दाताs ब्वारि, कनि दुख्यारि (गढ़वाली कहानी)

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कथाकार - भीष्म कुकरेती //

गौं मा इन कबि नि ह्वे. इन कैन बि कबि नि देखी. हाँ बुन्याल त- गाँ मा क्या अडगें (क्षेत्र) मा झबरी ददि सबसे दानि मनखिण च, ह्वेगे होली  पिचाणा-छयाणा साल कि, पण कुनगस च बल झबरी ददि न बि इन अचर्ज नि द्याख. बैदजी ऐ- ऐक थकिगेन. वैदजीन क्या- क्या जि नि कार! पण दाता कि ब्वारि गौमती फर क्वी फरक इ नि पोड़. बैद चिरंजीलाल तै अफु पर इ रोष ऐगे, गुस्सा ऐगे. वैन आन नि द्याख जान नि द्याख अर गुस्सा मा अपणो इ सुयर भेळुन्द चुलै दे. अरे इन कबि नि ह्वे कि मरीज को दुःख बैद चिरंजीलाल को बिंगण मा नि आई हो. 

ठीक च बैदें कर्द- कर्द मरीज मोरि बि ह्वाला पण चिरंजी तै दुःख को पता त पोड़ी जांद छौ. सुयर भेळुन्द चुलांद- चुलांद चिरंजीलालन धन्वन्तरी अर चरक का सौं घैंटीं कि आज से अब बैदकी नि करण बल. जब हथुं फर जस इ नि रैगे त किलै बैदकी करण. जस को जख तक सवाल च चिरंजी जरा मुर्दाक बि नाडी देखि लीन्दो छौ त मुर्दा चम खड़ो ह्वे जान्दो छौ. चिरंजीलाल न क्या- क्या दवा नि पिलैन पण दाता कि ब्वारि उनि कड़कड़ी इ राई.

पूछेरूं गणत बुसेगे, गणत को क्वी फल सुफल नि ह्वेई. बक्की हल्दी... अर चौंळ सूंगी- सूंगी बेहोश क्या परजामा मा चलीगेन पण मजाल च...  कबि नागराजा त कबि ग्विल्ल, कबि दुध्या नरसिंग त कबि डौन्ड्या नरसिंग या कबि सैद या देवी बाक मा उपजी जाओ. सुबेर दाताक ड्यार नागर्जा क घड्यळ, दुफरा मा डौंड्या नर्सिंगौ घड्यळ अर रत्या घड्यळ मा देवी नचै. बक्कयूं बाके अधार पर तीन दै हंत्या क जळकटै बि ह्वेगे. इथगा दिनु  बिटेन जागर्युं बास अब ये इ गाँ मा हुयुं च. इथगा घड्यळ धरणो परांत बि दाता कि ब्वारि नि ह्वाई सुख्यारी. ये इ हुर्स्या हुर्सी मा भौतुंन अपण ड्यार बि घड्यळ धौरिदेन. 

अब दुसरो अडगें का एक बाक्की न बाक मा ब्वाल बल बिंडी सौ साल पैलि क्वी बूड खूड लडै़ मा घैल ह्वे छौ. खुंकरी को कचयूँ वै बूड खूड तै कवा, करैं, चिलंगौं न कोरि कोरिक खै छौ. वै पुरखा कि अधीति, अटकदि भटकदि आत्मा अब दाता कि ब्वारि तैं चैन नि लीण दीणि च. बुल्दन बल  जैकु म्वारु वु क्या नि कारू. दाता क ब्वेन महादेव चट्टीम गंगाळम नारेण बळी बि कराई। पण दाता कि नौली- नौली ब्वारि न ठीक नि हूण छौ स्यू  वा ठीक नि ह्वाई.

दाता क डंड्यळ म, छज्जाम, चौकम, मनिखौं, बूड बुड्यूँ,  नौना नौन्याळयूँ पिपड़कारो मच्युं रौंद छौ. घसेर्युं छ्वीं दाता क ब्वारि छ्वीं बिटेन शुरू होंदी छै अर दाता क ब्वारि छ्वीं मा खतम होंदी छै. ग्वेरूं क बातचित मा बि गोर ना दाता कि ब्वारि इ होंदी छै. स्कूलया बि स्कूल जांद दै  दाता क ड्यार हाजरी लगावन अर तब स्कूल जिना जावन. अर फिर स्कूल बिटेन सीदा दाता क ड्यार जावन अर तब फिर अपण ड्यार जावन. दाना सयाणा जु पैल कैक चौक मा छ्वीं लगान्दा छया अब बस सुबेर बिटेन स्याम तलक इख दाता क चौक मा इ जमघट लगैक छ्वीं लगांदन अर दगड मा दाता क ब्वे तै सलाह मसवरा बि दीणा रौंदन. अच्काल, दाता कौंका चौंतरा जवान, अध्बुडेड़, बुड्यों कुणि तमाखू खाणै एकमात्र जगा च.

गौं कि बात च त दुःख सुख मा काम नि आण त कब काम आण भै! जु बि आओ वु पैल दाता क ब्वे तै ढाढ़स द्याओ अर फिर चौक मा बैठी जाओ. बनि- बनि क लोक याने बनि- बनि क राय मशवरा. दाता क ब्वे बि हेरक क बुल्यूं मानणो बिवस छै. क्वी ब्वाल बल तैं ब्वारि तै गरम पाणि पिलाओ त ब्वारि तै तातो पाणि दिए जान्द छौ, अर क्वी वैबरी ब्वालो बल मेरी स्याळ बि इनी बीमार ह्वे छै अर वीन छांच क्या पे कि वा ठीक ह्वेगे छै. बस क्या दाता क ब्वारि तैं वैबरी छाँछ पिलाए जांद छौ. क्वी ब्वाल बल ब्वारि तै ढिकाण द्याओ त ढिकाण दे दिए जांद. मतबल जति मुख तति तरां बैदकी.

अब जब दाता क ड्यार म अडगें लोक सुबेर बिटेन स्याम तलक जमा रावन त बात कख बिटेन कख पौंछि जाली अर कथगा इ बात होली. उख एक पन्थ द्वी काज हूणो छौ. लोक दाता क ब्वारिक खबर सार बि लीणा अर दगड मा कथगा इ काम बि निबटाणा छया. जब इथगा लोक कट्ठा ह्वेक बैठयां रावन त ब्यौवरी/ ब्यौपार बि होणि छौ. अर फिर ब्यौथौं छ्वीं बि लगणि छौ. यूँ आठ दस दिनु मा दाताक चौक मा इ बीसेक जनम पत्र्युं दिखण दाखण ह्वे, चार नौन्युं मांगण फिक्स ह्वे, आठ जोड़ी बल्द बि इखी बिकेन, कथगा गौड़्यू गोशी, गौशाला बदलेन, द्वी तीन भैंसी इना उना ह्वेन, चार तन्दला बखरों क ब्यौपार बि इखी यूं दिनु ह्वे. द्वी कतर पुंगड़ो ब्यौपार तक इखम ह्वे ग्याई. दाता क ब्वारि कनफणि सि बीमार क्या ह्वे कि दाता क ड्यार अच्काल ब्यवरयौ कुणि मंडी बि बौणिगे.   

    दाता! अहा, दाता! यनु मयळु च बल सरा अडगैं की ब्वे प्रार्थना कर्दन बल हे भूम्या! नौनु देलि त दाता जन. दाता जब द्वी सालौ छौ त बुबा भग्यान ह्वेग्याई अर ब्वे रंडोळ (विधवा) ह्वेगे छै. रंडोळ ब्वेन पड्याळ कौरिक, मजदूरी कौरिक दाता तै पढ़ाई अर आज दाता लखनौ कोलेज मा प्रोफेसर च. ब्यौ क टैम आई त दाता न बोली दे जैञ ब्वेन म्यार बान इथगा खैरि खैनि त जख ब्वे ब्वालली मीन तखी ब्यौ करण. बस स्यू ब्यौ ह्वेग्याई.

पण भाग त द्याखदी दाताक ब्वे का! ब्यौ क उपरान्त पलुणि क तिसर  दिन इ दाताराम तै ड्यूटी पर जाण पोड़. बल उख कोलेज मा समेस्टर की इमतान छन त छुट्टी इथगा इ मीलेन. अर जनि दाता कुटद्वर पौंची होलु  की इना दाता क ब्वारि गौमती अड़गटे गे, कड़कड़ी क कड़कड़ी ह्वेगे. अर इन लग जन बुल्यां ईं ब्वारि खुणि लुचुड़ ऐगे धौं! भूत पिचास, सैद, डैण लग्यां दुख्यर सब्यूंन देखिन पण इन अजाण दुःख कैन नि देखी छौ. एक द्वी दिन मा बबाल ह्वेग्याई बल दाता क ब्वारि मैत इ बिटेन बीमार च.

ग्विर्मिलाक हुणो छौ. लोक दाताक चौक मा जम्यां छ्या. मथि डंड्यळम दाताक ब्वारि रोजक तरां कबि अपण दांत किटणि त कबि खळ-खळ गिच उफारणि छै. कबि एक हौड़ फरकणि त कबि हैंको हौड़ फरक जाओ. कबि खताखति उस्वासी ल्याओ त कबि आंखि कताड़िक  टकटकी लगैक मथि ढ़ाईपरौ  कडियूं,  पटला,  बौळ दिखद जावो. कबि वा अस्यौ (पसीना) मा नये जाओ त कबि वीं तै जड्डू लगी जाओ. अबि गोमती रूंग म्याळ मा पड़ी- पड़ी, मुट्ठी बौटि बौटिक कणाणि छै.

कुछ लोक बैठयां छ्या, जनानी कुमसाणा छ्या, झबरी ददि सीढ़ी मा बैठि छै कि रणेथक परमानाथ डळया गुरु इकतारा बजांद- बजांद चौक मा ऐ. परमानाथ ए गांवक डळया गुरु छौ. वो  इकतारा बजांद- बजांद बडी भली भौंण मा गाणो छौ-
माता रोये जनम जनम कू, बहन रोई छै मासा।
तिरया रोये डेढ़ घड़ी कू, आन करे घर बासा।।

सबि लोक चित्वळ ह्वेगेन बल परमा डळया कख- कखक डाक लांद धौं! अर क्या फरकांद धौं! परमानाथन एकतारा दिवाल पर खड़ो कार चिलम भौर अर लम्बी-लम्बी सोड मारिक धुंवारोळी कार. जब सोड मारिक परमानाथ तै सेळ सि पोड़ त वो सीधो सीढ़ी चौढ़ अर झबरी ददिक तौळ विळ सीढ़ी मा बैठिगे।

वैन झबरी ददि मांगन सौब बिरतांत सूण अर फिर से चिलम पर जोर की सोड पर सोड मारिन. सरा वातावरण मा धुंवारोळी फैलीगे. अब फिर वैन भित्रां मुख कौरिक दाताक ब्वारिक तर्फां ह्यार. झबरी ददि बिटेन सबी बिरतांत बि सूण. परमानाथान दाता क ब्वे तै धाई लगाई, ’ये बौ! जरा तै ब्वारि तै भैर छज्जा मा लादि.’ परमानाथ ए गांवक डळया गुरु छौ त वैकी बात क्वी बि अणसुणि नि करदो छौ.

जनानी दाता की ब्वारि तै छजा मा लैन. परमा डळयान दाताक ब्वारि तै खूब ह्यार. एक दै ना कति दै ह्यार. फिर परमा तौळ चौक मा ऐग्याई. चौक बिटेन वैन झबरी ददि तै ब्वाल, “हे झबरी ददि! मी त बोदू त्वे तै जिंदु इ कुंडम जळे दीन्दा त भलो छौ.“

झबरी ददि पर जन बुल्यां बणाक लगीगे होऊ, वीन बि तड़ाक से ब्वाल, ’अपणि ब्वे तै जिन्दो ख्ड्यार तू.“ पण दगड मा झबरी ददि समजण बि बिसेगे कि परमानाथ तै क्वी अकल कि बात सूजीगे. वा सने- सने कौरिक  सीड़ी उतरण मिसेगे.  

फिर परमानाथ न चिरंजीलाल तै सुणायि, “ बैद जी तुम त दवाई का इ गुलाम छंवां. मन बि कवी चीज होंद कि ना?“ चिरंजीलाल उनि बि दुखी छौ वैन कुछ नि ब्वाल.

परमानाथ न झबरी ददि तै जोर कैकी पूछ, “ये ददि कति नाती नातिण  छन त्यार?“

“ए अभागी गुरु दाग नि लगै. झड़ नाती, नतेण सौब मिलैक होला तीन बीसी से अग्यारा कम.“ झबरी ददि क जबाब छौ

परमानाथ न ब्वाल, ’अर अबि बि नि समजी कि दाता कि ब्वारि किलै दुखयारी च“
झबरी ददि न ब्वाल, ‘जु तू अफु तै भेमाता समजदी त बोल..“
परमानाथ न पूछ, “दाता ब्यौ बाद कति राति घौर राई?“
झबरी न जबाब दे , “द्वि रातिकृ“
परमानाथ न पूछ, ’अर दाता क ब्वारिक उमर क्या होली?’
झबरी ददि न जबाब मा ब्वाल,’ होली बीस- इक्कीस..“
परमानाथन जबाब दे, “ए खाडून्द कि ददि! जवान ब्वारि, ब्योला ब्यौ क द्वी राति बाद देस चलेगे त ब्वारि न दुख्यर होणि च कि ना?“

झबरी ददिन अपण कपाळ पर जोर कि चमकताळ लगाई, “ए म्यरा भुभरड़! हाँ इनमा त ब्वारि न दुख्यर हुणि च.. कि ना... अर जवान ब्वारि अर ब्योला त द्वी राति... अच्छा तबी ब्वारिक दंत सिल्याणा छन तबी वा दंत किटणि च. तबि अस्यौ..
ये ब्वे! मेरी खुपड़ी मा या बात किलै नि आई..“
परमानाथ न ब्वाल, “अब तेरा बर्मंड मा बात भीजीगे?“
झबरी ददिन धाई लगान्द ब्वाल, “ये दाताक ब्वे! भोळ इ कैरा दगड ब्वारि तै दाता क पास लखनौ भेज. मी नाती नातिण्यु सौं घौटिक बुलणु छौं जनि ब्वारि दाता तै द्याख्ली वीन अफिक ठीक ह्वेजाण.“
चिरंजीलाल वैद दौड़िक परमानाथ क ध्वार आई अर खुसफुस अवाज मा ब्वाल, ’मतब , देह सुख कि कामना से दाता कि ब्वारि दुखयारी च?“
परमानाथ न ब्वाल, “कनो आँख, कंदूड़, साँस लीणो ढंग नि बथाणा छन कि देह सुख कि कामना से इ दाता कि ब्वारि दुखयारी च“
चिरंजीलाल वैद को जबाब छौ, ’अरे मीन यीं दृष्टि से टटोळ इ नी च.. हाँ देह कामना की..“
दान, बूड खूड समजीगेन कि असली बीमारी क्या च. इना कैरा दाता की ब्वारि तै भोळ लखनौ लिजाणो तयारी मा लग उना परमानाथ अपण एकतारा बजाण बिसेगे अर गाण मिस्याई...
सुन रे बेटा  गोपीचंद जी, बात सूनी की चित लाइ।
कंचन काया, कनक कामिनी, मति कैसी भरमाई।।

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पांच सात दिनु पैथर कैरा जब लखनौ बिटेन घौर बौड़ त वैन बताई बल दाता कि ब्वारि लखनौ पौंछणा तीनेक दिन मा ठीक ह्वेग्याई. 


copyright@ Bhishma Kukreti
Photo source- google 

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