धुंआ-धुंआ (गढ़वाली कविता)


https://www.bolpahadi.in/

प्रदीप रावत ‘खुदेड़’//

डांडी-कांठी, डाळी-बोटी धुंआ व्हेगेन पाड़ मा,
मनखि, नेता, कवि, उड़ी तै रुवां व्हेगेन पाड़ मा।

देहरादून बटि फुकेंदा बोणू कू हाल लिखेणू छ,
अब त गौं का पत्रकार भी हवा व्हेगेन पाड़ मा।

पहरेदार फसोरी सिया छन एसी हवा मा तख,
हैरि चांठी जोळी इख उलटू तवा व्हेगेन पाड़ मा।

कोयल बिचैरी देहरादून स्टूडियो मा गीत गाणी
डांडयूं मा छक्वे बेसुरा कव्वा व्हेगेन पाड़ मा।

कैते यूं फुकेंदी डांडयूं से कुछ बी मतलब नि,
नेता अप्सर सब रुप्या खवा व्हेगेन पाड़ मा।

पाणी बुसग्या, गंगा, नायर-गाड, सब बुसग्येन
खाळ, पंदेरा, मगेरा, सुख्या कुवां व्हेगेन पाड़ मा।

सब कुछ लुटणे, फोणे, होड़ लग्यीं छ इख भारि
अब मनिख बि ल्वे चुसदा जुवां व्हेगेन पाड़ मा।।

https://www.bolpahadi.in/

प्रदीप रावत ‘खुदेड़’//

Popular posts from this blog

गढ़वाल में क्या है ब्राह्मण जातियों का इतिहास- (भाग 1)

गढ़वाल की राजपूत जातियों का इतिहास (भाग-1)

गढ़वाली भाषा की वृहद शब्द संपदा