लॉकडाउन में गूंज रही कोयल की मधुर तान
• प्रबोध उनियाल
ये एक भीड़ भरा इलाका है, जहां मैं रहता हूं। मेरी घर की बालकनी से सड़क पर अक्सर भागते लोग और दौड़ती गाड़ियां ही दिखती हैं। तब कहीं न कहीं इस भीड़ में आप भी हैं। अभी तक मैंने इस सड़क को देर रात में ही थोड़ी सी सांस लेते देखा है। लेकिन लॉकडाउन के चलते एक निश्चित समय की छूट के बाद ये सुनसान सी पसरी पड़ी देख रहा हूं।
आजकल दिनचर्या सामान्य नहीं है। कामकाज के दिनों में आपका समय उसी हिसाब से बंधा होता है। पूरे दिन के इस खाली समय में आपको अपने आप को नियत करना होता है। तब आप कहीं ना कहीं सुकून ढूंढ रहे होते हैं।
लेकिन कुछ दिनों से मेरे लिए ढलती सांझ सुकून भरी आती है। बचपन यूं ही उन तमाम बच्चों की चुहलबाजियों सा ही बीता। मुझे याद है कि मेरे घर के पास तब इस तरह की ये तमाम सीमेंटेड अट्टालिकाएं नहीं थी। घर में सिर्फ कमरे होते थे दुकाने नहीं! बाजारीकरण के चलते दृश्य बदला और कई कमरे दुकानों में तब्दील हो गए।
मैं लौटता हूं आजकल की अपनी सांझ पर। पानी पीने के लिए फ्रिज को खोलते हुए मैं अचानक कोयल की मधुर तान सुन रहा हूं। बचपन में, मैंने कोयल की इस कुहू को बखूबी सुना है जो अभी तक भी मेरी स्मृतियों में है। हमारे दौर के बचपन आंगन में ही खेलते हुए बड़े होते थे। आज की तरह बच्चों के हाथ में मोबाइल और सामने टीवी स्क्रीन नहीं होता था।
कोयल का वैज्ञानिक नाम यूडाइनेमिस स्कोलोपेकस है। कोयल सभी पक्षियों में अपनी तरह की एक नीड परजीविता पक्षी है जो कभी भी अपने घोंसला नहीं बनाती। सभी पक्षियों में कोयल की बोली सबसे मधुर होती है। लेकिन केवल नर कोयल ही गाता है। कोयल कभी जमीन पर नहीं उतरती है, पेड़ों पर ही गुनगुनाती है और वह भी आम के पेड़ों पर।
उर्वर जमीन को उगल रहे यूकेलिप्टस के पेड़ पर तो ये बिल्कुल भी नहीं मंडराती। दुनियाभर के साहित्यकारों ने कोयल की मीठी बोली पर खूब लिखा है। रोमांटिक कवि विलियम वर्ड्सवर्थ कहते हैं- O Cuckoo! Shell I Call Thee Birds, Or but a Wandering Voice! (ओ कोयल! क्या मैं तुम्हें पक्षी कहूंगा, या फिर भटकती आवाज?)
बसंत आते ही कोयल कूकने लगती है। लेकिन इनदिनों सन्नाटे के बीच मैं कोयल की कूक को बेहतर सुन रहा हूं। हो सकता है कि ये इत्तेफाक हो कि वह आजकल हर शाम को मुझे कुकते हुए सुनाई दे रही है। मौसम कोई भी हो कोयल गा रही है, आओ हम सब भी इसकी तान के संग हो लें...।
लेखक प्रबोध उनियाल स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।
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अत्यंत सुंदर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद मित्र
Deleteआप गद्य एवं पद्य दोनों पर बड़ी खूबसूरती से हाथ आजमाते यह लेख भी सारगर्भित एवं रोचक है शिव प्रसाद बहुगुणा
ReplyDeleteआप गद्य एवं पद्य दोनों विधाओं में बड़ी खूबसूरती के साथ तथ्यों को रचनात्मक एवं रोचक ढंग से रखते हैं साधुवाद शिव प्रसाद बहुगुणा
ReplyDeleteजी स्नेह बनाये रखें सर
Deleteजी स्नेह बनाये रखें सर
Deleteजी स्नेह बनाये रखें सर
Deleteजी आदरणीय सर बहुत रोचक लेख
ReplyDeleteभावनाओं को काव्य में और विचारों को गद्य में बहुत बढ़िया सजाते है आप
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (13-05-2020) को "अन्तर्राष्ट्रीय नर्स दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ" (चर्चा अंक-3700) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब
ReplyDeleteसच मुझे कभी कभार कोयल की कूक सुनाई देती है आजकल जबकि पहले जब आम पर बौर आते तो साथ में कोयल की कूक भी साथ लाती थी
ReplyDeleteअच्छी लगी अपने परिवेश की खैर खबर यादों के झरोखे से
बहुत खूब ।
ReplyDeleteमन के सहज भाव ।
बहुत सुन्दर लेख...
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