पहाड़ ~ BOL PAHADI

22 September, 2010

पहाड़

https://bolpahadi.blogspot.in/
मेरे दरकने पर
तुम्हारा चिन्तित होना वाजिब है
अब तुम्हें नजर आ रहा है
मेरे साथ अपना दरकता भविष्य
लेकिन मेरे दोस्त! देर हो चुकी है
अतीत से भविष्य तक पहुंचने में
भविष्य पर हक दोनों का था
आने वाले कल तक हमें
कल जैसे ही जुड़े रहना था
लाभ का विनिमय करने में चुक गये तुम,
दोस्त!
तुम्हारा व्यवहार उस दबंग जैसा हो गया
जो सिर्फ लुटने में विश्वास रखता है
जिसके कोश में ’अपराध’ जैसा कोई शब्द नहीं
बल्कि अपराध उसकी नीति में शामिल है
लिहाजा अपने दरकते वजूद के साथ-
तुम्हारे घावों का हल मेरे पास नहीं
यह भी तुम्हें ही तलाशना होगा
मैं अब भी
तुम्हारे अगले कदम की इन्तजार में हूं।

सर्वाधिकार- धनेश कोठारी

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