भाई साहब घर में हैं (व्यंग्य) ~ BOL PAHADI

01 May, 2020

भाई साहब घर में हैं (व्यंग्य)


• प्रबोध उनियाल

कुछ भाई साहब तो आजकल बर्तनों के साथ फर्श को भी रगड़-रगड़ कर चमका रहे हैं। आजकल अधिकांश पत्नियां, पतियों को क्या काम देना है इसका खूब गुपचुप सलाह मशविरा सहेलियों से ले रही हैं?
        पहली बार आप कई दिनों से चौबीस घंटे पत्नी के साथ हैं। कुछ गजब ही हो रहा है। आदमी जहां हर वक्त दरवाजे से बाहर जाने की जुगत देखता था वहीं कुछ ऐसा हो रहा है कि पत्नी उठे, आगे चले तो पीछे-पीछे भाई साहब भी! 

इनदिनों कुछ यंत्रवत से तमाम पति, पत्नी के चारों ओर ना जाने कितनी बार एक संपूर्ण कोण घूम जा रहे हैं? ‘पत्नीश्री’ किचन की ओर चले तो भाई साहब भी किचन की ओर, पत्नी ड्राइंगरूम  की ओर घूमे तो पति पहले ही घूम जाये।
आखिर पत्नी झल्ला कर बोल ही उठी- ’अरे! तुम एक जगह बैठ जाओ ना, मेरे पीछे-पीछे क्यों चल पड़ते हो?’

भाई साहब को बहुत आत्मग्लानि हुई। वह बता रहे थे कि यार! जीवन में ऐसा पहली बार हो रहा है। इतना तो यार तब भी नहीं हुआ था जब कुछ- कुछ हुआ था। भाई साहब! भाभी जी को ‘कुछ-कुछ होता है’ पिक्चर देखने के बाद ही घर लाए थे। मित्रों! ऐसे कई भाई साहब आजकल परेशान हैं तो कई पत्नीश्री भी। 

एक भाई साहब को मैंने फोन लगाया और पूछा-’कहां हो? ’बोले- ’यार! क्या करूं, छत पर झूला झूल रहा हूं?’ दूसरे भाई साहब के किस्से सुनो, इन्होंने जिंदगीभर चाय नहीं बनाई लेकिन दिन में जितनी बार मिल जाये पीने से गुरेज नहीं करते। आजकल घर में टंगे हैं। बेचारे जब हर एक-दो घंटे बाद बीवी से चाय की फरमाइश करने लगे तो एक दिन बीवी ने झल्लाते हुए कह ही दिया- ’सुनो जी! चाय पीने का इतना शौक है तो खुद उठो और बना लो’। मुझे दुखड़ा सुना रहे थे कि 'यार! इतनी घनघोर बेइज्जती कभी नहीं हुई?'

कुछ भाई साहब तो आजकल बर्तनों के साथ फर्श को भी रगड़-रगड़ कर चमका रहे हैं। आजकल अधिकांश पत्नियां, पतियों को क्या काम देना है इसकी खूब गुपचुप सलाह मशविरा सहेलियों से ले रही हैं? एक भाई साहब को तो जब पत्नी ने मजाक में कहा कि ’उठ जाओ, ऑफिस जाना है’ तो बेचारे ने बिना देरी किए झाड़ू थाम लिया। 

हे भगवान! ये कैसा संकट आया है। पता नहीं दिमाग तो लॉकडाउन हो रखा है, काम ही नहीं कर रहा है। बार-बार गलती से मिस्टेक हो जा रही है, पत्नी हंस दी। मैं भी हैरत में हूं! और तमाम भाई साहब भी। क्या कहें- दरअसल "हम हेरत, हम आप हेरानी--।

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लेखक प्रबोध उनियाल स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। 

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