इंसानी जीवन के रेखांकन की कविताएं

पुस्तक समीक्षा-  जलड़ा रै जंदन (गढ़वाली कविता संग्रह)
डॉ. नंद किशोर हटवाल //

कविताओं को अपने समय और समाज का दर्पण कहा जाता है। अपेक्षा की जाती है कि उसमें हमारा ‘आज’ हो। कविताएं अपने भाषाई और सामाजिक वर्ग की विशिष्टताओं और चिंताओं से भी परिचित कराए। उनमें उस वर्ग के अंतिम व्यक्ति की चिंताएं प्रतिध्वनित हों। अपनी माटी की खुशबू और प्रकृति की रम्यता में इंसान कहीं खो न जाए। कविता इलाकाई और भाषाई सीमाओं से बाहर निकली हुई, हवा की तरह आजाद और पानी की तरह सार्वभौम हो। उसमें अपने अंचल की मिठास तो हो लेकिन जकड़न न हो। क्षेत्रीय विशिष्ठताएं हों लेकिन बंधन न हों। देवेन्द्र जोशी के सद्य प्रकाशित गढ़वाली कविता संग्रह ‘जलड़ा रै जंदन’ को पढ़ते हुए कुछ इसी तरह की अनुभूतियों से गुजरा जा सकता है। 

संग्रह की पहली कविता ‘जलड़ा रै जांदा’ में अपनी जड़ों से जुड़ने की एक गहरी चाहत दिखती है। कवि के अंतर्मन की यह चाहत अन्य कविताओं में भी प्रकट हुई है। कविता में आगे बढ़ने की इच्छा के समर्थन के साथ अपनी जड़ों को न भूलने, उनसे अलग न होने और उसे सिंचित करने की इच्छा खूबसूरत तरीके से व्यक्त हुई है। 
कविता ‘जख्या’ आम आदमी को परिभाषित करती है- 
मी सदानी गाली खांदू रयूं/कै का पुगड़ों/गल्ति से भी जम गयूं/धाणि किसाण्यूंन/चट्ट उपाड़ि फुंड चुटै द्यूं

‘ठांगरा’ कविता वैयक्तिक छटपटाहट के खिलाफ सामाजिक रूप से आगे बढ़ने- बढ़ाने की हिमायत करती है-
हम खुणै/क्य हरगण ह्वे होलू/न ठंगरा ल्है सकणा छां/न घैंटि सकणा छां/लगुलौं तैं/अंक्वै फलना-फुलणा खुणे/ठंगरा जरूरी छन।

‘हमारा कूड़ा’ कविता में- जांदरा (हाथ की चक्की)/ बीजि जांदन बिंनसरी मा/अर बांचण बैठि जांदा/ भूख मिटौणा मंत्र/अर चिड़ौंदा तिलक धार्रों तैं...’ कहकर कवि ने श्रम के सुरीलेपन की तह में दबी चुभन और श्रम के खिलाफ रहने वाली किसी भी प्रवृत्ति के अस्वीकार को बयां किया है। 

‘जांदरे’ की गरगराहट को भूख मिटाने के मंत्र के रूप में सुनना कवि की अनुभूति की ऊंचाइयों को दर्शाती है। यह कर्मकाण्ड के सामने कामगारों के जीत की कविता है। संग्रह की कई कविताओं में श्रम की पक्षधरता दिखती है। यथा ‘बड़ू आदिम’ कविता खेती किसानी करने वाले को बड़ा आदमी बनाती है। 

संग्रह की कविताओं में लोकगीत की शैलियों और टैक्निक के प्रभाव भी दिखते हैं। सम्बोधन शैली उत्तराखण्ड के लोकगीतों की बहुप्रयुक्त शैली रही है। इसका प्रयोग कवि ने बखूबी किया है। मुहावरों और लोकोक्तियों के प्रयोगों ने कविताओं का सौंन्दर्य बढ़ाया है तो नए अप्रचलित शब्दों के प्रयोगों ने शब्दों को मृत होने से बचाया है। विषय चयन में नवीनता है। जख्या, अछ्याणू, बल्द, जुत्ता कविताओं में समकालीन प्रवृत्तियां दृष्टिगत हुई हैं। राजनैतिक, सामाजिक चेतना का विस्तार और व्यंग्य कविताओं में दिखता है।

संग्रह का दूसरा खण्ड गीत का खण्ड है। इसमें उत्तराखण्ड आन्दोलन से लेकर अन्य अवसरों पर लिखे गीत संग्रहीत हैं। पहला संग्रह ‘कांठ्यों मा ओंण से पैलि’ (1984) और उसके बाद ये दूसरा संग्रह जलड़ा रै जंदन गढ़वाली साहित्य में मील के पत्थर कहे जा सकते हैं।

गढ़वाली भाषा में लिखी गई इस संग्रह की कविताएं संवेदनाओं और वैचारिक स्तर पर काफी विस्तार लिए हैं। डाडी-कांठी, झरने, बादल, घुघूती, घाम, बरखा जैसी छायावादी प्रवृत्तियों से आगे बढ़ते हुए जोशी की कविताएं इंसानी जीवन की विडम्बनाओं और राजनैतिक विद्रूपों को अनावृत करती हैं। 

कुल मिला कर ‘जलड़ा रै जंदन’ संग्रह की कविताएं खूबसूरत प्रकृति, पहाड़ों, नदियों, झरनो, मंदिरों और देवताओं की भूमि में इंसानी जीवन के रेखांकन की कविताएं हैं।

संग्रह :  जलड़ा रै जंदन (गढ़वालि काव्य संग्रै)
कवि :  देवेन्द्र जोशी, फोन नं. 7895905366
प्रकाशक :  विनसर पब्लिशिंग कम्पनी, 
           8, प्रथम तल, के0सी0 सिटी सेंटर 
           4 डिस्पेंसरी रोड़, देहरादून-248001
कुल पृष्ठ : 116, मूल्य : 100.00

रचनाकार का पता : छैल, 76 विद्या विहार, कारगी रोड, देहरादून-24001
पुस्तक प्राप्ति : प्रकाशक, लेखक एवं युगवाणी प्रेस, 14 बी, क्रास रोड, देहरादून।

समीक्षक : डॉ. नंद किशोर हटवाल

Comments

  1. पुस्तक समीक्षा- "जलड़ा रै जंदन" (गढ़वाली कविता संग्रह) की सारगर्भित पुस्तक समीक्षा के लिए आपका धन्यवाद!
    देवेन्द्र जोशी जी को हार्दिक बधाई, शुभकामनाएं
    शुभ-दीपावली!

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (23-10-2019) को    "आम भी खास होता है"   (चर्चा अंक-3497)     पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
     --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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  3. मैंने अभी आपका ब्लॉग पढ़ा है, यह बहुत ही शानदार है।
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  4. शानदार, विस्तृत पुस्तक समीक्षा ।

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