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गढ़वाल: इस गांव में आज भी निभाई जा रही मामा पौणा की परंपरा

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• शीशपाल गुसाईं Mama Pauna Tradition : सदियों से चली आ रही मामा पौणा (मामा मेहमान) की प्रथा नरेंद्रनगर ब्लॉक के दोगी पट्टी में आज भी जीवित है।  जो कि महान संस्कृति को जीवित रखती है। प्रथा के अनुसार भांजे की शादी में मामा को घोड़े में मेहमान के रूप में लड़की (वधु) के यहां ले जाया जाता है और उनके गले में मालाएं होती हैं जिससे वह विशेष मेहमान के दर्जे में आते हैं। लोकगीतों में भी मामा पौणा के बहुत सारे गीत सुनने को मिलते हैं। गढ़वाल क्षेत्र यह इलाका धन्य है जिन्होंने इस परंपरा को आज भी जीवित रखा है।  मामा पौणा ( मामा मेहमान) लोगों को अपनी विरासत को महत्व देने के लिए प्रेरित करती है। मामा पौणा की प्रथा आज भी समाज में बहुत महत्वपूर्ण है। यह संस्कृति एक सामाजिक सम्बंध को प्रदर्शित करती है और सभी नाते-रिस्तेदारों गांव के बीच सद्भाव एवं मित्रता को बढ़ावा देती है। मामा को विशेष रूप से व्यवस्थित घोड़े पर बैठा कर और देखने से भांजे के परिवार में प्रेम और सम्मान का भी बोध होता है। यह हमारी संस्कृति में अनुसरित गहन रीतियों और रीति-रिवाजों की प्रमाणित करती है।  पूरे विवाह उत्सव के दौरान, मामा की महत्वता

गढ़वाली कहानीः छठों भै कठैत की हत्या!

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प्रतीकात्मक चित्र • भीष्म कुकरेती /    हौर क्वी हूंद त डौरन वैक पराण सूकि जांद पण मेहरबान सिंग कठैत त राजघराना को संबंधी छौ राजा प्रदीप शाह को खासम ख़ास महामंत्री पुरिया नैथाणी सनै कौरिक खड़ो ह्व़े अर वैन कैदी मेहरबान सिंग कठैत तैं द्याख. फिर पुरिया नैथाणी न मेहरबान कठैत को तर्फां देखिक, घूरिक ब्वाल,“ओह! कठैत जी! जाणदवां छंवां तुम पर क्या अभियोग च?“ मेहरबान सिंग कठैत न जबाब दे,’पुरिया बामण जी! अभियोग? जु म्यार ब्वाडा क नौन्याळ पंचभया कठैत तुमर पाळीक बजीर मदन सिंग भंडारी, हमर बैणिक जंवैं भीम सिंग बर्त्वाल जन लोकुं ळीोंन दसौली ज़िना नि मारे जांद अर तुम पकडे़ जांद त तुम क्या जबाब दीन्दा? बामण जी जरा जबाब त द्याओ.“ पुरिया नैथाणी न ब्वाल,“खैर.. हाँ त! खंडूरी जी! डोभाल जी! जरा हम सब्युं समणि मेहरबान सिंग कठैत पर क्या क्या अभियोग छन सुणाओ.!“खंडूरी न पुरिया नैथाणी, भीम सिंग बर्त्वाल, मदन भंडारी, सौणा रौत, भगतु बिष्ट, डंगवाल, भागु क नौनु सांगु सौन्ठियाल अर सात आट और मंत्र्युं ज़िना देखिक ब्वाल,“ मेहरबान सिंग कठैत क भायुं - सादर सिंग, खड्ग सिंग आद्युं न जनता पर स्युंदी सुप्प डंड, हौळ डंड, चुल्लू डं

समीक्षाः जीवन के चित्रों की कथा है ‘आवाज रोशनी है’

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बचपन की स्मृतियां कभी पीछा नहीं छोड़तीं। कितना भी कहते रहो ’छाया मत छूना मन’ मन दौड़ता रहता है दादी, नानी, मामा, मां, पिताजी के पास। अमिता प्रकाश की कृति आवाज़ रोशनी है- जीवन के उस कालखंड की यादें हैं जहां ‘उस मीठी नींद में, नाना-नानी का प्यार दुलार है, मामा-मामी की केयर है, धौली गाय का स्नेह है, अज्जू, सूरी, गब्दू की छेड़खानियां हैं। गुर्रूजी की फटकार है, पानी के लिए लड़ते-झगड़ते अनेकों चेहरे हैं तो घास व लकड़ी की ’बिठकों’ के नीचे हंसती खिलखिलाती, किसी ‘बिसौण’ पर बतियाती या जेठ-बैसाख की दुपहरी में किसी सघन खड़िक या पीपल की छांव में सुस्ताती, या पत्थरों की दीवार पर घड़ी भर को थकान से चूर- नींद की गोद में जाती नानी-मामी-मौसियों के चेहरे हैं। ’पंदेरे’- चैरी और तलौं पर लड़ती-झगड़ती, कोलाहल करती आठ से अस्सी वर्ष तक के स्त्री-पुरुषों के असंख्य चित्र’ इन्हीं चित्रों की कथा है- आवाज रोशनी है। लेखिका अमिता आवाज की इस रोशनी में अपने समूचे बचपन को पूर्ण सच्चाई से जीती हुई, हमारे सामने पहाड़ के किसी भी गांव का चित्र बना देतीं हैं। वैसे इस गांव का नाम सिलेत है। कितनी मजेदार बात है कि जब मैं किताब के मार्फत अम

कंडाळी (बिच्छू घास) के अनेकों फायदे

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- डॉ. बलबीर सिंह रावत कंडळी, (Urtica dioica), बिच्छू घास, सिस्नु, सोई, एक तिरस्कृत पौधा, जिसकी ज़िंदा रहने की शक्ति और जिद अति शक्तिशाली है. क्योंकि यह अपने में कई पौष्टिक तत्वों को जमा करने में सक्षम है. हर उस ठंडी आबोहवा में पैदा हो जाता है जहां थोडा बहुत नमी हमेशा रहती है. उत्तराखंड में इसकी बहुलता है और इसे मनुष्य भी खाते हैं. दुधारू पशुओं को भी इसके मुलायम तनों को गहथ, झंगोरा, कौणी, मकई, गेहूं, जौ, मंडुवे के आटे के साथ पका कर पींडा बना कर देते हैं। कन्डाळ में जस्ता, तांबा सिलिका, सेलेनियम, लौह, केल्सियम, पोटेसियम, बोरोन, फोस्फोरस खनिज, विटामिन ए, बी1, बी2, बी3, बी5, सी और के होते हैं. ओमेगा 3 और 6 के साथ-साथ कई अन्य पौष्टिक तत्व भी होते हैं. इसकी फोरमिक एसिड से युक्त, अत्यंत पीड़ादायक, आसानी से चुभने वाले, सुईदार रोओं से भरी पत्तियों और डंठलों की स्वसुरक्षा अस्त्र के और इसकी हर जगह उग पाने की खूबी के कारण इसकी खेती नहीं की जाती. धबड़ी ठेट पर्वतीय शब्द है, जिसका अर्थ होता है किसी भी हरी सब्जी में आलण डाल कर भात के साथ दाल के स्थान पर खाया जाने वाला भोज्य पदार्थ. हर हरी सब्जी का अपना अ

गढ़वाली, कुमाउनी और जौनसारी की शब्दावली में विदेशी भाषाओं के शब्द

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संकलन- भीष्म कुकरेती अरबी और इरानी शब्द   अ- अक्षर से शब्द - अदब , अमरुद , अब्बल , असर , असल , अहम आ- अक्षर से शब्द - आइन्दा , आइना , आखिर , आखिरें, आदि, आदत , आदतन , आगाह , अजमाना , आजाद , आतिशबाजी , आदत , आदमी , आदाब , आदी, आफत , आबकारी , आबरू , आबला , आबाद , आम (कॉमन) , आमदनी , आरजू , आराम ,  आलम , आलम (नाम) , आलिशान , आवाज , आशिक , आसमान , आसमानी , आसार , आस्तीन , आहिस्ता  इ- अक्षर से शब्द  - इन्कलाब , इंतकाम , इंतकाल , इंसान , इन्तजार , इंसान , इकरार, इख्तियार, इजाफा, इज्जत , इजाजत , इत्तेफाक , इत्तेला , इंतजाम , इत्मीनान , इनकार , इमदाद , इम्तिहान, इमरती ,  इमारत , इरादा , इर्दगिर्द , इलाहाबाद , इल्म (एलम) , इशारा , इश्क , इस्तीफा , इस्तेमाल , ई- अक्षर से शब्द  - ईमान , ईमानदार , ईसा उ- अक्षर से शब्द  - उमर, उसूल , उम्दा, उस्तरा , उस्ताद ए- अक्षर से शब्द - एकाएक , एहसान (अहसान) , एतवार (ऐतवार) , एवज , एहसास  ऐ- अक्षर से शब्द - ऐतराज , ऐनक , ऐयासी, ऐलान , ऐश औ- अक्षर से शब्द - औकात , औरत , औलाद (आन औलाद ) , औसतन   क- अक्षर से शब्द कद्दू , कफन, कमान , कमाल,  कसर , कमर , कबूतर , कम

‘इमोशन’ की डोर से बंधी ‘खैरी का दिन’ (Garhwali Film Review)

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  - धनेश कोठारी भारतीय सिनेमा के हर दौर में सौतेले भाई के बलिदान की कहानियां रुपहले पर्दे पर अवतरित होती रही हैं। हालिया रिलीज गढ़वाली फीचर (Garhwali Feature Film) फिल्म ‘ खैरी का दिन ’ (Khairi Ka Din) का कथानक भी ऐसे ही एक तानेबाने पर बुनी गई है। जिसमें नायक से लेकर खलनायक तक हर कोई अपने हिस्से की ‘ खैरि ’ ( दर्द) को पर्दे पर निभाता है , और क्लाईमेक्स में यही ‘ खैरि ’ दर्शकों को उनकी आंखें भिगोकर थियेटर से लौटाती है। माहेश्वरी फिल्मस (Maheshwari Films) के बैनर पर डीएस पंवार कृत और अशोक चौहान ‘ आशु ’ द्वारा निर्देशित फिल्म ‘ खैरी का दिन ’ एक देवस्थल पर नायक कुलदीप (राजेश मालगुड़ी) के सवालों से शुरू होकर फ्लैश बैक में चली जाती है। जहां सौतेली मां की मौत के बाद तीन भाई-बहनों की जिम्मेदारी कुलदीप पहले खुद और फिर संयोगवश उसकी पत्नी बनी दीपा (गीता उनियाल) मिलकर निभाते है। उनके त्याग की बुनियाद पर सौतेले भाई-बहन बड़े और कामयाब होते हैं। वहीं , विलेन किरतु प्रधान (रमेश रावत) के कारनामों से तंग गांववासी चुनाव में कुलदीप को प्रधान चुनते हैं। जिसके बाद कुलदीप के खिलाफ शुरू होते हैं किरतु के ष

जसपुर के बहुगुणाओं का ज्योतिष का गढ़वाली टीका साहित्य- 3

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  • भीष्म कुकरेती यह लेखक हिंदी टीकाओं से गढ़वाली शब्दों की खोज कर रहा था कि उसे कुछ पंक्तियों के बाद गढ़वाली पक्तियों की टीका भी मिली। याने की पहले हिंदी में टीका फिर गढ़वाली और फिर हिंदी में। इस भाग में भी ग्रहों की गणना करने की विधि और फलादेश की टीका है। गढ़वाली टीका का भाग इस प्रकार है - ।। भाषालिख्यते ।। प्रथम भूजबोल्याजांद ।। पैले २१२९   अंशतौ भुज होयु होयो जषते ३ राश होया तव ६ राशिमा घटाणो याने ६। ०। ०। ० । मा घटाणो ५ राश २९ अंश तक जषते फिर ६। ७। ८ राश होयातो ६। ०। ०। ० ।   मा उलटा घटाणो ९ राश उप्र १२। ०। ०। ० मा घटाणो।   सो भुज होयो ना सूर्य को मन्दो च्च ७८ अंश को होयो तो सो ३० न चढ़णो।। अथ सूर्य स्फष्ट ।। पैलो सूर्य मध्य माउ को २।   १८।   ०।   ० मा घटाणो। तव तैको नामकेंद्र होयो २ राश से केंद्र अधिक होवूत भुज करनो तव भुजकी राश ३० न गुणनि तलांक जीउणा तव ९ न भाग लीणो ३ अंक पौणा . तव सो तीन अंक। २०। ०। ० ०। मा घटाणो। ... तव इन तरह से गोमूत्री करणी तव जो ९ उन मौगपाय सो दुई जगा रखणा सो गो मूत्री काका उपर रखणो विष। २० मा घटायूं जो छ सो नीचे रखणो तव आपस मा गुणी देणा.सो ६० से उपर चं