदद मिलती है.</p><p style="text-align: justify;">ओखल में महिलायें छिल्के वाले अनाज और मसाले कूटती हैं. धान ओखल में कूटा जाने वाला एक प्रमुख अनाज है. महिलायें धान को ओखल में डालती हैं और मूसल से अनाज पर चोट करती है. जब मूसल की चोट से धान बाहर छलकता है तो उसे महिलाएं पैरों से फिर से ओखल में डालती हैं.</p><p style="text-align: justify;">उत्तराखण्ड में धान को कूटकर खाज्जि, सिरौला, च्यूड़े आदि बनाये जाते हैं. पहाड़ में महिलाओं का जीवन हमेशा कष्टकर रहा है. च्यूड़े, खाज्जि जंगल में उनके भोजन के पुराने साथी रहे हैं.</p><p style="text-align: justify;">पुराने ज़माने में पहाड़ के घरों में सास का खूब दबदबा रहता था. परिवार में बहुओं की स्थिति बड़ी ही दयनीय हुआ करती थी. भर-पेट खाना तक बहुओं को नसीब न था. ऐसे में बहुएं धान को कूटते समय कुछ चावल छुपा कर रख लेती और जंगलों, खेतों में अपनी सहेलियों और साथियों के साथ यह चावल खाती इसे ही खाजा कहते थे.</p><p style="text-align: justify;">आज भी पहाड़ में भाई-दूज के त्यौहार के दिन बहिनें अपने भाई का सिर च्युड़े से पूजती हैं. उत्तराखंड में आज अधिकांश घरों में इसकी जगह पोहा प्रयोग में लाया जाता है. च्यूड़ा बनाने के लिए कच्चे धान को पहले तीन-चार दिन पानी में भिगो कर रखते हैं. फिर इसे भूनते हैं और साथ में ही इसे कूटते हैं. जब दो औरतें बारी-बारी से एक साथ ओखल में धान कूटती हैं तो इसे दोरसारी कहते हैं.</p><p style="text-align: justify;">च्यूड़ा बनाने के लिए कम से कम तीन लोगों का एकबार में होना जरुरी है. एक धान भूनने के लिए, एक कूटने के लिए और एक ओखल में अड़ेलने (करची से हिलाना) के लिए. कच्चे धान को सीधा भूनकर भी सुखाया जाता है. इसे सिरौला कहते हैं. इसे साल में जब भी खाना हो उससे पहले इसे ओखल में कूट लिया जाता है.</p><p style="text-align: justify;">ओखल में जानवरों के लिए बनाये डाले में डाली जाने वाली का सिन्ने की पत्तियों को भी कुटा जाता है. आजकल ओखल का प्रयोग सबसे ज्यादा इसी काम के लिए किया जाता है.</p><p style="text-align: justify;">मशीनों के आने से ओखल हमारे घरों से गायब हो गए हैं. गाँवों में सन् 2000 के बाद बने किसी घर में शायद ही किसी में ओखल भी बनाया हो.</p><p style="text-align: justify;">भले आज उत्तराखंड के गांवों से लोग पलायन करते जा रहे हैं लेकिन इस परम्परा की यादें आज भी दिल में बसी हैं. आज केवल यादें ही शेष रह गई हैं.</p><p style="text-align: justify;"><br /></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjdRFqolPSGdxXorIAnhsVrq8p2lu3Zk_7Nx8amX86VdE5i2WvAETcTwYlzILg8NgWWnqwSHL2E4D1kAPc6xOvRT05dVovpiIM_erwPyAJ6Yv3Vdj_RMeefNPY-jyDRGwJ6zdsiMxTghEkF/s720/Dr.+Sunil+Dutt+Thapliyal.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="https://www.bolpahadi.in/2021/06/ab-nahi-dikhatye-pahad-ke-naye-makanon-men-urkhyali-ganjyali.html" border="0" data-original-height="720" data-original-width="720" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjdRFqolPSGdxXorIAnhsVrq8p2lu3Zk_7Nx8amX86VdE5i2WvAETcTwYlzILg8NgWWnqwSHL2E4D1kAPc6xOvRT05dVovpiIM_erwPyAJ6Yv3Vdj_RMeefNPY-jyDRGwJ6zdsiMxTghEkF/w200-h200/Dr.+Sunil+Dutt+Thapliyal.jpg" title="dr- sunil thapliyal" width="200" /></a></div><br /><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><b><br /></b></p><p style="text-align: justify;"><b><br /></b></p><p style="text-align: justify;"><b><br /></b></p><p style="text-align: justify;"><b><br /></b></p><p style="text-align: justify;"><b>फोटो संकलन- डॉ. सुनील थपलियाल</b></p><p style="text-align: justify;"><b><br /></b></p><p style="text-align: justify;"><b><br /></b></p><div style="text-align: justify;"><br /></div>Dhanesh Kotharihttp://www.blogger.com/profile/00932460129594239970noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3970556464201003737.post-72847162964505302832021-06-17T10:46:00.007+05:302021-06-17T10:49:58.923+05:30 साहित्य प्रेमियों के बीच आज भी जिंदा हैं अबोध बन्धु बहुगुणा<p></p><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><tbody><tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjn3C-XfRfeoN5y6mz2XP4EDXmTKVQmooNsJovRCKZF5ckX_Lhe7BNdbtFkI-KxUzDHfTd_IyNK_t2DdhgEaYamSWtRp2QIbcfPwkx94R0K7QKigWmeTNg9154LpM-AI_CV4sWGDDCe0K3y/s734/Abodh+Bandu+Bahuguna.jpg" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img alt="https://www.bolpahadi.in/2021/06/-abodh-bandhu-is-still-alive-among-literature-lovers.html" border="0" data-original-height="734" data-original-width="720" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjn3C-XfRfeoN5y6mz2XP4EDXmTKVQmooNsJovRCKZF5ckX_Lhe7BNdbtFkI-KxUzDHfTd_IyNK_t2DdhgEaYamSWtRp2QIbcfPwkx94R0K7QKigWmeTNg9154LpM-AI_CV4sWGDDCe0K3y/w196-h200/Abodh+Bandu+Bahuguna.jpg" title="abodh bandhu bahuguna-photo-Harish Dhyani" width="196" /></a></td></tr><tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"></td></tr></tbody></table><b><br /></b><p></p><p><b>- आशीष सुंदरियाल</b></p><p style="text-align: justify;">गढ़वाळी भाषा का सुप्रसिद्ध साहित्यकार अबोध बन्धु बहुगुणा जी जौंको वास्तविक नाम नागेन्द्र प्रसाद बहुगुणा छौ, को जन्म 15 जून सन् 1927 मा ग्राम- झाला, पट्टी- चलणस्यूं, पौड़ी गढ़वाल मा ह्वे। आरम्भिक शिक्षा गौं मा ल्हेणा बाद बहुगुणा जी रोजगार का वास्ता भैर ऐगिन् अर वूंन अपणि उच्च शिक्षा एम.ए. (हिन्दी, राजनीति शास्त्र) नागपुर विश्वविद्यालय बटे पूरी करे। कार्य क्षेत्र का रूप मा वूंन सरकारी सेवा को चुनाव करे अर वो उपनिदेशक का पद से सेवानिवृत्त ह्वेनी। </p><p style="text-align: justify;">अबोध बन्धु बहुगुणा जी को रचना संसार भौत बड़ु छ। गढ़वाळी का दगड़ दगड़ वूंन हिन्दी मा भि भौत लेखी। परन्तु गढ़वाळी साहित्य जगत मा वूंको काम असाधारण व अद्वितीय छ। शायद ही साहित्य कि क्वी इनि विधा होली जैमा अबोध जीन् गढ़वाळी भाषा मा नि लेखी हो।</p><p style="text-align: justify;">भुम्याळ (महाकाव्य), तिड़का (दोहा), रण-मण्डाण ( देशभक्ति कविताएं), पार्वती (गीत), घोल (अतुकांत कविताएं), दैसत (उत्तराखंड आन्दोलन से प्रेरित कविताएं), भारत-भावना (देशप्रेम कविताएं), कणखिला (चार पंक्तियों की कविताएं), शैलोदय (कविता संग्रै) अर अंख-पंख (बालगीत) गढ़वाळी पद्य साहित्य तैं अबोध जी की अनमोल देन छ। </p><p style="text-align: justify;">भुगत्यूं भविष्य (उपन्यास), रगड़वात (कहानी संग्रै), कथा-कुमुद (लघु-कथाएं) अर एक कौंळी किरण (विविध) आदि कृतियाँ अबोध बन्धु बहुगुणा जी को गढ़वाळी गद्य साहित्य मा सृजन का डमडमा उदाहरण छन। </p><p style="text-align: justify;">साहित्य सृजन का अलावा अबोध बन्धु बहुगुणा जीन् जो अद्भुत अर अद्वितीय काम गढ़वाळी भाषा व साहित्य का वास्ता करे वो छ- धुंयाळ (लोकगीत संकलन) अर लंगड़ी बकरी (लोक कथा संकलन) माध्यम से यत्र तत्र बिखर्यां लोक साहित्य को संरक्षण अर गाड़ म्यटेकि गंगा (गढ़वाळी गद्यकारों को संकलन) व शैलवाणी (गढ़वाळी कवियों को संकलन) जनी पुस्तकों को संकलन व प्रकाशन। यो बहुगुणा जी को एक ऐतिहासिक काम छ अर गढ़वाळी भाषा साहित्य का क्षेत्र मा इ द्वी पोथी मील को पत्थर छन अर नया शोधकर्ताओं खुणि प्रकाशपुंज कि तरां काम करदन्।</p><p style="text-align: justify;">नाटक व गीति-नाटिका विधा मा भि अबोध बन्धु बहुगुणा जी न् अपणि कलम चलै अर माई को लाल अर चक्रचाल ( 12 नाटक व 4 गीति-नाटिका) उल्लेखनीय छन। </p><p style="text-align: justify;">गढ़वाळी भाषा साहित्य का अलावा अबोध बन्धु बहुगुणा जीन् हिन्दी मा भि साहित्य सृजन करे। दग्ध-हृदय, सर्वविकृति व अरण्य रोदन आदि वूंकी चर्चित कृति छन। दगड़ मा अन्तिम गढ़, गांव की हरियाली व डूबता हुआ गाँव आदि कुछ नाटक भि भौत प्रसिद्ध छन। </p><p style="text-align: justify;">जीवन-पर्यन्त साहित्य सेवा का वास्ता अबोध बन्धु बहुगुणा जी तैं अनेक साहित्यिक व सामाजिक संस्थाओं द्वारा समय-समय पर सम्मानित बि करेगे। </p><p style="text-align: justify;">भाषा-साहित्य का असाधारण अर अद्वितीय साहित्यकार अबोध बन्धु बहुगुणा जी 5 जुलाई 2005 मा हमरा बीच बटि विदा ह्वेगिन। परन्तु अपणा साहित्य का माध्यम से वो आज भि हरेक गढ़वाळी भाषा प्रेमियों का बीच ज्यूंदा छन। </p><table cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="float: left;"><tbody><tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj_0bTahpTgsVcAfW1NPb6J1bjQLlqN6x_Zl-HpvWgE_0b_JWAvHPtlDyKsRiHGpR5DhaIwtr3kKD7STG6yDSvyJ0LCmp0mPPeSO7tnNYzKPloZaPBfB1eXuqWWvk1gbYAte5hXRJXY_00W/s503/Ashish+Sundriyal.jpg" style="clear: left; margin-bottom: 1em; margin-left: auto; margin-right: auto;"><img alt="https://www.bolpahadi.in/2021/06/-abodh-bandhu-is-still-alive-among-literature-lovers.html" border="0" data-original-height="503" data-original-width="500" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj_0bTahpTgsVcAfW1NPb6J1bjQLlqN6x_Zl-HpvWgE_0b_JWAvHPtlDyKsRiHGpR5DhaIwtr3kKD7STG6yDSvyJ0LCmp0mPPeSO7tnNYzKPloZaPBfB1eXuqWWvk1gbYAte5hXRJXY_00W/w199-h200/Ashish+Sundriyal.jpg" title="Ashish Sundriyal" width="199" /></a></td></tr><tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">Ashish Sundriyal</td></tr></tbody></table><br /><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><b><br /></b></p><p style="text-align: justify;"><b><br /></b></p><p style="text-align: justify;"><b><br /></b></p><p style="text-align: justify;"><b><br /></b></p><p style="text-align: justify;"><b><br /></b></p><p style="text-align: justify;"><b>फोटो- हरीश ध्यानी</b></p>Dhanesh Kotharihttp://www.blogger.com/profile/00932460129594239970noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3970556464201003737.post-41838935057553861972020-05-28T21:21:00.000+05:302020-05-28T21:22:37.953+05:30त्राही-त्राही त्राहिमाम... (गढ़वाली कविता)<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhgPAcwaZDr5Sr1f3iO5qFTv0t1Df2C4MVjVoo-qb85QM5nZVM7W7rUuWpeD8kyqNIz8esmUJKVWQpkzFEdbdxnPz-Wg2ISzox0TxTZg-TuZpNLEiZIanSRzCe7mNIbvFTLjp5zmF0inA8z/s1600/Return+to+home+3.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="https://www.bolpahadi.in/2020/05/blog-post-trahi-trahi-trahimam-gargwali-poem-durga-nautiyal.html" border="0" data-original-height="400" data-original-width="650" height="196" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhgPAcwaZDr5Sr1f3iO5qFTv0t1Df2C4MVjVoo-qb85QM5nZVM7W7rUuWpeD8kyqNIz8esmUJKVWQpkzFEdbdxnPz-Wg2ISzox0TxTZg-TuZpNLEiZIanSRzCe7mNIbvFTLjp5zmF0inA8z/s320/Return+to+home+3.jpg" title="त्राही-त्राही त्राहिमाम... (गढ़वाली कविता) - दुर्गा नौटियाल" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
<b><br /></b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>• दुर्गा नौटियाल</b></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
त्राही-त्राही त्राहिमाम, </div>
<div style="text-align: center;">
तेरि सरण मा छां आज।</div>
<div style="text-align: center;">
कर दे कुछ यनु काज, </div>
<div style="text-align: center;">
रखि दे हमारि लाज।।</div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
संगता ढक्यां छन द्वार,</div>
<div style="text-align: center;">
मुस्कौं न घिच्चा बुज्यान।</div>
<div style="text-align: center;">
खट्टी-मिट्ठी भितर-भैर,</div>
<div style="text-align: center;">
ह्वेगे कनि या जिबाळ।</div>
<div style="text-align: center;">
बिधाता अब त्वी बचो, </div>
<div style="text-align: center;">
ईं विपदा तैं हरो।</div>
<div style="text-align: center;">
करदे कुछ यनु काज, </div>
<div style="text-align: center;">
रखि दे हमारी लाज।।</div>
<div style="text-align: center;">
त्राही-त्राही त्राहिमाम...</div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
पित्र होला दोष देंणा,</div>
<div style="text-align: center;">
देवता होलु नाराज क्वी।</div>
<div style="text-align: center;">
लोग सब्बि बोळ्न लग्यां,</div>
<div style="text-align: center;">
त्वी कारण निवारण त्वी।</div>
<div style="text-align: center;">
मेरा इष्ट, कुल देबतों, </div>
<div style="text-align: center;">
अब त दिश्ना द्या चुचों।</div>
<div style="text-align: center;">
करदे कुछ यनु काज, </div>
<div style="text-align: center;">
रखि दे हमारी लाज।।</div>
<div style="text-align: center;">
त्राही-त्राही त्राहिमाम...</div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
धाण काज अब नि राई,</div>
<div style="text-align: center;">
खिस्सा बटुवा ह्वेगे खालि।</div>
<div style="text-align: center;">
लोण तेल लौण कनै,</div>
<div style="text-align: center;">
लाला बंद करिगे पगाळी।</div>
<div style="text-align: center;">
हे भगवती अब दैणि हो, </div>
<div style="text-align: center;">
ईं बैतरणी तै तरो।</div>
<div style="text-align: center;">
करदे कुछ यनु काज, </div>
<div style="text-align: center;">
रखि दे हमारी लाज।।</div>
<div style="text-align: center;">
त्राही-त्राही त्राहिमाम...</div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
रीता गौं बच्याण लग्यां,</div>
<div style="text-align: center;">
तिवारी हैंसण बैठिगे।</div>
<div style="text-align: center;">
बिसरिगे था जु बाटा,</div>
<div style="text-align: center;">
आज तखि उलार बौडिगे।</div>
<div style="text-align: center;">
हे भूमि का भूम्याल, </div>
<div style="text-align: center;">
तुम दैणा ह्वेजा आज।</div>
<div style="text-align: center;">
करदे कुछ यनु काज, </div>
<div style="text-align: center;">
रखि दे हमारी लाज।।</div>
<div style="text-align: center;">
त्राही-त्राही त्राहिमाम...</div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi8C1ix8_kTUWXzbclp7i8I0yc_hTIiEDm1FhQ5mKgynrqiHqxjsmoLyvZegguAxCB6_SmoqYuDniq-vdeA77ldIiro0QzMmOR3bZt2NHczQn0udfJ6TfuGYNoTAPPosDgFSdUdZadfZYm4/s1600/Durga+Nautiyal.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="https://www.bolpahadi.in/2020/05/blog-post-trahi-trahi-trahimam-gargwali-poem-durga-nautiyal.html" border="0" data-original-height="500" data-original-width="412" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi8C1ix8_kTUWXzbclp7i8I0yc_hTIiEDm1FhQ5mKgynrqiHqxjsmoLyvZegguAxCB6_SmoqYuDniq-vdeA77ldIiro0QzMmOR3bZt2NHczQn0udfJ6TfuGYNoTAPPosDgFSdUdZadfZYm4/s200/Durga+Nautiyal.jpg" title="दुर्गा नौटियाल" width="164" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
<b>(लेखक दुर्गा नौटियाल वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार हैं)</b></div>
Dhanesh Kotharihttp://www.blogger.com/profile/00932460129594239970noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-3970556464201003737.post-36281397164605441762020-05-21T13:52:00.000+05:302020-05-21T13:58:02.871+05:30मैं पहाड़ हूं (हिन्दी कविता)<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiaYqRdryjUZmtDVR4DtriNvm3DQVvT1TTpvs8a65ECgOEjIbGMdccbmmuMd3dtWtvACpwaB2Anz-Vhqy-kkz_myOohGKEkg6CElpC5fCoSa3a0kUXDPGwIS0tOtsxEMny-QNJSHX40Rp8E/s1600/Pahad-Ishan+Bahuguna.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="https://www.bolpahadi.in/" border="0" data-original-height="814" data-original-width="1280" height="203" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiaYqRdryjUZmtDVR4DtriNvm3DQVvT1TTpvs8a65ECgOEjIbGMdccbmmuMd3dtWtvACpwaB2Anz-Vhqy-kkz_myOohGKEkg6CElpC5fCoSa3a0kUXDPGwIS0tOtsxEMny-QNJSHX40Rp8E/s320/Pahad-Ishan+Bahuguna.jpg" title="Himalaya- Ishan Bahuguna" width="320" /></a></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
</div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
<b>• मदन मोहन थपलियाल ’शैल’</b></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
मैं पहाड़ (हिमालय) हूं</div>
<div style="text-align: center;">
विज्ञान कहता है</div>
<div style="text-align: center;">
यहां पहले हिलोरें मारता सागर था</div>
<div style="text-align: center;">
दो भुजाएं आपस में टकराईं</div>
<div style="text-align: center;">
पहाड़ का जन्म हुआ</div>
<div style="text-align: center;">
हिमालय का अवतरण हुआ</div>
<div style="text-align: center;">
सदियों वीरान रहा</div>
<div style="text-align: center;">
धीरे-धीरे </div>
<div style="text-align: center;">
वादियों और कंदराओं का उद्गम हुआ</div>
<div style="text-align: center;">
गंगा पृथ्वी पर आईं</div>
<div style="text-align: center;">
कंद मूल फलों से धरा का श्रंगार हुआ</div>
<div style="text-align: center;">
सब खुशहाल थे</div>
<div style="text-align: center;">
मेरे ही गीत गुनगुनाते थे</div>
<div style="text-align: center;">
शांत एकांत निर्जन विजन</div>
<div style="text-align: center;">
ऋषि मुनियों को बहुत भाया</div>
<div style="text-align: center;">
देवताओं ने अपनी शरणस्थली बनाई</div>
<div style="text-align: center;">
तपस्वी रम गए प्रभु आराधना में</div>
<div style="text-align: center;">
मनीषियों ने ग्रंथ लिखे</div>
<div style="text-align: center;">
काव्य खंड लिखे</div>
<div style="text-align: center;">
चहुंओर </div>
<div style="text-align: center;">
संस्कृति औ संस्कृत की ध्वनि गूंजने लगी</div>
<div style="text-align: center;">
वेदों की ऋचाएं गाई जाने लगीं</div>
<div style="text-align: center;">
आक्रमणकारियों ने मेरी शांति भंग कर दी</div>
<div style="text-align: center;">
आततायियों के भय से</div>
<div style="text-align: center;">
मनुज ने पहाड़ों का आश्रय लिया</div>
<div style="text-align: center;">
पहाड़ सैरगाह बन गए</div>
<div style="text-align: center;">
सब खुशहाल थे</div>
<div style="text-align: center;">
मेरे ही गीत गुनगुनाते थे</div>
<div style="text-align: center;">
मैदानी क्षेत्रों में बस्तियां बसने लगीं</div>
<div style="text-align: center;">
आधुनिक चकाचौंध ने </div>
<div style="text-align: center;">
मेरे अस्तित्व को कम करके आंकना शुरू कर दिया</div>
<div style="text-align: center;">
फिर क्या था</div>
<div style="text-align: center;">
चल पड़े दरिया के मानिंद</div>
<div style="text-align: center;">
मैदानों के विस्तार में अपने को खोने</div>
<div style="text-align: center;">
बस वहीं के हो गए</div>
<div style="text-align: center;">
नौकर बन गए</div>
<div style="text-align: center;">
श्रम, पसीना, मनोबल सब बेच दिया</div>
<div style="text-align: center;">
भौतिक सुख और दो जून रोटी के लिए</div>
<div style="text-align: center;">
बाजार हो गए</div>
<div style="text-align: center;">
योग्यतानुसार दाम तय होने लगे</div>
<div style="text-align: center;">
पैसे की हवस का जादू सिर चढ़कर बोला</div>
<div style="text-align: center;">
सब अधिकार की लड़ाई लड़ने लगे</div>
<div style="text-align: center;">
लेकिन सब व्यर्थ</div>
<div style="text-align: center;">
पलायन रुका नहीं</div>
<div style="text-align: center;">
बहाने लाख बने</div>
<div style="text-align: center;">
मैं आज भी वहीं खड़ा हूं</div>
<div style="text-align: center;">
शांत एकांत सा</div>
<div style="text-align: center;">
अपनों की प्रतीक्षा में</div>
<div style="text-align: center;">
मैंने नहीं, उन्होंने मुझे ठुकराया</div>
<div style="text-align: center;">
मेरी छाती में धमाचौकड़ी करने</div>
<div style="text-align: center;">
फिर आओगे न</div>
<div style="text-align: center;">
मैं सदियों प्रतीक्षा करूंगा</div>
<div style="text-align: center;">
तुम्हारी पग ध्वनि सुनने को उत्सुक</div>
<div style="text-align: center;">
तुम्हारा अपना वैभव</div>
<div style="text-align: center;">
पहाड़ (हिमालय)</div>
<div style="text-align: center;">
<b><br /></b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>पेंटिंग फोटो - ईशान बहुगुणा</b></div>
Dhanesh Kotharihttp://www.blogger.com/profile/00932460129594239970noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3970556464201003737.post-54049540144690170672020-05-20T16:03:00.000+05:302020-05-20T16:03:40.044+05:30कल की सी ही बात है<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjHDY2ahzvWViCCStpaczXq0Ehc3pUWhh996pug9KkMHErZ0oEPixRy6py7MJJtk2vQzkTSUhpDzHuXY94YLgwJGbpR6Ybqn14Uy8CvyyZjM_26LVM1-hbEr5iUKYF7a1qnyAtmc_h0nX5V/s1600/sumitra+nandan+pant.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="https://www.bolpahadi.in/2020/05/blog-post-kal-ki-si-hi-baat-hai.html" border="0" data-original-height="400" data-original-width="600" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjHDY2ahzvWViCCStpaczXq0Ehc3pUWhh996pug9KkMHErZ0oEPixRy6py7MJJtk2vQzkTSUhpDzHuXY94YLgwJGbpR6Ybqn14Uy8CvyyZjM_26LVM1-hbEr5iUKYF7a1qnyAtmc_h0nX5V/s320/sumitra+nandan+pant.jpg" title="sumitra nandan pant" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>• डॉ. अतुल शर्मा</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
प्रकृति के सुकुमारतम कवि श्री सुमित्रानंदन पंत की आज शुभ जयंती है। कल की सी ही बात लगती है कि 1980 के दशक में लेखिका और दिल्ली दूरदर्शन की निदेशिका डॉ. कांता पंत के नई दिल्ली गोल मार्केट एसई जोड एरिया स्थित आवास पर प्रायः पंत जी के दर्शन का सौभाग्य मिलता रहता था। कांता भारती जी का पंत जी ने अपने भतीजे गोर्की पंत से विवाह करा दिया था। इस प्रकार वह कांता पंत हो गयी थीं। </div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
‘‘मैं पंत जी के दर्शनार्थ प्रायः कवि एवं समीक्षक श्री गोपाल कृष्ण कौल के साथ जाया करता था, कभी-कभी अकेला भी जाता था। पंत जी की बादल और परिवर्तन जैसी कविताएं और उनका सौम्य सुदर्शन व्यक्तित्व आज भी स्मृति में सुरक्षित है। उनकी पावन स्मृति को सश्रद्ध नमन!’’ यह कहना है प्रसिद्ध कवि धनंजय सिह का।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
कवि सुमित्रानन्दन पंत का जन्म 20 मई 1900 के दिन कौसानी उत्तराखंड में हुआ था। वे छायावादी युग के स्तंभ थे। उनके काव्य साहित्य पर जहां गांधी का प्रभाव था वहीं कई जगह मार्क्स और फ्रायड का प्रभाव बताया गया। आप हिन्दी साहित्य की काव्य परम्परा के कीर्ति स्तंभ हैं। उन्होंने पद्य के साथ गद्य रचनाएं की। </div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
कवि पंत को पद्मभूषण सम्मान प्रदान किया गया था। साथ ही भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ। साहित्य अकादमी सम्मान प्रदान किया गया। उनकी काव्य पुस्तकें हैं- वीणा, ग्रन्थि, पल्लव, गुंजन, युगवाणी, ग्राम्या, उत्तरा आदि। गद्य पुस्तकों में ‘हार’ उपन्यास, ज्योत्सना, पांच कहानी साठ वर्ष और अन्य निबन्ध, कला और संस्कृति निबंध आदि। सुमित्रानन्दन पन्त की स्मृति में कौसानी में संग्रहालय है।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhxjvuAOa2FHzW8cUZoBFkH4_KtXjj1dpciYepACBe_gPYyG4EA43YivfrLnirdMuu-nLmCQhp96O0eKPkaUvBln479pTBzuN6Wkyqkk8uZwDoGJyNKNsC29ocKH5oLpGgGb-2VKF9P4MC4/s1600/Atul+Sharma.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="540" data-original-width="500" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhxjvuAOa2FHzW8cUZoBFkH4_KtXjj1dpciYepACBe_gPYyG4EA43YivfrLnirdMuu-nLmCQhp96O0eKPkaUvBln479pTBzuN6Wkyqkk8uZwDoGJyNKNsC29ocKH5oLpGgGb-2VKF9P4MC4/s200/Atul+Sharma.jpg" width="185" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
<b>(लेखक डॉ. अतुल शर्मा जाने माने साहित्यकार एवं जनकवि हैं।)</b></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
Dhanesh Kotharihttp://www.blogger.com/profile/00932460129594239970noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-3970556464201003737.post-60607770536298957632020-05-19T13:04:00.000+05:302020-05-19T13:37:45.448+05:30जरा बच के ... (व्यंग्य)<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiUX4UJte-F5tQ1cjtm65xz6U_bRm8Wv9B-krb0vMnc8CMudyDlmjfhabgq3jpUXEQQBoHSPC4zuoWPSw1CqyE2pkpJwf2SGQ3owFloIYD8hzRYVbBfNCPNT2ZTZova-Gfm2G0LEGNCpedH/s1600/Jara+Bach+ke.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="https://www.bolpahadi.in/" border="0" data-original-height="318" data-original-width="538" height="189" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiUX4UJte-F5tQ1cjtm65xz6U_bRm8Wv9B-krb0vMnc8CMudyDlmjfhabgq3jpUXEQQBoHSPC4zuoWPSw1CqyE2pkpJwf2SGQ3owFloIYD8hzRYVbBfNCPNT2ZTZova-Gfm2G0LEGNCpedH/s320/Jara+Bach+ke.jpg" title="जरा बच के ... (व्यंग्य)" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>• प्रबोध उनियाल</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
बहुत समय पहले की बात है, तब इतनी मोटर गाड़ियां नहीं थीं। सबके अपने-अपने घोड़े होते थे। भले ही हम तब भी गधे ही रहे। अस्तु! उस समय मकान की दीवारें 'टच' नहीं होती थी बीच में नाली या नाला आपकी सुविधा अनुसार होता था। 'टच' के जमाने तो अब आये, चाहे दीवारें 'टच' हो या मोबाइल टच...।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<blockquote class="tr_bq" style="text-align: justify;">
<i>पुराने लोग गवाह हैं। उनके जमाने की फिल्मों में शम्मी कपूर और मनोज कुमार पेड़ के ही आसपास घूमते हुए हीरोइन को रिझाते थे लेकिन 'टच' नहीं करते थे। ये सोशल डिस्टेंस ( Social distance ) के जमाने थे। यही वजह थी कि ये फिल्में बेहद मनोरंजक और घर के लोगों के साथ देखने वाली होती थीं। साम्बा इसीलिए हमेशा दूर पत्थर पर बैठा रहता था।</i></blockquote>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
सोशल डिस्टेंस पर कई हिट गाने भी बने हैं। 'दूर रहकर न करो बात करीब आ जाओ..।' लेकिन साहब मजाल है जो हीरो या हीरोइन इतने करीब आ जाएं। समय बैल गाड़ियों से होता हुआ इलेक्ट्रॉनिक रेलगाड़ियों तक आ गया। दूरियां घटने लगी। यानि no distance ...</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
गांव की बात छोड़ दें तो शहरों में बहुमंजिला इमारतें खड़ी हो गयीं। इन इमारतों में घर तो थे लेकिन छत नहीं। इन घरों में रह रहे लोग एक दूसरे से डिस्टेंस में ही रहते हैं। फ्लैट कल्चर है साहब! सही बात कहें तो ये डिस्टेंस तो आम लोगों के लिए है। उसे संभलना होगा। तभी कोरोना से बचा जा सकता है ...!</div>
<div style="text-align: justify;">
<b><br /></b></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhDJVD2D6rMTKEkTiy0M0-xygLGAmsMArgfrNrLEKa9Ui3fqQxWtKa-8Bv5yh_8eaTFo2Z7GZqUuj_nPEkV6CaHaULkCW6IFk2-B17kEmYAw0hH4TW9wxdKNP0Pntw2gv6xxQeMSDf2oKJx/s1600/Prabodh+Uniyal+-1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="904" data-original-width="816" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhDJVD2D6rMTKEkTiy0M0-xygLGAmsMArgfrNrLEKa9Ui3fqQxWtKa-8Bv5yh_8eaTFo2Z7GZqUuj_nPEkV6CaHaULkCW6IFk2-B17kEmYAw0hH4TW9wxdKNP0Pntw2gv6xxQeMSDf2oKJx/s200/Prabodh+Uniyal+-1.jpg" width="180" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<b><br /></b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>(लेखक प्रबोध उनियाल स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
Dhanesh Kotharihttp://www.blogger.com/profile/00932460129594239970noreply@blogger.com2Rishikesh, Uttarakhand, India30.0869281 78.267611629.9770146 78.1062501 30.196841600000003 78.4289731tag:blogger.com,1999:blog-3970556464201003737.post-55516424187666102962020-05-11T14:00:00.001+05:302020-05-11T14:02:03.090+05:30लॉकडाउन में गूंज रही कोयल की मधुर तान<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi1genZqM8WLsPtgI-c5Z-5fZaqkuvillthzeFdXFITRUCP8PbJg6OWHGcUhbB1MxxCPqj4qGZblsLLWucZYLNDSKPXfVWn2i5ioiixopCovQo2GjQ9YQzwQVuw3OfnQojnp7_169qzt80L/s1600/Koyal+02.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="https://www.bolpahadi.in/" border="0" data-original-height="159" data-original-width="261" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi1genZqM8WLsPtgI-c5Z-5fZaqkuvillthzeFdXFITRUCP8PbJg6OWHGcUhbB1MxxCPqj4qGZblsLLWucZYLNDSKPXfVWn2i5ioiixopCovQo2GjQ9YQzwQVuw3OfnQojnp7_169qzt80L/s1600/Koyal+02.jpg" title="लॉकडाउन में गूंज रही कोयल की मधुर तान" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>• प्रबोध उनियाल</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
ये एक भीड़ भरा इलाका है, जहां मैं रहता हूं। मेरी घर की बालकनी से सड़क पर अक्सर भागते लोग और दौड़ती गाड़ियां ही दिखती हैं। तब कहीं न कहीं इस भीड़ में आप भी हैं। अभी तक मैंने इस सड़क को देर रात में ही थोड़ी सी सांस लेते देखा है। लेकिन लॉकडाउन के चलते एक निश्चित समय की छूट के बाद ये सुनसान सी पसरी पड़ी देख रहा हूं।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
आजकल दिनचर्या सामान्य नहीं है। कामकाज के दिनों में आपका समय उसी हिसाब से बंधा होता है। पूरे दिन के इस खाली समय में आपको अपने आप को नियत करना होता है। तब आप कहीं ना कहीं सुकून ढूंढ रहे होते हैं।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
लेकिन कुछ दिनों से मेरे लिए ढलती सांझ सुकून भरी आती है। बचपन यूं ही उन तमाम बच्चों की चुहलबाजियों सा ही बीता। मुझे याद है कि मेरे घर के पास तब इस तरह की ये तमाम सीमेंटेड अट्टालिकाएं नहीं थी। घर में सिर्फ कमरे होते थे दुकाने नहीं! बाजारीकरण के चलते दृश्य बदला और कई कमरे दुकानों में तब्दील हो गए।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
मैं लौटता हूं आजकल की अपनी सांझ पर। पानी पीने के लिए फ्रिज को खोलते हुए मैं अचानक कोयल की मधुर तान सुन रहा हूं। बचपन में, मैंने कोयल की इस कुहू को बखूबी सुना है जो अभी तक भी मेरी स्मृतियों में है। हमारे दौर के बचपन आंगन में ही खेलते हुए बड़े होते थे। आज की तरह बच्चों के हाथ में मोबाइल और सामने टीवी स्क्रीन नहीं होता था।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
कोयल का वैज्ञानिक नाम यूडाइनेमिस स्कोलोपेकस है। कोयल सभी पक्षियों में अपनी तरह की एक नीड परजीविता पक्षी है जो कभी भी अपने घोंसला नहीं बनाती। सभी पक्षियों में कोयल की बोली सबसे मधुर होती है। लेकिन केवल नर कोयल ही गाता है। कोयल कभी जमीन पर नहीं उतरती है, पेड़ों पर ही गुनगुनाती है और वह भी आम के पेड़ों पर। </div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
उर्वर जमीन को उगल रहे यूकेलिप्टस के पेड़ पर तो ये बिल्कुल भी नहीं मंडराती। दुनियाभर के साहित्यकारों ने कोयल की मीठी बोली पर खूब लिखा है। रोमांटिक कवि विलियम वर्ड्सवर्थ कहते हैं- O Cuckoo! Shell I Call Thee Birds, Or but a Wandering Voice! (ओ कोयल! क्या मैं तुम्हें पक्षी कहूंगा, या फिर भटकती आवाज?)</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
बसंत आते ही कोयल कूकने लगती है। लेकिन इनदिनों सन्नाटे के बीच मैं कोयल की कूक को बेहतर सुन रहा हूं। हो सकता है कि ये इत्तेफाक हो कि वह आजकल हर शाम को मुझे कुकते हुए सुनाई दे रही है। मौसम कोई भी हो कोयल गा रही है, आओ हम सब भी इसकी तान के संग हो लें...।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhDJVD2D6rMTKEkTiy0M0-xygLGAmsMArgfrNrLEKa9Ui3fqQxWtKa-8Bv5yh_8eaTFo2Z7GZqUuj_nPEkV6CaHaULkCW6IFk2-B17kEmYAw0hH4TW9wxdKNP0Pntw2gv6xxQeMSDf2oKJx/s1600/Prabodh+Uniyal+-1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="https://www.bolpahadi.in/" border="0" data-original-height="904" data-original-width="816" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhDJVD2D6rMTKEkTiy0M0-xygLGAmsMArgfrNrLEKa9Ui3fqQxWtKa-8Bv5yh_8eaTFo2Z7GZqUuj_nPEkV6CaHaULkCW6IFk2-B17kEmYAw0hH4TW9wxdKNP0Pntw2gv6xxQeMSDf2oKJx/s200/Prabodh+Uniyal+-1.jpg" title="prabodh uniyal" width="180" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
<b>लेखक प्रबोध उनियाल स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। </b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>Photo Source - Google</b></div>
Dhanesh Kotharihttp://www.blogger.com/profile/00932460129594239970noreply@blogger.com13tag:blogger.com,1999:blog-3970556464201003737.post-75237892924654671172020-05-01T21:44:00.000+05:302020-05-02T15:30:58.043+05:30भाई साहब घर में हैं (व्यंग्य)<div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;">
</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjoBtPHV-53U1-_Upp1VvCty657o0oL0XNR3oUFzWyxU5mDor6biZH5bht2py_pNWuWQ4FegMVZo-0YyTF2vR37C-03uHLtX13bVDxC-re1YHKh6rZD9pq781ZBNMUlm7p0KZhh8t7Lz1XT/s1600/pati+patni1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="" border="0" data-original-height="144" data-original-width="286" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjoBtPHV-53U1-_Upp1VvCty657o0oL0XNR3oUFzWyxU5mDor6biZH5bht2py_pNWuWQ4FegMVZo-0YyTF2vR37C-03uHLtX13bVDxC-re1YHKh6rZD9pq781ZBNMUlm7p0KZhh8t7Lz1XT/s1600/pati+patni1.jpg" title="पत्नीश्री! बर्तन चमका दिए... (व्यंग्य)" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>• प्रबोध उनियाल</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<blockquote class="tr_bq" style="text-align: justify;">
<i style="background-color: #eeeeee;"><b>कुछ भाई साहब तो आजकल बर्तनों के साथ फर्श को भी रगड़-रगड़ कर चमका रहे हैं। आजकल अधिकांश पत्नियां, पतियों को क्या काम देना है इसका खूब गुपचुप सलाह मशविरा सहेलियों से ले रही हैं?</b></i></blockquote>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: blue; font-size: large;"><b>पहली</b></span> बार आप कई दिनों से चौबीस घंटे पत्नी के साथ हैं। कुछ गजब ही हो रहा है। आदमी जहां हर वक्त दरवाजे से बाहर जाने की जुगत देखता था वहीं कुछ ऐसा हो रहा है कि पत्नी उठे, आगे चले तो पीछे-पीछे भाई साहब भी! </div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
इनदिनों कुछ यंत्रवत से तमाम पति, पत्नी के चारों ओर ना जाने कितनी बार एक संपूर्ण कोण घूम जा रहे हैं? ‘पत्नीश्री’ किचन की ओर चले तो भाई साहब भी किचन की ओर, पत्नी ड्राइंगरूम की ओर घूमे तो पति पहले ही घूम जाये।</div>
<div style="text-align: justify;">
आखिर पत्नी झल्ला कर बोल ही उठी- ’अरे! तुम एक जगह बैठ जाओ ना, मेरे पीछे-पीछे क्यों चल पड़ते हो?’</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
भाई साहब को बहुत आत्मग्लानि हुई। वह बता रहे थे कि यार! जीवन में ऐसा पहली बार हो रहा है। इतना तो यार तब भी नहीं हुआ था जब कुछ- कुछ हुआ था। भाई साहब! भाभी जी को ‘कुछ-कुछ होता है’ पिक्चर देखने के बाद ही घर लाए थे। मित्रों! ऐसे कई भाई साहब आजकल परेशान हैं तो कई पत्नीश्री भी। </div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
एक भाई साहब को मैंने फोन लगाया और पूछा-’कहां हो? ’बोले- ’यार! क्या करूं, छत पर झूला झूल रहा हूं?’ दूसरे भाई साहब के किस्से सुनो, इन्होंने जिंदगीभर चाय नहीं बनाई लेकिन दिन में जितनी बार मिल जाये पीने से गुरेज नहीं करते। आजकल घर में टंगे हैं। बेचारे जब हर एक-दो घंटे बाद बीवी से चाय की फरमाइश करने लगे तो एक दिन बीवी ने झल्लाते हुए कह ही दिया- ’सुनो जी! चाय पीने का इतना शौक है तो खुद उठो और बना लो’। मुझे दुखड़ा सुना रहे थे कि 'यार! इतनी घनघोर बेइज्जती कभी नहीं हुई?'</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
कुछ भाई साहब तो आजकल बर्तनों के साथ फर्श को भी रगड़-रगड़ कर चमका रहे हैं। आजकल अधिकांश पत्नियां, पतियों को क्या काम देना है इसकी खूब गुपचुप सलाह मशविरा सहेलियों से ले रही हैं? एक भाई साहब को तो जब पत्नी ने मजाक में कहा कि ’उठ जाओ, ऑफिस जाना है’ तो बेचारे ने बिना देरी किए झाड़ू थाम लिया। </div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
हे भगवान! ये कैसा संकट आया है। पता नहीं दिमाग तो लॉकडाउन हो रखा है, काम ही नहीं कर रहा है। बार-बार गलती से मिस्टेक हो जा रही है, पत्नी हंस दी। मैं भी हैरत में हूं! और तमाम भाई साहब भी। क्या कहें- दरअसल "हम हेरत, हम आप हेरानी--।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhDJVD2D6rMTKEkTiy0M0-xygLGAmsMArgfrNrLEKa9Ui3fqQxWtKa-8Bv5yh_8eaTFo2Z7GZqUuj_nPEkV6CaHaULkCW6IFk2-B17kEmYAw0hH4TW9wxdKNP0Pntw2gv6xxQeMSDf2oKJx/s1600/Prabodh+Uniyal+-1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="https://www.bolpahadi.in/" border="0" data-original-height="904" data-original-width="816" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhDJVD2D6rMTKEkTiy0M0-xygLGAmsMArgfrNrLEKa9Ui3fqQxWtKa-8Bv5yh_8eaTFo2Z7GZqUuj_nPEkV6CaHaULkCW6IFk2-B17kEmYAw0hH4TW9wxdKNP0Pntw2gv6xxQeMSDf2oKJx/s200/Prabodh+Uniyal+-1.jpg" title="prabodh uniyal" width="180" /></a></div>
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<br /></div>
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<b>लेखक प्रबोध उनियाल स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। </b></div>
Dhanesh Kotharihttp://www.blogger.com/profile/00932460129594239970noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-3970556464201003737.post-66689496075265994132020-05-01T13:45:00.000+05:302020-05-01T13:56:40.718+05:30महा क्रांति आमंत्रित कर (हिन्दी कविता)<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjib3FER97RSug2NNAhwAN-ynA4lEVkt3-71MT10Y7o-KSuXxSQ3eGttesdK5wMNiX16qD7YlyFz9yIF3XLd7WOXHYB6fDYyTxJx2RPElb5Qx3DXnnDfHmmOrxHjkFnpJFa1wGs5FZtuL9u/s1600/Art-+Harish+Dhyani-+Kotdwar+1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="347" data-original-width="480" height="231" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjib3FER97RSug2NNAhwAN-ynA4lEVkt3-71MT10Y7o-KSuXxSQ3eGttesdK5wMNiX16qD7YlyFz9yIF3XLd7WOXHYB6fDYyTxJx2RPElb5Qx3DXnnDfHmmOrxHjkFnpJFa1wGs5FZtuL9u/s320/Art-+Harish+Dhyani-+Kotdwar+1.jpg" width="320" /></a></div>
<br />
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<b>• श्रीराम शर्मा ‘प्रेम’</b></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
तेरे शोणित, तेरी मज्जा से - <br />
सने धवल प्रासाद खड़े।<br />
तेरी जीवन से ही निर्मित,<br />
तेरी छाती पर किन्तु अड़े<br />
इनको करके दृढ़ से दृढ़तर,<br />
तू स्वयं बना कृश से कृशतर।<br />
नर कहूं तूझे।<br />
<br />
तेरे विनाश के नित नूतन<br />
षडयंत्रों के मंत्रणागार।<br />
तेरी ही शोषण का इनमें,<br />
होता है क्षण-क्षण पर विचार।<br />
तेरी करुणा, तेरे कुन्दन,<br />
ठुकराए जाते हँस हँस कर<br />
कर महा क्रान्ति आमंत्रित कर<br />
नर कहूं तुझे।<br />
<br />
अपना जीवन यौवन देकर,<br />
अपना प्यारा तन-मन देकर,<br />
कुछ, चांदी के टुकड़ों पर ही -<br />
अपने जीवन को खो, खोकर,<br />
तूने ही इनको खड़ा किया,<br />
तेरे गवाह ईटें पत्थर।<br />
कर महा क्रांन्ति आमंत्रित कर<br />
नर कहूं तुझे।<br />
<br />
अपना सब कुछ खोकर जीना<br />
यह ग्लानि-गरल पीना, पीना।<br />
कैसे सह लेता है सीना ?<br />
यह भी कुछ मानव का जीना।<br />
थोड़ी ही हिम्मत कर उठ जा!<br />
उठकर कह दे जय प्रलयंकर।<br />
कर महा क्रान्ति आमंत्रित कर<br />
नर कहूं तुझे।<br />
<br />
पृथ्वी काँपे आकाश हिले,<br />
तारे नभ के कुछ, थर्राये।<br />
अत्याचारी जग के प्रहरी -<br />
ये सूर्य चन्द्र कुछ घबरावें।<br />
ऐसी हो क्रान्ति विशाल विपलु।<br />
काँपे हिमनग थर-थर-थर-थर।<br />
कर महा क्रान्ति कर<br />
नर कहूं तुझे।<br />
<br />
सब कुछ, समाप्त करने वाला-<br />
प्रलयंकर नृत्य भयंकर हो।<br />
उस सर्वनाश की ज्वाला में -<br />
जलता सब अशिव अशंकर हो।<br />
ओ रे! शोषित! ओ रे! पीड़ित!<br />
गा क्रान्ति गीत! पंचम स्वर भर।<br />
कर महा क्रान्ति आमंत्रित कर,<br />
नर कहूं तुझे।<br />
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
<b>काव्य संग्रह - अग्निपुरुष से साभार</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>कविता काल- 1946</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>द्वारा- डॉ. अतुल शर्मा </b></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
Dhanesh Kotharihttp://www.blogger.com/profile/00932460129594239970noreply@blogger.com1