उत्तराखंड के हिमालय में
कई छोटे-बड़े बुग्याल मौजूद हैं। औली, गोरसों बुग्याल, बेदनी
बुग्याल, दयारा बुग्याल, पंवालीकांठा,
चोपता, दुगलबिट्टा सहित कई बुग्याल हैं,
जो बरबस ही सैलानियों को अपनी और आकर्षित करते हैं। लेकिन इन सबसे
अलग बेपनाह हुस्न और अभिभूत कर देने वाला सौंदर्य को समेटे सीमांत जनपद चमोली के
देवाल ब्लाक में स्थित आली बुग्याल आज भी अपनी पहचान को छटपटाता नजर आ रहा है।
प्रकृति ने आली पर अपना सब कुछ लुटाया है, लेकिन नीति
नियंताओं की उदासीनता के कारण आज आली हाशिए पर चला गया है।
जान लें कि पहाड़ों में
जहां पेड़ समाप्त होने लगतें हैं यानि की टिंबर रेखा, वहां से हरे भरे मखमली घास के
मैदान शुरू हो जाते हैं। आपको यहीं पर स्नो और ट्री लाइन का मिलन भी दिखाई देगा।
उत्तराखंड में घास के इन मैदानों को बुग्याल कहा जाता है। ये बुग्याल बरसों से
स्थानीय लोगों के लिए चारागाह के रूप में उपयोग में आतें हैं। जिनकी घास बेहद
पौष्टिक होती हैं। इन मखमली घासों में जब बर्फ की सफेद चादर बिछती है, तो ये किसी जन्नत से कम नजर नहीं आते हैं। इन बुग्यालों में आपको नाना
प्रकार के फूल और वनस्पति लकदक दिखाई देंगे। हर मौसम में बुग्यालों का रंग बदलता
रहता है। बुग्यालों से हिमालय का नजारा ऐसे दिखाई देता है, जैसे
किसी कलाकार ने बुग्याल, घने जंगलों और हिमालय के नयनाभिराम
शिखरों को किसी कैनवास पर उतारा है। बुग्यालों में कई बहुमूल्य औषधि युक्त
जडी-बू्टियां भी पाई जाती हैं। इसके साथ-साथ हिमालयी भेड़, हिरण,
मोनाल, कस्तूरी मृग जैसे जानवर भी देखे जा
सकते हैं।
चमोली के देवाल ब्लाक
में स्थित आली बुग्याल तक पहुंचने के लिए कर्णप्रयाग से लगभग 100 किमी वाहन में
जाना पड़ता है। कर्णप्रयाग से नारायणबगड़, थराली, देवाल, मुंदोली होते हुए अंतिम गांव वाण पहुंचा जाता
है। जबकि वाण गांव से आली तक का सफर पैदल ही तय करना पड़ता है। वाण गांव से थोड़ा
ऊपर जाने पर लाटू देवता का पौराणिक मंदिर है। जिसके कपाट पूरे साल में केवल एक ही
दिन के लिए खुलते हैं। हिमालयी महाकुंभ नंदा देवी राजजात यात्रा में लाटू देवता से
अनुमति मिलने के बाद ही राजजात आगे बढती है। लाटू देवता को मां नंदा का धर्म भाई
माना जाता है और राजजात में यहां से आगे नंदा का पथ प्रदर्शक लाटू ही होता है।
लाटू मंदिर के बाद
रणकधार नामक जगह आती है। फिर आगे नील गंगा, गैरोली पाताल, डोलियाधर
होते हुए बांज, बुरांस, कैल के घने
जंगलों, नदी, पशु, पक्षियों के कलरव ध्वनियों के बीच 13 किमी पैदल चलने
के उपरान्त 12 हजार फीट की ऊंचाई पर आली और बेदनी के मखमली
बुग्याल के दीदार होते हैं। बेदनी से ही सटा हुआ है आली बुग्याल। जो पांच किमी से
भी अधिक क्षेत्रफल में विस्तारित और फेला हुआ है। यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त
देखना किसी रोमांच से कम नहीं है। ये दोनों दृश्य बेहद ही अद्भुत और अलौकिक होते
हैं। साथ ही यहां से दिखाई देने वाले त्रिशूल और नंदा देवी सहित अन्य पर्वत
शृखंलाओं का दृश्य लाजबाब होता है। वहीं हरी मखमली घास, ओंस
की बूंदे, चारों और से हिमालय की हिमाच्छादित नयनाविराम
चोटियां, धूप के साथ बादलों की लुकाछिपी आपको यहां किसी
जन्नत का अहसास कराती है। दिसंबर से मार्च तक यहां बिछी बर्फ की सफेद चादर स्कीइंग
के लिए किसी ऐशगाह से कम नहीं है। इसे स्कीइंग रिसोर्ट के रूप में विकसित किया जा
सकता है।
वास्तव में देखा जाए तो
आली बुग्याल को स्थानीय लोग ही नहीं बल्कि पहाड़ों से प्यार करने वाले, देश से लेकर
विदेशी भी आली की सुंदरता के कायल हैं। आली की नैसर्गिक सुंदरता आपको हिमालय के
बहुत करीब ले जाती है। मुझे भी नंदा देवी राजजात यात्रा 2014
में आली बुग्याल का दीदार करने का अवसर मिला था। आली बुग्याल के बेपनाह सौंदर्य को
देखकर बस देखता ही रह गया था। हरे घास का ये मैदान घोड़े की पीठ का आभास दिलाता है।
हिमालय की गोद में बसे मखमली घास और फूलों के इस खजाने को आज भी पर्यटकों का
इंतजार है। अगर आप भी आली के बेपनाह हुश्न का दीदार करना चाहते हैं तो सितंबर से
लेकर नवंबर महीने तक यहां का रुख कर सकते हैं।
देवाल की ब्लाक प्रमुख
उर्मिला बिष्ट कहती हैं कि आली बुग्याल पर्यटन के लिहाज से सबसे ज्यादा मुफीद है।
इसे विश्वस्तरीय स्कीइंग रिजोर्ट के रूप में विकसित किया जा सकता है। जिससे न केवल
पर्यटन बढे़गा, बल्कि स्थानीय लोगों के लिए भी रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। 1972 में आली को रोपवे से जोड़ने का प्रस्ताव भेजा गया था। हमने भी कई बार आली
को पर्यटन केंद्र और स्कीइंग रिजोर्ट के रूप में विकसित करने का प्रस्ताव पर्यटन
विभाग और सरकार को भेजा है। लेकिन अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है। जिस कारण से
आली बुग्याल आज भी पर्यटन के दृष्टि से अपनी पहचान नहीं बना पाया है।
पर्यटन व्यवसाय से जुड़े
स्थानीय युवा हीरा सिंह बिष्ट कहते हैं कि आली का मखमली बुग्याल सैलानियों को बरबस
ही अपनी और आकर्षित करता हैं। लेकिन सरकारों की उदासीनता और उपेक्षा के चलते आज
आली अपनी पहचान के लिए तरसता नजर आ रहा है। वहीं हिमालय को बेहद करीब से जानने
वाले पर्वतारोही विजय सिंह रौतेला कहते हैं कि आली बुग्याल की सुदंरता के सामने हर
किसी का हुश्न फीका है। बरसात के समय हरी भरी घास की हरियाली मन को मोहित करती है, तो बर्फ के समय
पूरा बुग्याल सफेद चादर से चमक उठता है। जबकि यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त का
नजारा देखना वाकई अद्भुत है। सरकार को चाहिए कि इस बुग्याल को पर्यटन के रूप में
विकसित करें, ताकि पर्यटन को बढ़ावा मिले और स्थानीय लोगों को
रोजगार के अवसर मुहैया हो सकें।
आलेख- संजय चौहान
फोटो साभार- विजय रौतेला
फोटो साभार- विजय रौतेला