बारिश में भीगता दिन ~ BOL PAHADI

15 September, 2011

बारिश में भीगता दिन

बीती रात से ही मूसलाधार बारिश रुक रुककर हो रही थी. सुबह काम पर निकला तो शहरभर में आम दिनों जैसी हलचल नहीं थी. मित्रों के साथ त्रिवेणीघाट निकला. गंगा के पानी का रंग गाढ़ा मटमैला होने के कारण हम मान रहे थे कि जलस्तर में कुछ बढ़ोतरी हुई है. लेकिन जब वाटर लेवल पोल को देखा तो और दिनों के मुकाबिल १०-१२ सेमी की वृद्धि ही नजर आयी. सो बाढ़ के कयास धरे रह गए. साथी बता रहे थे कि पिछले साल इसी दिन से गंगा अपना रौद्र रूप दिखाने लगी थी. १८-१९ सितम्बर आते-आते गंगा २०१० के सबसे उच्चतर स्तर ३४१.५२ मीटर पर खतरे के निशान से करीब एक मीटर ऊपर बह रही थी. सो हम अनुमान लगा रहे थे कि क्या इस बार भी गंगा में बाढ़ के हालात पैदा होंगे. हालांकि अभी तक टिहरी झील भले ही लबालब यानि ८२० आरएल से ऊपर भर चुकी है. लेकिन बाढ़ के संकेत वहां से भी नहीं मिल रहे.

उधर, अखबारों में अगले ३६ घंटे तक राज्य में भारी बारिश के अनुमान की खबरे प्रकाशित हैं. शाम होते-होते खबर मिली कि ढालवाला के ऊपरी वार्ड में जंगल से अत्यधिक पानी का सैलाब आने के कारण कई घरों में मलबा भर चुका है. कोई कयास लगा रहा था कि शायद गांव से सटे जंगल में बादल फटा हो. यह कयास ही साबित हुआ. वार्ड में अफरातफरी मच चुकी थी. इसी दौरान क्षेत्र के वर्तमान व पूर्व विधायक भी मौके पर जायजा लेने पहुंच चुके थे. समाधान किसी के पास नहीं था सिवाय अफसोस जताने के. गांव के प्रधान ने बताया कि वे करीब दो साल पहले ही गांव के ऊपरी इलाके में तटबंध बनाने की मांग कर चुके हैं. लेकिन विधायक अपने तकिया कलाम "ह्‌वेजालु" को दोहराने को ही अपनी उपलब्धी मानकर चेले चपाटों के साथ चल दिए.

मित्रों ने दिन में एक बात पर भी ध्यान दिलाया कि जब पिछली बार भी मेजर जनरल खंडूरी सीएम बने थे तो राज्य को काफी आपदाओं का सामना करना पड़ा था. यह भी इत्तेफाक है कि इस बार भी जिस दिन से वे सीएम बने उसी दिन उनके गोपनियता की शपथ लेने के कुछ ही पलों के बाद नरेन्द्रनगर के डौंर गांव में दैबीय आपदा ६ लोगों को लील चुका था.

खैर रात में अन्य दिनों के मुकाबले न गर्मी थी न मुझे पंखा चलाने की जरुरत महसूस हुई. मैं सोच रहा था कि चलो बिजली बचाओ अभियान में मेरा कोई तो योगदान हो रहा है. भले ही यह प्रकृति के कारण हुआ है. काश प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के प्रति हमारी सोच में भी किसी तरह की जागरुकता बढ़े तो हमें गर्मियां भी शायद इसी तरह से सुहानी लगें.......

बुधवार १५ सितम्बर २०११

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