11 September, 2010

’श्रीहरि’ का ध्यान नहीं लग रहा

मैं जब १९९५ में सीमान्त क्षेत्र बदरीनाथ पहुंचा था। तो यहां के बर्फीले माहौल में पहाड़ लकदक दिखाई देते थे। तब तक यहां न ही बादलों में बिजली की कौंध दिखाई देती थी न उनकी गड़गड़ाहट ही सुनाए पड़ती थी। यहां के लोगों से सुना था कि बदरीनाथ में भगवान श्रीहरि विष्णु जन कल्याण के लिए ध्यानस्थ हैं। इसी लिए प्रकृति भी उनके ध्यान को भंग करने की गुस्ताखी नहीं करती है। आस्था के बीच यह सब सच भी जान पड़ता था। किन्तु आज के सन्दर्भों में देखें तो हमारी आस्था पर ही प्रश्नचिन्ह साफ नजर आते हैं। क्योंकि अब यहां बिजली सिर्फ कौंधती ही नहीं बल्कि कड़कती भी है। बादल गर्जना के साथ डराते भी हैं।

इन दिनों पहाड़ों में प्रकृति के तांडव को देखकर यहां भी हर लम्हा खौफजदा कर देता है। ऐसे में जब पुरानी किंवंदन्तियों की बात छिड़ती है तो उन्हें कलिकाल का प्रभाव कहकर नेपथ्य में धकेल दिया जाता है।
क्या कहें! क्या वास्तव में यह कलिकाल का असर है। या इस हिमालयी क्षेत्र में अनियोजित निर्माण के जरिये हमारी चौधराहट का नतीजा है। जहां पेड़ों, फुलवारियों की जगह पर इमारतें बना दी गई हैं। हालत यहां तक जा चुके कि धार्मिक उपक्रमों की मानवीय व्यवहारिकता को "उत्पादक" के खोल में लपेट लिया गया है। जोकि लाभ हानि की गणित को तो समझता है। लेकिन सामाजिक कर्तव्यों को समझने को दुम दबा बैठता है। समूचे यात्राकाल में "धंधे" के आरोह-अवरोह पर तो टिप्पणियां होती हैं। किन्तु हिमालय की तंदुरस्ती पर सोचने को पल दो पल देने की फुर्सत नहीं मिलती है। सो क्या माने कि यह भी कलिकाल का ही प्रभाव है? या फिर विश्व कल्याण के लिए तपस्थित ’श्रीहरि’ का ध्यान नहीं लग पा रहा है।

Popular Posts

Blog Archive

Our YouTube Channel

Subscribe Our YouTube Channel BOL PAHADi For Songs, Poem & Local issues

Subscribe